Green Hydrogen India 2025: सरकार की धमाकेदार योजना से खुलेगा क्लीन एनर्जी का नया युग!
भूमिका
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Toggleविश्व भर में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ दिन-प्रतिदिन विकराल रूप ले रही हैं। कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए हर देश वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों की खोज और विकास में लगा हुआ है।
भारत ने इस दिशा में एक क्रांतिकारी कदम उठाया है—”Green Hydrogen” को बढ़ावा देने की नीति के साथ। अब जब सरकार ने Green Hydrogen प्रमाणन योजना और कार्बन क्रेडिट व्यापार नियमों को अधिसूचित कर दिया है, तो यह जानना बेहद आवश्यक हो गया है कि ये योजनाएँ क्या हैं, कैसे काम करेंगी, और भारत के भविष्य को यह कैसे आकार देंगी।

Green Hydrogen क्या है?
Green Hydrogen वह हाइड्रोजन है जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे सौर, पवन या जलविद्युत से प्राप्त बिजली के माध्यम से पानी के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा उत्पादित होता है। इसमें किसी भी प्रकार का कार्बन उत्सर्जन नहीं होता, इसलिए इसे “ग्रीन” कहा जाता है।
हाइड्रोजन के प्रकार:
ग्रे हाइड्रोजन: कोयला या प्राकृतिक गैस से उत्पादित, भारी उत्सर्जन के साथ।
ब्लू हाइड्रोजन: ग्रे की तरह लेकिन कार्बन कैप्चर के साथ।
ग्रीन हाइड्रोजन: पूरी तरह शून्य उत्सर्जन के साथ, नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित।
भारत की Green Hydrogen प्रमाणन योजना (GHCS) क्या है?
उद्देश्य:
भारत सरकार ने 29 अप्रैल 2025 को यह योजना अधिसूचित की। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जो भी हाइड्रोजन “ग्रीन” के नाम पर बेची जा रही है, वह वास्तव में नवीकरणीय स्रोतों से बनी हो और कम से कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन करे।
मुख्य विशेषताएँ:
प्रमाणन प्रणाली: प्रत्येक 100 किलोग्राम Green Hydrogen पर एक विशिष्ट प्रमाण पत्र और यूनिक आईडी जारी की जाएगी।
सीमा तय: Green Hydrogen माने जाने के लिए, 1 किग्रा हाइड्रोजन के उत्पादन पर 2 किग्रा CO₂ समतुल्य से अधिक उत्सर्जन नहीं होना चाहिए।
सह-उत्पादों की गणना: यदि हाइड्रोजन के साथ ऑक्सीजन भी बनती है, तो दोनों के लिए उत्सर्जन अलग से आँका जाएगा।
शुल्क: अंतिम प्रमाण पत्र के लिए मामूली शुल्क निर्धारित है (₹5 प्रति 100 किग्रा), बाकी प्रक्रियाएँ निशुल्क हैं।
योजना का क्रियान्वयन:
इसका संचालन नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा किया जाएगा।
जीवन-चक्र विश्लेषण, तकनीकी मानकों और डेटा प्रबंधन के लिए खास दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं।
कार्बन क्रेडिट व्यापार प्रणाली (CCTS) क्या है?
यह क्या है?
कार्बन क्रेडिट प्रणाली का मकसद कंपनियों और संस्थाओं को उनके कार्बन उत्सर्जन में कटौती के बदले एक आर्थिक लाभ देना है।
एक कार्बन क्रेडिट = 1 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कटौती।
यह कैसे काम करता है?
कंपनियाँ उत्सर्जन घटाकर कार्बन क्रेडिट अर्जित करती हैं।
ये क्रेडिट उन कंपनियों को बेचे जा सकते हैं जिनका उत्सर्जन निर्धारित सीमा से ऊपर है।
एक व्यापारिक बाजार की तरह यह प्रणाली पर्यावरणीय स्थिरता और आर्थिक प्रोत्साहन का अद्भुत संतुलन है।
Green Hydrogen और कार्बन क्रेडिट का रिश्ता
एक-दूसरे के पूरक
जो कंपनियाँ Green Hydrogen उत्पादन में संलग्न हैं, उन्हें न सिर्फ प्रमाणन मिलेगा, बल्कि उत्सर्जन में कटौती के कारण वे कार्बन क्रेडिट भी कमा सकेंगी।
इससे एक दोहरा लाभ होता है—नैतिक और आर्थिक दोनों।
निर्यात का रास्ता खुला
अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भारत का Green Hydrogen प्रमाणित और कार्बन क्रेडिट-सक्षम होने से अधिक आकर्षक बनेगा।
राष्ट्रीय Green Hydrogen मिशन और योजना का समन्वय
भारत सरकार ने 2023 में राष्ट्रीय Green Hydrogen मिशन (NGHM) की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य 2030 तक भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का ग्लोबल हब बनाना है।
मिशन के अंतर्गत प्रमुख लक्ष्य:
2030 तक प्रति वर्ष 5 मिलियन टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन।
₹19,744 करोड़ का कुल बजट।
भारी उद्योगों, परिवहन, उर्वरक और तेल शोधन जैसे क्षेत्रों में इसके उपयोग को बढ़ावा देना।
योजना के लाभ
पर्यावरणीय लाभ:
कार्बन उत्सर्जन में भारी कमी।
हवा, पानी और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार।
पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा।
आर्थिक लाभ:
नई नौकरियों का सृजन (ग्रीन जॉब्स)।
तकनीकी नवाचारों में वृद्धि।
निर्यात क्षमता में विस्तार।
रणनीतिक लाभ:
भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता।
वैश्विक मंच पर नेतृत्व की भूमिका।
स्वच्छ ऊर्जा के माध्यम से कूटनीतिक बढ़त।
योजना से जुड़ी चुनौतियाँ
उच्च लागत:
Green Hydrogen उत्पादन की मौजूदा लागत अभी भी पारंपरिक ईंधनों से अधिक है।
प्रौद्योगिकी का सीमित प्रयोग:
इलेक्ट्रोलाइज़र और बैटरी तकनीक अभी बहुत महँगी है।
बुनियादी ढाँचा:
ट्रांसपोर्टेशन, स्टोरेज और डिस्ट्रिब्यूशन के लिए पर्याप्त और सुरक्षित नेटवर्क की कमी।
जागरूकता और शिक्षा:
किसानों, उद्योगपतियों, स्थानीय निकायों आदि में इस तकनीक के बारे में सही जानकारी का अभाव।
समाधान और सुझाव
सरकारी समर्थन:
सब्सिडी, कर छूट और ऋण सहायता जैसे प्रोत्साहनों की आवश्यकता।
शिक्षा और प्रशिक्षण:
IITs, कॉलेजों और तकनीकी संस्थानों में विशेष कोर्स शुरू किए जाएँ।
अनुसंधान और नवाचार:
सार्वजनिक-निजी साझेदारी के माध्यम से नई तकनीकों का विकास।
वैश्विक सहयोग:
यूरोपीय संघ, अमेरिका, जापान जैसे देशों के साथ तकनीकी साझेदारी।
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की वर्तमान स्थिति
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन कई निजी और सरकारी कंपनियाँ इसमें निवेश कर रही हैं।
प्रमुख कंपनियाँ
Reliance Industries: 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन को $1 प्रति किग्रा पर लाने का लक्ष्य।
Adani Group: बड़े स्तर पर नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ और इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन पर कार्यरत।
Indian Oil, NTPC, GAIL: पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू कर चुके हैं, जैसे रेलवे में हाइड्रोजन ट्रेनें।
सरकारी योजनाएँ
MNRE और NITI Aayog संयुक्त रूप से ग्रीन हाइड्रोजन रोडमैप तैयार कर चुके हैं।
केंद्र सरकार राज्यों को प्रोत्साहित कर रही है कि वे ग्रीन हाइड्रोजन पॉलिसी अपनाएँ, जैसे गुजरात, तमिलनाडु और राजस्थान ने पहल की है।
Green Hydrogen का उपयोग किन-किन क्षेत्रों में हो सकता है?
भारी उद्योग
स्टील, सीमेंट और रसायन उद्योग में हाइड्रोजन का प्रयोग कोयला और गैस की जगह।
इससे इन क्षेत्रों के कार्बन फुटप्रिंट में भारी कमी आएगी।
परिवहन
Green Hydrogen से चलने वाले भारी वाहन, ट्रक, बस और यहाँ तक कि रेलगाड़ियाँ।
यह ईंधन पारंपरिक डीज़ल से कहीं अधिक स्वच्छ और दीर्घकालिक है।
ऊर्जा भंडारण
सौर और पवन ऊर्जा को स्टोर करने के लिए ग्रीन हाइड्रोजन एक महत्वपूर्ण विकल्प है।
घरेलू उपयोग
खाना पकाने के लिए LPG की जगह हाइड्रोजन का उपयोग किया जा सकता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।

अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भारत की स्थिति
वैश्विक प्रतिस्पर्धा
जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया, सऊदी अरब जैसे देश भी ग्रीन हाइड्रोजन में आगे हैं।
भारत की लागत और विशाल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता इसे प्रतिस्पर्धा में सबसे आगे ला सकती है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
भारत ने यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया और UAE जैसे देशों से साझेदारी की है।
ग्रीन हाइड्रोजन निर्यात के लिए बुनियादी ढांचे पर चर्चा चल रही है।
Green Hydrogen प्रमाणन योजना का वैश्विक मानकों से तालमेल
क्या भारत की योजना वैश्विक मानकों पर खरी उतरती है?
हाँ। भारत की योजना यूरोपीय संघ के RED II मानकों, अमेरिका की Inflation Reduction Act, और ISO के ग्रीन हाइड्रोजन गाइडलाइनों के अनुरूप है।
इसके लाभ
भारत से ग्रीन हाइड्रोजन का अंतरराष्ट्रीय व्यापार बढ़ेगा।
भारत में बने सर्टिफिकेट्स को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल सकती है।
नवाचार और स्टार्टअप की भूमिका
नए अवसर
इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण में तकनीकी नवाचार की भारी मांग।
AI आधारित स्मार्ट मॉनिटरिंग सिस्टम, डिस्ट्रीब्यूशन ग्रिड्स आदि की आवश्यकता।
स्टार्टअप उदाहरण
Ohmium, Hygenco, Greenzo Energy आदि स्टार्टअप ग्रीन हाइड्रोजन तकनीक पर कार्य कर रहे हैं।
IITs और IISc जैसे संस्थान अनुसंधान में सक्रिय हैं।
भविष्य की नीति सिफारिशें
एकीकृत नीति ढाँचा
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय को और मज़बूत बनाने की जरूरत है।
निजी क्षेत्र को बढ़ावा
और अधिक निवेश आकर्षित करने के लिए टैक्स छूट, अनुदान और भूमि आवंटन में आसानी।
आम जनता की भागीदारी
Green Hydrogen और कार्बन क्रेडिट को लेकर स्कूलों, कॉलेजों और पंचायत स्तर तक जागरूकता अभियान।
Green Hydrogen के विरोध और आशंकाएँ
पर्यावरणीय चिंताएँ
क्या पानी की अत्यधिक खपत से जल संकट बढ़ेगा?
इलेक्ट्रोलिसिस के लिए उच्च ग्रेड का पानी आवश्यक है।
उत्तर: सरकार ने स्पष्ट किया है कि सीवेज ट्रीटेड वॉटर और समुद्री जल का उपयोग किया जाएगा, जिससे ताजे पानी पर दबाव नहीं पड़ेगा।
सुरक्षा से जुड़ी चिंताएँ
हाइड्रोजन अत्यंत ज्वलनशील होती है। क्या यह सुरक्षित है?
उत्तर: उन्नत टैंक, सेंसर और नियंत्रक के साथ अब हाइड्रोजन को सुरक्षित रूप से स्टोर और ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है।
भविष्य की तस्वीर
ग्रीन हाइड्रोजन बस और रेल नेटवर्क
2028 तक भारत सरकार ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली बसें, ट्रक और रेल इंजन पेश करने की योजना बना रही है।
ग्रामीण भारत में प्रयोग
सौर ऊर्जा आधारित इलेक्ट्रोलिसिस यूनिट लगाकर छोटे स्तर पर गाँवों में ईंधन के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है।
रक्षा क्षेत्र में उपयोग
भारतीय नौसेना और वायुसेना, ग्रीन हाइड्रोजन को आने वाले वर्षों में अपनी आपूर्ति श्रृंखला का हिस्सा बना सकते हैं।
निष्कर्ष: भारत की हरित ऊर्जा क्रांति की ओर निर्णायक कदम
भारत द्वारा ग्रीन हाइड्रोजन सर्टिफिकेशन स्कीम और कार्बन क्रेडिट नियमों को अधिसूचित करना एक ऐतिहासिक और दूरदर्शी निर्णय है।
यह कदम न केवल पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अग्रसर है, बल्कि देश को ऊर्जा आत्मनिर्भरता, स्वच्छ तकनीक और वैश्विक नेतृत्व की ओर भी ले जाता है।
ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और उपयोग के लिए स्पष्ट मानक तय कर भारत ने यह सुनिश्चित किया है कि जो ईंधन हम “हरित” कह रहे हैं, वह वास्तव में पर्यावरण के अनुकूल हो।
इसके साथ-साथ कार्बन क्रेडिट का कानूनी ढांचा पर्यावरण संरक्षण को आर्थिक प्रोत्साहन से जोड़ता है, जिससे उद्योग जगत, नवाचार, और स्टार्टअप्स को नई ऊर्जा मिलती है।
भले ही इस क्षेत्र में कुछ चुनौतियाँ हों—जैसे लागत, जल स्रोत, और तकनीकी बाधाएँ—लेकिन भारत की नीतिगत प्रतिबद्धता, निजी और सार्वजनिक क्षेत्र का सहयोग, तथा वैश्विक साझेदारियाँ इसे दूर करने में सक्षम हैं।
यह पहल भारत को न केवल एक हरित ऊर्जा राष्ट्र बनाएगी, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर स्वच्छ ऊर्जा के नेतृत्वकर्ता के रूप में भी स्थापित करेगी।
“आज की यह नींव कल की स्वच्छ और समृद्ध दुनिया की ईंट है।”
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