Ghumura Dance: वीरता, संस्कृति और एकता का अद्भुत संगम – जानिए इसकी अनसुनी कहानी!
भूमिका
Table of the Post Contents
Toggleभारत विविधता में एकता का प्रतीक है, और इसकी सांस्कृतिक धरोहरों में नृत्य का एक महत्वपूर्ण स्थान है। हर राज्य का अपना विशिष्ट लोकनृत्य है, जो उसकी परंपराओं, मान्यताओं और इतिहास को दर्शाता है।
इसी श्रृंखला में “Ghumura” नृत्य भी आता है — जो कभी युद्ध भूमि में वीरता का उद्घोष था और आज भाईचारे और एकता का प्रतीक बन गया है। इस नृत्य का मूल गहरा और गौरवपूर्ण है, जो विशेष रूप से ओडिशा राज्य के आदिवासी समुदायों से जुड़ा है।

Ghumura नृत्य का इतिहास
युद्धभूमि का उद्घोष
Ghumura नृत्य का प्रारंभ एक युद्ध नृत्य के रूप में हुआ था। प्राचीन काल में जब राजा युद्ध के लिए जाते थे, तब सैनिकों को उत्साहित करने, युद्ध भावना को जागृत करने और दुश्मन को भयभीत करने के लिए घुमुरा वाद्य बजाया जाता था। यह नृत्य और संगीत वीरता और गर्व का प्रतीक था।
ऐसा माना जाता है कि घुमुरा का जन्म महाभारत काल में हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, घुमुरा वाद्य का उपयोग देवी दुर्गा के सैनिकों द्वारा युद्ध के समय किया गया था। कुछ लोक मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि यह वाद्य राक्षसों के विरुद्ध देवताओं की लड़ाई के दौरान उपयोग हुआ था।
आदिवासी जीवन से जुड़ाव
समय के साथ, Ghumura नृत्य आदिवासी जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया। विशेषकर कालाहांडी, नुआपाड़ा, बलांगीर, और कंधमाल जिलों के आदिवासी समूहों ने इस नृत्य को अपने सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में शामिल कर लिया।
युद्ध समाप्त होने के बाद भी इस नृत्य का महत्व कम नहीं हुआ, बल्कि यह एकता, शक्ति और भाईचारे का प्रतीक बनकर उभरा।
Ghumura शब्द की व्युत्पत्ति
“घुमुरा” शब्द दो भागों से मिलकर बना है — “घु” और “मुरा”।
“घु” का अर्थ है गूँजती हुई ध्वनि।
“मुरा” का अर्थ है सिर या मस्तक।
इस प्रकार, घुमुरा एक ऐसा वाद्य है जिसकी आवाज इतनी गूंजदार है कि वह युद्धभूमि में सैनिकों के मनोबल को बढ़ा सके।
Ghumura वाद्य यंत्र
Ghumura नृत्य में प्रयुक्त वाद्य यंत्र एक ढोल जैसा होता है, जिसे कंधे पर टांगा जाता है। यह वाद्य विशेष प्रकार की मिट्टी और चमड़े से बनाया जाता है।
इसका आकार अर्धगोलाकार होता है।
एक तरफ चमड़ा कसा होता है जिस पर बजाया जाता है।
कलाकार इसे लकड़ी की छड़ी या सीधे हाथों से बजाते हैं।
इसके अलावा, नर्तक घुंघरू, सिर पर पगड़ी और पारंपरिक परिधान पहनते हैं, जिससे उनकी उपस्थिति अत्यंत प्रभावशाली लगती है।
नृत्य की शैली
Ghumura नृत्य सामूहिक रूप से किया जाता है। इसमें पुरुष कलाकार एक वृत्त या अर्धवृत्ताकार आकृति बनाकर नृत्य करते हैं।
नृत्य की शुरुआत धीमी गति से होती है और फिर ताल के साथ उसकी गति तेज हो जाती है।
नर्तक लयबद्ध कदमों के साथ वाद्य बजाते हैं और समूह में समन्वय बनाए रखते हैं।
हाथों, कंधों और पैरों की ऊर्जावान गतिविधियाँ इस नृत्य को ऊर्जावान बनाती हैं।
कई बार नर्तक नाटकीय युद्ध शैली में मुद्रा बनाते हैं, जो पुराने युद्ध नृत्य के प्रभाव को जीवित रखते हैं।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
एकता और भाईचारे का संदेश
आज घुमुरा नृत्य युद्ध का उद्घोष नहीं, बल्कि एकता और भाईचारे का गीत बन चुका है। यह आदिवासी समाज में मेलजोल, सहयोग और साझा उत्सव की भावना को मजबूत करता है।
त्योहारों, शादियों, फसल उत्सवों, और सामूहिक आयोजनों में घुमुरा नृत्य का आयोजन बड़े गर्व से किया जाता है।
आत्मगौरव और सांस्कृतिक पहचान
Ghumura नृत्य आज भी ओडिशा के आदिवासियों की सांस्कृतिक अस्मिता का प्रतीक है। यह उन्हें अपनी परंपराओं पर गर्व करने की प्रेरणा देता है और आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक माध्यम बन चुका है।
त्योहारों में Ghumura नृत्य
नुआखाई महोत्सव
नुआखाई, ओडिशा का एक प्रमुख कृषि पर्व है, जिसमें नई फसल के स्वागत के लिए भव्य आयोजन किए जाते हैं। इस अवसर पर Ghumura नृत्य विशेष आकर्षण होता है।
नर्तक रंग-बिरंगे पारंपरिक वस्त्र पहनकर ढोल की थाप पर थिरकते हैं, और वातावरण उल्लास से भर उठता है।
दशहरा और दुर्गा पूजा
दशहरा के अवसर पर, जब अच्छाई पर बुराई की विजय का उत्सव मनाया जाता है, तब भी Ghumura नृत्य का आयोजन होता है। यह नृत्य देवी दुर्गा के वीर सैनिकों की वीरता का प्रतीक बनकर सामने आता है।
अन्य स्थानीय मेले और महोत्सव
कालाहांडी और आसपास के क्षेत्रों में लगने वाले मेलों में Ghumura नृत्य प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती हैं, जिसमें विभिन्न गांवों के दल हिस्सा लेते हैं और अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। इन आयोजनों में हजारों लोग दर्शक बनकर सांस्कृतिक समृद्धि का आनंद उठाते हैं।
वेशभूषा और श्रृंगार
घुमुरा नृत्य में वेशभूषा अत्यंत महत्वपूर्ण है।
नर्तक सफेद धोती, पारंपरिक रंगीन पगड़ी और गले में मनके या मोतियों की माला पहनते हैं।
कमर में रंगीन पट्टियाँ बंधी होती हैं।
घुंघरू पहनना अनिवार्य होता है, जिससे नृत्य करते समय एक अलग ही लय और संगीत उत्पन्न होता है।
चेहरे पर प्राकृतिक रंगों से श्रृंगार किया जाता है जो नर्तकों को युद्धकालीन योद्धाओं जैसा रूप देता है।
Ghumura नृत्य का प्रशिक्षण
Ghumura नृत्य सीखना आसान नहीं है। इसमें अनुशासन, धैर्य और जबरदस्त शारीरिक सहनशक्ति की आवश्यकता होती है।
बच्चे बचपन से ही बड़े-बुजुर्गों से नृत्य की बारीकियाँ सीखते हैं।
स्थानीय गांवों में समय-समय पर प्रशिक्षण शिविर और कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं।
आजकल कुछ सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ भी इस कला के संरक्षण और प्रचार में जुटी हैं।
आधुनिक समय में Ghumura का स्वरूप
आज Ghumura नृत्य सिर्फ गांवों और मेलों तक सीमित नहीं है।
राज्य और राष्ट्रीय स्तर के सांस्कृतिक महोत्सवों में भी इसे प्रस्तुत किया जाता है।
कई युवा कलाकार Ghumura को मंचीय रूप देकर इसे देश-विदेश तक पहुंचा रहे हैं।
सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से भी घुमुरा नृत्य की लोकप्रियता बढ़ी है।
कई कलाकार Ghumura को आधुनिक फ्यूजन संगीत के साथ मिलाकर नए प्रयोग कर रहे हैं, जिससे युवा पीढ़ी भी इससे जुड़ रही है।

Ghumura नृत्य के संरक्षण की आवश्यकता
हालांकि Ghumura आज भी जीवंत है, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में पारंपरिक कलाओं के विलुप्त होने का खतरा बना रहता है।
पारंपरिक Ghumura वाद्य बनाने वाले कारीगरों की संख्या घटती जा रही है।
कुछ युवा पीढ़ी नौकरी और पढ़ाई के दबाव में पारंपरिक कलाओं से दूर हो रही है।
ऐसे में Ghumura जैसे धरोहर को बचाने के लिए सरकार, गैर-सरकारी संगठनों और समाज के जागरूक नागरिकों को मिलकर प्रयास करना आवश्यक है।
संरक्षण हेतु प्रयास
गांवों में नियमित Ghumura नृत्य प्रतियोगिताएँ आयोजित करना।
स्कूल और कॉलेजों में इस नृत्य का प्रशिक्षण देना।
Ghumura वाद्य बनाने वाले कारीगरों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घुमुरा नृत्य का प्रदर्शन कर इसे वैश्विक पहचान दिलाना।
डॉक्युमेंट्री और फिल्मों के माध्यम से घुमुरा की कहानी को व्यापक दर्शकों तक पहुँचाना।
त्योहारों और आयोजनों में घुमुरा नृत्य (Ghumura Dance in Festivals and Events)
ओडिशा के कालाहांडी, नुआपाड़ा, बलांगीर, संबलपुर, और बरगढ़ जिलों में जब भी कोई बड़ा पर्व जैसे दशहरा, नुआखाई, या कोई विशेष सामाजिक आयोजन होता है, घुमुरा नृत्य की धुनें अनिवार्य रूप से गूंजती हैं।
त्योहारों के दौरान:
गांव के युवक पारंपरिक वेशभूषा धारण कर घुमुरा वाद्ययंत्र के साथ एकत्र होते हैं।
पूरे समूह में तालमेल से एक विशेष अनुशासन दिखाई देता है।
दर्शकों की उत्सुकता और आनंद इस नृत्य के माध्यम से चरम पर पहुँचता है।
यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि सांस्कृतिक जड़ों को पुनः जीवित करने का भी एक सशक्त माध्यम है।
एकता और भाईचारे का प्रतीक (Symbol of Unity and Brotherhood)
घुमुरा नृत्य आज केवल एक कला नहीं, बल्कि आदिवासी समाज में भाईचारे का एक गहरा प्रतीक बन चुका है।
इसमें सभी उम्र के लोग, जाति-पंथ से परे, समान रूप से भाग लेते हैं।
नृत्य के दौरान हर व्यक्ति का महत्व होता है, चाहे वह नर्तक हो, वादक हो या दर्शक।
समूह में नृत्य करना आपसी समन्वय और सहयोग को दर्शाता है।
घुमुरा सिखाता है कि जब लोग अपने मतभेद भुलाकर एक लय में थिरकते हैं, तो कितनी सुंदरता पैदा होती है — यही संदेश आज के समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
घुमुरा नृत्य का वाद्ययंत्र (Musical Instruments of Ghumura Dance)
घुमुरा वाद्ययंत्र का निर्माण
‘घुमुरा’ स्वयं एक ढोल जैसा वाद्ययंत्र है, जिसे मुख्यतः मिट्टी और चमड़े से बनाया जाता है। इसे एक बेलनाकार आकार में तैयार किया जाता है, जिसकी दोनों ओर चमड़ा बांधा जाता है। इसका निर्माण विशिष्ट कारीगरों द्वारा पारंपरिक विधियों से किया जाता है, जिसमें प्राकृतिक सामग्री का उपयोग होता है।
घुमुरा की अनूठी ध्वनि
जब घुमुरा बजाया जाता है, तो उसकी ध्वनि में एक गूंजदार गहराई होती है, जो न केवल कानों को, बल्कि दिलों को भी झकझोर देती है। इसकी गूंज गांव के कोने-कोने तक फैल जाती है, और नृत्य का वातावरण सजीव हो उठता है।
अन्य सहायक वाद्ययंत्र
घुमुरा नृत्य में कभी-कभी अन्य वाद्ययंत्र जैसे ‘महुरी’ (एक प्रकार की शहनाई), ‘निशान’ (बड़ा ड्रम) और ‘झांझ’ (झांझर) का भी उपयोग होता है, जो संगीत में और अधिक समृद्धि जोड़ते हैं।
नृत्य की वेशभूषा और सज्जा (Costume and Adornments of Ghumura Dance)
पारंपरिक वेशभूषा का वर्णन
घुमुरा नृत्य करते समय नर्तक पारंपरिक वेशभूषा पहनते हैं:
सिर पर रंग-बिरंगे पगड़ी या पट्टियाँ
छाती पर एक विशेष वस्त्र या कवचनुमा परिधान
कमर में विशेष पट्टियाँ बंधी होती हैं।
आभूषण और श्रृंगार
नर्तक अपने शरीर पर धातु के गहने, कंगन, बाजूबंद और पायल पहनते हैं। ये आभूषण नृत्य के दौरान झंकार उत्पन्न करते हैं, जो संगीत में एक और सुंदर आयाम जोड़ते हैं।
रंगों और प्रतीकों का महत्व
लाल, पीला और हरा रंग प्रमुख होते हैं, जो ऊर्जा, समृद्धि और प्रकृति के साथ संबंध को दर्शाते हैं।
नृत्य की संरचना और प्रदर्शन शैली (Structure and Performance Style of Ghumura Dance)
नृत्य की प्रारंभिक तैयारी
प्रदर्शन से पहले एक विशेष पूजा की जाती है, जिसमें घुमुरा वाद्ययंत्रों का पूजन होता है। यह प्रकृति और पूर्वजों के प्रति आभार प्रकट करने का प्रतीक होता है।
समूह समन्वय
नृत्य समूह में किया जाता है, जिसमें नर्तक वृत्ताकार या पंक्तिबद्ध होकर नृत्य करते हैं। उनका हर कदम ताल के साथ बंधा होता है, जिससे एक अद्भुत दृश्य बनता है।
मुख्य मूवमेंट्स और हावभाव
जोरदार पैर पटकना
शरीर को लयबद्ध मोड़ना
समूह में घूर्णन करना
हाथों से वाद्ययंत्र बजाते हुए उत्साहपूर्ण चीत्कार करना
इन सबके माध्यम से नृत्य एक जीवंत कहानी कहता है।
घुमुरा नृत्य और सामाजिक संदेश (Ghumura Dance and Social Messaging)
सामाजिक एकता को बढ़ावा
घुमुरा नृत्य आदिवासी समाज में भेदभाव को खत्म करने और सामूहिक चेतना को बढ़ावा देने का कार्य करता है। इसमें सभी वर्गों और उम्र के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ भाग लेते हैं।
महिलाओं और पुरुषों की सहभागिता
हालांकि पारंपरिक घुमुरा नृत्य मुख्यतः पुरुषों द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन आज कई स्थानों पर महिलाएँ भी इसमें भाग लेने लगी हैं, जो लैंगिक समानता का संदेश देती हैं।
आधुनिक मुद्दों पर प्रस्तुति
कई बार घुमुरा नृत्य में सामाजिक बुराइयों जैसे शराबबंदी, शिक्षा का महत्व, स्वास्थ्य जागरूकता जैसे विषयों को भी शामिल किया जाता है, जिससे यह एक जीवंत माध्यम बन गया है जनजागरूकता का।
विश्व पटल पर घुमुरा नृत्य (Ghumura Dance on the Global Platform)
घुमुरा नृत्य अब केवल ओडिशा या भारत तक सीमित नहीं रहा। इसे अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में प्रस्तुत किया गया है, जहाँ इसकी ऊर्जा, भव्यता और सांस्कृतिक समृद्धि की सराहना हुई है।
विश्व स्तर पर यह भारत की पारंपरिक कलाओं की विविधता और गहराई का एक जीवंत उदाहरण बनकर उभरा है।
भविष्य की संभावनाएँ (Future Prospects of Ghumura Dance)
नई पीढ़ी की रुचि
नई पीढ़ी में घुमुरा के प्रति गर्व और आकर्षण को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। स्कूलों और कॉलेजों में इसे कोर्स का हिस्सा बनाने पर भी विचार हो रहा है।
डिजिटल मीडिया और घुमुरा
सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए घुमुरा नृत्य दुनिया भर में नए दर्शकों तक पहुँच रहा है, जिससे इसकी लोकप्रियता और बढ़ रही है।
संरक्षण और नवाचार की दिशा
परंपरा के मूल स्वरूप को बनाए रखते हुए, आधुनिक प्रस्तुतियों में रचनात्मकता को जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे यह नृत्य समकालीन पीढ़ी को भी आकर्षित कर सके।
निष्कर्ष (Conclusion)
घुमुरा नृत्य केवल एक कला नहीं, बल्कि ओडिशा की आत्मा का स्पंदन है। यह युद्ध भूमि से जन्मा एक ऐसा नृत्य है, जिसने समय के साथ खुद को सामाजिक चेतना, भाईचारे और सांस्कृतिक गर्व के प्रतीक में बदल लिया।
इसकी थापों में वीरता है, लय में सामूहिकता है, और भावनाओं में एकता की अमिट गूंज है।
आज जब दुनिया वैश्विक एकता और शांति की ओर देख रही है, घुमुरा नृत्य हमें याद दिलाता है कि असली ताकत साथ चलने में है, न कि अकेले दौड़ने में।
इसी संदेश के साथ घुमुरा आज भी हमारी सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है — कल, आज और आने वाले कल में भी।
Related
Discover more from Aajvani
Subscribe to get the latest posts sent to your email.