Kurma Mela: कैसे हजारों कछुए अपने जन्म स्थान पर लौट आते हैं? रहस्य जानिए!
भूमिका: एक अद्भुत चमत्कार – कुर्म मेला की पहली झलक
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Toggleहर साल भारत के पूर्वी तट पर, विशेषकर ओडिशा के समुद्र किनारों पर, एक अनोखा चमत्कार होता है। हजारों की संख्या में ओलिव रिडले समुद्री कछुए एक साथ निकल पड़ते हैं… न कोई बुलावा, न कोई मानव हस्तक्षेप – फिर भी यह प्रकृति का अद्भुत आयोजन है, जिसे हम ‘कुर्म मेला’ कहते हैं।
यह घटना न केवल पर्यावरणीय महत्व रखती है, बल्कि वैज्ञानिकों, संरक्षणवादियों, और स्थानीय मछुआरों के लिए भी यह एक आश्चर्य और आदर का विषय है।
ओलिव रिडले कौन हैं? – एक संक्षिप्त पहचान
वैज्ञानिक नाम: Lepidochelys olivacea
परिवार: Cheloniidae
औसत जीवनकाल: 50-60 वर्ष
प्रवृत्ति: समुद्री यात्रा में पारंगत और अति संवेदनशील जैव प्राणी
ओलिव रिडले दुनिया के सबसे छोटे और सबसे अधिक संख्या वाले समुद्री कछुओं में से एक हैं। इनका नाम उनकी जैतून-हरी रंगत के कारण पड़ा।
ये खुले समुद्र में लंबी यात्राएं करने में सक्षम होते हैं, लेकिन अपने जीवन में एक विशेष समय पर ये हजारों की संख्या में अंडे देने के लिए वापस उसी समुद्र तट पर लौटते हैं जहाँ उनका जन्म हुआ था – यही है ‘natal homing’ की अवधारणा।
अरिबाडा – प्रकृति का सामूहिक आह्वान
‘अरिबाडा’ शब्द स्पैनिश भाषा से आया है, जिसका अर्थ होता है “एक साथ आना“। Kurma Mela इसी ‘अरिबाडा’ की भारतीय अभिव्यक्ति है।
कब होता है ये चमत्कार?
मुख्यतः फरवरी से अप्रैल के बीच
पूर्णिमा या अमावस्या की रातों के आसपास
समुद्र की ज्वारभाटाएँ और चंद्रमा की स्थिति विशेष भूमिका निभाती हैं
कैसे होता है चयन?
कछुए समुद्र के रसायनिक संकेतों, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र, और समुद्री धाराओं की मदद से अपने जन्मस्थान तक लौटते हैं। यह उनकी अद्वितीय जैविक ‘GPS’ प्रणाली का प्रमाण है।
जीवन चक्र का चमत्कार – अंडे देने की प्रक्रिया
1. समुद्र से निकलना
हजारों मादा कछुए रात के अंधेरे में समुद्र से बाहर निकलती हैं। चुपचाप, धैर्यपूर्वक… बिना किसी शोर के।
2. खोदाई (Nest digging)
कछुए अपनी पिछली टांगों से एक 40-50 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा खोदती हैं।
3. अंडे देना
हर मादा कछुआ एक बार में 100-140 अंडे देती है। ये अंडे सफेद, गोल और चमकदार होते हैं।
4. रेत से ढँकना
कछुए सावधानीपूर्वक अंडों को रेत से ढँक देती हैं ताकि वे प्राकृतिक तापमान पर सुरक्षित रूप से परिपक्व हो सकें।
5. वापस समुद्र की ओर प्रस्थान
एक बार अंडे देने के बाद मादा बिना किसी भावुकता के फिर समुद्र में लौट जाती है।
जन्म की चुनौती – अंडों से हैचिंग तक की यात्रा
अंडों से बच्चे निकलने में लगभग 45 से 60 दिन लगते हैं। रेत के नीचे, छोटे कछुए चुपचाप पलते हैं। एक दिन, जब समय सही होता है – और अक्सर वह रात होती है – हजारों बच्चे एक साथ निकलते हैं।
1. प्रकाश की ओर खिंचाव
वे स्वाभाविक रूप से समुद्र से आती चाँदनी की रोशनी की ओर खिंचते हैं।
2. शिकारियों का डर
बच्चों को समुद्र तक पहुंचने के लिए कुत्तों, पक्षियों, केकड़ों, और इंसानों जैसे कई शिकारियों से बचना होता है।
3. समुद्र में प्रवेश – एक अनिश्चित भविष्य
जो बच जाते हैं, वे समुद्र में प्रवेश करते हैं – एक ऐसी दुनिया में जहां उनके जीवित रहने की संभावना केवल 1% होती है। लेकिन वही एक प्रतिशत, एक दिन बड़े होकर फिर वापस लौटता है – एक नए अरिबाडा के लिए।

विज्ञान की दृष्टि से Kurma Mela – रहस्य और शोध
1. नेविगेशन सिस्टम: जन्मस्थान की वापसी कैसे?
ओलिव रिडले कछुए में एक अत्यंत विकसित मैग्नेटिक नेविगेशन सिस्टम होता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि:
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र उनके लिए जैव-चुम्बकीय नक्शा जैसा काम करता है।
समुद्री जल में घुले हुए रासायनिक संकेत भी इन्हें अपने जन्म स्थान तक ले जाते हैं।
यह क्षमता इतनी सटीक होती है कि ये हजारों किलोमीटर दूर से भी उसी तट पर लौट आते हैं जहाँ ये जन्मे थे।
2. तापमान और सेक्स निर्धारण (Temperature-dependent sex determination)
ओलिव रिडले के अंडों में लिंग निर्धारण तापमान पर निर्भर करता है:
यदि रेत का तापमान अधिक (लगभग 31°C से ऊपर) हो तो अधिकतर मादा कछुए निकलते हैं।
यदि तापमान कम (28°C से नीचे) हो तो अधिकतर नर कछुए।
यह जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक और संरक्षणीय संकट है।
3. सामूहिकता का लाभ – Predator Saturation
सभी मादा एक साथ अंडे देती हैं ताकि शिकारी भ्रमित हों और कुछ अंडे/बच्चे बच जाएँ। इसे वैज्ञानिक भाषा में कहते हैं Predator Saturation Strategy – यानी “शिकारी की क्षमता से अधिक शिकार एक साथ प्रस्तुत करना”।
संरक्षण की कहानी – संकट और समाधान
1. क्यों खतरे में हैं ओलिव रिडले?
तटीय विकास (Coastal development)
रोशनी का प्रदूषण (Light Pollution): बच्चे समुद्र के बजाय कृत्रिम रोशनी की ओर भटक जाते हैं।
मछली पकड़ने के जाल (Fishing Nets): हर साल हजारों कछुए ट्रॉलिंग नेट में फंसकर मर जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन: समुद्र का तापमान और तटों की संरचना बदल रही है।
अवैध शिकार: अंडों और मांस की तस्करी अब भी कुछ क्षेत्रों में होती है।
2. संरक्षण की प्रमुख पहलें
A. ओडिशा सरकार की भूमिका
“Rushikulya, Gahirmatha और Devi River” को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है।
Patrolling Teams तटीय निगरानी करती हैं।
B. वन विभाग और NGOs
अंडों की सुरक्षा के लिए Temporary Hatcheries बनाए जाते हैं।
बच्चों को सुरक्षित समुद्र तक पहुंचाने में सहायता की जाती है।
C. Turtle Excluder Device (TED)
ट्रॉलर जहाज़ों में यह उपकरण लगाया जाता है ताकि कछुए सुरक्षित निकल जाएँ।
D. सामुदायिक भागीदारी
स्थानीय मछुआरे, स्वयंसेवी, और युवा इस अभियान में भाग लेकर सामाजिक संरक्षण की मिसाल बन रहे हैं।
स्थानीय समुदायों की भूमिका – संवेदनशील भागीदारी
Kurma Mela का आयोजन केवल सरकार या वैज्ञानिकों तक सीमित नहीं है। इसकी आत्मा हैं – स्थानीय लोग, जो पीढ़ियों से कछुओं के साथ जीवन जीते आ रहे हैं।
महिलाएं रेत की निगरानी करती हैं
मछुआरे बच्चे कछुओं को समुद्र तक पहुँचाने में मदद करते हैं
स्थानीय स्कूलों में संरक्षण पर शिक्षा दी जाती है
“कछुआ मित्र” (Turtle Friend)
ओडिशा में ऐसे कई ग्रामीण हैं जिन्हें ‘कछुआ मित्र’ की उपाधि दी गई है – वे संरक्षण के दूत हैं।
अंतरराष्ट्रीय महत्त्व – भारत की वैश्विक पहचान
ओलिव रिडले केवल भारत की संपदा नहीं हैं। ये इंडो-पैसिफिक क्षेत्र से लेकर अफ्रीकी तटों तक फैले हैं।
संयुक्त राष्ट्र का Convention on Migratory Species (CMS)
IUCN Red List में ‘Vulnerable‘ श्रेणी
भारत भी इसके लिए Migratory Species Conservation MoU का हिस्सा है।
Kurma Mela: भविष्य की चिंता – जलवायु, विकास और जीवंतता
1. जलवायु परिवर्तन
तापमान वृद्धि से अंडों का लिंग अनुपात बिगड़ रहा है।
समुद्र स्तर बढ़ने से नेस्टिंग ग्राउंड डूबने लगे हैं।
2. अति-पर्यटन और प्रदूषण
असंतुलित पर्यटन से तटों पर कचरा, शोर और प्रकाश फैलता है।
प्लास्टिक कचरे से बच्चे कछुए दम तोड़ देते हैं।
3. समाधान की दिशा में कदम
स्थायी पर्यटन मॉडल बनाना होगा
शिक्षा और जनभागीदारी बढ़ानी होगी
जैव विविधता को एक जिम्मेदारी के रूप में अपनाना होगा
Kurma Mela – FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
Q1: कुर्म मेला (Kurma Mela) क्या है?
उत्तर: Kurma Mela ओलिव रिडले समुद्री कछुओं की एक अद्भुत जैविक घटना है जिसमें हजारों मादा कछुए एक साथ तटों पर अंडे देने के लिए आते हैं। इसे ‘अरिबाडा’ (Arribada) कहा जाता है, जो मास नेस्टिंग की प्रक्रिया को दर्शाता है।

Q2: Kurma Mela का आयोजन भारत में कहाँ होता है?
उत्तर: भारत में यह मुख्य रूप से ओडिशा के तटीय क्षेत्रों –
- गहीरमाथा (Gahirmatha),
रशिकुल्या नदी तट (Rushikulya River Mouth),
देवी नदी तट (Devi River Mouth)
पर होता है।
Q3: ओलिव रिडले कछुआ कौन-सी प्रजाति है?
उत्तर: यह एक छोटे आकार का समुद्री कछुआ है जो Lepidochelys olivacea प्रजाति से संबंधित है। यह विश्व की दूसरी सबसे अधिक पाई जाने वाली समुद्री कछुआ प्रजाति है और यह IUCN Red List में ‘Vulnerable’ श्रेणी में आता है।
Q4: कछुए एक ही तट पर वापस कैसे आते हैं?
उत्तर: ओलिव रिडले कछुए पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड और केमिकल सिग्नल्स का उपयोग करके अपने जन्म स्थान तक लौटते हैं। यह एक जैविक ‘नेविगेशन सिस्टम’ कहलाता है।
Q5: अंडों में से नर और मादा कछुओं का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर: कछुओं के अंडों में तापमान-निर्भर लिंग निर्धारण (Temperature-Dependent Sex Determination) होता है। उच्च तापमान पर अधिक मादा और कम तापमान पर अधिक नर उत्पन्न होते हैं।
Q6: कछुए अंडे कितने समय में सेते हैं?
उत्तर: अंडों से बच्चे निकलने में लगभग 45 से 60 दिन लगते हैं, इसके बाद बच्चे समुद्र की ओर यात्रा करते हैं।
Q7: Kurma Mela संरक्षण के लिए कौन-कौन सी पहलें की गई हैं?
उत्तर:
Turtle Excluder Devices (TEDs) का प्रयोग
तटीय निगरानी और सुरक्षा
“कछुआ मित्र” जैसे कार्यक्रम
वन विभाग और NGOs द्वारा अंडों की रक्षा
पर्यावरणीय जागरूकता अभियान
Q8: Kurma Mela के सामने क्या खतरे हैं?
उत्तर:
तटीय प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution)
मछली पकड़ने के जालों में फँसना
प्लास्टिक प्रदूषण
जलवायु परिवर्तन
अवैध शिकार और अंडों की चोरी
Q9: क्या Kurma Mela धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व भी रखता है?
उत्तर: हाँ, ओडिशा में इसे ‘कुर्म अवतार’ से जोड़ा जाता है। कई स्थानीय लोग इसे भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के प्रतीक रूप में देखते हैं और धार्मिक भाव से इसकी सुरक्षा करते हैं।
Q10: Kurma Mela का वैज्ञानिक और वैश्विक महत्व क्या है?
उत्तर:
यह वैश्विक जैव विविधता का उदाहरण है।
यह जैविक नेविगेशन, तापमान आधारित लिंग निर्धारण जैसे कई वैज्ञानिक पहलुओं को दर्शाता है।
भारत इसमें UN-CMS और IUCN के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभा रहा है।
निष्कर्ष (Conclusion):
Kurma Mela केवल कछुओं का एक जैविक आयोजन नहीं, बल्कि यह प्रकृति और जीवन के सह-अस्तित्व का जीवंत उदाहरण है। हजारों ओलिव रिडले मादा कछुए जब एक साथ अपने जन्म स्थान पर लौटकर अंडे देती हैं,
तो वह न केवल समुद्री पारिस्थितिकी का चमत्कार रचती हैं, बल्कि हमें यह भी सिखाती हैं कि प्राकृतिक अनुशासन, धैर्य और संतुलन कैसे मानव जीवन के लिए प्रेरणास्रोत बन सकते हैं।
Kurma Mela आयोजन के पीछे छुपे वैज्ञानिक रहस्य – जैसे जैविक नेविगेशन, तापमान-निर्भर लिंग निर्धारण, और पर्यावरणीय अनुकूलन – आधुनिक विज्ञान को भी विस्मित कर देते हैं।
लेकिन साथ ही यह हमें चेतावनी भी देता है कि यदि हमने जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और लालची मछली उद्योग पर नियंत्रण नहीं पाया, तो यह अद्वितीय प्राकृतिक परंपरा हमेशा के लिए लुप्त हो सकती है।
स्थानीय समुदायों की सहभागिता, ‘कछुआ मित्र‘ जैसे अभियानों की सफलता, और सरकार व NGO का सहयोग इस बात को सिद्ध करता है कि जब संरक्षण एक जन आंदोलन बनता है, तब ही प्रकृति का चक्र सुरक्षित रह सकता है।
Kurma Mela हमें याद दिलाता है कि पृथ्वी पर हर जीव का स्थान है, और जब हम प्रकृति के नियमों के साथ चलते हैं, तभी सच्चे अर्थों में जीवन पनपता है।
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