PSLV: भारत का विज्ञान चमत्कार जिसे दुनिया सलाम करती है!
प्रस्तावना: एक देश, एक सपना
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Toggleभारत का सपना था कि वह भी अंतरिक्ष में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाए। कभी अमेरिका और रूस की दौड़ में बहुत पीछे माने जाने वाले भारत ने जब 1994 में अपने PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) से पहली सफल उड़ान भरी, तब न केवल देश की आत्मा जागी, बल्कि पूरी दुनिया ने भारत को सलाम किया।
ISRO ने जिस भरोसे और सटीकता के साथ इस प्रक्षेपण यान को विकसित किया, उसने आने वाले दशकों में न सिर्फ भारत को उपग्रहों की लॉन्चिंग के मामले में आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि एक सस्ता और विश्वसनीय विकल्प भी बनकर उभरा।
PSLV क्या है?
पीएसएलवी यानी पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल ISRO द्वारा विकसित एक मध्यम श्रेणी का प्रक्षेपण यान है, जिसे खासकर ध्रुवीय सूर्य-समकालिक कक्षा (Polar Sun-synchronous Orbit) में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह विभिन्न कक्षाओं में बहु-उपग्रहों को एक साथ ले जाने में सक्षम है। यही कारण है कि कई देशों के छोटे और मध्यम सैटेलाइट्स को यह एक साथ अंतरिक्ष में भेज चुका है।
PSLV की तकनीकी बनावट
पीएसएलवी की बनावट वैज्ञानिकों की सूक्ष्म सोच और तकनीकी चातुर्यता का उदाहरण है। यह चार चरणों (Stages) वाला यान है:
1. पहला चरण (PS1)
ईंधन: ठोस (Solid Fuel – HTPB)
स्ट्रैप-ऑन मोटर्स: 6 (कुछ संस्करणों में 2, 4 या कोई नहीं)
यही वह चरण है जो यान को ज़मीन से ऊपर उठाने की प्रारंभिक शक्ति देता है।
2. दूसरा चरण (PS2)
ईंधन: तरल (Liquid – UDMH + N2O4)
इंजन: Vikas इंजन, भारत में ही निर्मित
3. तीसरा चरण (PS3)
ईंधन: ठोस (Solid Fuel)
यह चरण यान को उच्च गति देने का काम करता है।
4. चौथा चरण (PS4)
ईंधन: तरल (MMH + MON)
इंजन: दो
यह सबसे अंतिम चरण होता है, जो उपग्रह को उसकी सही कक्षा में स्थापित करता है।
पीएसएलवी की प्रमुख विशेषताएँ
ऊँचाई: लगभग 44 मीटर (15 मंजिला इमारत जितना)
वजन: लगभग 295 टन
उपग्रह ले जाने की क्षमता:
1,750 किग्रा तक सूर्य-समकालिक कक्षा में
1,425 किग्रा तक भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा में
विश्वसनीयता दर: 96% से अधिक
लॉन्च स्थल: SDSC श्रीहरिकोटा (Andhra Pradesh)
पीएसएलवी के संस्करण
पीएसएलवी के अलग-अलग संस्करण अलग-अलग मिशनों की ज़रूरत के हिसाब से प्रयोग किए जाते हैं:
PSLV-G (Standard)
PSLV-CA (Core Alone) – बिना स्ट्रैप-ऑन मोटर के
PSLV-XL (Extended) – भारी उपग्रहों के लिए बड़े बूस्टर
PSLV-DL और PSLV-QL – नए संस्करण, जिनमें 2 और 4 बूस्टर होते हैं
PSLV की गौरवशाली उड़ानें
1. चंद्रयान-1 (2008)
भारत का पहला चंद्र मिशन
इसी ने चंद्रमा पर जल के अंश खोजने की नींव रखी
2. मंगलयान (MOM – 2013)
भारत का पहला मंगल मिशन
पहला ऐसा देश जिसने पहले ही प्रयास में मंगल की कक्षा में यान पहुँचाया
लागत: मात्र 450 करोड़ – दुनिया का सबसे सस्ता मंगल मिशन
3. PSLV-C37 (2017)
एक ही उड़ान में 104 उपग्रह लॉन्च कर विश्व रिकॉर्ड बनाया
4. RISAT-2B, CartoSat-3, Astrosat
पृथ्वी अवलोकन और खगोलशास्त्र में क्रांतिकारी योगदान
अंतरराष्ट्रीय सफलता
पीएसएलवी के ज़रिए भारत ने अब तक अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, इज़राइल, दक्षिण कोरिया, फ्रांस, कनाडा, UAE समेत 35+ देशों के 400 से अधिक विदेशी उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे हैं।
ISRO अब एक विश्वसनीय “Satellite Launching Partner” बन चुका है।

PSLV-C61 / EOS-09: 2025 की असफलता
मिशन का उद्देश्य:
EOS-09 उपग्रह को 742 किमी की सूर्य-समकालिक कक्षा में स्थापित करना
लॉन्च तारीख:
18 मई 2025, श्रीहरिकोटा से
क्या हुआ?
तीसरे चरण (PS3) में प्रेशर ड्रॉप हुआ
यान की गति और दिशा में गड़बड़ी आई
अंततः उपग्रह निर्धारित कक्षा में नहीं पहुंच सका
क्या यह PSLV की पहली असफलता थी?
नहीं, यह तीसरी असफलता थी:
1. 1993 (पहला उड़ान – PSLV-D1)
2. 2017 (IRNSS-1H – हीट शील्ड नहीं खुली)
3. 2025 (EOS-09 – प्रेशर ड्रॉप)
PSLV के सफल लॉन्च की श्रृंखला: हर उड़ान एक उपलब्धि
ISRO ने 1994 से लेकर अब तक पीएसएलवी के 50+ से ज्यादा मिशन पूरे किए हैं, जिनमें से ज़्यादातर शत-प्रतिशत सफलता के साथ रहे हैं। यह आंकड़ा खुद बताता है कि पीएसएलवी कितना भरोसेमंद लॉन्च वाहन है।
कुछ अन्य ऐतिहासिक सफलताएँ:
1. PSLV-C11 / Chandrayaan-1 – 22 अक्टूबर 2008
पहला भारतीय चंद्र मिशन
NASA समेत कई अंतरराष्ट्रीय उपकरण इसमें शामिल थे
चंद्रमा पर पानी की खोज
- PSLV-C25 / Mangalyaan (MOM) – 5 नवंबर 2013
भारत का सबसे प्रसिद्ध अंतरग्रही मिशन
सस्ता, सटीक और ऐतिहासिक
3. PSLV-C37 – 15 फरवरी 2017
एक ही बार में 104 उपग्रहों को लॉन्च कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया
6 देशों के उपग्रह इसमें शामिल थे
4. PSLV-C51 – फरवरी 2021
अमेजनिया-1 (ब्राजील) के साथ भारत और विदेश के 18 उपग्रह
इन मिशनों ने न केवल भारत के वैज्ञानिक सामर्थ्य को स्थापित किया, बल्कि विश्व मंच पर भारत को “Trusted Satellite Launcher” बना दिया।
PSLV के माध्यम से भारत का अंतरिक्ष कूटनीति (Space Diplomacy)
ISRO ने पीएसएलवी के ज़रिए विज्ञान को केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय संबंध मजबूत करने के लिए भी किया:
ब्राजील, इज़राइल, यूएई, अमेरिका, फ्रांस, इंडोनेशिया जैसे देशों के उपग्रह पीएसएलवी ने लॉन्च किए हैं।
इससे भारत की “Soft Power Diplomacy” को भी बल मिला है।
“Antrix Corporation” के ज़रिए ISRO को आर्थिक लाभ भी हुआ – हर लॉन्च पर लाखों डॉलर कमाए जाते हैं।
PSLV की विश्वसनीयता क्यों इतनी ज़्यादा है?
1. मिशन में लचीलापन (Mission Flexibility): PSLV विभिन्न भार, विभिन्न कक्षाओं और एकाधिक उपग्रहों को ले जाने में सक्षम है।
2. Low-Cost Efficiency: पश्चिमी देशों की तुलना में लागत बहुत कम होती है।
3. Multiple Payload Deployment: एक ही प्रक्षेपण में 20 से अधिक उपग्रह स्थापित करने की क्षमता।
4. संपूर्ण भारतीय तकनीक: इसमें कोई विदेशी इंजन या टेक्नोलॉजी नहीं – पूरी तरह से “Made in India”
5. ISRO की परीक्षण प्रणाली: हर हिस्से का कठोर परीक्षण होता है। यही कारण है कि विफलता की संभावना बहुत कम होती है।
2025 के बाद पीएसएलवी में होने वाले संभावित बदलाव
1. PSLV-XL का आधुनिकीकरण
नए बूस्टर डिजाइन
ज़्यादा Payload क्षमता
2. AI आधारित लॉन्च निगरानी प्रणाली
लॉन्च से पहले और दौरान पूरी प्रक्रिया की निगरानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा
3. Semi-reusable Systems
कुछ हिस्सों को पुनः उपयोग में लाने पर रिसर्च जारी
पीएसएलवी और भारतीय युवाओं की प्रेरणा
पीएसएलवी केवल वैज्ञानिकों की कामयाबी नहीं है, यह भारत के हर युवा के सपनों की उड़ान है:
यह यान हमें दिखाता है कि संसाधन सीमित हों तो भी अगर दृष्टिकोण वैज्ञानिक और इरादा दृढ़ हो, तो हम अंतरिक्ष को भी छू सकते हैं।
आज भारत के स्कूलों में बच्चे पीएसएलवी के मॉडल बना रहे हैं।
इंजीनियरिंग कॉलेजों के छात्र अपने सैटेलाइट तैयार कर पीएसएलवी से अंतरिक्ष भेजने की तैयारी कर रहे हैं।
क्या पीएसएलवी की जरूरत अब भी है?
भले ही ISRO अब GSLV और SSLV जैसे उन्नत यानों पर ध्यान दे रहा है, लेकिन पीएसएलवी की उपयोगिता अब भी बहुत है:
छोटे देशों के लिए किफायती विकल्प
एक साथ कई उपग्रहों की लॉन्चिंग
प्रायोगिक सैटेलाइट मिशन
कॉमर्शियल लॉन्च
ISRO ने यह भी कहा है कि पीएसएलवी का उपयोग 2027 तक जारी रहेगा क्योंकि यह एक अत्यंत विश्वसनीय लॉन्च वाहन है।
वैज्ञानिकों की मेहनत और पीएसएलवी की आत्मा
पीएसएलवी की सफलता केवल तकनीक की बात नहीं है, यह उन हज़ारों वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीशियनों की मेहनत और विश्वास का फल है, जिन्होंने रात-दिन एक करके यह सपना साकार किया।
महिलाएं, युवाएं, वरिष्ठ वैज्ञानिक – सभी ने बराबर का योगदान दिया
पीएसएलवी के निर्माण से लेकर प्रक्षेपण तक की प्रक्रिया में लगभग 15,000 लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से शामिल होते हैं
PSLV की लॉन्च प्रक्रिया – स्टेप बाय स्टेप
पीएसएलवी का प्रक्षेपण केवल बटन दबाने की क्रिया नहीं है, यह एक सटीक विज्ञान और समर्पण का परिणाम होता है। चलिए, जानते हैं कि यह प्रक्रिया कैसे होती है:
1. मिशन प्लानिंग और सैटेलाइट चयन
सबसे पहले, ISRO वैज्ञानिक मिशन का उद्देश्य तय करते हैं – क्या यह पृथ्वी पर्यवेक्षण है, नेविगेशन है या अंतरिक्ष अनुसंधान?
इसके बाद सैटेलाइट डिज़ाइन और payload तय किया जाता है।
2. रॉकेट असेंबली
पीएसएलवी के चारों स्टेज (S1, S2, S3, S4) को चरणबद्ध ढंग से जोड़ा जाता है।
Solid और Liquid दोनों प्रकार के इंजन का संयोजन किया जाता है।
रॉकेट के हर हिस्से का टेस्ट किया जाता है, ताकि कोई तकनीकी गड़बड़ी न रह जाए।
3. लॉन्च पैड पर ट्रांसपोर्टेशन
विशाल ट्रांसपोर्ट वाहन द्वारा पीएसएलवी को श्रीहरिकोटा स्थित लॉन्च पैड पर ले जाया जाता है।
वैज्ञानिक इसे “Second Home of PSLV” मानते हैं।
4. सैटेलाइट का एकीकरण (Satellite Integration)
रॉकेट के टॉप सेक्शन में सैटेलाइट को बहुत सटीकता से फिट किया जाता है।
यह काम Clean Room में किया जाता है, जहाँ धूल तक नहीं घुस सकती।
5. काउंटडाउन और अंतिम परीक्षण
लॉन्च से 48 घंटे पहले काउंटडाउन शुरू होता है।
हर सेकंड हर डेटा को चेक किया जाता है।
मौसम की स्थिति, हवा की गति, तापमान — सबका विश्लेषण होता है।
6. लॉन्च – Lift-off Moment
जब Zero Time आता है, पीएसएलवी की निचली स्टेज में Solid Fuel जलता है।
ज़मीन से उठते ही पीएसएलवी आसमान में एक सफेद लकीर बनाता है – और भारत का सपना उड़ान भरता है।
7. स्टेज सेपरेशन
एक-एक करके चारों स्टेज अलग हो जाते हैं।
हर स्टेज के बाद रॉकेट की गति और ऊंचाई बढ़ती जाती है।
8. सैटेलाइट डिप्लॉयमेंट
आखिर में सैटेलाइट को उसकी सही कक्षा (Orbit) में स्थापित किया जाता है।
इसके बाद रॉकेट का मिशन पूरा हो जाता है।

PSLV की भविष्य में भूमिका: “New Space India” का स्तंभ
भारत अब केवल वैज्ञानिक मिशन नहीं, बल्कि स्पेस बिजनेस और अर्थव्यवस्था की ओर भी कदम बढ़ा रहा है।
PSLV इसमें कैसे मदद करेगा?
1. स्टार्टअप्स और निजी कंपनियों का लॉन्च माध्यम
कई भारतीय निजी कंपनियाँ अब छोटे उपग्रह बना रही हैं (जैसे Pixxel, Skyroot, Agnikul)
इनके लिए पीएसएलवी सबसे भरोसेमंद माध्यम है
2. कमर्शियल लॉन्च के लिए अंतरराष्ट्रीय ऑर्डर
अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल जैसे देश अब ISRO को अपने छोटे उपग्रह पीएसएलवी से भेजने के लिए पैसे दे रहे हैं
3. PSLV-C55, C56 जैसी आगामी उड़ानें
ये भविष्य में Earth Observation, Agriculture Monitoring और Navigation के लिए हैं
पीएसएलवी और आत्मनिर्भर भारत
पीएसएलवी न केवल तकनीक का प्रतीक है, बल्कि ‘आत्मनिर्भर भारत’ का साक्षात उदाहरण है:
इसमें प्रयुक्त हर पुर्ज़ा भारत में बना होता है
इससे जुड़े सभी वैज्ञानिक भारतीय हैं
यह भारत की प्रतिभा, कौशल और जज़्बे का नतीजा है
ISRO प्रमुख भी कई बार कह चुके हैं:
> “PSLV is not just a rocket, it is India’s confidence in motion.”
PSLV से जुड़े रोचक तथ्य जो कम लोग जानते हैं:
1. PSLV को “Workhorse of ISRO” कहा जाता है – क्योंकि यह सबसे ज्यादा बार और सबसे ज्यादा सफलताएँ लाया है।
2. पीएसएलवी ने भारत के अलावा 35+ देशों के सैटेलाइट लॉन्च किए हैं।
3. इसकी पहली उड़ान आंशिक रूप से असफल थी, लेकिन इसके बाद लगातार सुधार से यह दुनिया के सबसे भरोसेमंद लॉन्च वाहनों में शामिल हुआ।
4. पीएसएलवी की लागत लगभग एक बॉलीवुड फिल्म जितनी होती है, लेकिन इसकी सफलता पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनती है।
5. यह रॉकेट समुद्र से भी लॉन्च किया जा सकता है – भविष्य में ऐसी योजना ISRO के पास है।
PSLV – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1: PSLV क्या है?
उत्तर:
PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle) भारत का एक विश्वसनीय रॉकेट है जिसे ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने विकसित किया है। इसका उपयोग मुख्यतः पृथ्वी की ध्रुवीय कक्षाओं (Polar Orbits) में उपग्रहों को स्थापित करने के लिए किया जाता है।
Q2: पीएसएलवी की पहली उड़ान कब हुई थी?
उत्तर:
पीएसएलवी की पहली उड़ान 20 सितंबर 1993 को श्रीहरिकोटा से हुई थी, लेकिन वह उड़ान आंशिक रूप से असफल रही थी।
Q3: पीएसएलवी को “ISRO का वर्कहॉर्स” क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि पीएसएलवी अब तक सबसे अधिक बार सफलतापूर्वक उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले गया है और ISRO की अधिकतर सफल मिशन उड़ानें इसी रॉकेट से हुई हैं।
Q4: पीएसएलवी कितने चरणों (Stages) वाला रॉकेट है?
उत्तर:
पीएसएलवी एक चार-चरणीय रॉकेट है, जिसमें Solid और Liquid दोनों प्रकार के ईंधन का प्रयोग होता है।
Q5: क्या पीएसएलवी केवल भारत के उपग्रहों को ही लॉन्च करता है?
उत्तर:
नहीं, पीएसएलवी ने अब तक 35 से अधिक देशों के उपग्रह भी लॉन्च किए हैं, जिससे ISRO को कमर्शियल लाभ भी हुआ है।
Q6: पीएसएलवी और GSLV में क्या अंतर है?
उत्तर:
पीएसएलवी हल्के और मध्यम वजन वाले उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में भेजने के लिए होता है।
GSLV भारी उपग्रहों को भू-स्थैतिक कक्षा (Geostationary Orbit) में भेजने के लिए होता है और इसमें क्रायोजेनिक इंजन का प्रयोग होता है।
Q7: पीएसएलवी से कितने सैटेलाइट एक साथ भेजे गए हैं?
उत्तर:
15 फरवरी 2017 को PSLV-C37 मिशन में एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित किए गए थे, जो एक विश्व रिकॉर्ड था।
Q8: PSLV की लॉन्च साइट कहाँ स्थित है?
उत्तर:
पीएसएलवी को श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश) में स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से लॉन्च किया जाता है।
Q9: क्या पीएसएलवी का पुनः उपयोग (Reusable) किया जा सकता है?
उत्तर:
नहीं, वर्तमान समय में पीएसएलवी एक non-reusable launch vehicle है। हालांकि, ISRO भविष्य में Reusable Launch Vehicle पर भी काम कर रहा है।
Q10: पीएसएलवी का भविष्य क्या है?
उत्तर:
पीएसएलवी अब निजी स्टार्टअप्स, अंतरराष्ट्रीय उपग्रहों और पृथ्वी निरीक्षण मिशनों के लिए कम लागत वाला विश्वसनीय माध्यम बन गया है। इसका अपग्रेडेड संस्करण PSLV-C56 और आगे के मिशनों में लगातार इस्तेमाल हो रहा है।
Q11: पीएसएलवी के कितने वेरिएंट (Variants) हैं?
उत्तर:
पीएसएलवी के चार प्रमुख वेरिएंट हैं:
1. PSLV-G (Generic)
2. PSLV-CA (Core Alone)
3. PSLV-XL (Extended Strap-ons)
4. PSLV-DL/QL (2 या 4 बूस्टर वाले संस्करण)
Q12: PSLV की लागत क्या होती है?
उत्तर:
पीएसएलवी की एक उड़ान की औसत लागत लगभग ₹150 से ₹250 करोड़ होती है, जो दुनिया के अन्य रॉकेटों की तुलना में बहुत कम है।
Q13: क्या पीएसएलवी से मानव को भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है?
उत्तर:
नहीं, पीएसएलवी मानवयुक्त मिशनों के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है। भारत का मानव मिशन “गगनयान” GSLV-MkIII (LVM3) से किया जाएगा।
Q14: पीएसएलवी के Solid और Liquid इंजन कैसे काम करते हैं?
उत्तर:
पीएसएलवी में पहले और तीसरे स्टेज में Solid Fuel इंजन, जबकि दूसरे और चौथे स्टेज में Liquid Fuel इंजन का प्रयोग होता है।
Q15: पीएसएलवी की सबसे नई उड़ान कौन सी थी?
उत्तर:
PSLV-C58 (XPoSat मिशन) – इसे जनवरी 2024 में लॉन्च किया गया था। यह भारत का पहला Polarimetry Mission है जो ब्रह्मांडीय एक्स-रे स्रोतों का अध्ययन करेगा।
निष्कर्ष (Conclusion):
PSLV केवल एक प्रक्षेपण यान नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक क्षमता, आत्मनिर्भरता और अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व का प्रतीक है। इसकी विश्वसनीयता, लागत-प्रभाविता और बहुउपयोगिता ने इसे वैश्विक स्तर पर प्रशंसा दिलाई है।
आज पीएसएलवी न केवल भारतीय उपग्रहों को कक्षा में पहुंचाता है, बल्कि यह विश्व के अनेक देशों के उपग्रहों को भी सफलता पूर्वक प्रक्षेपित कर चुका है, जिससे भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में अपनी पहचान बनाई है।
चार चरणों वाले इस रॉकेट की तकनीकी संरचना और विविध वेरिएंट्स इसे लचीला और शक्तिशाली बनाते हैं। पीएसएलवी की सफलता ने ISRO को चंद्रयान, मार्स मिशन और भविष्य के गगनयान जैसे महत्वाकांक्षी मिशनों की नींव दी है।
पीएसएलवी के माध्यम से भारत ने यह सिद्ध कर दिया है कि सीमित संसाधनों के बावजूद भी विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं।
यह न केवल अंतरिक्ष में भारत की उपलब्धियों का गवाह है, बल्कि युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है।
PSLV की यात्रा आगे भी जारी रहेगी—नए मिशनों, नई ऊंचाइयों और अंतरिक्ष में भारत की नई सफलताओं के साथ।
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