MSME Revolution 2025: नीति आयोग का मास्टरप्लान जो बदल देगा भारत की अर्थव्यवस्था का भविष्य!
प्रस्तावना: भारत की आत्मा – MSMEs
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Toggleजब हम भारत की अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तो अक्सर बड़े उद्योगों का नाम सुनाई देता है। लेकिन असली ताकत उन लाखों छोटे-छोटे उद्योगों में छिपी है, जो गाँव से लेकर शहरों तक, हर गली और हर कस्बे में अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं। ये हैं हमारे MSMEs – यानी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम।
भारत में लगभग 6.3 करोड़ MSMEs हैं। ये देश की GDP में 30% से ज्यादा, निर्यात में लगभग 45% और कुल औद्योगिक उत्पादन में करीब 38% का योगदान करते हैं। फिर भी ये क्षेत्र तमाम चुनौतियों से जूझता रहता है।
इस सच्चाई को समझते हुए नीति आयोग ने हाल ही में एक विस्तृत रणनीति (रोडमैप) प्रस्तुत किया है, जिससे इन MSMEs को न केवल देश के भीतर मजबूती मिले, बल्कि ये वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भी डटकर खड़े हो सकें।

MSMEs की वर्तमान स्थिति और प्रमुख चुनौतियाँ
MSMEs को चलाना जितना सरल दिखता है, उतना है नहीं। एक छोटा कारीगर या व्यवसायी जिन दिक्कतों से रोज जूझता है, वे बड़ी कंपनियों की नजर में ‘छोटी’ हो सकती हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है।
वित्त की कमी – पूंजी की प्यास
आज भी लाखों सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को बैंक से लोन नहीं मिलता। सरकारी योजनाएं हैं, लेकिन जानकारी की कमी, कागजों की जटिलता और बैंक की सख्त शर्तें इनके रास्ते की दीवार बन जाती हैं।
तकनीक का अभाव
जहां दुनिया ऑटोमेशन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल ट्रांजेक्शन की ओर भाग रही है, वहीं हमारे MSMEs में तकनीक की भारी कमी है। इससे उनकी उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता प्रभावित होती है।
वैश्विक बाज़ार की अनभिज्ञता
बहुत से उद्यमियों को पता ही नहीं होता कि उनकी बनाई चीज़ की विदेशों में कितनी मांग है। निर्यात की प्रक्रिया इतनी जटिल लगती है कि वे डरकर पीछे हट जाते हैं।
गुणवत्ता और मानक
दुनिया के बाजारों में सामान बेचने के लिए कुछ गुणवत्ता मानकों को पूरा करना जरूरी होता है। MSMEs के पास वो संसाधन नहीं होते कि वे इन मानकों को पूरा कर पाएं।
जानकारी की खाई
सरकारी योजनाएं, मार्केट की जानकारी, विदेशी बाजारों की समझ – इन सबका अभाव सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को सीमित दायरे में ही सीमित कर देता है।
नीति आयोग की रणनीति – बदलाव की नींव
नीति आयोग ने इस क्षेत्र की जरूरतों को समझते हुए ‘Enhancing Competitiveness of India’s MSMEs in the Global Market’ नामक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट केवल सुझावों की फेहरिस्त नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक कार्ययोजना है – जो लागू की जाए तो सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की तस्वीर बदल सकती है।
नीति आयोग के प्रमुख सुझाव
एकीकृत डिजिटल पोर्टल – सारी जानकारी एक जगह
नीति आयोग ने AI आधारित एक राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क (National Trade Network) स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है, जिसमें MSMEs को सभी जरूरी जानकारियाँ एक ही स्थान पर मिलेंगी – जैसे कि:
किस देश में उनके उत्पाद की मांग है?
किन दस्तावेजों की जरूरत होगी?
कौन सी योजनाएं या सब्सिडी उपलब्ध हैं?
किन एक्सपोर्टर्स या फाइनेंसरों से संपर्क किया जा सकता है?
यह पोर्टल स्थानीय भाषा में भी उपलब्ध होगा, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के उद्यमियों को भी लाभ मिल सकेगा।
ई-कॉमर्स निर्यात को बढ़ावा
आज का युग ई-कॉमर्स का है। लेकिन सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम अभी भी इस डिजिटल लहर में पीछे हैं। नीति आयोग ने इसके लिए खास कदम सुझाए हैं:
नियमों में लचीलापन: छोटे ई-कॉमर्स निर्यातकों के लिए कागजी कार्रवाई को आसान किया जाए।
शिपमेंट्स पर सीमा शुल्क में छूट: खासतौर पर रिटर्न सामान के लिए।
$1000 तक के शिपमेंट्स को विशेष छूट: ताकि छोटे व्यवसायी भी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर आसानी से व्यापार कर सकें।
रिफंड और रिटर्न के मामलों में उदारता: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को नुकसान से बचाने के लिए।
वित्तीय पहुंच को आसान बनाना
नीति आयोग ने सुझाव दिया है कि:
एक एक्सपोर्ट फाइनेंस मार्केटप्लेस बने जहाँ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को सभी फाइनेंसर एक जगह दिखें और वे सबसे अच्छा विकल्प चुन सकें।
Export Credit Guarantee Scheme (ECGC) का विस्तार हो और MSMEs तक इसकी पहुंच बढ़ाई जाए।
डिजिटल तरीके से लोन स्वीकृति प्रक्रिया आसान बने।
गुणवत्ता सुधार के लिए प्रोत्साहन
यदि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना है, तो गुणवत्ता सुधार अनिवार्य है:
सरकार प्रमाणन शुल्क का कुछ हिस्सा वहन करे
स्थानीय स्तर पर टेस्टिंग लैब्स बनें
अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त लैब्स को भारत में केंद्र खोलने के लिए आमंत्रित किया जाए
नए निर्यातकों को विशेष छूट
नीति आयोग ने सिफारिश की है कि जो उद्यमी पहली बार निर्यात कर रहे हैं:
उनके पहले 10 शिपमेंट्स पर गलती की सजा न दी जाए, बल्कि उन्हें सीखने का अवसर दिया जाए।
रिफंड और पेनल्टी में रियायतें मिलें ताकि वे आत्मविश्वास के साथ शुरुआत कर सकें।
MSMEs के लिए संभावित वैश्विक बाज़ार
नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है कि कई ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बड़ी सफलता मिल सकती है:
हस्तशिल्प और हैंडलूम उत्पाद
हर्बल और आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स
इमिटेशन ज्वेलरी
लकड़ी के सजावटी सामान
मशरूम, सूखे फूल, बांस उत्पाद
इन सभी क्षेत्रों में भारतीय कारीगरी की पहचान है, बस जरूरत है उन्हें सही मंच, प्रशिक्षण और समर्थन देने की।
कार्यान्वयन में आने वाली चुनौतियाँ और उनके समाधान
नीति-स्तर की जटिलता
सरकारी योजनाएं अक्सर इतनी जटिल होती हैं कि MSME उद्यमी समझ ही नहीं पाते कि उनके लिए क्या फायदेमंद है।
समाधान:
प्रत्येक योजना के लिए एक स्थानीय ‘MSME मित्र’ प्रणाली बनाई जाए जो ज़मीनी स्तर पर मार्गदर्शन दे।
योजनाओं की ऑडियो-विजुअल प्रस्तुति स्थानीय भाषाओं में हो।
राज्य और केंद्र के बीच समन्वय की कमी
कई बार केंद्र सरकार की योजना और राज्य की नीतियों में सामंजस्य नहीं होता जिससे लाभार्थी भ्रम में पड़ जाते हैं।
समाधान:
एकीकृत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम नीति मंच की स्थापना जो राज्य और केंद्र के प्रतिनिधियों को एक साथ लाए।
हर तिमाही राज्य-केंद्र की समन्वय बैठक अनिवार्य हो।
डिजिटल साक्षरता की कमी
ग्रामीण सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के लिए डिजिटल पोर्टल का उपयोग एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
समाधान:
हर ब्लॉक में ‘डिजिटल सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम प्रशिक्षण केंद्र’ की स्थापना।
मोबाइल वैन प्रशिक्षण मॉड्यूल, जो गाँव-गाँव जाकर प्रशिक्षण दे।
भ्रष्टाचार और बिचौलियों का हस्तक्षेप
लोन और सब्सिडी जैसी योजनाओं में अक्सर बिचौलिये आ जाते हैं जो MSMEs का शोषण करते हैं।
समाधान:
पूरी प्रणाली को 100% डिजिटल और ट्रैक करने योग्य बनाया जाए।
लाभार्थी से फीडबैक लेने के लिए अनिवार्य कॉल-बैक सिस्टम लागू हो।
MSMEs में महिलाओं और युवाओं की भूमिका
नीति आयोग ने विशेष रूप से यह संकेत दिया है कि अगर महिलाओं और युवाओं को MSMEs में अधिक संख्या में शामिल किया जाए, तो उसका असर व्यापक होगा।
महिला उद्यमियों के लिए विशेष प्रोत्साहन
महिला-नेतृत्व वाले उद्यमों को अतिरिक्त सब्सिडी
वर्क फ्रॉम होम आधारित MSMEs को बढ़ावा
महिला कारीगरों के लिए डिजिटल मार्केटिंग ट्रेनिंग
युवाओं को ‘MSME लीडर्स’ के रूप में विकसित करना
आईटीआई और पॉलिटेक्निक संस्थानों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम उद्यमिता पाठ्यक्रम
कॉलेजों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम आधारित इंटरर्नशिप और स्टार्टअप योजना
‘माई MSME आइडिया’ प्रतियोगिता से नए विचारों को पहचान
जलवायु, सतत विकास और MSMEs
आज का व्यवसाय केवल मुनाफे तक सीमित नहीं है – पर्यावरण की ज़िम्मेदारी भी एक प्रमुख विषय है। नीति आयोग की रिपोर्ट इसपर भी ध्यान देती है।
ग्रीन MSMEs
MSMEs को सोलर पैनल, बायोगैस और ऊर्जा दक्षता वाले उपकरण अपनाने के लिए प्रेरित करना
ग्रीन MSMEs को कार्बन क्रेडिट और प्राथमिकता फंडिंग देना
ईको-फ्रेंडली MSME उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग देना
वैश्विक सहयोग – ‘लोकल टू ग्लोबल’ का सपना
नीति आयोग के अनुसार, MSMEs को सिर्फ देश के भीतर नहीं, बल्कि विदेशी निवेश और वैश्विक साझेदारी की जरूरत है।
भारत-जापान MSME सहयोग मॉडल
जापान की तकनीक और भारत के श्रमबल का मेल
एक्सपोर्ट ओरिएंटेड MSMEs के लिए विशेष पैकेज
अफ्रीकी देशों के साथ MSME नेटवर्क
भारत-अफ्रीका MSME एक्सचेंज प्रोग्राम
अफ्रीकी बाजार में भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम उत्पादों की ब्रांडिंग
विशेष अनुशंसाएँ (Special Recommendations)
नीति आयोग की रिपोर्ट के आधार पर विशेषज्ञों और क्षेत्रीय अनुभवों के अनुसार निम्नलिखित अनुशंसाएँ दी जा सकती हैं:
MSME डेटा बैंक की स्थापना
आज भारत में MSMEs की सटीक संख्या, श्रेणी, और क्षेत्रीय वितरण की स्पष्ट जानकारी नहीं है।
एक डायनामिक सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम नेशनल डैशबोर्ड बनाया जाए जिसमें हर रजिस्टर्ड MSME की लाइव स्थिति हो – उत्पादन, बिक्री, निर्यात, निवेश, सहायता आदि।

MSME के लिए “स्वचालित संकट प्रतिक्रिया प्रणाली”
जैसे ही कोई MSME आर्थिक संकट में आता है – उत्पादन गिरता है, कर्मचारी हटते हैं या टैक्स बकाया रहता है – सिस्टम उसे पहचानकर स्वतः सहायता प्रदान करे।
CSR फंड का MSME सेक्टर में निवेश
बड़ी कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे अपने CSR फंड का एक निश्चित प्रतिशत MSME स्किल डेवलपमेंट, टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन और महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स में लगाएं।
नीति आयोग की योजना से संभावित दीर्घकालीन लाभ
आर्थिक आत्मनिर्भरता
MSMEs मजबूत होंगे तो आयात पर निर्भरता घटेगी, जिससे देश की विदेशी मुद्रा की बचत होगी।
रोजगार में क्रांति
MSMEs ग्रामीण युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार प्रदान करेंगे, जिससे शहरी पलायन रुकेगा।
महिला सशक्तिकरण
महिला आधारित सूक्ष्म और घरेलू इकाइयों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे परिवारों की आय दुगुनी होगी और समाज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी।
तकनीकी नवाचार और ग्लोबल पहचान
जब MSMEs को उच्च तकनीक और डिजिटलीकरण से जोड़ा जाएगा तो वे वैश्विक गुणवत्ता तक पहुँचेंगे, जिससे भारतीय ब्रांड्स को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी।
जनभागीदारी – जनता भी बने इस अभियान का हिस्सा
युवाओं की भूमिका
कॉलेज स्टूडेंट्स सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सेक्टर में इंटर्नशिप लेकर स्थानीय ब्रांड्स को डिजिटली सपोर्ट कर सकते हैं।
इंजीनियरिंग छात्र कम लागत के ऑटोमेशन समाधान विकसित करें।
उपभोक्ताओं की भूमिका
आम नागरिक को यह समझना होगा कि जब आप स्थानीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम से सामान खरीदते हैं, तो आप सिर्फ एक उत्पाद नहीं खरीदते – आप एक परिवार, एक गाँव और एक सपने को जीवित रखते हैं।
मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम की सफलता की कहानियाँ, उनके संघर्ष और नवाचार को प्रमुखता दी जानी चाहिए।
#LocalHero, #MadeByMSME जैसे अभियान चलाए जा सकते हैं।
निष्कर्ष:
नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने की यह रूपरेखा केवल एक आर्थिक दस्तावेज नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकल्प है।
भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम न केवल रोज़गार सृजन का बड़ा स्रोत हैं, बल्कि स्थानीय नवाचार, समावेशी विकास और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में भी इनकी भूमिका अनिवार्य है।
यह रोडमैप सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम को तकनीकी, वित्तीय, बाज़ार और नीति स्तर पर नई ऊँचाइयों तक ले जाने का प्रयास है। डिजिटल समावेशन, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, ग्रीन प्रौद्योगिकी, महिला व युवा उद्यमिता जैसे स्तंभों के ज़रिए यह योजना न केवल MSMEs को प्रतिस्पर्धी बनाएगी, बल्कि उन्हें वैश्विक मंच पर भारत का प्रतिनिधि भी बनाएगी।
अब यह ज़रूरी है कि केवल सरकार ही नहीं, बल्कि हर नागरिक, छात्र, मीडिया, कॉर्पोरेट और स्वयं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मिलकर इस अभियान का हिस्सा बनें। जब हम मिलकर ‘लोकल को ग्लोबल’ बनाएंगे, तभी यह योजना एक समावेशी और सशक्त भारत का आधार बन पाएगी।
MSMEs का सशक्तिकरण, भारत के भविष्य का निर्माण है।
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