NASA Space Station Orbit पृथ्वी के चारों ओर कैसे घूमता है? पूरी जानकारी!

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NASA Space Station Orbit कक्षा कैसे काम करती है? जानिए पूरी सच्चाई!

प्रस्तावना (Introduction)

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NASA द्वारा अंतरराष्ट्रीय सहयोग से निर्मित इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS), मानव सभ्यता का सबसे शानदार अंतरिक्ष प्रयोग है। यह स्टेशन हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है और इसमें लगातार वैज्ञानिक प्रयोग, तकनीकी परीक्षण और भविष्य के मिशन की तैयारी चलती रहती है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह स्पेस स्टेशन पृथ्वी की किस कक्षा में स्थित है, वहां क्यों रखा गया है, और इसे वहां स्थिर कैसे रखा जाता है?

स्पेस स्टेशन की कक्षा: लो अर्थ ऑर्बिट (LEO)

ISS को पृथ्वी की निम्न कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) में स्थापित किया गया है, जिसकी ऊँचाई लगभग 400 किलोमीटर होती है।

क्यों LEO?

यहाँ पर वायुमंडलीय घर्षण कम होता है, जिससे स्टेशन ज्यादा समय तक टिक सकता है।

धरती से अंतरिक्ष यान या मालवाहक यान भेजना आसान और सस्ता होता है।

पृथ्वी के वातावरण, मौसम, और ग्लोबल बदलावों का अवलोकन इस ऊँचाई से आसान होता है।

स्पेस स्टेशन की ऊँचाई और गति

ऊँचाई: 370 से 420 किमी के बीच, औसतन ~400 किमी।

गति: लगभग 28,000 किमी/घंटा।

एक चक्कर का समय: 90 मिनट (यानि दिन में ~16 चक्कर)।

यह गति और ऊँचाई इस तरह से संतुलित की जाती है कि गुरुत्वाकर्षण उसे नीचे खींच न सके और वह अंतरिक्ष में “फ्लोट” करता रहे।

कक्षा का झुकाव (Orbital Inclination)

ISS की कक्षा का झुकाव 51.6 डिग्री है। इसका मतलब है कि यह भूमध्य रेखा से 51.6 डिग्री उत्तर और दक्षिण तक पहुँचता है।

इसके पीछे कारण:

यह झुकाव अधिकतर देशों की लॉन्च साइट्स (जैसे रूस का Baikonur) से सीधा संपर्क बनाता है।

पृथ्वी के बड़े हिस्से को कवर करता है — जिससे अंतरिक्ष यात्री कई देशों के ऊपर से गुजरते हैं।

कक्षा को स्थिर कैसे रखा जाता है? (Reboosting)

स्पेस स्टेशन हर दिन कुछ मीटर नीचे गिरता है क्योंकि वहां भी थोड़ी हवा मौजूद होती है। इसलिए हर कुछ हफ्तों में Reboost Maneuver किया जाता है।

Reboost में होता क्या है?

प्रोपल्शन सिस्टम चालू किया जाता है।

स्टेशन को हल्का धक्का दिया जाता है ताकि वह ऊँचाई बनाए रख सके।

Progress या Dragon जैसे स्पेसक्राफ्ट इस काम में मदद करते हैं।

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ISS की वैज्ञानिक भूमिका

LEO में होने के कारण ISS से:

माइक्रोग्रैविटी में जैविक, भौतिक और रासायनिक प्रयोग किए जा सकते हैं।

पृथ्वी की सतह की निगरानी हो सकती है: जंगल, समुद्र, ध्रुवीय बर्फ।

नए अंतरिक्ष तकनीकों का परीक्षण होता है: सोलर पैनल, रोबोटिक हाथ, कम्युनिकेशन सिस्टम्स।

पृथ्वी से दिखाई देना

रात के समय, ISS एक चमकते हुए तारे जैसा दिखाई देता है। यह सूर्य की रोशनी को रिफ्लेक्ट करता है और सामान्यत::

सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद दिखता है।

“Spot The Station” जैसी वेबसाइट्स से आप इसके गुजरने का समय देख सकते हैं।

सुरक्षा: अंतरिक्ष मलबे से बचाव

स्पेस स्टेशन लगातार पृथ्वी के चारों ओर घूमता रहता है, लेकिन अंतरिक्ष में मलबा (Space Debris) भी तेजी से घूम रहा होता है। ऐसे में:

NASA और अन्य एजेंसियाँ रडार से ट्रैकिंग करती हैं।

जब खतरा अधिक होता है, तो कक्षा में हल्का बदलाव (Collision Avoidance Maneuver) किया जाता है।

भविष्य की योजनाएँ: 2030 के बाद क्या?

NASA की योजना है कि:

2030 तक ISS को रिटायर किया जाए।

SpaceX द्वारा एक विशेष यान (Deorbit Vehicle) तैयार किया जा रहा है जो स्टेशन को समुद्र में गिरा देगा।

इसके बाद निजी कंपनियाँ (जैसे Axiom, Blue Origin) लो-अर्थ-ऑर्बिट में छोटे स्टेशन बनाएँगी।

पृथ्वी की घूर्णन और स्पेस स्टेशन की चाल का संबंध

आपको जानकर हैरानी होगी कि भले ही स्पेस स्टेशन अपनी कक्षा में लगातार घूम रहा है, लेकिन धरती की घूर्णन भी उसकी “ग्राउंड ट्रैक” को लगातार बदलती है।

कैसे?

पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है।

ISS भी उसी दिशा में 28,000 किमी/घंटा की रफ्तार से चलता है।

परिणामस्वरूप, हर 90 मिनट में ISS धरती के नए भाग के ऊपर से गुजरता है।

इस वजह से दुनिया के कई हिस्सों में लोग हर कुछ दिनों में स्पेस स्टेशन को देख सकते हैं।

स्पेस स्टेशन और कक्षा की गतिशीलता (Dynamic Orbit)

स्पेस स्टेशन कोई “स्थिर” उपग्रह नहीं है। इसकी कक्षा एक बेहद गतिशील प्रणाली है, जो हर पल बदल रही होती है।

उदाहरण:

यदि सौर गतिविधि (Solar Storms) अधिक हो, तो वायुमंडल फैलता है और ISS को ज्यादा drag मिलता है।

इससे ऊँचाई तेजी से घटती है और reboost जल्दी करना पड़ता है।

NASA के वैज्ञानिक लगातार इसकी ट्रैकिंग करते हैं और orbit को संतुलित बनाए रखने के लिए आवश्यक निर्णय लेते हैं।

कक्षा और माइक्रोग्रैविटी के वैज्ञानिक प्रयोग

LEO की स्थिति वैज्ञानिकों के लिए एक वरदान की तरह है, क्योंकि वहां माइक्रोग्रैविटी होती है।

क्या होता है माइक्रोग्रैविटी में?

Fluids बिना gravity के behavior बदलते हैं।

इंसानी शरीर में हड्डियाँ और मांसपेशियाँ धीरे-धीरे कमजोर होती हैं।

बैक्टीरिया और वायरस तेजी से mutate होते हैं।

ISS पर हो रहे इन प्रयोगों से हम:

बेहतर दवाएं बना सकते हैं।

हड्डी के रोगों के इलाज को समझ सकते हैं।

अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं।

ISS का रोटेशन और attitude control

ISS को न सिर्फ अपनी कक्षा में रहना होता है, बल्कि उसे एक दिशा में “घूरते” रहना होता है – जिससे सोलर पैनल सूर्य की ओर, एंटीना धरती की ओर और वैज्ञानिक उपकरण सही लक्ष्य पर रहें।

इसके लिए प्रयोग होते हैं:

Control Moment Gyroscopes (CMG): बिना किसी ईंधन के घूमने की दिशा बदल सकते हैं।

Thrusters: जब बड़े बदलाव चाहिए हों तो ईंधन जलाकर दिशा बदलते हैं।

ISS का Design और Orbit का संबंध

आपने गौर किया होगा कि स्पेस स्टेशन चौकोर या गोल नहीं है, बल्कि एक लंबा, फैला हुआ प्लेटफॉर्म है जिसमें कई मॉड्यूल और बड़े-बड़े सोलर पैनल हैं।

कक्षा के अनुसार डिज़ाइन:

LEO में ऑर्बिटल drag अधिक होता है, इसलिए डिज़ाइन aerodynamically optimized होना ज़रूरी है।

सोलर पैनल को drag कम करने के लिए retracted या angled रखा जाता है।

Thermal balance बनाए रखने के लिए orientation (pitch, yaw, roll) को manage किया जाता है।

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NASA: International Partners और Orbit Coordination

NASA अकेला ISS का मालिक नहीं है। इसमें शामिल हैं:

रूस की Roscosmos

जापान की JAXA

यूरोप की ESA

कनाडा की CSA

Orbit की coordination:

हर पार्टनर एजेंसी के पास अपनी ज़िम्मेदारी है: मॉड्यूल, प्रयोग, या स्पेसक्राफ्ट।

स्पेस स्टेशन की कक्षा में किसी भी देश के हवाई क्षेत्र के ऊपर से गुजरने पर अंतरराष्ट्रीय संचार और परमिशन की ज़रूरत होती है।

Orbit selection इसीलिए ऐसी की गई है जिससे कोई देश विशेष हावी न हो।

भविष्य की कक्षाएँ: LEO से GEO, L1, और Lunar Orbit तक

ISS तो LEO में है, लेकिन आने वाला दशक नई कक्षाओं की खोज का है:

GEO (Geostationary Orbit): दूरसंचार और मौसम उपग्रहों के लिए।

L1 (Lagrange Point 1): पृथ्वी और सूर्य के बीच संतुलन बिंदु – Solar Observation के लिए।

NRHO (Near-Rectilinear Halo Orbit): चाँद के चारों ओर NASA का Gateway Station बनेगा।

ISS की सफलता इन सभी योजनाओं की आधारशिला है।

संभावित खतरे और Orbit Decay

ISS की कक्षा स्थिर नहीं है। वहाँ कई खतरे हैं:

1. Space Debris:

1cm का टुकड़ा भी 28,000 किमी/घंटा की रफ्तार से टकराए तो भारी नुकसान कर सकता है।

2. Orbit Decay:

बिना reboost के ISS कुछ सालों में ही वातावरण में घुसकर जल सकता है।

3. Solar Activity:

सौर तूफ़ान (Solar Flare) से वायुमंडल की ऊपरी परत फैलती है, जिससे drag बढ़ जाता है।

NASA Orbit Simulation और Software

NASA और अन्य एजेंसियाँ विशेष सॉफ़्टवेयर का प्रयोग करती हैं:

GMAT (General Mission Analysis Tool): Orbit analysis और trajectory planning।

Orbital Debris Program Office Tools: मलबे से बचाव के लिए।

आप भी online orbit simulators जैसे “NASA Eyes” का उपयोग कर सकते हैं।

भारतीय दृष्टिकोण से ISS की Orbit

भारत की ISRO एजेंसी ISS का हिस्सा नहीं है, लेकिन भारतीय वैज्ञानिक कई बार NASA के साथ experiments में साझेदार रहे हैं।

भविष्य में भारत का खुद का स्पेस स्टेशन – गगनयान मिशन के बाद – संभवतः LEO में ही होगा।

2030 के बाद: Orbit का अंत?

NASA की योजना है कि ISS को:

2030 में Retire कर दिया जाए।

SpaceX के बनाए गए US Deorbit Vehicle द्वारा प्रशांत महासागर में गिराया जाए।

नए निजी स्टेशन LEO में शुरू किए जाएँ।

इसका मतलब?

ISS की कक्षा भले 2030 में खत्म हो जाए, लेकिन उसका अनुभव हमें मंगल और उससे आगे ले जाएगा।

निष्कर्ष (Conclusion) – NASA Space Station की कक्षा की वैज्ञानिक सच्चाई

NASA का इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) सिर्फ एक कक्षा में घूमता हुआ ढांचा नहीं है — यह इंसान की वैज्ञानिक सोच, तकनीकी क्षमता और वैश्विक सहयोग का एक चलता-फिरता प्रतीक है।

इसका चयनित Low Earth Orbit (LEO) महज संयोग नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विश्लेषण, आर्थिक व्यावहारिकता और तकनीकी आवश्यकताओं का परिणाम है।

लगभग 400 किमी ऊँचाई पर, यह न तो पृथ्वी से बहुत दूर है और न ही इतना पास कि वायुमंडलीय घर्षण उसे गिरा दे। इस ऊँचाई और झुकाव (51.6° inclination) के कारण यह 90 मिनट में धरती का एक चक्कर लगाता है और दिन में 16 बार पृथ्वी को देखता है।

इस कक्षा में बने रहना आसान नहीं है — निरंतर “reboosting”, दिशा नियंत्रण (attitude control), और मलबे से टकराने के खतरे को टालना इसकी रोज़मर्रा की चुनौतियाँ हैं।

लेकिन फिर भी, यह हमें ऐसी वैज्ञानिक खोजों की ओर ले जाता है, जो पृथ्वी पर असंभव होतीं — जैसे माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रयोग, दवाओं का परीक्षण, और भविष्य की चंद्र और मंगल यात्राओं की तैयारी।

2030 के बाद जब ISS को रिटायर किया जाएगा, तो उसकी कक्षा भी इतिहास बन जाएगी। लेकिन जिस अनुभव, ज्ञान और तकनीक का निर्माण ISS के माध्यम से हुआ है, वो हमारी अंतरिक्ष यात्रा की नींव बनकर चाँद, मंगल और उससे भी आगे के सफर को संभव बनाएगा।

इसलिए, ISS की कक्षा सिर्फ उसका मार्ग नहीं, बल्कि मानव सभ्यता के भविष्य की दिशा है।


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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