Good Bad Ugly Review: अजीत कुमार की अब तक की सबसे दमदार फिल्म!
‘Good Bad Ugly’—सुनते ही ऐसा लगता है मानो कोई वेस्टर्न फिल्म हो, जिसमें तीन किरदार तीन अलग-अलग दिशाओं में चलते हों, लेकिन यह तमिल फिल्म उस नाम से कहीं ज्यादा गहराई लिए हुए है।
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ToggleGood Bad Ugly फिल्म को सिर्फ एक एक्शन एंटरटेनर कह देना, इसके साथ अन्याय होगा। यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो अपने अंदर तीन दुनियाओं को समेटे हुए है—अच्छाई, बुराई और एक वह चेहरा जो न समाज समझता है, न खुद वह व्यक्ति।
Good Bad Ugly कहानी: तीन रंगों का एक किरदार
Good Bad Ugly कहानी केंद्रित है ‘अर्जुन’ पर, एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति पर, जो ज़िंदगी में कुछ बड़ा करने के ख्वाब देखता है। लेकिन हालात उसे मजबूर कर देते हैं ऐसे रास्ते पर चलने को, जहाँ उसे कभी ‘अच्छा’, कभी ‘बुरा’, और कभी ‘अजीब’ बनकर जिंदा रहना पड़ता है।
पहला आधा भाग अर्जुन के संघर्षों को दिखाता है—पारिवारिक दबाव, समाज की उम्मीदें, नौकरी की तलाश और निजी जीवन की चुनौतियाँ। यहीं से कहानी में भावनात्मक जुड़ाव शुरू होता है। दर्शक अर्जुन के हर फैसले में अपने जीवन की झलक देखने लगता है।
दूसरा भाग Good Bad Ugly फिल्म को अचानक एक डार्क जोन में ले जाता है। अर्जुन अब कोई साधारण इंसान नहीं रहता—वो सिस्टम से लड़ता है, अपनी पहचान बनाने के लिए उन सीमाओं को लांघता है जिन्हें पार करना एक सामान्य व्यक्ति के लिए खतरनाक हो सकता है।
तीसरा भाग यानी ‘Ugly’ चेहरा तब सामने आता है जब अर्जुन के अंदर का इंसान, समाज से अलग एक जानवर में बदलने लगता है। यह हिस्सा दर्शकों को बेचैन करता है—क्या ये वही इंसान है जिसे हम पहले प्यार कर रहे थे?
अभिनय: अजीत कुमार का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन
अजीत कुमार ने अर्जुन के किरदार को जैसे जी लिया हो। एक ही व्यक्ति के तीन रूप इतने गहराई से निभाना हर किसी के बस की बात नहीं। उनके हाव-भाव, संवादों की डिलीवरी और खासकर आंखों की भाषा ने हर फ्रेम को जीवंत बना दिया।
त्रिशा कृष्णन ने अर्जुन की पत्नी के रूप में एक मजबूत महिला का किरदार निभाया है—जो चुप है, मगर कमजोर नहीं। एस.जे. सूर्या बतौर खलनायक कहानी को और मजबूत बनाते हैं।
निर्देशन: अधिक रविचंद्रन का सिनेमाई जादू
निर्देशक अधिक रविचंद्रन ने इस फिल्म को सिर्फ शूट नहीं किया, उन्होंने इसे महसूस किया है। हर सीन के पीछे एक सोच है, एक संदेश है। उन्होंने पूरी फिल्म को एक पेंटिंग की तरह सजाया है—हर फ्रेम कला है।
उनका निर्देशन कहीं भी ‘over the top’ नहीं लगता। उन्होंने संतुलन बनाए रखा है—एक्शन, भावना और थ्रिल के बीच।
संगीत: जी.वी. प्रकाश की भावनाओं से सजी धुनें
संगीत Good Bad Ugly फिल्म की आत्मा है। G.V. प्रकाश कुमार ने बैकग्राउंड स्कोर से लेकर गानों तक हर जगह कमाल कर दिया है। ‘Unmai’ नामक ट्रैक तो सीधे दिल को छू जाता है।
सिनेमैटोग्राफी और तकनीकी पक्ष
अबिनंधन रामानुजम की सिनेमैटोग्राफी फिल्म की एक और खासियत है। चाहे वह अर्जुन की आंखों में छिपे दर्द को दिखाना हो या शहर की भागती जिंदगी को, हर फ्रेम सोच-समझकर कैद किया गया है।
एडिटिंग भी क्रिस्प और टाइट है। कहीं कोई अनावश्यक दृश्य नहीं लगता।

Good Bad Ugly फिल्म की गहराई: एक सामाजिक टिप्पणी
‘Good Bad Ugly‘ केवल एक कहानी नहीं है, यह एक सामाजिक व्याख्या है। फिल्म हमें सोचने पर मजबूर करती है कि—क्या हर अपराधी वास्तव में बुरा होता है? क्या हालात इंसान को मजबूर नहीं कर सकते कि वह खुद को खो दे?
Good Bad Ugly फिल्म सिस्टम पर, परिवार की उम्मीदों पर, और एक इंसान की मानसिक स्थिति पर गंभीर सवाल उठाती है।
फैन रिएक्शन: सिनेमाघरों में गूंजा अजीत का नाम
Good Bad Ugly फिल्म रिलीज़ के दिन से ही तमिलनाडु से लेकर विदेशों तक अजीत के फैंस का जबरदस्त रिएक्शन देखने को मिला। सिनेमाघरों में पटाखे, ढोल-नगाड़े, और सीटियाँ—हर जगह जश्न का माहौल।
संवादों की ताकत: शब्दों से भरा सच
‘Good Bad Ugly’ की सबसे बड़ी खूबी इसके संवाद हैं। यह सिर्फ संवाद नहीं, दिल से निकली आवाज़ लगते हैं। एक दृश्य में अर्जुन अपने पिता से कहता है:
“आपको मुझसे अच्छा बेटा चाहिए था, और मुझे आपसे थोड़ा कम दबाव।”
यह एक साधारण वाक्य नहीं, बल्कि हर उस युवा की चीख है जो समाज की उम्मीदों में अपना वजूद खो चुका है। फिल्म के कई संवाद आत्मनिरीक्षण कराने वाले हैं।
“बुरा बन जाना आसान है, लेकिन बुरा बने रहना बहुत मुश्किल।”
यह पंक्ति अर्जुन की जटिलता को उजागर करती है — जहां वह बुरा काम कर रहा है, पर अंदर से टूट रहा है।
प्रतीकों का उपयोग: दृश्य जो शब्दों से अधिक बोलते हैं
Good Bad Ugly फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं जो प्रतीकों के ज़रिए गहरे अर्थ प्रकट करते हैं। जैसे:
टूटी हुई घड़ी: अर्जुन की बचपन की घड़ी जो पूरे समय बंद रहती है, यह दर्शाता है कि उसका अतीत थम चुका है, लेकिन उसका असर आज भी ज़िंदा है।
बारिश में लड़ाई: क्लाइमैक्स सीन में हो रही बारिश बताती है कि अर्जुन के अंदर जो आग है, वह बाहर के मौसम से नहीं बुझाई जा सकती।
यह प्रतीक दर्शकों को सिर्फ दृश्य नहीं दिखाते, बल्कि सोचने पर मजबूर करते हैं।
अधिक रविचंद्रन की बेमिसाल सोच
अधिक रविचंद्रन की सबसे बड़ी खासियत है – वह ‘noise’ से नहीं, ‘silence’ से कहानी कह पाते हैं। कई सीन ऐसे हैं जहां कोई डायलॉग नहीं, सिर्फ कैमरा और बैकग्राउंड स्कोर है, और वही दर्शकों को भीतर तक हिला देता है।
उदाहरण के लिए: एक सीन में अर्जुन अकेले एक सुनसान कमरे में बैठा है, कैमरा धीरे-धीरे उसके चेहरे की ओर आता है — उस एक मिनट में कोई संवाद नहीं, लेकिन उसकी आंखों में एक युद्ध साफ दिखता है।
अधिक की निर्देशन शैली ने Good Bad Ugly फिल्म को सिनेमाई भाषा से अधिक एक कविता बना दिया है।
संगीत का गहरा असर
G.V. प्रकाश कुमार का संगीत फिल्म को सिर्फ सजाता नहीं, उसके किरदारों को भी आकार देता है। हर बीट अर्जुन की मानसिक अवस्था को दर्शाती है।
‘Unmai’ (सत्य): यह गाना अर्जुन के आत्मसंघर्ष की अभिव्यक्ति है।
‘Vidiyal’ (नई सुबह): यह ट्रैक उम्मीद और पुनर्जन्म का प्रतीक बनता है।
इन गीतों को सुनते समय दर्शकों को न सिर्फ फिल्म का हिस्सा लगता है, बल्कि वे खुद उस यात्रा में शामिल हो जाते हैं।
सामाजिक और मनोवैज्ञानिक संदर्भ
‘Good Bad Ugly’ उस सामाजिक संरचना पर भी सवाल उठाती है, जहां हम हर आदमी को अच्छा या बुरा के पैमाने से तोल देते हैं।

Good Bad Ugly फिल्म पूछती है:
क्या हम सबके अंदर तीन चेहरे नहीं होते?
क्या हालात हमें मजबूर नहीं करते ‘बुरा’ बनने को?
क्या ‘Ugly’ चेहरा समाज का ही आइना नहीं?
Good Bad Ugly मानसिक स्वास्थ्य पर भी बिना ज़ोर दिए एक मजबूत टिप्पणी करती है — कैसे दबाव, असफलताएं और अकेलापन किसी को भीतर से तोड़ सकता है।
जनता बनाम आलोचक प्रतिक्रिया
जनता:
अजीत कुमार के फैंस Good Bad Ugly फिल्म को उनका अब तक का सबसे गहरा रोल मानते हैं।
सिनेमाघरों में Good Bad Ugly के कई दृश्यों पर तालियाँ और सीटीयाँ गूंजती हैं।
आलोचक:
Good Bad Ugly की धीमी गति को लेकर कुछ आलोचना है।
लेकिन अभिनय, निर्देशन और संदेश की सभी ने भरपूर सराहना की है।
अंत की व्याख्या: क्या अर्जुन बचा या बदल गया?
Good Bad Ugly का अंत दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है। अर्जुन अपने बेटे को बचा लेता है, लेकिन खुद को खो देता है।
यह सवाल छोड़ दिया गया है — “क्या अर्जुन अब भी वही इंसान है?”
यह ओपन एंडिंग दर्शकों को खुद फैसला करने देती है कि अच्छाई, बुराई और ‘Ugly’ में वास्तव में जीत किसकी हुई।
Good Bad Ugly की कमजोरियाँ (अगर कहें तो)
कोई भी रचना परिपूर्ण नहीं होती, और यही बात इस फिल्म पर भी लागू होती है।
Good Bad Ugly का पहला आधा हिस्सा थोड़ा धीमा लगता है।
कुछ दर्शकों को प्रतीकात्मक दृश्यों को समझने में दिक्कत हो सकती है।
क्लाइमैक्स थोड़ा लंबा खिंचा हुआ महसूस हो सकता है।
लेकिन ये कमियाँ उस संपूर्ण अनुभव के सामने नगण्य प्रतीत होती हैं जो फिल्म देती है।
दर्शक का अनुभव: दिल से जुड़ने वाली यात्रा
‘Good Bad Ugly’ सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि दर्शकों के दिल से जुड़ने वाली एक गहराई है। जो लोग ज़िंदगी में कभी अपने अंदर के ‘Bad’ या ‘Ugly’ से जूझे हैं — उनके लिए ये फिल्म किसी थैरेपी से कम नहीं।
एक आम दर्शक जब थिएटर से बाहर निकलता है, तो उसके मन में यह सवाल ज़रूर गूंजता है:
“क्या मैं भी अर्जुन जैसा हूं?”
Good Bad Ugly दर्शक को मजबूर करती है कि वह अपने अंदर झांके, अपने निर्णयों को परखे, और खुद से संवाद करे।
सिनेमैटोग्राफी, एडिटिंग और विजुअल ग्रैमर
सिनेमैटोग्राफी:
एस. काथीर ने हर फ्रेम को एक कविता जैसा फिल्माया है। लाइट और शैडो का ऐसा इस्तेमाल बहुत कम फिल्मों में देखने को मिलता है।
अंधेरे में अर्जुन की छवि,
आईने में उसका बंटा हुआ चेहरा,
और नीले-पीले टोन का उपयोग,
ये सब फिल्म की थीम को मजबूती से पेश करते हैं।
एडिटिंग:
नवीन नंदी के एडिटिंग ने कहानी को प्रभावी तरीके से बांधा है। हालांकि फिल्म कुछ जगह खिंचती है, लेकिन क्लाइमेक्स तक आते-आते यह गति पकड़ लेती है।
एक क्रांतिकारी अप्रोच
अधिक रविचंद्रन एक ऐसे निर्देशक हैं जो सिनेमाई कहानी कहने की सीमाओं को तोड़ना चाहते हैं। उन्होंने इस फिल्म के जरिए ये सिद्ध कर दिया कि:
कमर्शियल हीरो भी गहराई से भरी कहानियों का हिस्सा हो सकते हैं।
थ्रिलर, ड्रामा और सोशल रिफ्लेक्शन — तीनों को एक ही धागे में पिरोया जा सकता है।
दर्शक अब सिर्फ मसाला नहीं, मतलब चाहते हैं।
उनका विज़न सराहनीय है और आने वाले समय में उनकी शैली साउथ इंडियन सिनेमा को एक नई दिशा दे सकती है।
अंतिम सिफारिश: देखिए… लेकिन दिल से
अगर आप…
एक अच्छी कहानी चाहते हैं,
एक्टिंग में गहराई खोजते हैं,
सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन नहीं, एक सोच मानते हैं,
तो ‘Good Bad Ugly’ को ज़रूर देखिए।
यह फिल्म आपको हिला भी सकती है, रुला भी सकती है, और शायद थोड़ा बदल भी दे।
निष्कर्ष: सिर्फ फिल्म नहीं, एक अनुभव
‘Good Bad Ugly’ movie कोई साधारण फिल्म नहीं है। यह एक दर्पण है जो दर्शक को उसके अंदर झांकने पर मजबूर करता है। अजीत कुमार का यह प्रदर्शन उनके करियर का मील का पत्थर है।
Good Bad Ugly को देखने के बाद शायद आप यह मानने लगें कि:
हर इंसान के भीतर एक ‘Good’, एक ‘Bad’ और एक ‘Ugly’ मौजूद है। फर्क बस इतना है — कौन-सा रूप किस समय बाहर आता है।
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