Scott Moncrieff आयोग क्या था? जानिए सिंचाई नीति के इस ऐतिहासिक दस्तावेज की पूरी जानकारी
परिचय (Introduction)
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Toggleब्रिटिश भारत के प्रशासनिक ढांचे में कृषि और सिंचाई का अत्यधिक महत्व था। भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, और यहां की विशाल जनसंख्या का जीवन-निर्वाह मुख्यतः कृषि पर निर्भर था। परंतु औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की उपेक्षा और सिंचाई संसाधनों की अनदेखी के कारण उत्पादकता प्रभावित हो रही थी।
इन्हीं समस्याओं के समाधान हेतु ब्रिटिश सरकार ने 1901 में एक विशेष आयोग का गठन किया — “स्कॉट मोनक्रिफ आयोग” (Scott-Moncrieff Commission)। इस आयोग का उद्देश्य भारत में सिंचाई और कृषि सुधारों को वैज्ञानिक, संगठित और प्रशासनिक दृष्टिकोण से मजबूत करना था।

Scott Moncrieff आयोग की स्थापना का उद्देश्य
ब्रिटिश भारत में स्कॉट मोनक्रिफ आयोग की स्थापना एक सुविचारित और रणनीतिक निर्णय था। इसके गठन के पीछे कई मुख्य उद्देश्य थे:
1. सिंचाई व्यवस्था का मूल्यांकन और पुनर्गठन
ब्रिटिश सरकार यह समझ चुकी थी कि भारत में सूखा, मानसून की अनिश्चितता और जल प्रबंधन की विफलता कृषि को अस्थिर बना रहे हैं। आयोग का प्रमुख कार्य था:
मौजूदा सिंचाई प्रणाली की समीक्षा करना
सिंचाई संसाधनों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करना
नए जलाशयों, नहरों और जल वितरण प्रणालियों की संभावनाएं तलाशना
2. कृषि उत्पादकता बढ़ाना
सिंचाई सुधारों के माध्यम से कृषि उपज को बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। आयोग का सुझाव था कि सिंचाई सुधारों से फसल उत्पादन, किसान की आय और खाद्यान्न सुरक्षा में सुधार हो सकता है।
3. वित्तीय व प्रशासनिक अनुशासन सुनिश्चित करना
Scott Moncrieff आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि सिंचाई परियोजनाएं न केवल तकनीकी रूप से सक्षम हों, बल्कि आर्थिक रूप से टिकाऊ और प्रशासनिक रूप से पारदर्शी भी हों।
4. भविष्य की नीतियों के लिए आधार तैयार करना
Scott Moncrieff आयोग की सिफारिशों का उद्देश्य केवल तत्काल समस्याओं का समाधान नहीं था, बल्कि यह एक दीर्घकालिक सिंचाई नीति के निर्माण की नींव रखना था।
पृष्ठभूमि: ब्रिटिश भारत में सिंचाई एवं कृषि सुधारों की आवश्यकता
19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में भारत ने कई भयावह अकाल देखे, जैसे:
1876–78 का ग्रेट फेमिन
1899–1900 का भयंकर सूखा
खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट और भुखमरी की स्थिति
इन आपदाओं ने स्पष्ट कर दिया कि भारत को मानसून आधारित कृषि से निकालकर एक संरचित सिंचाई प्रणाली की ओर बढ़ना होगा।
क्या थीं मुख्य समस्याएं?
समस्या प्रभाव
मानसून पर अत्यधिक निर्भरता अकाल व खाद्य संकट
अपर्याप्त नहर व जल संसाधन सीमित सिंचाई क्षमता
वैज्ञानिक जल प्रबंधन का अभाव असमान क्षेत्रीय विकास
वित्तीय व प्रशासनिक असंगति योजनाओं की विफलता
क्यों जरूरी था एक Scott Moncrieff आयोग?
भारत जैसे विशाल देश के लिए एक समन्वित नीति की आवश्यकता थी।
केंद्र व प्रांतीय सरकारों के बीच दायित्वों का स्पष्ट विभाजन किया जाना जरूरी था।
प्रभावी जल नीति और कृषि सुधारों की दिशा में ठोस कदम उठाना समय की मांग थी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background)
19वीं शताब्दी के अंत में कृषि संकट
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय कृषि पूर्णतः मानसून पर निर्भर थी। 19वीं शताब्दी के अंत में बारिश में भारी असमानता आई, जिससे:
अन्न उत्पादन घटा
ग्रामीण जनता में भूखमरी फैली
खेती की लागत बढ़ी और लाभ घटा
कृषि संकट गहराया
इस संकट के चलते सरकार की आलोचना तेज़ हुई और यह स्पष्ट हुआ कि एक मज़बूत सिंचाई व्यवस्था के बिना कृषि की सुरक्षा संभव नहीं।
भारत में सिंचाई व्यवस्था की दयनीय स्थिति
ब्रिटिश काल के आरंभ में सिंचाई प्रणाली सीमित और असंगठित थी:
अधिकांश सिंचाई मानसून वर्षा, कुओं या नहरों पर आधारित थी, जिनकी मरम्मत नहीं होती थी।
अंग्रेजों ने व्यापारिक लाभ के लिए रेलवे और बंदरगाह तो बनाए, लेकिन सिंचाई में अपेक्षित निवेश नहीं किया।
कुछ क्षेत्रों में नहरें (जैसे गंगा नहर) अवश्य बनीं, लेकिन पूरे देश में इसकी पहुँच नहीं थी।
यह स्थिति सरकार के लिए चिंता का कारण बनी, विशेष रूप से तब जब खाद्यान्न संकट गहराने लगा।
1877-78 का भयंकर अकाल और उसकी प्रतिक्रिया
1877-78 में भारत में एक भयंकर अकाल पड़ा, जिससे लाखों लोग भूख और बीमारी से मारे गए। इस त्रासदी के कारण:
सरकार की नीतियों पर कड़ा प्रश्नचिह्न लगा।
यह स्पष्ट हुआ कि अकाल राहत के बजाय निवारक उपाय (Preventive Measures) जैसे – सिंचाई, भंडारण और कृषि सुधार आवश्यक हैं।
तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिटन के समय भी सिंचाई को लेकर चर्चा हुई, लेकिन ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
इस त्रासदी की गंभीर आलोचना और अकाल आयोगों की सिफारिशों के बाद ब्रिटिश सरकार को सिंचाई क्षेत्र में सुधार हेतु विशेष कदम उठाने की आवश्यकता महसूस हुई।
Scott Moncrieff आयोग का गठन (Formation of the Scott Moncrieff Commission)
1901 में ब्रिटिश सरकार ने एक विशेषज्ञ आयोग का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता कॉलीन कैंपबेल स्कॉट मोनक्रिफ (Colin Campbell Scott Moncrieff) ने की। वे एक अनुभवी इंजीनियर और मिस्र में सिंचाई सुधार के लिए प्रसिद्ध थे।
Scott Moncrieff आयोग का उद्देश्य:
- भारत में सिंचाई व्यवस्था का व्यापक मूल्यांकन करना।
- वर्तमान सिंचाई परियोजनाओं की तकनीकी समीक्षा।
- भविष्य के लिए प्रभावी और व्यावसायिक दृष्टिकोण से टिकाऊ योजनाएँ बनाना।
- सिंचाई को राजस्व उत्पादन के साधन के बजाय कृषि सुरक्षा के रूप में देखना।
Scott Moncrieff आयोग की मुख्य सिफारिशें (Key Recommendations of the Commission)
सिफारिश विवरण
सिंचाई को प्राथमिकता कृषि की रक्षा के लिए सिंचाई परियोजनाओं को राष्ट्रीय प्राथमिकता देने की बात कही गई।
जल संग्रहण की योजना बांधों और जलाशयों के निर्माण को प्रोत्साहित करने की सलाह दी गई।
क्षेत्रीय नहर प्रणाली स्थानीय भूगोल के अनुसार नहरों की योजना बनाना, जिससे अधिकतम कृषि क्षेत्र को लाभ मिल सके।
वित्तीय स्वीकृति में लचीलापन सिंचाई परियोजनाओं को केवल राजस्व लाभ के आधार पर न आंकना।
तकनीकी सुधार प्रशिक्षित इंजीनियरों की नियुक्ति, जल वितरण के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाना।
Scott Moncrieff आयोग का प्रभाव (Impact of the Commission)
अल्पकालिक प्रभाव:
कुछ राज्यों (जैसे पंजाब, मद्रास) में नई सिंचाई परियोजनाएँ शुरू हुईं।
सिंचाई विभागों में तकनीकी सुधार किए गए।
दीर्घकालिक प्रभाव:
आयोग की सिफारिशों ने भारत में आधुनिक सिंचाई नीति की नींव रखी।
बाद के समय में भाखड़ा नांगल, हीराकुंड जैसे बाँधों की योजना इन्हीं विचारों से प्रभावित थी।
आज़ादी के बाद भारत में पंचवर्षीय योजनाओं में सिंचाई प्राथमिक क्षेत्र बना।
Scott Moncrieff आयोग की आलोचना (Criticism of the Commission)
Scott Moncrieff आयोग ने केवल तकनीकी पहलू पर अधिक ध्यान दिया, जबकि ग्रामीण सामाजिक संरचना, भूमि सुधार जैसे मुद्दों की अनदेखी की।
परियोजनाओं के कार्यान्वयन में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी।
कुछ क्षेत्रों में जल वितरण असमान रहा, जिससे समृद्ध वर्गों को अधिक लाभ मिला।
Scott Moncrieff आयोग का गठन (Formation of the Commission)
तत्व विवरण
गठन वर्ष 1901
अध्यक्ष कर्नल स्कॉट मोनक्रिफ (Colonel Scott-Moncrieff) – ब्रिटिश सेना के पूर्व इंजीनियर
नियुक्ति करने वाला निकाय ब्रिटिश भारत सरकार
मुख्य उद्देश्य भारत की सिंचाई परियोजनाओं की व्यापक समीक्षा और सुधारात्मक सुझाव देना
Scott Moncrieff आयोग के अध्यक्ष: कर्नल स्कॉट मोनक्रिफ का परिचय
कर्नल स्कॉट मोनक्रिफ एक कुशल ब्रिटिश इंजीनियर थे, जिन्होंने मिस्र और भारत में कई महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजनाओं पर काम किया था। उनकी विशेषज्ञता खास तौर से जल प्रबंधन और नहर निर्माण में थी। उनके नेतृत्व में आयोग ने तकनीकी दृष्टि से व्यवहारिक सुझाव प्रस्तुत किए जो आगे चलकर भारतीय सिंचाई नीति की रीढ़ बने।

Scott Moncrieff आयोग के उद्देश्य (Objectives of the Commission)
1. सिंचाई व्यवस्था का सर्वेक्षण: पूरे भारत की मौजूदा सिंचाई परियोजनाओं और उनके कार्यान्वयन की समीक्षा करना।
2. नवीन सिंचाई योजनाओं का सुझाव: नए क्षेत्रों में सिंचाई की संभावनाएं खोजना और योजनाएं तैयार करना।
3. वित्तीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन: सिंचाई परियोजनाओं की लागत और लाभ का तुलनात्मक अध्ययन।
4. स्थायी कृषि सहायता: कृषि को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित करने हेतु स्थायी सिंचाई ढांचे का निर्माण।
5. केंद्र और प्रांतीय सरकारों के बीच समन्वय: सिंचाई नीति के लिए स्पष्ट जिम्मेदारियों का निर्धारण।
आयोग की प्रमुख सिफारिशें (Key Recommendations of the Commission)
1. स्थायी सिंचाई नेटवर्क का विकास: वर्षा पर निर्भरता कम करने के लिए नहरों और बांधों का निर्माण।
2. राज्य स्तरीय सिंचाई विभागों का गठन: प्रत्येक प्रांत में एक अलग सिंचाई विभाग स्थापित करने की अनुशंसा।
3. जल स्रोतों की वैज्ञानिक मैपिंग: नदी बेसिन और भूजल स्रोतों की वैज्ञानिक जांच और वर्गीकरण।
4. व्यवस्थित बजट प्रावधान: हर वर्ष सिंचाई पर निश्चित प्रतिशत खर्च सुनिश्चित करना।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में सहभागिता: स्थानीय किसानों को सिंचाई परियोजनाओं में भागीदारी देने की नीति।
Scott Moncrieff आयोग का प्रभाव और परिणाम (Impact and Outcomes)
क्षेत्र प्रभाव
कृषि उत्पादन में वृद्धि सिंचाई उपलब्धता से कृषि पैदावार में उल्लेखनीय सुधार हुआ।
नहरों का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश और मद्रास प्रांत में बड़ी नहर परियोजनाएं शुरू की गईं।
आर्थिक स्थायित्व किसानों की आय में वृद्धि और सूखे से राहत।
प्रशासनिक सुधार सिंचाई विभागों का ढांचा सुदृढ़ किया गया।
नीति निर्माण भारतीय सिंचाई नीति की नींव इस आयोग ने रखी।
Scott Moncrieff आयोग और भारतीय सिंचाई विकास में योगदान
Scott Moncrieff आयोग को भारत में आधुनिक सिंचाई नीति का जनक कहा जा सकता है। इस आयोग ने न केवल तत्कालीन सिंचाई परियोजनाओं को दिशा दी, बल्कि भविष्य की नीतियों का खाका भी तैयार किया।
इसकी सिफारिशों के आधार पर ही 1903 में सिंचाई बजट को अलग श्रेणी में रखा गया और ब्रिटिश भारत में पहली बार जल प्रबंधन को विकास का अभिन्न अंग माना गया।
Scott Moncrieff आयोग से संबंधित अन्य ऐतिहासिक पहलू (Associated Historical Context)
1899-1900 का दुर्भिक्ष: इस आपदा ने आयोग की आवश्यकता को और अधिक प्रासंगिक बना दिया।
अंग्रेजी नीतियों में बदलाव: पहले सिर्फ राजस्व उगाही के उद्देश्य से बनाई गई नहरें अब कृषि सुधार के लिए उपयोग में लाई गईं।
भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन पर प्रभाव: आयोग की कार्यशैली में पारदर्शिता की कमी होने से कुछ राष्ट्रवादियों ने इसकी आलोचना भी की।
निष्कर्ष (Conclusion)
Scott Moncrieff आयोग भारत के औपनिवेशिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जिसने कृषि और सिंचाई व्यवस्था की दशा-दिशा को गहराई से समझा और आने वाले दशकों की नीतियों की नींव रखी।
1901 में गठित यह आयोग ब्रिटिश भारत की तत्कालीन कृषि समस्याओं के समाधान हेतु स्थापित किया गया था, जो विशेष रूप से सिंचाई व्यवस्था के सुधार पर केंद्रित था।
इस आयोग ने यह स्पष्ट किया कि कृषि उत्पादन की वृद्धि केवल भूमि की उर्वरता पर नहीं, बल्कि प्रभावशाली और संगठित जल आपूर्ति प्रणाली पर भी निर्भर करती है।
Scott Moncrieff आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप सरकार ने सिंचाई में पूंजी निवेश बढ़ाया और कई बड़े बाँध, नहर तथा जल परियोजनाओं को अंजाम दिया गया, जिससे देश के विभिन्न हिस्सों में कृषि का विस्तार संभव हुआ।
हालाँकि, Scott Moncrieff आयोग की आलोचना भी हुई — जैसे कि ग्रामीण भागीदारी की कमी, कुछ क्षेत्रों की उपेक्षा और ब्रिटिश शासन के तहत राजस्व-केंद्रित दृष्टिकोण।
फिर भी, इन सीमाओं के बावजूद, स्कॉट मोनक्रिफ आयोग ने भारत में योजनाबद्ध सिंचाई प्रबंधन की आधारशिला रखी और यह सिद्ध कर दिया कि जल-संसाधनों का सुव्यवस्थित उपयोग ही स्थायी कृषि विकास की कुंजी है।
आज, जब हम जलवायु परिवर्तन, जल संकट, और कृषि में स्थायित्व की बात करते हैं, तब स्कॉट मोनक्रिफ आयोग की रिपोर्ट और उसके सिद्धांत हमें यह सिखाते हैं कि नीतिगत योजनाएं केवल कागज़ पर नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन के साथ ही सार्थक होती हैं।
इस आयोग की ऐतिहासिक सिफारिशें और कार्य अब भी आधुनिक भारत की जल नीति एवं कृषि रणनीति के लिए प्रेरणास्रोत हैं — और यह सिद्ध करता है कि किसी भी राष्ट्र की समृद्धि का मार्ग उसके जल प्रबंधन से होकर गुजरता है।
Scott-Moncrieff Commission – FAQs
Q1: स्कॉट मोनक्रिफ आयोग कब गठित किया गया था?
उत्तर:
1901 में ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा।
Q2: Scott Moncrieff आयोग का अध्यक्ष कौन था?
उत्तर:
सर कॉलिन स्कॉट मोनक्रिफ (Sir Colin Scott-Moncrieff) – एक वरिष्ठ ब्रिटिश इंजीनियर और सिंचाई विशेषज्ञ।
Q3: Scott Moncrieff आयोग गठित करने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
भारत में सिंचाई परियोजनाओं की आर्थिक व्यवहार्यता, तकनीकी दक्षता, और कृषक हितों को ध्यान में रखते हुए नीति निर्माण हेतु सिफारिशें करना।
Q4: Scott Moncrieff आयोग ने किस प्रमुख सिद्धांत की सिफारिश की थी?
उत्तर:
‘Paying Capacity’ का सिद्धांत – किसानों की आर्थिक क्षमता के अनुसार सिंचाई शुल्क तय करना।
Q5: आयोग ने सिंचाई परियोजनाओं को किस प्रकार वर्गीकृत करने की बात कही?
उत्तर:
सिंचाई परियोजनाओं को लाभकारी (productive) और सुरक्षात्मक (protective) श्रेणियों में बाँटने की सिफारिश की।
Q6: Protective Irrigation का क्या अर्थ है?
उत्तर:
ऐसी सिंचाई जो सूखे और वर्षा की कमी के समय में फसलों को बचाने के लिए की जाती है, जिससे कृषक को न्यूनतम उपज मिल सके।
Q7: Scott Moncrieff आयोग ने किस नीति की नींव रखी?
उत्तर:
भारत में जल संसाधनों के न्यायोचित और वैज्ञानिक उपयोग की आधारशिला रखी गई, जिसमें स्थानीय भागीदारी, तकनीकी प्रशिक्षण, और जल संरक्षण को महत्व दिया गया।
Q8: क्या Scott Moncrieff आयोग केंद्र या प्रांतीय स्तर के लिए था?
उत्तर:
यह अखिल भारतीय स्तर पर गठित आयोग था, जिसकी सिफारिशें सभी प्रांतों पर लागू थीं।
Q9: Scott Moncrieff आयोग की रिपोर्ट का भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
किसानों पर सिंचाई कर का दबाव कम हुआ।
स्थानीय जल प्रबंधन संस्थाओं को बढ़ावा मिला।
जल नीति में सामाजिक न्याय की भावना को जोड़ा गया।
कृषि उत्पादन प्रणाली अधिक स्थायी और लाभकारी बनी।
Q10: क्या Scott Moncrieff आयोग आज भी प्रासंगिक है?
उत्तर:
हाँ, जल संकट, कृषि में गिरती उत्पादकता, और स्थायी जल प्रबंधन के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आयोग की सिफारिशें अत्यंत प्रासंगिक हैं।
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