Pandoh Dam: क्यों कहा जाता है इसे भारत का इंजीनियरिंग वंडर? जानिए चौंकाने वाली बातें!

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Pandoh Dam: एक बाँध जिसने बदल दी बिजली की तस्वीर, जानिए कैसे?

भूमिका: पहाड़ों की छाती पर बसा एक अजूबा

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हिमालय की गोद में बसे हिमाचल प्रदेश में जब आप मंडी से कुल्लू की ओर बढ़ते हैं, तो रास्ते में एक गहरा नीला झीलनुमा दृश्य दिखता है।

नदियों की कल-कल ध्वनि, आस-पास की ऊँची-नीची घाटियाँ, और बीच में एक दृढ़ बाँध – यही है Pandoh Dam।

पर क्या आप जानते हैं कि ये सिर्फ एक डैम नहीं, बल्कि भारत के ऊर्जा आत्मनिर्भरता की नींव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है? ये सिर्फ सीमेंट और पत्थरों की दीवार नहीं, बल्कि विज्ञान, संघर्ष और विजन की प्रतीक है।

इतिहास: एक सोच जो हिमालय से निकली

1950 के दशक में, भारत आज़ाद हो चुका था, लेकिन विकास की रफ्तार पकड़ना बाकी थी। बिजली की ज़रूरतें बढ़ रही थीं, और तभी हिमाचल की ऊँचाईयों से आती ब्यास नदी की तरफ इंजीनियरों की नज़र गई।

1957 में इस परियोजना का खाका तैयार हुआ और 1963 में इस पर गंभीर काम शुरू हुआ। लेकिन पहाड़ों में डैम बनाना मैदान जैसा नहीं होता – ये एक महायुद्ध होता है, जिसमें प्रकृति भी आपकी परीक्षा लेती है।

निर्माण की चुनौतियाँ: जब आदमी ने पहाड़ों से बात की

सोचिए, एक ऐसी जगह पर डैम बनाना जहाँ बारिश, भूस्खलन, बर्फबारी और कठोर चट्टानें हर कदम पर आपकी परीक्षा लें। इंजीनियर, मजदूर, और स्थानीय लोग दिन-रात मेहनत करते थे।

कभी मशीनें फंस जातीं, कभी नदी का बहाव रास्ता रोक देता, लेकिन इंसान ने हार नहीं मानी। 1977 में यह सपना साकार हुआ, और Pandoh Dam एक सच्चाई बन गया।

तकनीकी चमत्कार: एक अद्भुत जल संसाधन प्रणाली

Pandoh Dam की खास बात ये है कि ये ब्यास नदी के पानी को सतलुज नदी की ओर मोड़ता है, जहाँ जाकर वो भाखड़ा नांगल परियोजना में शामिल हो जाता है।

ऊँचाई: लगभग 76 मीटर

लंबाई: करीब 255 मीटर

जलाशय क्षमता: 41 मिलियन क्यूबिक मीटर

टर्बाइनों की संख्या: 6 (हर एक 165 मेगावाट की क्षमता वाली)

यहाँ से पानी 38 किलोमीटर लंबी सुरंगों और नहरों से सतलुज तक पहुँचता है, और फिर डेहर पावर हाउस में बिजली बनती है – जो करीब 990 मेगावाट ऊर्जा पैदा करता है।

मानवता का योगदान: मजदूरों की अनकही कहानियाँ

आपको शायद अखबारों या सरकारी फाइलों में ये नहीं मिलेगा, लेकिन इस बाँध की नींव में हजारों मजदूरों की मेहनत की कहानियाँ हैं।
कई महीनों तक परिवारों से दूर रहकर, खतरनाक पहाड़ियों पर काम करते हुए, मजदूरों ने इस बाँध को खड़ा किया।

कुछ ने अपनी जानें तक गंवा दीं – लेकिन उनके नाम इतिहास में नहीं छपते, सिर्फ इस बाँध की दीवारों में गूंजते हैं।

पर्यावरण और नदी की पीड़ा: एक असंतुलन की कीमत

जहाँ एक ओर Pandoh Dam  भारत को ऊर्जा देता है, वहीं दूसरी ओर ब्यास नदी का प्रवाह पूरी तरह बदल गया है।

मंडी के पास की ब्यास, जो कभी जीवनदायिनी थी, अब गर्मियों में सूख जाती है।

स्थानीय मछुआरे, जो पीढ़ियों से नदी पर निर्भर थे, अब मजबूरी में दूसरे कामों में लग गए हैं।

प्रकृति और विकास के बीच संतुलन आज भी एक बड़ा सवाल है।

पर्यटन और रोमांच: साहसिक लोगों के लिए एक स्वर्ग

हालांकि तैराकी और नौकायन की अनुमति नहीं है, फिर भी Pandoh Dam का क्षेत्र एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल बन चुका है।

यहां से गुजरते ट्रैवलर अक्सर रुककर इस विशाल डैम की खूबसूरती को निहारते हैं।

अक्टूबर से मई तक ब्यास नदी में रिवर राफ्टिंग के लिए पर्यटक आते हैं, जो पास के कुल्लू क्षेत्र में होती है।

आसपास के पहाड़ ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त हैं।

सुरक्षा और सतर्कता: आधुनिक दौर की चुनौतियाँ

2025 में, लगातार बारिश के कारण डैम के फ्लडगेट खोलने पड़े, जिससे निचले इलाकों में खतरा पैदा हुआ।

अब BBMB (भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड) ने डैम पर अर्ली वॉर्निंग सिस्टम लगाने का निर्णय लिया है।

मंडी शहर में हूटर सिस्टम लगाया जाएगा जिससे लोगों को पहले से सतर्क किया जा सके।

Pandoh Dam का भारत के लिए महत्व

ऊर्जा आत्मनिर्भरता: भारत की बड़ी पनबिजली परियोजनाओं में एक

सिंचाई: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान जैसे राज्यों को लाभ

बाढ़ नियंत्रण: मॉनसून में जल को नियंत्रित करने में सहायक

स्थानीय विकास: आसपास के गांवों में सड़क, रोजगार और इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार

एक नदी की आत्मकथा: ब्यास की आँखों से पंडोह डैम

कल्पना कीजिए कि अगर ब्यास नदी बोल सकती, तो शायद वह कहती:

“मैं सदियों से बह रही थी – मेरे तटों पर ऋषि बसा करते थे, मछुआरे जाल डालते थे, बच्चे मेरे किनारों पर खेलते थे। फिर एक दिन

इंसान आया – उसने मेरे बहाव को रोका, मेरी धारा को दूसरी ओर मोड़ दिया। मैंने विरोध नहीं किया, क्योंकि मुझे पता था कि शायद ये उनके लिए ज़रूरी है। पर क्या उन्होंने मेरी पीड़ा को समझा?”

यहाँ हमें यह स्वीकार करना होगा कि किसी भी विकास परियोजना में प्रकृति की अपनी एक नम कहानी होती है, जिसे अक्सर रिपोर्टों में जगह नहीं मिलती।

Pandoh Dam के बनने के बाद ब्यास का जो हिस्सा मंडी से होकर बहता है, वह कृत्रिम प्रवाह पर आधारित है – यानी नदी अब अपने स्वाभाविक रूप में नहीं बहती।

स्थानीय लोगों की ज़िंदगी में परिवर्तन

Pandoh Dam के निर्माण के बाद मंडी और आसपास के गांवों में बड़ा बदलाव आया:

रोज़गार के अवसर बढ़े। डैम निर्माण से लेकर इसके रखरखाव तक, हजारों लोगों को काम मिला।

सड़कें, पुल और बिजली – डैम के चलते क्षेत्र में बुनियादी ढांचे का विस्तार हुआ।

लेकिन कुछ गांव विस्थापित भी हुए। लोगों को अपने खेत, घर और पुरखों की ज़मीन छोड़नी पड़ी।

मछुआरे और नाविकों को रोज़गार का संकट हुआ, क्योंकि डैम ने प्राकृतिक मछलियों का चक्र बिगाड़ दिया।

 Pandoh Dam: क्यों कहा जाता है इसे भारत का इंजीनियरिंग वंडर? जानिए चौंकाने वाली बातें!
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पर्यावरणीय संतुलन और जल जीवन मिशन से जुड़ाव

आज भारत में जब जल जीवन मिशन जैसे अभियानों की बात होती है, तो Pandoh Dam जैसे जल संसाधनों का रणनीतिक महत्व और बढ़ जाता है। लेकिन साथ ही पर्यावरणविद यह भी कहते हैं:

डैम के आस-पास के इलाकों में माइक्रो क्लाइमेट में बदलाव आया है।

कई पक्षियों और जलचर जीवों की संख्या में गिरावट आई है।

ब्यास नदी में पहले जो सीतामृग, ऊदबिलाव जैसे जलजीव पाए जाते थे, अब वो दिखना दुर्लभ हो गया है।

BBMB और हिमाचल सरकार ने कुछ क्षेत्रों में ईको-रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं, ताकि डैम के प्रभाव को कम किया जा सके।

तकनीकी विशेषता और इंजीनियरिंग की भव्यता

Pandoh Dam का इंजीनियरिंग स्ट्रक्चर सिर्फ एक साधारण बाँध नहीं है। यह भारत की पनबिजली तकनीक की एक उत्कृष्ट मिसाल है:

ग्रेविटी डैम प्रकार का है – यानी यह अपने ही वजन से पानी के दबाव को रोकता है।

डैम से पानी को 38 किलोमीटर दूर सतलुज नदी तक सुरंगों से भेजना, एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि है।

इसमें एक सर्पिल आकार की जल सुरंग भी है, जो जल को टर्बाइन तक स्थिर दबाव में पहुँचाती है।

इससे जो बिजली बनती है, वह भाखड़ा नांगल परियोजना के 990 MW का आधार बनती है।

प्राकृतिक आपदा प्रबंधन और डैम की भूमिका

2023 और 2024 की भारी बारिश और ग्लेशियर पिघलने की घटनाओं ने हिमाचल की नदियों में जलप्रवाह को अनियंत्रित बना दिया। ऐसे समय में:

पंडोह डैम ने बाढ़ नियंत्रण में बड़ा योगदान दिया।

इसके फ्लडगेट्स को नियंत्रित करके BBMB ने निचले इलाकों को जलप्रलय से बचाया।

हालांकि मंडी और कुल्लू के कुछ क्षेत्र प्रभावित हुए, पर डैम की समय पर क्रिया से विनाश कम हुआ।

अब BBMB और राज्य सरकार ने मिलकर Pandoh Dam के लिए Advanced Flood Monitoring Sensors और Drone Surveillance शुरू किया है।

भविष्य की योजनाएँ: पंडोह का दूसरा अध्याय

Pandoh Dam की क्षमता को और उपयोगी बनाने के लिए अब कई योजनाएँ विचाराधीन हैं:

Solar-Canal Integration Project सुरंगों और जलमार्गों पर सोलर पैनल लगाने की योजना ताकि जल वाष्पीकरण भी रोके और बिजली भी बने।

Floating Solar Plant – पंडोह झील के हिस्से में फ्लोटिंग सोलर पॉवर यूनिट लगाने की योजना।

Eco-Tourism Circuit – मंडी-पंडोह-कुल्लू क्षेत्र को एक ईको-फ्रेंडली टूरिज्म ज़ोन बनाने का विचार चल रहा है।

मीडिया और कला में पंडोह डैम की छवि

Pandoh Dam ना सिर्फ विज्ञान का विषय है, बल्कि कला और फिल्म जगत में भी इसका जिक्र आता है:

कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में इसकी शूटिंग हुई है।

कुछ शॉर्ट फिल्मों में इसे “रिवर इन पेन” के नाम से दर्शाया गया है।

मंडी के लोक गीतों में भी इसकी छवि आई है – कभी विकास के रूप में, तो कभी नदी की याद में।

पंडोह: एक प्रतीक – नफरत नहीं, समझ की ज़रूरत

भारत में जब भी किसी डैम पर बहस होती है – तो सवाल उठते हैं: पर्यावरण बनाम विकास। लेकिन Pandoh Dam हमें सिखाता है कि ये लड़ाई नहीं, एक बातचीत हो सकती है।

हम ऐसे मॉडल बना सकते हैं जहाँ सतत विकास (Sustainable Development) और प्राकृतिक संरक्षण दोनों साथ चलें।

Pandoh Dam एक ऐसी प्रयोगशाला बन सकता है जहाँ भविष्य की जल नीति की नींव रखी जाए।

युवा इंजीनियरों और पर्यावरणविदों के लिए प्रेरणा

पंडोह डैम आज इंजीनियरिंग कॉलेजों और एनवायर्नमेंट स्टडीज़ के छात्रों के लिए एक केस स्टडी बन चुका है:

कैसे प्राकृतिक अवरोधों के बीच एक तकनीकी चमत्कार खड़ा किया जा सकता है?

कैसे विज्ञान और समाज का संतुलन साधा जाए?

और सबसे बढ़कर – क्या हम अगली पीढ़ी को एक ऐसा मॉडल दे सकते हैं, जो टिकाऊ हो?

कानूनी और नीति संबंधी पहलू

पंडोह डैम भारत के जल संसाधनों और अंतर-राज्यीय जल विवादों की पृष्ठभूमि में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

ब्यास-सतलज लिंक प्रोजेक्ट के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा और राजस्थान राज्यों को जल-बिजली लाभ बाँटने की व्यवस्था की गई।

यह वितरण आज भी Bhakra Beas Management Board (BBMB) के अंतर्गत नियंत्रित है।

कई बार इस बाँट को लेकर राजनीतिक बहसें भी होती रही हैं – जैसे पंजाब की जल-स्वायत्तता की मांग या हरियाणा द्वारा अधिक हिस्सेदारी की अपील।

इन विवादों के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने जल न्यायाधिकरणों (Water Tribunals) की स्थापना की और पंडोह डैम से जुड़ी हर नीति केंद्रीय निगरानी में आती है।

सामुदायिक भागीदारी: ‘जन का डैम’

पंडोह डैम की सफलता का एक बड़ा कारण रहा है — स्थानीय लोगों की भागीदारी।

मंडी और आसपास के गांवों के लोगों को डैम के रखरखाव, गार्ड ड्यूटी, पर्यटन गाइड और साफ-सफाई जैसे कार्यों में रोजगार मिला।

कई महिला स्वयं सहायता समूहों (SHGs) ने डैम साइट पर छोटे व्यवसाय चलाए – जैसे स्थानीय हस्तशिल्प, खाने-पीने की दुकानें आदि।

स्कूल और कॉलेजों में जल संरक्षण और डैम सुरक्षा से जुड़े अभियान भी चलाए गए।

इसका एक अच्छा उदाहरण है – ‘पंडोह जल रक्षा समिति’, जो स्थानीय निवासियों द्वारा शुरू की गई एक पहल है, जो डैम के आसपास पर्यावरण और स्वच्छता को बनाए रखने में जुटी है।

वैज्ञानिक अनुसंधान और नवाचार केंद्र

पंडोह डैम को लेकर कई वैज्ञानिक अध्ययन भी हुए हैं, जैसे:

जलदाब और सेडिमेंटेशन पर अध्ययन – यह पता लगाने के लिए कि कैसे टनल में सिल्ट जमा होती है और इसे कैसे निकाला जाए।

हिमालयी जल स्रोतों पर ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव – IIT मंडी द्वारा शोध।

BBMB और CSIR की मदद से Structural Health Monitoring System का विकास, जो बाँध की दीवारों में किसी भी प्रकार की दरार या कंपन को रिकॉर्ड करता है।

यह सब बताता है कि पंडोह अब सिर्फ एक बाँध नहीं बल्कि शोध और नवाचार की प्रयोगशाला बन चुका है

पर्यटन और साहसिक गतिविधियाँ: जल का रोमांच

अब हिमाचल सरकार और BBMB, पंडोह डैम को एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल में बदलने की ओर कार्यरत हैं:

डैम के पास वॉटर व्यू पॉइंट, बोटिंग सुविधा और वॉटर स्पोर्ट्स शुरू करने की योजना है।

नेचर ट्रेल्स, पक्षी अवलोकन (Bird Watching) और फोटोग्राफी के लिए विशेष ज़ोन बनाए जा रहे हैं।

पर्यटकों के लिए गाइडेड डैम विज़िट की सुविधा प्रस्तावित है – जिससे लोग डैम की कार्यप्रणाली को नज़दीक से समझ सकें।

जलवायु परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य में पंडोह की भूमिका

जलवायु परिवर्तन एक ऐसा मुद्दा है जिससे कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। पंडोह डैम भी अब इस चुनौती से जूझ रहा है:

ग्लेशियर के तीव्र पिघलाव से ब्यास नदी का प्रवाह कभी-कभी अचानक बढ़ जाता है।

मानसून का स्वरूप बदल रहा है, जिससे डैम का जल-प्रबंधन कठिन हो गया है।

वैज्ञानिक सुझाव दे रहे हैं कि पंडोह डैम को अब ‘Climate Resilient Dam‘ के तौर पर अपग्रेड किया जाए।

शिक्षा और जागरूकता के लिए पंडोह

सरकार ने अब पंडोह डैम को एक शैक्षणिक स्थल के रूप में भी घोषित किया है:

स्थानीय स्कूलों में ‘जल विज्ञान प्रयोगशालाएँ’ स्थापित की जा रही हैं।

डैम क्षेत्र में जल मेले (Water Fairs) आयोजित किए जाते हैं।

BBMB की ओर से बच्चों को डैम विजिट करवा कर उन्हें प्राकृतिक संसाधनों की महत्ता समझाई जाती है।

 Pandoh Dam: क्यों कहा जाता है इसे भारत का इंजीनियरिंग वंडर? जानिए चौंकाने वाली बातें!
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‘विकास’ बनाम ‘प्रकृति’: एक संतुलन की खोज

पंडोह डैम भारत के उस विकास मॉडल का हिस्सा है जहाँ विकास और पारिस्थितिकी के बीच संतुलन साधना एक चुनौती है।

विकास तो हुआ, बिजली और पानी भी मिला, पर नदी और जनजीवन भी बदला।

अब समय आ गया है कि हम पंडोह जैसे प्रोजेक्ट्स को “इंसान-प्रकृति साझेदारी” के रूप में देखें, न कि एक के पक्ष या विपक्ष में।

पंडोह डैम (Pandoh Dam) से जुड़े महत्वपूर्ण FAQ (Frequently Asked Questions)

1. Pandoh Dam कहाँ स्थित है?

उत्तर: Pandoh Dam हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले में, ब्यास नदी पर स्थित है। यह मंडी शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर NH-3 (चंडीगढ़-मनाली हाईवे) पर स्थित है।

2. Pandoh Dam का निर्माण कब हुआ था?

उत्तर: Pandoh Dam का निर्माण वर्ष 1974 में शुरू हुआ और इसे 1977 में पूरा किया गया।

3. Pandoh Dam किस नदी पर बना है?

उत्तर: यह बाँध ब्यास नदी (Beas River) पर स्थित है, और इसका मुख्य कार्य ब्यास नदी के जल को सतलुज नदी की ओर मोड़ना है।

4. पंडोह डैम का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

उत्तर: इसका मुख्य उद्देश्य है –

ब्यास नदी का जल सतलुज में मोड़ना

भाखड़ा नांगल बाँध को जल उपलब्ध कराना

हाइड्रोपावर उत्पादन में सहायता देना

5. क्या पंडोह डैम से बिजली बनती है?

उत्तर: स्वयं पंडोह डैम से बिजली नहीं बनती, बल्कि यह जल को Dehar Power House (Slapper) तक पहुँचाता है, जहाँ लगभग 990 मेगावाट बिजली उत्पन्न होती है।

6. पंडोह डैम किस परियोजना का हिस्सा है?

उत्तर: यह बाँध Beas Project (Phase-II) और Beas-Sutlej Link Project का प्रमुख हिस्सा है।

7. पंडोह डैम का प्रबंधन कौन करता है?

उत्तर: पंडोह डैम का रख-रखाव और प्रबंधन Bhakra Beas Management Board (BBMB) द्वारा किया जाता है।

8. पंडोह डैम की ऊँचाई और लंबाई कितनी है?

उत्तर:

ऊँचाई: लगभग 76 मीटर (249 फीट)

लंबाई: लगभग 255 मीटर

9. पंडोह डैम से जल कहाँ-कहाँ भेजा जाता है?

उत्तर:

जल को ब्यास-सतलुज लिंक नहर के माध्यम से सतलुज नदी की ओर मोड़ा जाता है।

फिर यह जल गोबिंद सागर झील (भाखड़ा डैम) में पहुँचता है।

10. क्या पंडोह डैम से पर्यावरण को नुकसान हुआ है?

उत्तर:
हां, ब्यास नदी की प्राकृतिक धारा को मोड़ने से नदी में पारिस्थितिकी बदलाव, मत्स्य प्रजातियों में गिरावट और आसपास के गांवों में विस्थापन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हुईं।

11. क्या पंडोह डैम एक सुरक्षित बाँध है?

उत्तर:
अब तक कोई बड़ी दुर्घटना नहीं हुई है। BBMB द्वारा नियमित निरीक्षण, सेस्मिक अध्ययन, और जल निकासी तंत्र की निगरानी की जाती है।

12. क्या पंडोह डैम एक पर्यटन स्थल है?

उत्तर:
हाँ, यह एक लोकप्रिय दर्शनीय स्थल बन चुका है। पर्यटक यहाँ डैम की सुंदरता, जल प्रवाह और हरियाली का आनंद लेने आते हैं। बोटिंग और नेचर ट्रेल्स जैसी योजनाएं प्रगति पर हैं।

13. पंडोह डैम से कौन-सी प्रमुख सुरंग जुड़ी है?

उत्तर:
6.8 किलोमीटर लंबी सुरंग, जो डैम से जल को Dehar Power House तक ले जाती है।

14. क्या Pandoh Dam में जल खेल (Water Sports) की सुविधा है?

उत्तर:
वर्तमान में नहीं, लेकिन सरकार और BBMB इसे एक Adventure Tourism Spot के रूप में विकसित करने की योजना बना रहे हैं।

15. Pandoh Dam से जुड़े ताजे अपडेट्स क्या हैं?

उत्तर:

Structural Monitoring System लगाया गया है।

जलवायु परिवर्तन के मद्देनज़र नए रिसर्च प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं।

इसे Climate-Resilient Infrastructure के रूप में उन्नत करने की योजना है।

निष्कर्ष: Pandoh Dam – एक रणनीतिक, पर्यावरणीय और ऊर्जा शक्ति का प्रतीक

Pandoh Dam केवल एक जल संरचना नहीं, बल्कि भारत की जल-विद्युत और नदी प्रबंधन की महत्त्वाकांक्षी सोच का परिणाम है। इसका निर्माण ब्यास नदी के जल को सतलुज नदी में मोड़कर न केवल ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया, बल्कि यह भाखड़ा नांगल परियोजना जैसे विशाल बांध को भी सशक्त करता है।

Pandoh Dam राज्य की सिंचाई आवश्यकताओं में मदद करता है, साथ ही Dehar Power House में 990 मेगावाट से अधिक की बिजली उत्पादन की बुनियाद रखता है,

जिससे उत्तर भारत की बिजली ज़रूरतों को पूरा किया जाता है। इसके अतिरिक्त, यह हिमाचल प्रदेश के लिए पर्यटन का नया केंद्र भी बनता जा रहा है।

हालांकि, Pandoh Dam ने नदी पारिस्थितिकी और स्थानीय जैव विविधता को प्रभावित किया है। लेकिन समय के साथ BBMB और राज्य सरकार द्वारा लिए गए सतत विकास और संरक्षण के कदम इसे एक संतुलित परियोजना बनाने की दिशा में अग्रसर हैं।

अतः Pandoh Dam एक उदाहरण है आधुनिक इंजीनियरिंग, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और राष्ट्र की ऊर्जा ज़रूरतों को संतुलित करने के प्रयासों का। भविष्य में, यह परियोजना हरित ऊर्जा और पर्यावरणीय संतुलन के और अधिक निकट होगी, ऐसी उम्मीद की जाती है।


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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