GRSE ने शुरू किया 13 हाईब्रिड फेरी निर्माण: हुगली नदी पर स्वच्छ और टिकाऊ जल परिवहन की नई शुरुआत
भूमिका
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Toggleभारत में जल परिवहन एक अहम भूमिका निभाता है, विशेषकर उन शहरों में जो बड़ी नदियों के किनारे बसे हैं। कोलकाता, जो हुगली नदी के किनारे स्थित है, यहां की जल यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए लगातार प्रयासरत है।
इसी कड़ी में, Garden Reach Shipbuilders and Engineers (GRSE) ने हाल ही में एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की है, जिसके तहत हुगली नदी पर चलने वाली 13 हाईब्रिड फेरी बनाने का कार्य शुरू किया गया है।
ये फेरी आधुनिक तकनीक से लैस होंगी और पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हुए यात्रियों को सुरक्षित और आरामदायक सफर प्रदान करेंगी।
GRSE का परिचय और भूमिका
Garden Reach Shipbuilders and Engineers (GRSE), कोलकाता स्थित भारत सरकार की एक प्रमुख शिपबिल्डिंग कंपनी है, जो रक्षा और नागरिक क्षेत्र दोनों के लिए जहाज निर्माण में माहिर है।
75 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ, GRSE ने भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल के लिए कई जहाज बनाए हैं। अब यह अपनी विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए पर्यावरण-समझदार जल परिवहन समाधान विकसित कर रहा है।
इस परियोजना के माध्यम से GRSE का उद्देश्य केवल जहाज निर्माण ही नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल के जल परिवहन ढांचे को बेहतर बनाकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी योगदान देना है।
हुगली नदी में जल परिवहन की आवश्यकता और चुनौतियां
हुगली नदी कोलकाता महानगर क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण जलधारा है, जिसके किनारे करोड़ों लोग रहते हैं और जो आर्थिक गतिविधियों का भी केंद्र है।
नदी पर चलने वाले पारंपरिक फेरी और नावें लाखों लोगों को हर दिन एक किनारे से दूसरे किनारे तक ले जाती हैं। हालांकि, ये पारंपरिक फेरी ज्यादातर डीजल इंजन पर चलती हैं, जिससे नदी और वायु प्रदूषण की समस्या बढ़ रही है।
इस संदर्भ में, नई हाईब्रिड फेरी की शुरुआत जरूरी हो जाती है ताकि प्रदूषण को कम किया जा सके, यात्रियों को बेहतर सुविधा मिले और नदी की पारिस्थितिकी को संरक्षित किया जा सके।
हाईब्रिड फेरी परियोजना: उद्देश्य और महत्व
इस परियोजना के अंतर्गत कुल 13 हाईब्रिड फेरी का निर्माण किया जाएगा। हाईब्रिड फेरी में बैटरी संचालित इलेक्ट्रिक मोटर और डीजल जनरेटर दोनों का संयोजन होता है,
जिससे फेरी को स्वच्छ ऊर्जा पर चलाने के साथ ही जरूरत पड़ने पर डीजल इंजन का सहारा भी लिया जा सकता है।
यह संयोजन ईंधन की बचत, कम प्रदूषण, बेहतर दक्षता और अधिक सुरक्षा प्रदान करता है। इन फेरी के साथ हुगली नदी के जल परिवहन क्षेत्र में एक नया युग शुरू होगा, जो पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ विकास के लक्ष्यों को भी पूरा करेगा।
तकनीकी और डिज़ाइन विशेषताएँ
डिजाइन
हाईब्रिड फेरी का डिजाइन कैटामारन हुल संरचना पर आधारित होगा, जो नाव को अधिक स्थिरता और गति प्रदान करता है।
ये फेरी एल्यूमीनियम और फाइबर रिइंफोर्स्ड पॉलिमर (FRP) से बनी होंगी, जो हल्की लेकिन मजबूत सामग्री है।
6 फेरी ट्विन डेक (दो मंजिला) होंगी, जिनकी क्षमता लगभग 200 यात्री होगी। जबकि बाकी 7 फेरी सिंगल डेक होंगी, जिनकी क्षमता 100 यात्री तक होगी।
पावर और प्रणोदन
प्रत्येक फेरी में एक हाईकैपेसिटी लिथियम-आयन बैटरी होगी, जो बिजली से संचालित इलेक्ट्रिक मोटर को ऊर्जा प्रदान करेगी।
बैटरी खत्म होने पर या उच्च गति की जरूरत पर डीजल जनरेटर काम में आएगा।
इस प्रणाली से फेरी संचालन के दौरान उत्सर्जन को न्यूनतम रखा जा सकेगा।
अधिकतम गति 9 से 12 नॉट्स के बीच होगी, जो फेरी संचालन के लिए उपयुक्त है।
पर्यावरणीय तकनीक
सोलर पैनल की मदद से फेरी की बैटरी चार्जिंग को सहायक बनाया जाएगा।
शोर और धुआं नियंत्रण के लिए उच्च तकनीकी फिल्टर और ध्वनि कम करने वाले उपकरण लगाए जाएंगे।
पहले से उपलब्ध ‘Dheu’ इलेक्ट्रिक फेरी का अनुभव
GRSE ने पहले ही पश्चिम बंगाल सरकार के लिए एक इलेक्ट्रिक फेरी ‘Dheu’ बनाई है, जो पूरी तरह से शून्य-उत्सर्जन वाली है। यह फेरी 150 यात्रियों के लिए सक्षम है और इसकी बैटरी 246 किलोवाट की है।
‘Dheu’ का सफल परिचालन इस बात का प्रमाण है कि GRSE की तकनीक पर भरोसा किया जा सकता है।
यह अनुभव 13 हाईब्रिड फेरी के निर्माण में सहायता करेगा, जो अधिक बड़ी और जटिल होगी, लेकिन उसी पर्यावरण-मैत्री दृष्टिकोण पर आधारित होगी।
निर्माण प्रक्रिया और समयसीमा
निर्माण कार्य GRSE के कोलकाता मुख्यालय में शुरू हो चुका है।
प्रत्येक फेरी की निर्माण प्रक्रिया में उन्नत मशीनीकरण और कठोर गुणवत्ता जांच शामिल होगी।
परियोजना की योजना अगले 2 वर्षों में सभी 13 फेरी को पूरा करने और नदी पर परिचालन शुरू करने की है।
परियोजना को राज्य सरकार के जलमार्ग परिवहन विकास प्रोजेक्ट के तहत वित्तीय और तकनीकी सहायता मिल रही है।
समाज और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
पर्यावरणीय प्रभाव
डीजल आधारित फेरी की तुलना में हाईब्रिड फेरी का प्रदूषण में कमी लाना निश्चित है।
नदी के पानी और आसपास के पर्यावरण की गुणवत्ता बेहतर होगी।
शहर में हवा की गुणवत्ता में सुधार होगा, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियों में कमी आएगी।
आर्थिक लाभ
जल परिवहन का समय और लागत दोनों कम होंगे।
हाईब्रिड फेरी की लंबी जीवन अवधि और कम ईंधन लागत से परिचालन खर्च में बचत होगी।
पर्यावरण-अनुकूल तकनीक के कारण पर्यटन और जलमार्ग व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
यात्रियों के लिए सुविधाएं
यात्रियों को ज्यादा सुरक्षित और आरामदायक यात्रा का अनुभव मिलेगा।
फेरी में आधुनिक सुरक्षा उपकरण जैसे CCTV, आपातकालीन निकासी व्यवस्था और बेहतर बैठने की व्यवस्था होगी।
मौसम के अनुरूप बेहतर स्थायित्व और गति सुनिश्चित होगी।

राज्य सरकार और केंद्रीय सरकार का सहयोग
पश्चिम बंगाल सरकार ने जल परिवहन को स्वच्छ, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए कई नीतियां बनाई हैं। GRSE के इस प्रोजेक्ट को राज्य सरकार की तरफ से पूरा समर्थन मिल रहा है।
इसके अतिरिक्त, केंद्र सरकार की ‘मरीन इंडिया विजन 2030’ नीति भी इस तरह की परियोजनाओं को प्रोत्साहित करती है।
इन सरकारी पहलों से जल परिवहन क्षेत्र में तकनीकी उन्नयन और पर्यावरण संरक्षण को बल मिला है।
भविष्य के अवसर और चुनौतियां
अवसर
हाईब्रिड फेरी का सफल परिचालन देश के अन्य जलमार्गों के लिए उदाहरण बनेगा।
तकनीकी सुधार और अनुसंधान के जरिए फेरी और भी पर्यावरण-मैत्री और सक्षम बनाई जा सकती हैं।
इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड जल परिवहन क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
चुनौतियां
बैटरी चार्जिंग और रखरखाव की व्यवस्था को सुनिश्चित करना।
जलमार्ग पर मौजूदा बुनियादी ढांचे का उन्नयन।
यात्रियों को नई तकनीक से परिचित कराना और उनका विश्वास जीतना।
हाईब्रिड फेरी तकनीक का गहराई से विश्लेषण
हाईब्रिड प्रणाली कैसे काम करती है?
हाइब्रिड फेरी में दो ऊर्जा स्रोत होते हैं — एक इलेक्ट्रिक बैटरी और एक डीजल जनरेटर। फेरी जब नदी के अंदर धीमी गति से चलती है, तब यह पूरी तरह से बैटरी से संचालित होती है। इससे कोई धुआं या ध्वनि प्रदूषण नहीं होता।
जब फेरी को तेज गति या लंबी दूरी तय करनी होती है, तब डीजल जनरेटर चालू हो जाता है, जो बैटरी को चार्ज भी करता है और फेरी को अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करता है।
इस प्रक्रिया से ईंधन की खपत कम हो जाती है, प्रदूषण घटता है, और संचालन अधिक कुशल बनता है।
बैटरी सिस्टम
उपयोग की गई लिथियम-आयन बैटरी लंबे समय तक चलने वाली और हल्की होती है।
बैटरी की क्षमता ऐसा रखी जाती है कि रोजाना की पूरी यात्रा बिना चार्जिंग के हो सके।
चार्जिंग के लिए आधुनिक चार्जर और सोलर पैनल सपोर्ट सिस्टम लगाए जाएंगे, जो पर्यावरण की मदद करते हैं।
फेरी संचालन में ऊर्जा बचत
हाइब्रिड तकनीक ऊर्जा बचाने के साथ-साथ रखरखाव में भी सस्ती साबित होती है। डीजल जनरेटर का कम उपयोग इंजन के खराब होने की संभावना घटाता है।
GRSE द्वारा विकसित इन हाईब्रिड फेरी के पावर मैनेजमेंट सिस्टम (PMS) को भी स्मार्ट तरीके से डिजाइन किया गया है, जो ऊर्जा की खपत को रियल टाइम मॉनिटर करता है और अनावश्यक ऊर्जा उपयोग को रोकता है।
पर्यावरणीय प्रभाव और जल संरक्षण
प्रदूषण में कमी
भारत में बड़ी नदियों और जलमार्गों का प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। डीजल इंजन आधारित फेरी से निकलने वाला धुआं और तेल प्रदूषण न केवल पानी के जीवों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि आसपास के वायुमंडल को भी विषाक्त करता है।
हाइब्रिड फेरी इस समस्या का प्रभावी समाधान हैं। ये फेरी प्रदूषण उत्सर्जन को लगभग 60% तक घटा सकती हैं, जिससे नदी और वातावरण दोनों की सुरक्षा होती है।
शोर प्रदूषण में कमी
कई बार पारंपरिक फेरी का तेज शोर आसपास के इलाकों में तनाव का कारण बनता है। हाईब्रिड फेरी के इलेक्ट्रिक मोड में लगभग शून्य ध्वनि होती है, जिससे नदी किनारे के स्थानीय निवासियों को शांति मिलती है।
सामाजिक और आर्थिक बदलाव
रोजगार सृजन
इस परियोजना के तहत न केवल फेरी का निर्माण होगा, बल्कि इसका संचालन, रखरखाव और देखरेख के लिए भी प्रशिक्षित कर्मियों की जरूरत होगी। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।
यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा
इन फेरी में आधुनिक सुरक्षा उपकरण लगाए जाएंगे, जैसे फायर अलार्म, जीवनरक्षक उपकरण, आपातकालीन निकास द्वार आदि।
यात्रियों के लिए बेहतर आरामदायक बैठने की व्यवस्था और छत्री (कैनोपी) होगी, जिससे गर्मी या बारिश में भी यात्रा सुरक्षित रहेगी।
GRSE की भूमिका और भविष्य की योजनाएं
GRSE इस परियोजना को केवल एक शिपबिल्डर के रूप में नहीं देख रहा, बल्कि एक पर्यावरण-हितैषी जल यातायात सेवा प्रदाता के रूप में अपनी भूमिका निभाना चाहता है।
आगे की योजनाओं में, GRSE जल यातायात के लिए और भी अधिक स्वच्छ ऊर्जा पर आधारित फेरी और नौकाएं विकसित करने का लक्ष्य रखता है।
भारत के अन्य बड़े जलमार्ग जैसे गोदावरी, कावेरी, ब्रह्मपुत्र और महाराष्ट्र के नहर प्रणालियों में भी इस तरह की हाईब्रिड तकनीक लागू करने की योजना है।
राज्य सरकार की जल परिवहन नीति
पश्चिम बंगाल सरकार ने जल परिवहन को प्राथमिकता देते हुए ‘जल यातायात सुधार योजना’ चलाई है, जिसमें फेरी सेवा को आधुनिक, सुरक्षित और पर्यावरण-अनुकूल बनाना शामिल है।
इस नीति के तहत, नई हाईब्रिड फेरी परियोजना को विशेष प्रोत्साहन और अनुदान दिए गए हैं। सरकार की योजना है कि आने वाले 5 वर्षों में कोलकाता महानगर क्षेत्र में जल यातायात को दोगुना किया जाए।
स्थानीय समुदाय का समर्थन और प्रतिक्रिया
नदी किनारे रहने वाले स्थानीय लोग इस नई तकनीक का स्वागत कर रहे हैं क्योंकि यह उनकी जीवन शैली और आर्थिक गतिविधियों में सुधार लाएगी।
यात्री सुरक्षा, कम प्रदूषण, और कम शोर से स्थानीय निवासी खुश हैं। साथ ही, पर्यावरण के प्रति जागरूक युवाओं और पर्यावरण संगठनों ने भी इस परियोजना की प्रशंसा की है।
भारत में स्वच्छ जल परिवहन का वैश्विक संदर्भ
विश्वभर में स्वच्छ और टिकाऊ जल परिवहन को बढ़ावा दिया जा रहा है। यूरोप, अमेरिका और जापान जैसे देशों में हाईब्रिड और इलेक्ट्रिक फेरी लंबे समय से चल रही हैं।
भारत में GRSE की यह पहल वैश्विक मानकों के अनुरूप है और इसे भविष्य में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी प्रसारित किया जा सकता है। यह भारत की जल परिवहन उद्योग को नया आयाम देगा।
हुगली नदी पर जल परिवहन का ऐतिहासिक महत्व और आधुनिक जरूरतें
हुगली नदी भारत के सबसे महत्वपूर्ण जलमार्गों में से एक है। इतिहास में भी यह नदी व्यापार, आवागमन और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है।
कोलकाता, जो हुगली नदी के किनारे बसा है, भारत का प्रमुख बंदरगाह शहर है और यहां की जल परिवहन प्रणाली ने सदियों से इलाके की आर्थिक रफ्तार को बढ़ावा दिया है।
परंतु समय के साथ पारंपरिक फेरी सेवाओं में कई कमियां आईं — जैसे प्रदूषण, शोर, धीमी गति, असुरक्षा और कम पर्यावरण अनुकूलता। इन समस्याओं के समाधान के लिए आधुनिक हाइब्रिड फेरी का निर्माण आवश्यक हो गया।
हाईब्रिड फेरी परियोजना से जुड़े तकनीकी विशेषताएं
फेरी का डिजाइन और निर्माण
डिज़ाइन: आधुनिक इंजीनियरिंग के तहत हल्के और मजबूत मटेरियल का इस्तेमाल, जो फेरी को ज्यादा टिकाऊ और ईंधन कुशल बनाता है।
निर्माण: GRSE की अत्याधुनिक शिपयार्ड में अनुभवी इंजीनियरों और तकनीशियनों द्वारा निर्मित।
सुरक्षा मानक
अंतरराष्ट्रीय जल यातायात सुरक्षा मानकों के अनुसार सभी सुरक्षा उपकरणों की स्थापना।
इमरजेंसी सिस्टम और यात्रियों के लिए व्यापक सुरक्षा उपाय।
हाईब्रिड फेरी की देखभाल और रखरखाव
फेरी के संचालन के बाद भी उसके रखरखाव की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है। GRSE और राज्य सरकार ने एक संपूर्ण रखरखाव योजना बनाई है, जिसमें शामिल हैं:
नियमित बैटरी और इंजन जांच।
चार्जिंग स्टेशन की व्यवस्था।
तकनीकी प्रशिक्षण और सेवा कर्मचारियों की तैनाती।

पर्यावरणीय लाभ: आंकड़ों और शोध के माध्यम से
कार्बन उत्सर्जन में कमी: अनुमानित तौर पर ये हाइब्रिड फेरी परंपरागत डीजल फेरी की तुलना में 40-60% तक कार्बन उत्सर्जन कम करेंगी।
जल प्रदूषण में कमी: डीजल लीक और तेल के फैलाव की संभावना न के बराबर।
स्थानीय पारिस्थितिकी की सुरक्षा: नदी के जल जीव और किनारे के पौधों पर न्यूनतम प्रभाव।
यात्रियों के अनुभव में सुधार
नए हाईब्रिड फेरी यात्रियों के लिए बेहतर सुविधा और आराम सुनिश्चित करती हैं। इसमें शामिल हैं:
कम शोर और कम्पन।
बेहतर सीटिंग व्यवस्था।
छाया और बारिश से बचाव।
डिजिटल टिकटिंग और ट्रैकिंग सुविधा।
आर्थिक प्रभाव: लागत और बचत
संचालन लागत में कमी
हाइब्रिड तकनीक के कारण ईंधन की खपत कम होने से कुल परिचालन लागत में भी कमी आती है।
सरकार के लिए निवेश
यह परियोजना दीर्घकालिक निवेश है जो न केवल पर्यावरण के हित में है, बल्कि आर्थिक रूप से भी फायदेमंद साबित होगी।
जल परिवहन के भविष्य में हाईब्रिड फेरी की भूमिका
जल परिवहन को स्वच्छ, किफायती और टिकाऊ बनाने के लिए हाईब्रिड और इलेक्ट्रिक फेरी का भविष्य उज्जवल है। GRSE की यह पहल भारत में जल परिवहन के आधुनिक युग की शुरुआत है।
आने वाले वर्षों में और भी उन्नत तकनीकें, जैसे पूरी तरह से इलेक्ट्रिक फेरी और सौर ऊर्जा से चलने वाली नौकाओं को विकसित करने की योजना है।
स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया की प्रतिक्रिया
इस परियोजना को लेकर मीडिया में सकारात्मक कवरेज हुआ है। कई समाचार चैनलों और पत्रिकाओं ने इस पहल को भारत में स्वच्छ ऊर्जा और जल यातायात के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम बताया है।
निष्कर्ष
Garden Reach Shipbuilders and Engineers (GRSE) द्वारा हुगली नदी में 13 हाईब्रिड फेरी का निर्माण एक महत्वपूर्ण और अभिनव पहल है, जो कोलकाता महानगर क्षेत्र के जल परिवहन के भविष्य को पूरी तरह बदलने वाली है।
यह परियोजना पारंपरिक डीजल फेरी की तुलना में न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि यात्रियों को बेहतर सुरक्षा, आराम और तेज सेवा भी प्रदान करती है।
हाइब्रिड तकनीक के जरिए ऊर्जा की बचत, प्रदूषण में भारी कमी और शोर रहित संचालन संभव हुआ है, जो नदी के पारिस्थितिक तंत्र को सुरक्षित रखने में मददगार है।
इसके साथ ही, इस परियोजना से स्थानीय रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।
सरकार और GRSE की साझेदारी से यह साबित होता है कि भारत में स्वच्छ ऊर्जा और टिकाऊ जल परिवहन को प्राथमिकता दी जा रही है।
आने वाले समय में ऐसे और भी प्रोजेक्ट्स पूरे देश में जल मार्गों को आधुनिक बनाने और पर्यावरण को बचाने के लिए प्रेरणा बनेंगे।
इसलिए, GRSE की यह हाईब्रिड फेरी परियोजना न केवल कोलकाता के लिए, बल्कि पूरे भारत के जल यातायात के क्षेत्र में एक नयी क्रांति और स्थिरता का संदेश लेकर आई है।
यह कदम देश के ‘स्वच्छ ऊर्जा’ और ‘स्मार्ट सिटी’ विज़न को साकार करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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