Justice B. R. Gavai: भारत को मिला पहला बौद्ध मुख्य न्यायाधीश, क्या यह नया युग की शुरुआत है?
प्रस्तावना: भारत के न्यायिक इतिहास में नया अध्याय
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Toggleभारत की न्यायपालिका ने 14 मई 2025 को एक ऐसा दिन देखा, जिसे इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। जब न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई (B.R. Gavai) ने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली, तो यह केवल एक संवैधानिक परंपरा की निरंतरता नहीं थी, बल्कि यह समावेशिता, सामाजिक न्याय और विविधता की नई मिसाल भी थी।
Justice B. R. Gavai न केवल देश के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश बने, बल्कि वे दूसरे दलित समुदाय से आने वाले व्यक्ति हैं जिन्होंने इस सर्वोच्च पद को सुशोभित किया।
यह उन लाखों लोगों के लिए आशा की किरण है, जो दशकों से हाशिए पर खड़े होकर न्याय और पहचान की लड़ाई लड़ते आए हैं।
शुरुआती जीवन: एक साधारण परिवार से असाधारण तक
Justice B. R. Gavai का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में एक मध्यमवर्गीय बौद्ध परिवार में हुआ था।
उनके पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता थे, जो डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुयायी रहे और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई गुट) के संस्थापक भी रहे।
Justice B. R. Gavai का बचपन समाज में व्याप्त असमानता, जातिवाद और भेदभाव को देखते हुए बीता। लेकिन उन्हीं कठिनाइयों ने उन्हें सच, न्याय और समानता के रास्ते पर दृढ़ किया। बचपन से ही उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा और सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी।
शिक्षा और व्यक्तित्व का निर्माण
उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा अमरावती से पूरी की और उसके बाद नागपुर विश्वविद्यालय से कानून (LL.B.) की पढ़ाई की। विश्वविद्यालय के दिनों में ही वे अपने व्याख्यानों, लेखन और सामाजिक सक्रियता के लिए जाने जाते थे।
वे अकसर अंबेडकरवादी विचारों पर बहस में हिस्सा लेते, और न्याय की अवधारणा को केवल किताबों में नहीं बल्कि ज़मीनी जीवन में उतारने की कोशिश करते थे।
Justice B. R. Gavai को न केवल कानून का छात्र माना जाता है, बल्कि वे संविधान और समाजशास्त्र के एक गहरे चिंतक भी माने जाते हैं।
वकालत से न्यायपालिका तक: संघर्ष और सफलता
1985 में वकालत की शुरुआत करने के बाद उन्होंने नागपुर बेंच (बॉम्बे हाई कोर्ट) में प्रैक्टिस शुरू की। वे जल्दी ही महाराष्ट्र सरकार के लिए सरकारी वकील और बाद में सरकारी अभियोजक भी बने।
उनका अनुभव, निष्ठा और गहरी संवैधानिक समझ देखकर 14 नवंबर 2003 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
बॉम्बे हाई कोर्ट में उन्होंने गरीबों, मजदूरों, महिलाओं और वंचित तबकों के पक्ष में कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए। उनके निर्णयों में तकनीकी कानूनी विश्लेषण के साथ-साथ मानवीय दृष्टिकोण भी स्पष्ट रूप से झलकता था।
सुप्रीम कोर्ट की सीढ़ी: एक बड़ी छलांग
24 मई 2019 को, उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। यह एक बड़ी जिम्मेदारी और समाज के लिए बड़ी उम्मीद थी।
सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने संवैधानिक, आपराधिक, पर्यावरणीय और सामाजिक न्याय से जुड़े अनेक अहम मामलों की सुनवाई की।
उनके कुछ प्रमुख निर्णय:
विमुद्रीकरण पर निर्णय: जिसमें उन्होंने कहा कि सरकार की नीति सही हो सकती है, लेकिन आम नागरिकों को उचित मुआवज़ा और प्रक्रिया मिलनी चाहिए।
बुलडोज़र न्याय पर टिप्पणी: उन्होंने कहा कि बिना सुनवाई के किसी की संपत्ति गिराना “कानून का मखौल” है।
अल्पसंख्यक अधिकार: उन्होंने बार-बार कहा कि संविधान की आत्मा तभी ज़िंदा रहती है जब हम सबसे कमज़ोर की रक्षा करें।

मुख्य न्यायाधीश बनना: ऐतिहासिक क्षण
14 मई 2025 को, राष्ट्रपति ने उन्हें भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई। इस शपथ ग्रहण समारोह में कई बड़े न्यायविद, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
उस पल ने न केवल न्यायपालिका को गौरव दिया, बल्कि करोड़ों बौद्धों और दलितों के दिलों में आत्मगौरव की भावना भी जगा दी।
उनकी नियुक्ति यह साबित करती है कि भारत बदल रहा है—जहां जन्म नहीं, बल्कि कर्म सर्वोच्च है।
क्यों है यह नियुक्ति इतनी महत्वपूर्ण?
पहले बौद्ध न्यायाधीश: गवई साहब का यह पदभार भारत के करोड़ों बौद्धों के लिए एक पहचान की जीत है।
दलित समाज के लिए प्रतीकात्मक बदलाव: यह दलितों के लिए केवल प्रतिनिधित्व नहीं, बल्कि संविधानिक भागीदारी है।
अंबेडकरवादी मूल्यों की जीत: उनका जीवन, डॉ. अंबेडकर के ‘शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो’ के आदर्श को जीवित करता है।
न्यायपालिका में विविधता और समावेशिता का प्रश्न
न्यायपालिका में लंबे समय से जातीय, धार्मिक और लैंगिक विविधता की कमी रही है। Justice B. R. Gavai की नियुक्ति ने इस रूढ़ि को तोड़ने का कार्य किया है।
यह साबित करता है कि प्रतिभा, समर्पण और संवेदनशीलता ही न्यायपालिका की असली कसौटी होनी चाहिए, न कि जाति, वर्ग या पृष्ठभूमि।
अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा
Justice B. R. Gavai खुद यह कह चुके हैं कि उनका जीवन डॉ. अंबेडकर की विचारधारा से प्रेरित है। वे मानते हैं कि न्यायपालिका तभी सफल है जब वह समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति को समान अवसर देती है।
वे संवैधानिक नैतिकता के हिमायती हैं और यह मानते हैं कि अदालतें केवल कानून की व्याख्या नहीं करतीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शन भी करती हैं।
नेतृत्व शैली और दृष्टिकोण
Justice B. R. Gavai साहब का दृष्टिकोण बेहद मानवीय, संविधानसम्मत और व्यवहारिक है। वे मानते हैं:
न्याय को जन-सुलभ बनाना चाहिए।
अदालतों में तकनीक का प्रयोग बढ़ाया जाना चाहिए।
युवा वकीलों को न्यायिक प्रक्रिया में भागीदार बनाना चाहिए।
वे शपथ ग्रहण के बाद बोले:
“यह कुर्सी मेरे लिए नहीं, उन करोड़ों लोगों की उम्मीदों की कुर्सी है जो आज भी समान अवसर का सपना देखते हैं।”
भविष्य की चुनौतियाँ और अपेक्षाएं
गवई के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ हैं:
न्यायिक लंबित मामलों को तेज़ी से निपटाना
अदालतों की जवाबदेही बढ़ाना
जजों की नियुक्ति प्रणाली में पारदर्शिता लाना
समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुँचाना
लेकिन इन सभी को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि उनका विनम्र, संवेदनशील और समर्पित व्यक्तित्व इन समस्याओं से लड़ने में सक्षम है।
Justice B. R. Gavai की कुछ उल्लेखनीय टिप्पणियाँ और निर्णय
Justice B. R. Gavai केवल निर्णय सुनाने वाले जज नहीं रहे, बल्कि वे संवेदनशील सोच वाले न्यायविद भी हैं। उन्होंने कई ऐसे मामलों में साहसिक टिप्पणियाँ कीं जिनसे न्यायपालिका की भूमिका पर बहस छिड़ गई।
i. बुलडोज़र कार्रवाई पर टिप्पणी
गवई ने कहा था,
“अगर बिना कानूनी सुनवाई के किसी की संपत्ति गिराई जाती है, तो वह लोकतंत्र नहीं, बल्कि जंगलराज है।”
यह टिप्पणी उत्तर भारत के कई राज्यों में अतिक्रमण विरोधी कार्रवाइयों के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों के घर गिराने पर आई थी।
ii. सोशल मीडिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
उन्होंने 2023 में एक सुनवाई के दौरान कहा,
“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की सांस है; इसे कुचला नहीं जा सकता, लेकिन जिम्मेदारी से निभाया जाना चाहिए।”
iii. धर्मांतरण पर बहस
जब जबरन धर्मांतरण को लेकर मामला आया, तो उन्होंने स्पष्ट कहा:
“अगर कोई व्यक्ति स्वेच्छा से धर्म बदलता है तो राज्य को हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं।”
इन टिप्पणियों में संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 की गहरी समझ और सामाजिक विविधता के प्रति सम्मान स्पष्ट दिखता है।
गवई साहब और तकनीक का उपयोग: डिजिटल इंडिया में न्याय
वे “डिजिटल जुडिशियरी” के मजबूत पक्षधर रहे हैं। COVID-19 के समय उन्होंने ऑनलाइन सुनवाई का पूरा समर्थन किया और कहा:
“तकनीक ही वह सेतु है जो अदालत और आम नागरिक के बीच की दूरी को मिटा सकती है।”
उन्होंने वर्चुअल कोर्ट की शुरुआत का समर्थन किया।
ई-फाइलिंग, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और AI आधारित अनुसंधान पर बल दिया।
उनका उद्देश्य है –
“हर पंचायत स्तर तक न्याय की पहुँच।”
सामाजिक न्याय के प्रति समर्पण
Justice B. R. Gavai की न्यायिक शैली में social justice एक केंद्रीय तत्व रहा है। उन्होंने निर्णय देते हुए हमेशा यह देखा कि उसका प्रभाव समाज के कमजोर तबकों पर कैसा पड़ेगा।
कुछ उदाहरण:
आरक्षण से जुड़े मामलों में न्यायपूर्ण दृष्टिकोण
SC/ST एक्ट पर मजबूत राय
मनरेगा और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर पारदर्शिता की वकालत
वे मानते हैं,
“अगर न्याय केवल अमीरों तक सीमित रह जाए, तो संविधान की आत्मा मर जाती है।”
व्यक्तिगत जीवन और सादगी
Justice B. R. Gavai का व्यक्तिगत जीवन बेहद सादा और अनुशासित है। वे न दिखावे में विश्वास रखते हैं, न ही सत्ता के मोह में।
उनकी पत्नी एक शिक्षिका हैं और परिवार का वातावरण बौद्ध मूल्यों जैसे करुणा, अहिंसा और श्रम पर आधारित है।
वे रोज सुबह ध्यान करते हैं और हर वर्ष नागपुर के दीक्षाभूमि में 14 अक्टूबर (धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस) पर श्रद्धांजलि देने जाते हैं।

Justice B. R. Gavai और अंबेडकर के विचारों की व्याख्या
उनका जीवन अंबेडकर के विचारों की जीवंत व्याख्या है:
शिक्षा: खुद वकील और जज बने, दूसरों को प्रेरित किया।
समानता: फैसलों में हर जाति-वर्ग को बराबर सम्मान।
संविधानवाद: हर निर्णय में संविधान की आत्मा को प्राथमिकता।
वे अक्सर कहते हैं:
“मैं जो हूँ, वो अंबेडकर की वजह से हूँ। अब मेरा कर्तव्य है कि उनके सपनों को पूरा करूं।”
आलोचनाएँ और संतुलित न्याय
हर न्यायाधीश की तरह Justice B. R. Gavai को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा:
कुछ ने कहा वे दलित-हितैषी फैसले अधिक देते हैं।
तो कुछ ने उन्हें “बहुत नरम” न्यायाधीश बताया।
लेकिन आलोचना के बीच वे संतुलन बनाए रखने में सफल रहे, क्योंकि उनका आधार संविधान और मानव गरिमा था, न कि व्यक्तिगत एजेंडा।
वैश्विक स्तर पर गवई की छवि
उनकी नियुक्ति पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा हुई।
अमेरिका, ब्रिटेन, नेपाल, श्रीलंका, जापान और म्यांमार के बौद्ध समुदायों ने हर्ष और गर्व के साथ उनका स्वागत किया।
उनके भाषणों को ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के लॉ स्कूल्स में उद्धृत किया जाता है।
युवाओं के लिए प्रेरणा
आज का युवा Justice B. R. Gavai की यात्रा से सीख सकता है:
सादगी से शुरू करके सर्वोच्च शिखर तक पहुँचना।
शिक्षा को हथियार बनाना।
सामाजिक चेतना के साथ सफलता की ओर बढ़ना।
उनका संदेश है:
“सिस्टम को कोसने से अच्छा है कि आप खुद उस सिस्टम का हिस्सा बनें और उसे बेहतर करें।”
भविष्य की दिशा: न्यायपालिका के नए मानक
Justice B. R. Gavai की नियुक्ति से आगे जो रास्ते खुलते हैं:
न्यायपालिका में सामाजिक प्रतिनिधित्व बढ़ेगा
न्याय में संवेदना और समानता की भावना बढ़ेगी
संविधान को व्यवहारिक रूप में अपनाने का चलन बढ़ेगा
भारत के लोकतंत्र में नई आशा की किरण
Justice B. R. Gavai का भारत के मुख्य न्यायाधीश बनना न केवल एक व्यक्ति की सफलता है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की विविधता और समावेशन की जीत है।
यह घटना बताती है कि भारत अब उस दिशा में आगे बढ़ रहा है जहां योग्यता, समर्पण और संविधान के प्रति निष्ठा को जाति, धर्म, क्षेत्र या भाषा से ऊपर रखा जा रहा है।
i. क्या यह सिर्फ प्रतीकात्मक है?
नहीं! यह सिर्फ प्रतीकवाद नहीं, बल्कि एक संवेदनात्मक यथार्थ है। यह भारत की संवैधानिक यात्रा में एक मील का पत्थर है।
ii. कमजोर वर्गों के लिए नया आत्मविश्वास
जो लोग आज तक “हाशिए पर” समझे जाते थे, उनके लिए यह क्षण नवजागरण से कम नहीं। वे अब यह मानने लगे हैं कि संविधान सिर्फ किताब में नहीं, बल्कि न्यायालय की कुर्सियों पर भी जीवित है।
शिक्षाविदों और विधि विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
भारत और विदेशों के कई विधिवेत्ताओं और शिक्षाविदों ने गवई साहब की नियुक्ति को ऐतिहासिक करार दिया है।
i. डॉ. उपेन्द्र बक्षी (विधिवेत्ता)
“यह नियुक्ति न केवल न्यायपालिका के जनतांत्रिकरण की दिशा में एक कदम है, बल्कि संविधान के सामाजिक न्याय के सिद्धांतों की पुनः पुष्टि है।”
ii. प्रो. राजीव धवन
“Justice B. R. Gavai जैसे जजों का शीर्ष पर पहुँचना यह साबित करता है कि भारतीय संविधान अब केवल ‘ऑब्जेक्ट ऑफ वंडर’ नहीं, बल्कि ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ जस्टिस’ बन चुका है।”
न्यायपालिका में विविधता की आवश्यकता क्यों है?
i. समाज का वास्तविक प्रतिबिंब
यदि न्यायपालिका विविध नहीं होगी, तो न्याय का स्वरूप भी एकतरफा हो जाएगा। गवई जैसे जज यह सुनिश्चित करते हैं कि न्याय की प्रक्रिया वास्तविक भारत की आवाज़ सुने।
ii. अनुभव और दृष्टिकोण की विविधता
दलित, आदिवासी, महिला, मुस्लिम या अन्य अल्पसंख्यक समुदाय से आने वाले जज अन्यथा अदृश्य रहे पहलुओं को सामने लाते हैं।
iii. न्यायिक तटस्थता बनाम न्यायिक समझ
तटस्थता अच्छी बात है, लेकिन संवेदनशील तटस्थता और अनुभवजन्य समझ ज्यादा जरूरी होती है, खासकर एक विविध देश में।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और Justice B. R. Gavai की प्राथमिकताएं
i. न्याय में देरी – सबसे बड़ा संकट
Justice B. R. Gavai ने कहा है कि वे लंबित मामलों को तेजी से निपटाना चाहते हैं।
उनका दृष्टिकोण:
“Delayed justice is not justice; it is denial.”
ii. जिला न्यायालयों को सशक्त बनाना
गांव-गांव तक न्याय की पहुँच बनाने के लिए उन्होंने ग्रामीण न्याय प्रणाली, ई-कोर्ट्स, और अदालती भाषा में सुधार को अहम बताया।
iii. महिलाओं और बच्चों के अधिकार
वे मानते हैं कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा, बच्चों के शोषण जैसे मामलों में “स्पीडी ट्रायल” और संवेदनशील सुनवाई आवश्यक है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायिक संगठनों में भागीदारी की संभावना
भारत के पहले बौद्ध CJI के रूप में गवई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत की न्यायिक दृष्टि का प्रतिनिधित्व करेंगे।
UN Human Rights Council
International Court of Justice (ICJ)
SAARC और ASEAN कानून मंच
यह संभव है कि उनकी विचारशीलता और सामाजिक न्याय के अनुभव से भारत की वैश्विक साख बढ़ेगी।
भविष्य की न्यायपालिका में उम्मीद की किरण
Justice B. R. Gavai की नियुक्ति से आने वाले वर्षों में कुछ बड़े बदलावों की उम्मीद की जा रही है:
ज्यादा प्रतिनिधित्व मूलनिवासी, दलित, OBC, अल्पसंख्यक और महिलाओं का
न्यायिक फैसलों में समाज की जमीनी समझ का समावेश
न्याय को सुगम, सरल और सस्ता बनाना
निष्कर्ष:
भारत के इतिहास में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई का देश के 52वें और पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेना सिर्फ एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का प्रतीक है।
यह उस भारत की तस्वीर है जो जाति, वर्ग, पृष्ठभूमि से ऊपर उठकर केवल योग्यता, ईमानदारी और संविधान के प्रति निष्ठा को प्राथमिकता देता है।
यह नियुक्ति उन करोड़ों लोगों के लिए नई आशा की किरण है, जो अब तक खुद को हाशिये पर महसूस करते थे। यह बताती है कि भारत की न्यायपालिका अब केवल कुछ विशेष वर्गों तक सीमित नहीं, बल्कि सभी वर्गों की आवाज़ को सुनने और समाहित करने के लिए तैयार है।
Justice B. R. Gavai का जीवन संघर्ष, उनकी शिक्षा, विनम्रता और न्याय के प्रति समर्पण युवाओं के लिए प्रेरणा है। उनकी सोच, नेतृत्व और संवेदनशीलता आने वाले समय में भारत की न्यायिक व्यवस्था को और अधिक समावेशी, उत्तरदायी और न्यायसंगत बनाएगी।
अंततः, यह क्षण न केवल Justice B. R. Gavai की व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र, संविधान और सामाजिक न्याय के मूल्यों की जीत है – एक ऐसा क्षण जो हमें याद दिलाता है कि “हम सब भारतीय हैं, और हमें समान अवसर और सम्मान मिलना चाहिए।”
यह भारत बदल रहा है — और यह बदलाव संविधान की आत्मा के साथ है।
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