My Truth इंदिरा गांधी

My Truth इंदिरा गांधी की आत्मकथा: सत्ता, संघर्ष और सच की अनसुनी कहानी!

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My Truth इंदिरा गांधी की ज़ुबानी: जानिए कैसे बनती है एक महिला ‘लोह महिला!

परिचय: “My Truth” – इंदिरा गांधी का आत्म-आलोकन

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“My Truth” — यह केवल एक किताब नहीं, बल्कि भारत के पहले महिला प्रधानमंत्री ने अपनी आत्मा की उथल-पुथल, राजनीतिक धाराओं और निजी संघर्षों को सचाई से खुलकर व्यक्त किया है।

इस आर्टिकल का मुख्य उद्देश्य है इस आत्मकथा को एक नए दृष्टिकोण से पेश करना। इसमें न केवल राजनीति, बल्कि मानवीय भावनाओं, परिवार के बंधनों और आत्म-खोज की यात्रा को भी मूल भाव से समझाया गया है।

My Truth इंदिरा गांधी
My Truth इंदिरा गांधी की आत्मकथा: सत्ता, संघर्ष और सच की अनसुनी कहानी!

परिवार और बचपन का सुनहरा दौर

जन्म एवं परिवार

जन्म: इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता पं. जवाहरलाल नेहरू, स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे।

पालन‑पोषण: एक ऐसे परिवार में पली‑बढ़ी जहाँ देशभक्ति, सार्वजनिक सेवा और बौद्धिक विचारों की महत्ता थी।

शिक्षा में प्रारंभिक रूचि

प्रारंभिक शिक्षा घर में ही मिली, जहाँ प्रियदर्शिनी को हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और भूगोल से प्रेम हुआ।

बाद में उन्हें बारह साल की उम्र में शांतिनिकेतन भेजा गया—जहाँ रवींद्रनाथ टैगोर के आदर्शों में उन्होंने कला, संस्कृति और प्रकृति को करीब से समझा।

स्विट्ज़रलैंड और ऑक्सफ़ोर्ड की पढ़ाई

जवाहरलाल नेहरू के आदर्श ने विदेश में शिक्षा की प्रेरणा दी। इंदिरा अपने समय में स्विट्ज़रलैंड गईं और वहां का अनुशासन और स्वतंत्रता उन्होंने आत्मसात किया।

लंदन के ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में भी उन्होंने राजनीतिक दर्शन और सामाजिक विज्ञानों की मूल बातों को समझा।

व्यक्तिगत जीवन: फिरोज गांधी और साझी ज़िंदगी

नाम और सौंदर्य

जन्म नाम प्रियदर्शिनी गांधी, लेकिन पारिवारिक और मित्रक्षेत्र में प्यार से “इंदिरा” भी कहलाती थीं।

प्यार और विवाह

उनका विवाह फिरोज गांधी से 26 मार्च 1942 को हुआ—यह एक बौद्धिक, सामाजिक और सहज साझेदारी का आरंभ था।

फिरोज़ अपने क्षेत्रीय पत्रकारिता और सामाजिक विचारों के लिए प्रसिद्ध थे—यह दो आत्माओं का मिलन था जिनमें राष्ट्र सेवा और आत्मा की पहचान साझा थी।

जीवन में संवेदनशील सहयोग

राजनीतिक विचारों में साथ निभाने और निजी जीवन के उतार-चढ़ाव में आगे बढ़ते समय, इंदिरा और फिरोज़ बलिदान और सहनशीलता का प्रतीक बने।

राजनीति की शुरूआत: साहस और प्रेरणा

नेहरू की छाया में आत्मनिर्भरता

जवाहरलाल नेहरू की राजनीतिक सक्रियता ने इंदिरा को भी उसी राह पर चलने के लिए प्रोत्साहन दिया।

समय-समय पर वे पिता के साथ गठित बैठकों और दुनिया की समझ में भागीदार होती रहीं।

कांग्रेस के भीतर पहचान

1959 में इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी का महासचिव बनाया गया—यह जिम्मेदारी जन्मदिवस से ही उन्हें मिली थी।

1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद, इंदिरा ने खुद को एक लोकतांत्रिक नेतृत्व वाली शक्ति के रूप में स्थापित किया।

प्रधानमंत्री बनने का गौरव (1966)

नेतृत्व की आपातकालीन सुरुआत

1964–66 के बीच कांग्रेस में मतभेद और नेतृत्व संघर्ष के बीच, इंदिरा ही केंद्रीय आकांक्षाओं को संतुलित करने वाली आवाज़ बनीं।

19 जनवरी 1966 को वे भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं।

“गरीब हटाओ” अभियान और सामाजिक परिवर्तन

सतत परिवर्तन की आशा

इंदिरा गांधी का “गरीब हटाओ” (Remove Poverty) नारा केवल जुमला नहीं था—इसमें हकीकत और लक्ष्य दोनों थे।

उन्होंने ग्रामीण विकास को बढ़ावा दिया, प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य संस्थाओं में नवीनीकरण किया।

राष्ट्रीय बैंक एवं औद्योगिकीकरण

सार्वजनिक बैंकिंग में उनका जोर गरीब लोगों को आर्थिक रूप से ज़्यादा सशक्त करने की दिशा में था।

उस दौर में हुए राष्ट्रकरण (कच्चे तेल से लेकर सार्वजनिक सेवाओं तक) उनके सामाजिक न्याय की सोच का प्रतिबिंब था।

1971 का युद्ध और परमाणु स्वाभिमान

युद्ध और इतिहास में झील

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में उनके नेतृत्व की भूमिका निर्णायक थी, जिससे लाखों शरणार्थियों का भार हल्का हुआ और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय रूप से बदनाम किया गया।

पहले परमाणु परीक्षण: “स्माइलिंग बुद्धा”

1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया—“स्माइलिंग बुद्धा” जिसके पीछे इंदिरा की नीतियों ने आणविक स्वतंत्रता की दिशा में भारत को खड़ा किया।

इमरजेंसी—जनतंत्र पर प्रश्नचिह्न (1975–77)

संवैधानिक विवादों की शुरुआत

1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को रद्द किया। इसके बाद उन्होंने इमरजेंसी की घोषणा की।

यह ऐसा वक्त था जब लोकतंत्र पर विचारों को दबा दिया गया—प्रकाशन स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक अधिकार, प्रदर्शन, आवाज़—सब सीमित हो गए।

तानाशाही का युग

केंद्र सरकार ने प्रेस पर सेंसरशिप लगाई, विपक्षी नेतृत्वों को गिरफ्तार किया, सरकारी नीतियों में केंद्रीकरण स्पष्ट हुआ।

42वें संविधान संशोधन ने संसद की सर्वोच्चता को बढ़ाया, जिससे न्यायपालिका का प्रभाव सीमित हुआ।

शाह आयोग की जांच

इमरजेंसी के बाद शाह आयोग ने जंगल राज, मानवाधिकारों का हनन और दंडात्मक नैतिक पतन पर बहुत कुछ उजागर किया। इसका असर जनमानस पर दीर्घकाल तक रहा।

लोकतंत्र की वापसी और राजनीतिक उथल‑पुथल

1977 का लोकसभा चुनाव

जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत में इंदिरा गांधी की हार शामिल थी—यह भारत में पहली बार था जब कोई बड़े पैमाने पर सत्ता बदल गई थी।

आलोचना और परिवारवाद

कांग्रेस पार्टी में बृहद संरचनात्मक सुधारों की कमी और परिवार द्वारा निर्णय लेने की प्रणाली, दोनों ने विपक्ष को जनता के साथ एकजुटता का मौका दिया।

दूसरी पारी: 1980–1984

राजनीति में वापसी

1980 में कांग्रेस प्रणाली के पुनरुत्थान के साथ इंदिरा गांधी पुनः प्रधानमंत्री बनीं।

उनका नया नारा था—सशक्त भारत और फिर विपक्ष द्वारा दिए गए सबक से प्रेरणा।

पंजाब की स्थिति और ऑपरेशन ब्लू स्टार

1983–84 में पंजाब के डिमांडिंग डायनामिक्स और खालिस्तानी आंदोलन ने स्थिति को जटिल बना दिया था।

जून 1984 में हर्मंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) में ऑपरेशन ब्लू स्टार का आदेश दिया गया—इससे कई श्रद्धालुओं की जान गई और धार्मिक भावनाओं में भारी टूट हुई।

गांधी की हत्या और राष्ट्रीय सद्भाव

31 अक्टूबर 1984

इंदिरा गांधी को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने स्वर्ण मंदिर के जवाब में दिल्ली में गोली मारी—यह घटना भारत के लिए एक त्रासदी थी।

देश भर में दंगे

उनकी हत्या से देश में व्यापक सिख-विरोधी दंगे भड़क उठे। हजारों लोग मारे गए और संपत्ति का विनाश हुआ।

सरकार ने स्थिति नियंत्रित करने के लिए DMA, सेना तैनाती और गरीबों के लिए राहत कार्य प्रारंभ किए।

“My Truth” में आत्म-परावर्तन और उद्घोष

आत्मकथात्मक शैली

“My Truth” केवल घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि वे उस समय क्या सोच रही थीं—उस भावनात्मक संघर्ष को उपयुक्त रूप में प्रस्तुत करती हैं।

लेखनी में उनकी ईमानदारी स्पष्ट दिखती है—वह बताती हैं कि युद्ध, इमरजेंसी और ऑपरेशन ब्लू स्टार में उन्होंने किस तरह निर्णय लिए।

पारिवारिक दृष्टिकोण

पिता, पति, परिवार—उनके सभी से संबंधों की जटिलता और गहराई “My Truth” में स्पष्ट है।

लेख में साझा व्यक्तिगत क्षण (बच्चों से बातचीत, घर की यादें) सुधारात्मक रूप से सम्मिलित हैं।

राजनेता और व्यक्ति: दो छवियाँ

सार्वजनिक नेतृत्व

“My Truth” में दिखाया गया कि कैसे निजी विचार सार्वजनिक निर्णयों से मेल खाते या अलग होते थे।

एक महिला, एक राजनेता, एक गृहिणी—तीनों रूपों में उनकी पहचान स्पष्ट होती है।

विचारों की स्पष्टता

भारत, संसाधन, संस्कृति एवं रणनीति पर उनका दृष्टिकोण स्पष्ट है—जहाँ बचपन के पलों से लेकर प्रधानमंत्री तक का सफ़र जुड़ा है।

इंदिरा गाँधी की विरासत: परिप्रेक्ष्य और आलोचना

सकारात्मक प्रभाव

“गरीब हटाओ” जैसा नारा उनके सामाजिक दृष्टिकोण की पहचान बना।

आपात स्थिति के पश्चात लौटे लोकतंत्र के बदलाव, परमाणु परीक्षण, सार्वजनिक बैंकिंग, सभी देश के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

आलोचनाएँ

इमरजेंसी एवं तानाशाही प्रवृत्तियाँ लोकतांत्रिक अधिकारों को कमजोर करने वाली मानी जाती हैं।

ऑपरेशन ब्लू स्टार पर धार्मिक आलोचना और दंगों पर पारिवारिक जवाबदेही आज भी विवादास्पद बने हुए हैं।

“My Truth” का महत्व आज

शोधकर्ताओं, छात्रों और राजनेताओं के लिए

पुस्तक राजनीति, रणनीति और नेतृत्व अध्ययन में महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

लोकतंत्र, अधिकार, शक्ति संरक्षण और मानवाधिकारों पर आज भी इसका महत्व बना हुआ है।

लोकतंत्र के लिए सबक

सत्ता की सीमा, मीडिया को स्वतंत्र रखना, संवैधानिक संतुलन—“My Truth” हमें इन मुख्य सबकों की याद दिलाती है।

My Truth इंदिरा गांधी
My Truth इंदिरा गांधी की आत्मकथा: सत्ता, संघर्ष और सच की अनसुनी कहानी!

“My Truth” का रचनात्मक स्वरूप और संदर्भ

संवाद आधारित लेखन: पुस्तक इमैनुएल पूचपडास के साथ लंबी साक्षात्कार-शृंखला पर आधारित है, जो 1980 में प्रकाशित हुई—उस समय इंदिरा सत्ता से दूर थीं ।

दो संस्करण: फ्रांस और भारत में लगभग एक साथ प्रकाशित हुई, फिर अंग्रेज़ी संस्करण 1982 में आया, शीर्षक — Indira Gandhi: My Truth ।

गहराई और शिष्टता: पुस्तक सिर्फ घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि उनकी सोच, भावनाएं, आकांक्षाएं और आत्मविश्लेषण उजागर करती है ।

साक्षात्कार के प्रमुख विषय और भावनाएँ

बचपन की यादें: दादा-धूमिल परिवार, दिल्ली और इलाहाबाद के संस्मरण, स्कूल की जिंदगी, ऑक्सफोर्ड की पढ़ाई के अनुभव ।

कैमरे के पीछे की थीकाएँ: ऑक्सफोर्ड के दिनों में फिरोज से प्रेम कैसे हुआ — “Montmartre के ढलानों पर ‘हाँ’ कहा”—यह व्यक्तिगत और इमोशनल हिस्सा है ।

पिता-पुत्र संबंध: नेहरू के साथ उनकी बातचीत, जिम्मेदारियों की भाषा और सामाजिक प्रतिबद्धताओं का विवरण मिलता है, खासकर साक्षात्कारों में ।

राजनैतिक निर्णयों के पीछे की सोच

1969 बैंक राष्ट्रकरण: इस कदम ने वित्तीय शक्तियाँ आम जनता तक पहुंचाईं, कांग्रेस विभाजन की पृष्ठभूमि बनाईं ।

गरीब-पुढ़ाओ नारा: यह केवल एक नारा नहीं था—इमरजेंसी के बाद भूमि सुधार, कर्ज माफी, ऋण निलंबन और सार्वजनिक कल्याण योजनाओं की नींव बनी ।

परमाणु परीक्षण: 1974 के “स्माइलिंग बुद्धा” परीक्षण ने भारत की सुरक्षा नीतियों की दिशा बदल दी और आत्मनिर्भरता की भावना बढ़ाई ।

इमरजेंसी—न्याय vs प्रबंधन की टकराहट

वैधानिक आधार: 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक भारत में आपातकाल—110,000 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया; प्रेस पर सेंसरशिप लगी ।

जनसंख्या नियंत्रण अभियान: संजय गांधी की अगुवाई में जबरन नसबंदी की गई; असहमति की जगह भय का माहौल बना ।

लोक-विरोध और शाह आयोग: इमरजेंसी दक्षिणेण मानवाधिकार हनन, जेलों में बंदीकरण और प्रेस दमन की रिपोर्टों से उपजे हजारों विरोध पैदा हुए।

जानपहलुओं भरा “My Truth” की संस्मरण-शैली

मानव स्पर्श: इंदिरा गांधी व्यक्तिगत क्षण भी साझा करती हैं—अपने बच्चों के साथ वक्त, मातृत्व का भाव, राजनीति और गृहणी के बीच संतुलन ।

भावनात्मक विश्लेषण: युद्ध, इमरजेंसी, पंजाब संकट—हर घटना के पीछे उनका मनोविज्ञान साफ होता है। वे स्वीकार करती हैं कि “मातृत्व मेरे लिए सबसे बड़ी पूर्ति थी”

विचार-प्रक्रिया का सच: राजनीतिक क्षणों पर वे बताते हैं कि किसी निर्णय ने कैसे आकार लिया, संसाधनों और राजनीतिक दबावों का वजह-प्रभाव संबंध क्या था।

गूढ राजनीतिक और भावनात्मक पहलू

नेहरू की अनुपस्थिति: पिता की राजनीति ने उन्हें मजबूर किया स्वयं निर्णय लें—उनकी जिम्मेदारी और अकेलापन दोनों की झलक दिखाई देती है।

ऑपरेशन ब्लू स्टार का भावनात्मक दायित्व: धर्म-सम्बंधित संवेदनशील निर्णय जो अंततः उनके खिलाफ वापसी हुई। आत्मकथा में वे बताती हैं क्यों यह उनकी मजबूरी बनी—और इसका व्यक्तिगत तंग महसूस उन्होंने ब्यक्त किया।

हत्या के बाद का दुःख और दोष: 31 अक्टूबर 1984 की हत्या के पश्चात उनका दृष्टिकोण, अपराधियों के प्रति निष्पक्ष न्याय एवं देशभर के दंगों पर संवेदना स्पष्ट है। आत्मकथा में नहीं, लेकिन साक्षात्कारों में उन्होंने यह दर्द साझा किया।

आलोचनाएँ—इंशाहीकरण और जिम्मेदारी

मीडिया सेंसरशिप: इमरजेंसी के दौरान प्रेस आज़ादी सीमित करना, लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर बड़ा संदेह उत्पन्न हुआ।

न्यायपालिका पर नियंत्रण: 42वीं संविधान संशोधन के माध्यम से न्यायपालिका के नियंत्रण को कम किया गया—विरोधियों ने इसे लोकतंत्र के लिए ख़तरा कहा।

धार्मिक तनाव: ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी संवेदनशील कार्रवाई से सिख समुदाय में आक्रोश बढ़ा और अंततः हत्या की आग भड़की।

सकारात्मक योगदान और देश निर्माण

हरे एवं सफेद क्रांति: खाद्य और दूध उत्पादन में क्रांति लाई—भारत आत्मनिर्भर बना और विश्व स्तरीय स्थिति में पहुंचा ।

सार्वजनिक संस्थाएँ: बैंक, स्टील, कॉपर, कोयला—इन सभी का राष्ट्रीयकरण हुआ; साथ ही भू-राजस्व नीतियों में सुधार हुआ ।

न्यूक्लियर और स्वतंत्र विदेश नीति: परमाणु नेतृत्व और दक्षिण एशिया पर दबदबा—भारत की क्षमता बढ़ी और अंतरराष्ट्रीय भूमिका मजबूत हुई ।

“My Truth” आज के संदर्भ में

राजनीतिक आत्मनिरीक्षण: सत्ता और नैतिकता की टकराहट को आधुनिक लोकतंत्र में आज भी पढ़ने-समझने का अवसर देती है।

शिक्षण सामग्री: विद्यार्थी और शोधकर्ता इस पुस्तक से नेतृत्व, शासन, मानव अधिकार, और संवैधानिकता पर विज्ञान समझ सकते हैं।

भारत और विश्व: पुस्तक में उनका आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक दृष्टिकोण आज भी सूक्ष्म दृष्टिकोण प्रदान करता है—भारत की पहचान और वैश्विक साझेदारी के संदर्भ में।

निष्कर्ष: “My Truth” – इंदिरा गांधी की आत्मा की आवाज़

“My Truth” सिर्फ एक किताब नहीं है, यह इंदिरा गांधी के भीतर की उस स्त्री, उस नेता, उस माँ और उस इंसान की दास्तान है जिसने भारत को राजनीति, युद्ध, गरीबी, विकास और लोकतंत्र के हर रंग से गुज़ारा।

यह आत्मकथा हमें बताती है कि सत्ता में बैठा व्यक्ति भी इंसान होता है—जिसके फैसलों पर सिर्फ संविधान नहीं, बल्कि भावनाएं, इतिहास, और पारिवारिक ज़िम्मेदारियां भी असर डालती हैं। इस पुस्तक में इंदिरा ने न डरते हुए अपने निर्णयों, असफलताओं और विरोधों को स्वीकार किया है।

इमरजेंसी की आलोचना हो या बांग्लादेश युद्ध की सफलता, ऑपरेशन ब्लू स्टार का दर्द हो या गरीब हटाओ का जुनून—इंदिरा ने हर पहलू को बिना शुगरकोटिंग, अपनी भाषा में रखा।

FAQs – “My Truth” इंदिरा गांधी की आत्मकथा पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. “My Truth” किताब किसने लिखी है?

उत्तर:My Truth” इंदिरा गांधी की आत्मकथा है जिसे उन्होंने फ्रांसीसी पत्रकार Emmanuel Pouchpadass को दिए साक्षात्कारों के आधार पर लिखा है। यह पहली बार 1980 में फ्रेंच और बाद में अंग्रेज़ी में प्रकाशित हुई।

Q2. “My Truth” में किन-किन विषयों को शामिल किया गया है?

उत्तर: इस पुस्तक में इंदिरा गांधी ने अपने बचपन, पारिवारिक जीवन, राजनीतिक यात्रा, इमरजेंसी, बांग्लादेश युद्ध, ऑपरेशन ब्लू स्टार, व्यक्तिगत संघर्षों और अपने फैसलों के पीछे की सोच का विस्तार से वर्णन किया है।

Q3. क्या “My Truth” में इमरजेंसी के निर्णय को जायज़ ठहराया गया है?

उत्तर: हाँ, इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी को एक ‘जरूरी राजनीतिक कदम’ बताया है। उन्होंने इसे एक राष्ट्रहित में उठाया गया निर्णय माना है, पर आलोचना और आत्मचिंतन भी किया है।

Q4. क्या यह किताब आज के युवाओं के लिए उपयोगी है?

उत्तर: बिल्कुल। यह आत्मकथा नेतृत्व, राजनीति, संवेदनशीलता और निर्णयों की गहराई को समझने के लिए एक प्रेरणादायक दस्तावेज़ है, खासकर छात्रों, शोधकर्ताओं और प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने वालों के लिए।

Q5. क्या “My Truth” केवल समर्थकों के लिए है या आलोचकों के लिए भी?

उत्तर: यह किताब दोनों के लिए है। समर्थकों को इंदिरा जी की सोच और निर्णयों की व्याख्या मिलती है, वहीं आलोचक इसमें उन विवादास्पद फैसलों की पृष्ठभूमि और व्यक्तिगत दृष्टिकोण को समझ सकते हैं।

Q6. इंदिरा गांधी ने यह किताब क्यों लिखी?

उत्तर: सत्ता से हटने के बाद जब उनके निर्णयों की व्यापक आलोचना हुई, तब उन्होंने अपनी बात जनता और इतिहास के सामने स्पष्ट करने के लिए यह आत्मकथा लिखी। यह एक प्रकार का ‘पॉलिटिकल स्पष्टीकरण’ भी है।

Q7. क्या “My Truth” हिंदी में भी उपलब्ध है?

उत्तर: जी हाँ, “My Truth” का हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है। इसे कई भारतीय प्रकाशकों ने छापा है ताकि हिंदी पाठक भी इसे आसानी से समझ सकें।

Q8. “My Truth” कितने पन्नों की किताब है?

उत्तर: “My Truth” का अंग्रेज़ी संस्करण लगभग 200–220 पन्नों का है, जो विषय की गहराई के अनुसार संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली है।

Q9. क्या यह किताब किसी परीक्षा के लिए उपयोगी है?

उत्तर: हाँ, UPSC, State PSC, NET, और MA Political Science के छात्रों के लिए यह पुस्तक भारत के राजनीतिक इतिहास, नेतृत्व, और संविधानिक प्रक्रियाओं को समझने का महत्वपूर्ण स्रोत है।

Q10. इंदिरा गांधी की अन्य किताबें कौन सी हैं?

उत्तर:

  1. Collected Speeches (संग्रहित भाषण)
  2. Indira Gandhi: Letters to a Friend
  3. Freedom’s Daughter: Letters Between Indira Gandhi and Jawaharlal Nehru

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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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