Kathakali: क्या इसकी आँखों और भावों में छुपा है अद्भुत कहानी का जादू?

Kathakali: क्या इसकी आँखों और भावों में छुपा है अद्भुत कहानी का जादू?

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Kathakali: क्यों आज भी पूरी दुनिया इस भारतीय कला की दीवानी है?

प्रस्तावना: रंगों, भावों और परंपरा का संगम

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भारत की सांस्कृतिक विविधता में कुछ कलाएं ऐसी होती हैं जो केवल दृश्य-आनंद ही नहीं देतीं, बल्कि आत्मा को भी छू जाती हैं। ऐसी ही एक कला है कथकली।

यह सिर्फ एक नृत्य नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण मंचीय अनुभव है जिसमें संगीत, अभिनय, भाव, नाटकीयता और आध्यात्मिकता का अद्भुत समागम होता है।

Kathakali न केवल केरल की पहचान है, बल्कि यह भारतीय शास्त्रीय नाट्य परंपरा का भी एक सजीव उदाहरण है।

कथकली की उत्पत्ति: परंपरा से नवाचार की ओर

इतिहास की गहराइयों से

Kathakali की जड़ें 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में दक्षिण भारत के केरल राज्य में पाई जाती हैं। यह उस काल में विकसित हुआ जब भारत के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक कथाओं को नाट्य के रूप में प्रस्तुत करने की परंपरा प्रचलित थी।

इस काल में दो प्रमुख नाट्य शैलियाँ थीं—रमनाट्टम और कृष्णनाट्टम। कथकली ने इन दोनों से प्रेरणा ली, किंतु स्वयं को एक स्वतंत्र और विशिष्ट रूप में विकसित किया।

कृष्णनाट्टम बनाम रमनाट्टम

कृष्णनाट्टम की रचना जामोरिन राजा ने की थी, जो कृष्ण की लीलाओं पर आधारित थी और संस्कृत में प्रस्तुत की जाती थी।

रमनाट्टम को कोट्टारक्करा थंपुरान ने मलयालम भाषा में रचा था और यह रामायण की कथा पर आधारित थी।

इन दोनों की प्रतिस्पर्धा ने एक नई कला को जन्म दिया, जो थी — Kathakali। इसने संस्कृत की शुद्धता और मलयालम की लोक-भाषा दोनों को अपनाया और एक नए रंगमंचीय स्वरूप में ढाल दिया।

कथकली की विशिष्टताएँ: एक अद्वितीय रंगमंचीय भाषा

1. नृत्य, नाटक और संगीत का अद्भुत समन्वय

Kathakali को केवल एक नृत्य कहना इसके साथ अन्याय होगा। यह एक संपूर्ण नाट्य रूप है जिसमें:

संवादों का स्थान भावों और मुद्राओं ने लिया है,

गायन को पृष्ठभूमि में रखा गया है,

और मंच पर उपस्थित कलाकार केवल अपने शरीर, मुखाकृतियों और नेत्रों के माध्यम से सम्पूर्ण कथा को जीवंत करते हैं।

2. रंगभरा श्रृंगार और वेशभूषा

Kathakali की सबसे पहली पहचान होती है — इसकी भव्य वेशभूषा। इसमें:

पुरुष कलाकार स्त्री पात्र भी निभाते हैं,

चेहरे पर विशेष प्रकार का पेंटिंग मेकअप (चुट्टी) किया जाता है,

सिर पर भारी मुकुट, और आँखों में चूने की मदद से लालिमा लाई जाती है,

प्रत्येक रंग किसी भाव या चरित्र को दर्शाता है।

उदाहरण के लिए:

हरा चेहरा = नायक या ईश्वरीय पात्र (जैसे कृष्ण या राम),

लाल = क्रूरता और राक्षसी प्रवृत्ति,

पीला = योगी या तपस्वी चरित्र।

Kathakali: क्या इसकी आँखों और भावों में छुपा है अद्भुत कहानी का जादू?
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अभिव्यक्ति की चरम सीमा: नवरस की साधना

Kathakali में ‘नवरस’ या नौ भावों को व्यक्त करना ही मूल साधना है। एक कलाकार वर्षों तक केवल आँखों और चेहरे से भाव दिखाने का अभ्यास करता है।

श्रृंगार (प्रेम)

वीर (साहस)

हास्य (हँसी)

रौद्र (क्रोध)

करुण (दया)

भयानक (भय)

बीभत्स (घृणा)

अद्भुत (आश्चर्य)

शांत (शांति)

शारीरिक प्रशिक्षण और अनुशासन

नृत्य की नींव: शरीर की कठोर साधना

Kathakali की कला में पारंगत होने के लिए शरीर को अत्यंत लचीला, सशक्त और संतुलित बनाना पड़ता है। इसके लिए:

प्रतिदिन कई घंटे की मार्शल आर्ट्स (कलरिपयट्टु) का अभ्यास होता है,

शरीर के हर अंग को अलग-अलग नियंत्रित करने का प्रशिक्षण दिया जाता है।

आंखों की साधना

Kathakali में आंखें ही संवाद का प्रमुख साधन हैं। कलाकार को केवल नेत्रों के माध्यम से:

दिशा का आभास देना,

भावों को दर्शाना, और

नाटक को आगे बढ़ाना आना चाहिए।

इसकी साधना इतनी कठिन होती है कि एक साधारण मनुष्य इस कौशल को पाने में वर्षों लगा देता है।

पात्र और भूमिका: कथकली के चरित्र-चित्रण

Kathakali में कुल 5 प्रकार के पात्र होते हैं:

1. पच (Pacha) – हरे रंग वाले नायक जैसे राम, कृष्ण।

2. काठी (Kathi) – राक्षस लेकिन वीर, जैसे रावण।

3. थाड़ी (Thadi) – क्रूर दैत्य।

4. कारी (Kari) – दुष्ट स्त्री पात्र।

5. मिन्नुक्कु (Minukku) – शांत, भक्त या स्त्री पात्र।

कथकली और कथाएँ: महाभारत से लेकर शेक्सपियर तक

पारंपरिक कथाएँ

अधिकतर कथकली प्रदर्शन महाभारत, रामायण, और भागवत पुराण की कहानियों पर आधारित होते हैं। जैसे:

कर्ण और अर्जुन का युद्ध,

सीता की अग्निपरीक्षा,

कृष्ण और कालिया नाग।

आधुनिक प्रयोग

आज के युग में कथकली का प्रयोग:

शेक्सपियर के नाटकों,

ईसाई बाइबिल, और

समाज में घट रही घटनाओं पर आधारित नाटकों में भी हो रहा है।

यह इस कला के आधुनिक स्वीकार्यता और लचीलापन को दर्शाता है।

महत्वपूर्ण संस्थान और प्रशिक्षण केंद्र

केरल कलामंडलम

1927 में कवि वल्लथोल नारायण मेनन द्वारा स्थापित केरल कलामंडलम, कथकली शिक्षा का सबसे प्रतिष्ठित संस्थान है। यह संस्थान:

गुरुकुल परंपरा में शिक्षा देता है,

विद्यार्थियों को संपूर्ण रूप से कला में रचने-बसने का अवसर देता है।

नारी और कथकली: परंपरा से प्रगतिशीलता की ओर

हालांकि प्रारंभ में यह कला केवल पुरुषों तक सीमित थी, पर आज महिलाएँ भी कथकली में उत्कृष्ट योगदान दे रही हैं। यह बदलाव केवल मंच तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक संरचना में नारी की बढ़ती भूमिका को भी दर्शाता है।

कथकली में उपयोग होने वाले संगीत और वाद्ययंत्र

कथकली केवल दृश्य प्रदर्शन नहीं है — इसकी आत्मा संगीत और ताल में भी बसती है। बिना संगीत के कथकली अधूरी है। यह नृत्य नाटक मुख्य रूप से कर्नाटिक संगीत प्रणाली पर आधारित है, परंतु इसकी प्रस्तुति की शैली विशिष्ट और पारंपरिक होती है।

मुख्य वाद्ययंत्र:

1. चेंडा (Chenda):

यह एक शक्तिशाली पारंपरिक ड्रम है जिसका प्रयोग नाटकीयता को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसकी तेज़ और गंभीर ध्वनि कथा को गहराई देती है।

2. मद्दलम् (Maddalam):

यह भी एक ड्रम है लेकिन इसे कमर पर बांधकर बजाया जाता है। यह लय और गहराई के लिए प्रयोग किया जाता है।

3. एडक्का (Edakka):

यह एक छोटा लेकिन लचीला ड्रम होता है जिससे सुरों की विविधता लाई जाती है। इसका प्रयोग भाव-प्रस्तुति के समय अधिक होता है।

4. शंख (Shankh) और इलाथालम (Ilathalam):

शंख का उपयोग आरंभ और अंत में किया जाता है जबकि इलाथालम एक प्रकार की झांझ होती है जो लय और ताल के समन्वय में मदद करती है।

गायन की भूमिका: कथकली की आत्मा

कथकली में गायक मंच पर बैठते हैं और वे पात्रों के संवादों को गाकर प्रस्तुत करते हैं। कलाकार उन्हें मुखाभिनय और भाव से अभिव्यक्त करते हैं। यह एक उच्च श्रेणी का सामंजस्य होता है जिसमें:

गायक शब्दों से,

वादक ध्वनि से,

और नर्तक शरीर व चेहरे से कथा को सजीव बनाते हैं।

कथकली की प्रस्तुति की प्रक्रिया: एक रात्रिकालीन अनुष्ठान

कथकली परंपरागत रूप से रात्रि में संपूर्ण रात्रि चलता था, विशेषकर मंदिरों के उत्सवों में। इसकी प्रस्तुति की प्रक्रिया भी एक अनुष्ठान के समान होती है।

प्रस्तुति क्रम:

  1. तोड़ा यंत्र वादन: कार्यक्रम की शुरुआत चेंडा वादन से होती है।
  2. थिरसिला: कलाकार मंच पर प्रवेश करते हैं।
  3. पाठ: गायक कथा को शुरू करते हैं।
  4. मुखाभिनय: कलाकारों का भाव प्रदर्शन शुरू होता है।
  5. कथा चरम पर: युद्ध, नायक की जीत, राक्षस का वध आदि।
  6. मंगल वादन: कार्यक्रम का समापन।
Kathakali: क्या इसकी आँखों और भावों में छुपा है अद्भुत कहानी का जादू?
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समकालीन कथकली कलाकार: जिन्होंने वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई

1. कलामंडलम कृष्णन नायर:

कथकली को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले महान कलाकार। उनका अभिनय, विशेष रूप से ‘रावण’ की भूमिका, आज भी आदर्श माना जाता है।

2. कलामंडलम गोपालकृष्णन:

उनका योगदान कथकली के संगीत पक्ष को नया आयाम देने में रहा है।

3. कलामंडलम सत्तनारायणन:

इन्होंने कथकली को थिएटर और फिल्मों से जोड़ा और युवा पीढ़ी में लोकप्रिय बनाया।

4. मिल्ली जोसफ:

एक प्रसिद्ध महिला कथकली कलाकार जो इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं।

कथकली और अंतरराष्ट्रीय मंच

कथकली ने न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। यह कला:

न्यूयॉर्क, लंदन, पेरिस, टोक्यो, जैसे शहरों में प्रदर्शित हुई,

यूनेस्को द्वारा इसे Intangible Cultural Heritage की सूची में शामिल किया गया है,

और कई विदेशी कलाकार भी आज कथकली का अभ्यास कर रहे हैं।

कथकली और डिजिटल युग: एक नई दिशा

21वीं सदी में कथकली ने खुद को डिजिटल मीडिया के साथ भी जोड़ा है:

YouTube पर कथकली पर हजारों वीडियो उपलब्ध हैं,

ऑनलाइन कथकली कोर्स अब देश-विदेश में चलाए जा रहे हैं,

और कथकली ऐप्स और वर्चुअल वर्कशॉप्स के माध्यम से भी लोग इससे जुड़ रहे हैं।

इससे यह सिद्ध होता है कि परंपरा में आधुनिकता को समाहित कर कथकली अपनी पहचान को संरक्षित कर रही है।

सरकार और संस्थाओं की भूमिका

भारत सरकार एवं राज्य सरकार (केरल) ने कथकली को संरक्षित रखने हेतु अनेक योजनाएं शुरू की हैं:

  1. सांस्कृतिक अनुदान योजना के अंतर्गत कलाकारों को मासिक सहायता दी जाती है।
  2. भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR) कथकली को विदेशों में प्रस्तुत करने हेतु प्रायोजन करती है।
  3. Sangeet Natak Akademi द्वारा कथकली कलाकारों को फैलोशिप व सम्मान दिए जाते हैं।

नवोदित कलाकारों के लिए अवसर और दिशा

आज कथकली सीखने के लिए कई विकल्प खुले हैं:

ऑनलाइन कोर्सेस: नृत्यगुरु संस्थान, नृत्यांगन, आदि।

वर्कशॉप्स और सर्टिफिकेट कोर्स: SNA, ICCR और Kalakshetra द्वारा।

कॉलेज स्तर पर कथकली विषय के रूप में उपलब्ध है।

कथकली की कथाएं: पौराणिकता का जीवंत चित्रण

कथकली में प्रस्तुत की जाने वाली कहानियाँ भारतीय पौराणिक ग्रंथों — रामायण, महाभारत, और पुराणों — पर आधारित होती हैं। यह कहानियाँ केवल नैतिक उपदेश नहीं होतीं, बल्कि जीवन के गूढ़ सत्य, मानवीय भावनाओं और धर्म-अधर्म के संघर्ष को प्रस्तुत करती हैं।

प्रमुख कथाएं:

1. किरातार्जुनीयम – अर्जुन और शिव के बीच का युद्ध

2. नल-दमैयंती – प्रेम, परीक्षा और पुनर्मिलन की अद्भुत कथा

3. काली-दमन – कृष्ण द्वारा नाग दमन का दृश्य

4. कर्णा-अर्जुन युद्ध – करुणा और धर्म का टकराव

इन कथाओं में नायक और विलेन की भूमिका इतनी सजीव होती है कि दर्शक पात्रों से जुड़ जाते हैं और उन्हें भीतर तक महसूस करते हैं।

कथकली में रंगों का मनोवैज्ञानिक महत्व

कथकली में प्रत्येक पात्र के चेहरे का रंग उसकी प्रवृत्ति (चरित्र) को दर्शाता है। इसे “वर्ण-अभिनय” कहते हैं।

मुख्य रंग और उनका अर्थ:

हरा (Pacha):

सत्य, वीरता और दिव्यता (जैसे – श्रीराम, श्रीकृष्ण)

लाल (Tati):

दानव, क्रोध और बुराई का प्रतीक (जैसे – रावण, दुर्योधन)

काला (Kari):

शिकारी या जंगल से जुड़े पात्र (जैसे – राक्षस, असुर)

पीला (Minukku):

स्त्रियों और संतों का प्रतीक (जैसे – सीता, रुक्मिणी, ऋषि)

सफेद (Vella Thadi):

वानर जैसे पात्र (जैसे – हनुमान)

ये रंग सिर्फ श्रृंगार नहीं हैं, ये आंतरिक स्वभाव की अभिव्यक्ति हैं।

कथकली और स्त्री पात्रों का चित्रण

कथकली पारंपरिक रूप से केवल पुरुषों द्वारा प्रदर्शित किया जाने वाला नृत्य है। यहां तक कि स्त्री पात्रों की भूमिका भी पुरुष ही निभाते रहे हैं।

परंपरागत पात्र:

सीता

द्रौपदी

शकुंतला

दमयंती

इन पात्रों की कोमलता और भावप्रवणता को पुरुष कलाकार विशेष ‘लास्य’ और ‘मुखाभिनय’ के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं।

समकालीन बदलाव:

अब महिलाएं भी कथकली मंच पर आ रही हैं और इस कला को नारी दृष्टिकोण से भी समृद्ध कर रही हैं।

शिक्षा और प्रशिक्षण: कथकली की कठिन यात्रा

कथकली सीखना आसान नहीं है। इसमें 10 से 15 वर्षों की कठिन साधना लगती है।

प्रशिक्षण के प्रमुख चरण:

1. शारीरिक लचीलापन – योग, मलखंभ, शरीर संचालन

2. नेत्राभिनय अभ्यास – आई मूवमेंट्स का रियाज़

3. हस्त-मुद्राओं का अभ्यास – 24 मूल मुद्राएं

4. ताल और लय का अध्ययन – रिदमिक परफेक्शन

5. चरित्रों की समझ – स्क्रिप्ट की आत्मा को जानना

गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत यह कला एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रही है।

कथकली से जुड़े प्रमुख संस्थान

कथकली की उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए कुछ प्रतिष्ठित संस्थान हैं:

1. Kerala Kalamandalam (त्रिशूर):

कथकली का मक्का, जहां परंपरा और आधुनिकता का सुंदर संगम होता है।

2. Margi School (तिरुवनंतपुरम):

शोध और नवाचार के लिए प्रसिद्ध।

3. Kalakshetra (चेन्नई):

दक्षिण भारत का प्रमुख सांस्कृतिक शिक्षण केंद्र।

  1. ICCR एवं Sangeet Natak Akademi द्वारा राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय छात्रवृत्तियाँ भी दी जाती हैं।

कथकली पर वैश्विक प्रभाव और विदेशी छात्र

आज कथकली केवल भारत तक सीमित नहीं है। जापान, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में भी इसके छात्र हैं।

विदेशी छात्र इस कला को योग, ध्यान और अभिनय के रूप में अपनाते हैं।

वर्ल्ड डांस फेस्टिवल्स में कथकली को विशेष सम्मान प्राप्त होता है।

यह भारत की सांस्कृतिक सॉफ्ट पावर का प्रमाण है।

कथकली और अन्य कला रूपों के साथ समन्वय

आजकल कथकली को थिएटर, ओपेरा, और समकालीन नृत्य के साथ जोड़ा जा रहा है।

नव प्रयोग:

Kathakali + जापानी नो थिएटर

Kathakali + यूरोपीय बैले

Kathakali + समकालीन कविता मंचन

इससे Kathakali की अभिव्यक्ति की सीमा और भी विस्तृत हो गई है।

कथकली से संबंधित पुरस्कार और सम्मान

Kathakali के कलाकारों को भारत के उच्चतम सांस्कृतिक सम्मानों से सम्मानित किया गया है:

पद्मश्री / पद्मभूषण – कलामंडलम कृष्णन नायर, रामन कुट्टी नायर

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार – प्रमुख नर्तक व गुरुजनों को

केरल राज्य पुरस्कार – योगदान के लिए

Kathakali और अन्य भारतीय नाट्य कलाओं की तुलना: एक सांस्कृतिक संवाद

भारतीय नाट्यकला की धरती विविधता से भरी हुई है। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक हर क्षेत्र की अपनी रंगभूमि, अपने भाव और अपनी शैली है।

ऐसे में जब हम Kathakali की तुलना भारत की अन्य पारंपरिक नाट्य कलाओं से करते हैं, तो यह किसी प्रतिस्पर्धा की नहीं, बल्कि संवेदनाओं के आदान-प्रदान की यात्रा बन जाती है।

कथकली और कुचिपुड़ी: भव्यता बनाम लयात्मकता

कुचिपुड़ी, आंध्र प्रदेश की मिट्टी से जन्मी एक अत्यंत लयबद्ध और नृत्यप्रधान नाट्यकला है। इसमें अभिनय के साथ नृत्य का सामंजस्य अत्यंत मधुर होता है। जहां कुचिपुड़ी की चालें चपल और लचीली होती हैं, वहीं कथकली की चालें भारी और गहरे अर्थ लिए होती हैं।

कुचिपुड़ी में कलाकार अक्सर संवाद भी बोलते हैं, जबकि कथकली में मौन अभिनय और नेत्रों की भाषा ही सबकुछ कह देती है।

जैसे कि एक कलाकार चुपचाप ही पूरी कहानी को आंखों और हाथों से जीवंत कर देता है, जबकि कुचिपुड़ी में शब्द और नृत्य दोनों मिलकर दृश्य गढ़ते हैं।

कथकली और कथक: भावनात्मक ठहराव बनाम गतिशील सुंदरता

कथक, उत्तर भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब से निकली एक बेहद लयबद्ध और सजीव नृत्यशैली है। यह घूमती हुई चालों, घंटियों की झंकार और तबले की ताल पर थिरकते पैरों से सजती है।

दूसरी ओर, Kathakali में शरीर को लगभग स्थिर रखकर, आँखों और चेहरे से भावों का तूफ़ान रच दिया जाता है।

कथक में जहां एक रस की झलक कुछ ही सेकंड में मिल जाती है, Kathakali उस रस को धीरे-धीरे पकने देती है — जैसे किसी पुराने शास्त्रीय राग का आलाप।

कथकली और यक्षगान: शास्त्र बनाम लोक

कर्नाटक का यक्षगान, लोक-धारा की संतान है। उसमें नाटकीयता, चटख रंग और संवाद प्रधान शैली होती है। यक्षगान में संगीत, अभिनय और संवाद का जो समावेश है, वह दर्शक को मंच से जोड़ देता है — जैसे कोई गाँव की कथा जीवन्त हो उठी हो।

इसके विपरीत, Kathakali अधिक शास्त्रीय अनुशासन वाला है। उसकी हर मुद्रा, हर चाल शास्त्रों के अनुसार तय होती है। जहाँ यक्षगान दिल से निकलता है, कथकली आत्मा की गहराई से उठता है।

कथकली और ओडिशा का ओडिसी: रूपाकार बनाम लय की तरलता

ओडिसी में शरीर का मूर्तिकला-सा सौंदर्य है। नर्तकी जैसे किसी मंदिर की दीवार से उतरकर आई हो — हर मुद्रा एक प्रतिमा की तरह। ओडिसी में शरीर में तरलता और चंचलता का अद्भुत मेल होता है।

Kathakali, इसके मुकाबले अधिक गूढ़ और नाटकीय है। जहां ओडिसी सौंदर्य का उत्सव है, वहीं कथकली संघर्ष और धर्म की गाथा है। दोनों में दिव्यता है, पर उसकी प्रस्तुति अलग है — एक में स्निग्धता है, दूसरे में प्रभावशाली गहराई।

कथकली और तमिलनाडु का तेरुकूत्तु: मंचित नाटक बनाम दृश्य-गाथा

तेरुकूत्तु तमिलनाडु की गलियों में जन्मा लोक नाट्य है। यह ज्यादा संवादात्मक है, गानों और कहानियों के माध्यम से समाज की समस्याओं और धर्म के प्रश्नों को उठाता है। कथकली में संवाद नहीं होते, पर हर हाव-भाव, हर नेत्र संचालन दर्शक को उसी तीव्रता से कहानी में डुबो देता है।

जहाँ तेरुकूत्तु में सादगी और संदेश है, वहीं Kathakali में अनुशासन और आध्यात्मिकता।

कथकली की चुनौतियाँ और भविष्य

आधुनिक युग में अस्तित्व की लड़ाई

आज के डिजिटल और त्वरित मनोरंजन युग में कथकली जैसी पारंपरिक कलाओं को दर्शकों की निरंतरता और प्रायोजकों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

फिर भी, ऑनलाइन मंचों, सरकारी प्रयासों और अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों की बदौलत यह कला जीवित और सक्रिय बनी हुई है।

निष्कर्ष: कथकली — केवल कला नहीं, आध्यात्मिक अनुभव

Kathakali एक ऐसी कला है जो हमें प्राचीन भारत की भावनात्मक गहराइयों, नैतिक मूल्यों, और सांस्कृतिक समृद्धि से जोड़ती है। यह न केवल रंग और रूप की कला है, बल्कि यह आत्मा की गहराई में उतरकर जीवन की मूल अनुभूतियों को दर्शाती है।

यदि किसी को भारतीय संस्कृति को एक दृश्य माध्यम से समझना हो, तो कथकली उसे सबसे सुंदर, प्रामाणिक और आत्मिक अनुभव प्रदान कर सकती है।


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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