JWST की अद्भुत सफलता: 700 Million साल पुरानी गैलेक्सी ने खोले नए ब्रह्मांडीय रहस्य!
भूमिका – ब्रह्मांड की उत्पत्ति और मानव जिज्ञासा
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Toggleजब आप रात के अंधेरे आकाश की ओर देखते हैं, तो अनगिनत तारों की रोशनी में एक सवाल चुपचाप झलकता है – “हम कहां से आए?” यह सवाल न तो नया है, न ही इसका उत्तर आसान। लेकिन यही वो सवाल है जिसने इंसान को हजारों सालों से खोज की राह पर आगे बढ़ाया है।
पुराने समय में इंसानों ने आकाश में तारे देखे, ग्रहों की गति समझी, और खगोलशास्त्र की नींव रखी। समय बदला, लेकिन सवाल वहीं रहा। और आज, हम उस पड़ाव पर हैं जहाँ इंसान ने अंतरिक्ष में ऐसी मशीनें भेज दी हैं जो ब्रह्मांड के जन्म की झलक तक हमें दिखा सकती हैं।
हम बात कर रहे हैं James Webb Space Telescope (JWST) की – एक ऐसी वैज्ञानिक उपलब्धि जो इंसान की बुद्धिमता, धैर्य और साहस की मिसाल है। और इसी टेलीस्कोप ने हाल ही में वो कर दिखाया जो अब तक केवल कल्पना में था – बिग बैंग के केवल 70 करोड़ साल बाद की एक आकाशगंगा की झलक।
यह केवल एक खोज नहीं है, यह एक खिड़की है उस समय में जब ब्रह्मांड सिर्फ एक नवजात था, जब पहली आकाशगंगाएं बन रही थीं, जब प्रकाश पहली बार अंधकार को चीरकर बाहर आया था।

बिग बैंग के 700 मिलियन वर्ष बाद की झलक
हमारा ब्रह्मांड आज लगभग 13.8 अरब वर्ष पुराना है। लेकिन सोचिए, अगर हम समय को उल्टा घुमा सकें और उस क्षण तक पहुंच सकें जब सब कुछ शुरू हुआ—जहां न समय था, न स्थान, न पदार्थ। केवल एक बिंदु… जो अचानक फट पड़ा और उस विस्फोट को आज हम कहते हैं: बिग बैंग।
बिग बैंग के बाद ब्रह्मांड गर्म, घना और अत्यंत गतिशील था। तारे, आकाशगंगाएं और ग्रह तो बहुत बाद की बातें हैं। शुरुआत में केवल ऊर्जा और सबसे हल्के कण थे। फिर धीरे-धीरे, लाखों वर्षों बाद, जब ब्रह्मांड ठंडा होने लगा, तब अंधकार के उस महासमुद्र में पहली बार प्रकाश चमका।
उस समय को हम कहते हैं: कॉस्मिक डॉन। यही वह युग है जब पहली आकाशगंगाएं बनने लगीं। लेकिन यह सब इतना दूर और इतना प्राचीन है कि उसे देख पाना असंभव-सा लगता था और तभी आता है JWST।
यह टेलीस्कोप हमें न केवल दूर की वस्तुओं को दिखाता है, बल्कि वह वस्तुएं जो आज दिख रही हैं, असल में वह लाखों-करोड़ों साल पुरानी हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रकाश को एक जगह से दूसरी जगह आने में समय लगता है।
जितना दूर का ऑब्जेक्ट, उतना पुराना प्रकाश। और यही विज्ञान की सबसे रोमांचक बात है – हम JWST से आकाश में नहीं, बल्कि अतीत में झांकते हैं।
और इस अतीत में हमें दिखती है – एक छोटी, धुंधली-सी लेकिन अविश्वसनीय आकाशगंगा: JADES-GS-z7-01-QU। इसका प्रकाश JWST तक पहुंचने में 13 अरब वर्ष से भी अधिक समय ले चुका है। यह वो समय था जब ब्रह्मांड अभी शिशु अवस्था में था।
और हैरानी की बात यह है कि… इस आकाशगंगा ने उस समय पर ही तारा निर्माण बंद कर दिया था। यानी यह एक dead galaxy थी, और इतनी जल्दी किसी आकाशगंगा का ‘मृत’ हो जाना वैज्ञानिकों के लिए चौंकाने वाला है।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप – समय में झांकने की खिड़की
किसी भी वैज्ञानिक खोज के पीछे एक सोच, एक दृष्टिकोण और वर्षों की मेहनत छिपी होती है। JWST भी ऐसा ही एक चमत्कार है। यह केवल एक टेलीस्कोप नहीं, बल्कि मानव जाति का ब्रह्मांड से संवाद है।
कैसे हुआ इसका निर्माण?
James Webb Space Telescope का विचार NASA, ESA (European Space Agency) और CSA (Canadian Space Agency) ने मिलकर रखा।
इसकी कल्पना 1990 के दशक में की गई और यह 25 दिसंबर 2021 को लॉन्च हुआ। इसे Ariane 5 रॉकेट द्वारा फ्रेंच गुयाना से अंतरिक्ष में भेजा गया।
इस टेलीस्कोप को खासतौर पर बनाया गया है ब्रह्मांड की शुरुआत को देखने के लिए। इसका सबसे बड़ा गुण है – इसकी इन्फ्रारेड क्षमता।
क्योंकि ब्रह्मांड जितना दूर होता है, उसका प्रकाश उतना ही लालसरकित (Redshifted) हो जाता है – यानी वह सामान्य प्रकाश से इन्फ्रारेड में खिसक जाता है।
इसका 6.5 मीटर का गोल्ड कोटेड मिरर और क्रायोजेनिक शील्ड इसे ब्रह्मांड की गहराई में छुपे संकेत पकड़ने में सक्षम बनाते हैं।
JWST के लॉन्च होने के बाद से अब तक इसके द्वारा खींची गई तस्वीरों और डाटा ने खगोलशास्त्र की दुनिया में हलचल मचा दी है। ब्लैक होल्स, गैस क्लाउड्स, नवगठित तारे और अब – JADES-GS-z7-01-QU जैसी सबसे प्राचीन और मृत आकाशगंगा तक।
JADES-GS-z7-01-QU – एक मृत आकाशगंगा की हैरान कर देने वाली खोज
यह नाम सुनने में जितना तकनीकी लगता है, इसकी कहानी उतनी ही रोमांचक है।
JADES-GS-z7-01-QU कोई आम आकाशगंगा नहीं है। यह उन हजारों आकाशगंगाओं में से है जिन्हें JWST ने JADES (JWST Advanced Deep Extragalactic Survey) के तहत स्कैन किया। लेकिन जब इस आकाशगंगा के स्पेक्ट्रम को देखा गया – तो वैज्ञानिक चौंक गए।
क्या है खास?
- यह 13.2 अरब प्रकाशवर्ष दूर है।
- इसका रेडशिफ्ट z ~ 7.3 है, जो इसे अब तक की सबसे दूर की “quiescent” यानी मृत आकाशगंगा बनाता है।
- इसमें नया तारा निर्माण लगभग नहीं के बराबर हो चुका है, जबकि इतनी कम उम्र में आकाशगंगाएं तेज़ी से सितारे बनाती हैं।
वैज्ञानिकों का भ्रम
अब तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड की शुरुआती आकाशगंगाएं बहुत ऊर्जावान होती हैं – उनमें नए-नए तारे बनते रहते हैं। लेकिन JADES-GS-z7-01-QU ने इस सोच को चुनौती दी है।
तो सवाल यह है – इतनी जल्दी ये कैसे “बुझ” गई?
संभावित कारण:
इसकी गैस बहुत जल्दी खत्म हो गई।
इसमें किसी गैलेक्सी मर्जर या ब्लैक होल का प्रभाव हुआ।
या फिर ये किसी बड़े ग्रैविटेशनल प्रभाव के कारण तारा निर्माण रोक बैठी।
ये सभी अनुमान हैं, पर सत्य अभी भी अनुसंधान का विषय है।
इतिहास में झांकना – लाइट ट्रैवल और रेडशिफ्ट का जादू
जब हम कोई तारा या आकाशगंगा देखते हैं, तो असल में हम उसका “भूतकाल” देख रहे होते हैं। क्योंकि प्रकाश को हम तक पहुंचने में समय लगता है। यही कारण है कि जब JWST ने JADES-GS-z7-01-QU को देखा, तो असल में उसने देखा कि वो 13.2 अरब वर्ष पहले कैसी थी।
इसे समझने के लिए हमें दो बातों को समझना जरूरी है:
1. लाइट ट्रैवल टाइम (प्रकाश यात्रा समय)
ब्रह्मांड में प्रकाश की गति सीमित है – 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड। जब कोई वस्तु हमसे लाखों-करोड़ों प्रकाशवर्ष दूर होती है, तो उसका प्रकाश हमारे पास आने में उतना ही समय लगता है। इसलिए ब्रह्मांड में “दूरी” का मतलब होता है – “समय में पीछे देखना।”
2. रेडशिफ्ट (Redshift)
जैसे-जैसे ब्रह्मांड फैलता है, दूर की वस्तुओं से आने वाली प्रकाश तरंगें खिंच जाती हैं – और यह लाल रंग की ओर शिफ्ट हो जाती हैं। इसीलिए दूर की आकाशगंगाएं रेडशिफ्टेड होती हैं।
JADES-GS-z7-01-QU का रेडशिफ्ट z~7.3 दर्शाता है कि यह ब्रह्मांड के बहुत ही शुरुआती समय की वस्तु है।
वैज्ञानिकों की प्रतिक्रिया – ब्रह्मांड के नियमों को फिर से परिभाषित करने की चुनौती
जब JADES-GS-z7-01-QU की खोज की पुष्टि हुई, तो खगोल वैज्ञानिक समुदाय में खलबली मच गई। क्योंकि अब तक जो मॉडलों और गणनाओं के आधार पर ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास की जो समझ थी, उसे यह खोज झटका देती है।

प्रमुख वैज्ञानिक प्रतिक्रियाएं:
ब्रेंट रोबर्टसन (NASA):
“हमें यह तो पता था कि JWST कुछ असाधारण खोजेगा, लेकिन इतनी जल्दी मृत हो चुकी आकाशगंगा देखना हमारे सिद्धांतों को चुनौती देता है।”
डॉ. एम्मा कुर्टिस (Oxford University):
“यह खोज दर्शाती है कि ब्रह्मांड के प्रारंभिक चरणों में ही कुछ आकाशगंगाएं इतनी तेजी से विकसित हो गईं कि उन्होंने बहुत जल्दी अपने संसाधन जला दिए और ‘नींद’ में चली गईं।”
डॉ. संजय पटेल (IISc Bangalore):
“हमें अब पुनः सोचना होगा कि ‘गैलेक्सी फॉर्मेशन’ के नियम क्या हैं। हम जिन मॉडलों पर काम कर रहे थे, शायद वे अब अधूरे हैं।”
वैज्ञानिक उलझनें:
क्या इस आकाशगंगा का निर्माण और मृत्यु वास्तव में 700 मिलियन वर्षों के अंदर हो गई?
क्या यह कोई एक असाधारण उदाहरण है या ऐसी और भी ‘dead galaxies’ उस समय मौजूद थीं?
अगर ऐसा है, तो क्या हमारी ब्रह्मांडीय काल गणना (cosmic timeline) गलत है?
इन सवालों के जवाब ढूंढ़ना विज्ञान का अगला बड़ा लक्ष्य बन चुका है।
भविष्य की खोजें – JWST और वैज्ञानिक अनुसंधान की अगली दिशा
JWST ने एक खिड़की खोली है, अब वैज्ञानिक उसमें से झांकने को तैयार हैं।
संभावित शोध क्षेत्र:
1. और प्राचीन ‘dead galaxies’ की खोज:
क्या यह एकमात्र है, या इसी तरह की और भी गैलेक्सियां मौजूद हैं जो तारा निर्माण बंद कर चुकी हैं?
2. ब्लैक होल्स का प्रारंभिक प्रभाव:
क्या इन गैलेक्सियों में सक्रिय ब्लैक होल्स ने सितारा निर्माण रोक दिया? JWST के माध्यम से इनका निरीक्षण किया जा सकता है।
3. ‘गैलेक्सी मर्जर’ की शुरुआती घटनाएं:
क्या छोटे-छोटे गैलेक्सियों के टकराने से बड़ी आकाशगंगा बन रही थी और उसी में ऊर्जा खत्म हो रही थी?
4. रेडशिफ्ट के और अधिक चरम उदाहरण:
JWST आगे भी ऐसे ऑब्जेक्ट्स को देख सकता है जिनका रेडशिफ्ट 10 या उससे ऊपर हो – यानी ब्रह्मांड के बिलकुल शुरुआती युग के दृश्य।
JWST के अलावा:
अगली पीढ़ी के टेलीस्कोप जैसे Roman Space Telescope और Extremely Large Telescope (ELT) JWST की सहायता करेंगे।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके डेटा को तेजी से विश्लेषित किया जाएगा।
भारत और ब्रह्मांडीय खोज – JWST में भारत की अप्रत्यक्ष भूमिका
भारत भले ही JWST का प्रत्यक्ष भाग नहीं है, लेकिन भारत के वैज्ञानिक, डेटा एनालिस्ट्स, और खगोलविद इस खोज में अपना योगदान दे रहे हैं।
भारतीय खगोल संस्थान (IIA), ISRO, और कई विश्वविद्यालयों में JWST के डेटा का विश्लेषण हो रहा है।
IITs और IISc के छात्र ब्रह्मांडीय मॉडलिंग और सिमुलेशन में JWST की मदद से नई संभावनाएं तलाश रहे हैं।
भारत की नई स्पेस पॉलिसी के तहत, भविष्य में JWST जैसी परियोजनाओं में साझेदारी की योजना भी है।
निष्कर्ष – ब्रह्मांड अब और भी रहस्यमय है
JADES-GS-z7-01-QU की खोज ने हमें यह बता दिया है कि हम अभी भी ब्रह्मांड को सही मायनों में नहीं समझ पाए हैं।
हमें लगता था कि हम नियमों को जानते हैं, पर यह खोज उन नियमों को तोड़ती है।
यह खोज एक दरवाज़ा है – अज्ञात की ओर, जिज्ञासा की ओर। और यही विज्ञान की असली सुंदरता है – हर उत्तर के साथ नए सवाल जन्म लेते हैं।
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