IIT Madras और अमेरिका की साझेदारी से डायबिटीज़ रिसर्च को नई दिशा: जानिए क्या है SCoDER!
भूमिका: जब विज्ञान मानवीय संवेदनाओं से जुड़ता है
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Toggleभारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ संक्रमणजन्य बीमारियाँ तो धीरे-धीरे नियंत्रण में आती जा रही हैं, लेकिन उनके स्थान पर गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases – NCDs) ने चुनौती का नया स्वरूप ले लिया है।
मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मोटापा और कैंसर जैसे रोग अब देश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ बन चुके हैं। ऐसे में, वैज्ञानिक नवाचार, शोध और वैश्विक सहयोग ही समाधान का रास्ता खोल सकते हैं।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT Madras) ने इस दिशा में एक अद्वितीय और साहसिक कदम उठाया है।
अमेरिकी संस्थानों के साथ साझेदारी करके, उन्होंने डायबिटीज़ और NCDs से निपटने के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है, जिसका नाम है – Shankar Center of Excellence for Diabetic Research (SCoDER)।
IIT Madras की पहल: विज्ञान से समाज की सेवा
IIT Madras केवल तकनीकी शिक्षा का संस्थान नहीं रहा, यह भारत के वैज्ञानिक भविष्य को आकार देने वाली प्रयोगशाला है।
इस केंद्र ने वर्ष 2024 में एक अत्यंत महत्वपूर्ण शोध केंद्र – SCoDER की स्थापना की। इस केंद्र की कल्पना और निर्माण ऐसे समय में हुआ, जब भारत में डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों की संख्या 10 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी थी।
इस केंद्र के प्रमुख उद्देश्य हैं:
मधुमेह के नए कारणों की पहचान।
रोकथाम और इलाज के लिए नवाचार।
गैर-संचारी रोगों पर दीर्घकालिक शोध।
तकनीक और हेल्थकेयर का एकीकरण।
सहयोगी संस्थान: अमेरिका से जुड़ती भारतीय पहल
इस यात्रा में IIT Madras अकेला नहीं है। अमेरिका की प्रतिष्ठित Emory Global Diabetes Research Center (EGDRC) ने इस पहल में हाथ मिलाया है। यह साझेदारी विज्ञान और समाज के बीच की खाई को पाटने की दिशा में एक वास्तविक मॉडल बन रही है।
इस साझेदारी से प्राप्त होने वाले लाभ:
1. वैश्विक विशेषज्ञता: अमेरिकी वैज्ञानिकों की अनुभवसंपन्न टीम भारत में हो रही प्रगति को दिशा देती है।
2. डेटा-आधारित नीति निर्माण: शोध से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर नीति-निर्माताओं को सुझाव।
3. प्रौद्योगिकी आधारित समाधान: Wearable devices, mobile apps और AI आधारित डायबिटीज़ ट्रैकिंग सिस्टम का विकास।
4. शोध आदान-प्रदान: भारत और अमेरिका के बीच रिसर्च फेलोशिप और स्टूडेंट एक्सचेंज कार्यक्रम।
SCoDER: शोध, सेवा और समाधान का संगम
Shankar Center of Excellence for Diabetic Research केवल एक प्रयोगशाला नहीं है – यह एक आंदोलन है, जो वैज्ञानिक नवाचार के माध्यम से लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहा है।
इस केंद्र का नाम IIT Madras के पूर्व छात्र श्री सुब्रमोनियन शंकर के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने इस केंद्र के लिए वित्तीय सहायता दी।
महत्वपूर्ण पहलें जो इस केंद्र से जुड़ी हैं:
1. शंकर फेलोशिप – 15 रिसर्च स्कॉलर को फेलोशिप देकर मधुमेह और NCDs पर शोध के लिए समर्पित किया गया है।
2. रोगी केंद्रित दृष्टिकोण – डायबिटीज़ मरीजों के अनुभव, दर्द और चुनौतियों को समझकर समाधान तैयार किया जाता है।
3. अंतर-विषयी दृष्टिकोण – डॉक्टर, इंजीनियर, डाटा वैज्ञानिक और नीतिगत विशेषज्ञ एक मंच पर कार्य करते हैं।
4. डिजिटल हेल्थ प्लेटफॉर्म – रोगियों की निगरानी और टेलीमेडिसिन के माध्यम से व्यापक समाधान।
भारत में मधुमेह: भयावह स्थिति की झलक
कुछ कठोर तथ्य:
भारत में लगभग 10 करोड़ से अधिक डायबिटीज़ रोगी हैं (IDF रिपोर्ट, 2024)।
हर साल लाखों लोग इस बीमारी की वजह से नेत्रहीनता, गुर्दा फेलियर, हृदयाघात और पैरों की कटाई जैसी गंभीर स्थितियों से गुजरते हैं।
ग्रामीण भारत में जागरूकता की भारी कमी है।
इसलिए यह साझेदारी केवल एक अकादमिक कदम नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल का उत्तर है।

तकनीक और इनोवेशन: इलाज को बनाएगा सहज और किफायती
SCoDER का एक प्रमुख उद्देश्य मधुमेह के इलाज को ‘स्मार्ट’ बनाना है। यानी ऐसे तकनीकी उपाय जो कम खर्च में अधिक प्रभावशाली साबित हों।
ऐसे संभावित तकनीकी नवाचार:
रक्त में ग्लूकोज़ को नापने के लिए Non-Invasive Glucometer।
AI आधारित डायबिटिक रेटिनोपैथी डिटेक्शन सॉफ्टवेयर।
मोबाइल ऐप जो दैनिक खानपान और दवाओं की ट्रैकिंग करे।
ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए लोकल लैंग्वेज हेल्थ चैटबॉट।
NCDs पर केंद्रित भविष्य की रणनीति
हालाँकि शुरुआत मधुमेह से हुई है, लेकिन इस केंद्र का दृष्टिकोण व्यापक है। यह केंद्र हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, थायरॉइड, मोटापा, कैंसर, अल्ज़ाइमर जैसे कई NCDs पर भी केंद्रित करेगा।
भावी रणनीतियाँ:
1. प्रीडिक्टिव एनालिटिक्स – बीमारियों को पहले से पहचानने की क्षमता।
2. पॉलिसी संवाद – शोध के आधार पर स्वास्थ्य मंत्रालय को नीति सुझाव।
3. जागरूकता अभियान – गाँव-शहरों में कैंप, सोशल मीडिया और स्कूलों में जागरूकता।
4. राष्ट्रीय नेटवर्किंग – भारत के अन्य IIT, AIIMS और ICMR जैसे संस्थानों को जोड़ना।
मानवता से जुड़ी विज्ञान की सफलता
एक तकनीकी संस्थान, एक अंतरराष्ट्रीय साझेदारी और एक पूर्व छात्र की सामाजिक चेतना – जब ये तीनों एकजुट होते हैं, तो विज्ञान केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रहता; वह समाज की नब्ज़ पकड़ लेता है।
एक मधुमेह रोगी की कल्पना कीजिए, जो हर दिन सुई चुभोकर ब्लड शुगर की जांच करता है।
एक गरीब किसान की बेटी, जिसकी आँखें डायबिटीज़ से जाती रही हैं।
या वह बुजुर्ग, जो दवा लेने शहर नहीं जा सकता।
IIT Madras और EGDRC की साझेदारी, ऐसे ही जीवन को राहत देने का काम कर रही है – विज्ञान को मानवीय बनाकर।
नवीनतम अपडेट और भविष्य की योजना (2025)
2025 की शुरुआत में IIT Madras ने घोषणा की कि वह AIIMS, दिल्ली और NIMHANS, बेंगलुरु के साथ भी इस मिशन को जोड़ने पर काम कर रहा है।
नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, SCoDER ने अब तक 9 स्टार्टअप्स को डायबिटीज़ फोकस्ड इनोवेशन के लिए सीड फंडिंग दी है।
आने वाले 2 वर्षों में SCoDER का लक्ष्य है कि कम से कम 2 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुँचे।
भारत सरकार की Ayushman Bharat Digital Mission से भी इसे जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
शिक्षा, शोध और सामाजिक बदलाव: एक त्रिभुज की तरह जुड़ा प्रयास
शिक्षा से जागरूकता तक
IIT Madras जैसे संस्थानों की शक्ति केवल उनके अनुसंधान में नहीं, बल्कि समाज में बदलाव लाने वाले विद्यार्थियों के निर्माण में है।
SCoDER के अंतर्गत एक विशेष पाठ्यक्रम तैयार किया गया है, जो डायबिटीज़ और NCDs पर शोध करने वाले छात्रों को जनस्वास्थ्य, नीतियों, तकनीक और चिकित्सा के बीच का समन्वय सिखाता है।
यह कार्यक्रम विद्यार्थियों को न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण देता है, बल्कि उन्हें समाज की जमीनी सच्चाइयों से भी जोड़ता है, जिससे वे जनसमस्याओं को तकनीकी समाधान में बदल सकें।
ग्रामीण भारत पर विशेष ध्यान
भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है, जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, जागरूकता की कमी और आर्थिक संसाधनों की अनुपलब्धता की वजह से मधुमेह और NCDs जानलेवा रूप ले लेते हैं।
इस दिशा में चल रहे प्रयास:
ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण – जिन्हें “डिजिटल हेल्थ एजेंट्स” के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
वॉयस-बेस्ड हेल्थ सिस्टम – जहाँ स्मार्टफोन या इंटरनेट न होने की स्थिति में भी लोग कॉल करके डायबिटीज़ के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें।
नुक्कड़ नाटक, रेडियो कार्यक्रम और स्थानीय भाषाओं में जागरूकता अभियान।
नीति निर्माण में योगदान
शोध तब तक अधूरा है जब तक वह नीति में न बदले। IIT Madras और EGDRC की यह साझेदारी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के स्वास्थ्य विभागों के साथ मिलकर नीति निर्माण में भी अहम भूमिका निभा रही है।
नीति पर प्रभाव के क्षेत्र:
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में डायबिटीज़ स्क्रीनिंग को अनिवार्य करना।
मेडिकल छात्रों के लिए NCDs से संबंधित विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल।
सस्ती इंसुलिन और जनऔषधि केंद्रों पर उपलब्धता को बेहतर करना।
सार्वजनिक स्वास्थ्य बजट में NCDs के लिए अलग आवंटन।
IIT Madras: प्रभावशीलता का आकलन – शोध और डाटा की भूमिका
कोई भी अभियान तभी सफल होता है जब उसका प्रभाव आंकड़ों से प्रमाणित हो। SCoDER में एक समर्पित टीम कार्य कर रही है, जो देशभर से डेटा एकत्र करती है और उसका विश्लेषण करके यह देखती है कि:
कितने मरीजों को समय रहते डायग्नोस किया गया?
कितने मरीजों का शुगर लेवल स्थिर हुआ है?
ग्रामीण बनाम शहरी क्षेत्रों में क्या अंतर है?
कौन-से उपाय सबसे अधिक प्रभावी हैं?
इस डेटा को पॉलिसी रिपोर्ट के रूप में स्वास्थ्य मंत्रालय को सौंपा जाता है, जिससे वैज्ञानिक शोध सीधा जननीति में परिवर्तित हो सके।
IIT Madras: अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका
आज जब दुनिया की बड़ी आबादी मधुमेह और NCDs से जूझ रही है, भारत के इस मॉडल को संयुक्त राष्ट्र, WHO, और विभिन्न विकासशील देशों में एक उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।
IIT Madras: कुछ अंतर्राष्ट्रीय पहलें जहां भारत के प्रयास गूंज रहे हैं
WHO Global Diabetes Compact (2021) – जिसमें SCoDER के मॉडल को संदर्भित किया गया।
BRICS Health Ministers Meeting 2024 – भारत ने इस मॉडल को प्रस्तुत किया और अन्य देशों को साझेदारी का निमंत्रण दिया।
South-South Cooperation on Health – अफ्रीका और दक्षिण एशिया के देशों को इस मॉडल पर प्रशिक्षण देने की योजना।
सामाजिक प्रभाव: एक परिवार से राष्ट्र तक
इस पहल के प्रभाव को केवल मेडिकल डेटा से नहीं, सामाजिक कहानियों से भी समझा जा सकता है।
उदाहरण के लिए:
तमिलनाडु के एक गाँव में 42 वर्षीय किसान को जब समय रहते मधुमेह की पहचान हुई, तो उसे किडनी फेलियर से बचाया जा सका – सिर्फ इसलिए क्योंकि गाँव की आशा वर्कर को मोबाइल-ऐप से प्रशिक्षित किया गया था।
एक महिला शिक्षक, जिनकी आँखों की रोशनी जा रही थी, अब समय पर इलाज पाकर पढ़ा रही हैं – क्योंकि SCoDER द्वारा निर्मित स्क्रीनिंग कैंप में उनका निदान हुआ।
ऐसी हजारों छोटी कहानियाँ इस परियोजना को वैज्ञानिक सफलता से अधिक मानवीय सफलता बनाती हैं।

भविष्य की दिशा: कहाँ जाना है अब?
IIT Madras: 2025-2030 की योजनाएँ
हर राज्य में SCoDER के रीजनल सेंटर की स्थापना।
भारत के हर मेडिकल कॉलेज में मधुमेह आधारित प्रैक्टिकल ट्रेनिंग।
“India NCD Digital Map” का निर्माण – जिसमें हर जिले के NCD डेटा को AI आधारित नक्शे पर दर्शाया जाएगा।
AIIMS, IIT और NIMHANS जैसे संस्थानों के बीच एक संयुक्त शोध नेटवर्क।
NCDs से लड़ने के लिए राष्ट्रीय स्तर का हेल्थ इनोवेशन ग्रांट।
IIT Madras प्रौद्योगिकी की भूमिका: भविष्य का हेल्थकेयर डिजिटल होगा
AI, IoT और Machine Learning का उपयोग
IIT Madras में चल रहे इस कार्यक्रम में अत्याधुनिक तकनीकों का समावेश किया जा रहा है, जैसे:
AI आधारित डायबिटीज़ रिस्क प्रेडिक्शन मॉडल:
इससे किसी व्यक्ति की आयु, वजन, खानपान, पारिवारिक इतिहास आदि को देखकर ये अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे डायबिटीज़ होने की कितनी संभावना है।
Wearable Devices (जैसे स्मार्ट बैंड या क्लिप-ऑन सेंसर):
ये उपकरण लगातार ब्लड ग्लूकोज़ लेवल, शारीरिक गतिविधियों, और नींद की गुणवत्ता को मापते हैं और डेटा सीधे डॉक्टर को भेजते हैं।
Telemedicine Portals:
अब मरीज को विशेषज्ञ डॉक्टर से मिलने के लिए महानगरों में नहीं जाना पड़ेगा। मोबाइल से ही परामर्श संभव है।
Cloud Based Patient Records System:
जिससे कोई भी डॉक्टर भारत के किसी भी कोने से मरीज का पुराना इलाज देख सकता है।
IIT Madras का अनूठा योगदान: सिर्फ इंजीनियरिंग नहीं, मानवता भी
HealthTech Startups को बढ़ावा
IIT Madras के इनक्यूबेशन सेंटर से कई HealthTech स्टार्टअप्स को जन्म मिला है, जिनका लक्ष्य है – मधुमेह और अन्य NCDs के लिए लागत-प्रभावी तकनीकें लाना।
कुछ प्रमुख उदाहरण:
YAP Health: AI आधारित प्री-डायबिटिक स्टेट की पहचान करने वाली प्रणाली।
PiQure: जो इंसुलिन के दर्द रहित और प्रभावी इंजेक्शन विकसित कर रही है।
NutrAI: जो व्यक्तिगत खानपान पर आधारित डायबिटीज़ डायट प्लान उपलब्ध कराती है।
चुनौतियाँ: समाधान के साथ समझना आवश्यक
जहाँ यह साझेदारी प्रशंसनीय है, वहीं कई बड़ी व्यवहारिक और नीति संबंधी चुनौतियाँ भी सामने हैं:
1. डिजिटल डिवाइड:
ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्टफोन, इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता की कमी।
2. संस्कृति और खानपान से जुड़ी आदतें:
भारतीय समाज में मीठा, तला हुआ और शारीरिक निष्क्रियता को सामान्य मान लेना।
3. निजी डेटा की सुरक्षा:
हेल्थ डेटा को सुरक्षित और गोपनीय रखना एक बड़ा प्रश्न है।
4. डॉक्टरों की संख्या और प्रशिक्षण:
भारत में प्रति 1000 व्यक्तियों पर डॉक्टरों की संख्या अभी भी WHO मानक से कम है।
निष्कर्ष (Conclusion):
IIT Madras और अमेरिकी संस्थानों की यह साझेदारी केवल तकनीकी सहयोग नहीं, बल्कि भारत के स्वास्थ्य तंत्र को नई दिशा देने वाला ऐतिहासिक कदम है।
यह पहल इस बात का प्रमाण है कि जब विज्ञान, सामाजिक जिम्मेदारी और अंतरराष्ट्रीय सहयोग एकजुट होते हैं, तब बड़ी से बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों को भी हराया जा सकता है।
डायबिटीज़ और अन्य गैर-संक्रामक रोग (NCDs) भारत में तेजी से बढ़ रहे हैं, लेकिन इस साझेदारी ने दिखाया कि तकनीक–जैसे AI, IoT, टेलीमेडिसिन और क्लाउड डेटा—को यदि सही ढंग से लागू किया जाए, तो इन बीमारियों की पहचान, रोकथाम और उपचार बेहद प्रभावी हो सकता है।
IIT Madras की पहलें, जैसे HealthTech स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना, ग्रामीण भारत में डिजिटल स्वास्थ्य साक्षरता फैलाना, और विशेष रूप से महिलाओं व बच्चों पर ध्यान केंद्रित करना, भारत को हेल्थकेयर इनोवेशन में ग्लोबल लीडर बना रही हैं।
यह पहल एक नई उम्मीद है—जहां हर नागरिक को उसकी सेहत के लिए स्मार्ट, सुलभ और सस्ती सुविधाएं मिलेंगी। यह एक ऐसा मॉडल है जिसे अन्य विकासशील देश भी अपनाकर अपनी स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान खोज सकते हैं।
अंततः, यह सिर्फ एक वैज्ञानिक मिशन नहीं, बल्कि एक मानवीय क्रांति है।
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