Shipbuilding in India: क्या भारत बन रहा है अगला ग्लोबल शिपिंग सुपरपावर?
भूमिका: समुद्री शक्ति की ओर भारत का कदम
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Toggleभारत एक समुद्र-आवेष्ठित देश है जिसके तीन ओर विशाल समुद्र फैला हुआ है। इसके पास 7516 किलोमीटर लंबा तटीय क्षेत्र है।
इसके बावजूद भारत अब तक वैश्विक स्तर पर Shipbuilding और रिपेयरिंग में वह स्थान नहीं बना पाया है, जो इसकी भौगोलिक स्थिति और क्षमता के अनुसार हो सकता था।
लेकिन अब तस्वीर बदल रही है। केंद्र सरकार ने देश को वैश्विक समुद्री विनिर्माण हब बनाने का संकल्प लिया है, और इसके तहत आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात में बड़ी जमीन का चयन किया गया है Shipbuilding और रिपेयरिंग केंद्रों के लिए।
आंध्र प्रदेश: पूर्वी तट की नई ताकत
भौगोलिक और रणनीतिक स्थिति
आंध्र प्रदेश का समुद्री किनारा भारत में सबसे लंबा है, जो इस राज्य को Shipbuilding हब बनने के लिए स्वाभाविक रूप से उपयुक्त बनाता है। विशाखापत्तनम, काकीनाडा, कृष्णापटनम, और मछलीपट्टनम जैसे बंदरगाह पहले से ही राज्य को समुद्री दृष्टि से सशक्त बनाते हैं।
डुगराजपट्टनम में नया क्लस्टर
राज्य सरकार ने डुगराजपट्टनम (नेल्लोर जिला) में एक बड़े Shipbuilding और रिपेयर हब के लिए लगभग 1000 एकड़ भूमि चिन्हित की है।
यह स्थान चेन्नई-विजाग इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के तहत आता है और कोलकाता से चेन्नई तक जाने वाले समुद्री मार्ग पर भी स्थित है।
राज्य सरकार की नीति और निवेश योजना
आंध्र प्रदेश सरकार ने हाल ही में “मैरीटाइम इन्वेस्टमेंट पॉलिसी” के अंतर्गत निम्नलिखित घोषणाएं की हैं:
10 वर्षों तक कर छूट
शिप रिपेयरिंग यूनिट्स को जल व विद्युत पर 50% सब्सिडी
एंकर इंडस्ट्रीज़ के लिए 500 एकड़ भूमि की पेशकश
स्थानीय MSMEs को जोड़ने के लिए क्लस्टर आधारित इकोसिस्टम
रोजगार और स्थानीय विकास की संभावना
इस परियोजना के तहत 40,000 से अधिक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार पैदा होने की उम्मीद है। साथ ही स्थानीय इंजीनियरिंग कॉलेजों को भी नौसेना और समुद्री उद्योग से जोड़ने की तैयारी है।
तमिलनाडु: दक्षिण भारत का शिपबिल्डिंग इंजन
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और क्षमता
तमिलनाडु का चेन्नई, कट्टुपल्ली और थूथुकुडी जैसे बंदरगाहों के कारण समुद्री व्यापार में ऐतिहासिक योगदान रहा है। यहां पर पहले से मौजूद अदानी पोर्ट और L&T शिपयार्ड पहले ही राज्य को इस क्षेत्र में मजबूती दे रहे हैं।
थूथुकुडी में मेगा प्रोजेक्ट
तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में थूथुकुडी में ₹10,000 करोड़ की लागत से एक मेगा Shipbuilding हब बनाने की घोषणा की है। यह केंद्र भारत की पहली स्टेट-लेवल मैरीटाइम पॉलिसी 2025 का हिस्सा है।
दक्षिण कोरियाई साझेदारी की पहल
तमिलनाडु सरकार और दक्षिण कोरिया की HD Hyundai मिलकर एक उन्नत शिप निर्माण केंद्र बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं। इससे भारत को तकनीकी विशेषज्ञता और वैश्विक ग्राहक मिल सकते हैं।
समुद्री शिक्षा और अनुसंधान
राज्य सरकार ने प्रस्तावित किया है कि कट्टुपल्ली और थूथुकुडी में समुद्री शिक्षण संस्थान और डिज़ाइन सेंटर स्थापित किए जाएंगे, जिससे स्थानीय युवाओं को सीधे रोजगार मिलेगा।

गुजरात: पश्चिमी भारत का समुद्री उद्योग मॉडल
गुजरात मेरीटाइम क्लस्टर की शुरुआत
गुजरात में पहले से मुंद्रा, पिपावाव, भावनगर और जाफराबाद जैसे सक्रिय बंदरगाह हैं। अब राज्य सरकार ने सूरत जिले में एक नया Shipbuilding और रिपेयरिंग क्लस्टर बनाने का निर्णय लिया है।
आर्सेलर मित्तल का बड़ा निवेश
आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया ने गुजरात सरकार के साथ मिलकर ₹5,000 करोड़ का निवेश करने की घोषणा की है, जिसके तहत शिप निर्माण और मरम्मत के लिए अत्याधुनिक केंद्र बनाया जाएगा।
नई Shipbuilding नीति
गुजरात मेरीटाइम बोर्ड (GMB) ने नई पॉलिसी के तहत:
केंद्र सरकार की सब्सिडी के अलावा 10% अतिरिक्त सब्सिडी
समुद्री उपकरण क्लस्टर
डिजाइन और R&D सेंटर
अंतरराष्ट्रीय प्रमाणीकरण और निर्यात सहायता
जैसे प्रावधान शामिल किए हैं।
समुद्री MSME सेक्टर को बढ़ावा
गुजरात सरकार विशेष रूप से स्थानीय छोटे और मध्यम व्यापारियों (MSMEs) को तकनीकी, वित्तीय और बाजार तक पहुंच प्रदान कर रही है, जिससे स्थानीय नौजवान और कारीगर भी इसका हिस्सा बन सकें।
केंद्र सरकार की भूमिका: ‘सागरमाला’ और ‘भारत माला’ परियोजनाएं
केंद्र सरकार की ‘सागरमाला योजना’ का मुख्य उद्देश्य समुद्री व्यापार और पोर्ट कनेक्टिविटी को बढ़ाना है। इसी योजना के तहत:
भारत को ‘शिपिंग सुपरपावर’ बनाने का लक्ष्य
पोर्ट आधारित विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ)
देश के चारों ओर Multi-Modal Logistics Parks
ग्रीन एनर्जी आधारित पोर्ट्स का निर्माण
‘भारत माला’ योजना के माध्यम से इन सभी तटीय क्षेत्रों को हाईवे और रेलवे से जोड़ा जा रहा है।
पर्यावरणीय और सामुदायिक प्रभाव
जहां एक ओर Shipbuilding केंद्रों के निर्माण से आर्थिक उन्नति और रोजगार मिलेगा, वहीं दूसरी ओर पर्यावरणीय संतुलन भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। राज्यों की सरकारें सुनिश्चित कर रही हैं कि:
तटीय पर्यावरण पर न्यूनतम प्रभाव
स्थानीय मछुआरा समुदायों को वैकल्पिक रोजगार
ग्रीन Shipbuilding मटेरियल और अपशिष्ट प्रबंधन तकनीक का उपयोग
चुनौतियां और समाधान
तकनीकी विशेषज्ञता की कमी
समाधान: विदेशी साझेदारी, जैसे कि दक्षिण कोरिया की HD Hyundai, से तकनीकी ट्रांसफर।
निवेशकों का विश्वास जीतना
समाधान: भूमि, बिजली, जल, टैक्स और लॉजिस्टिक्स में सब्सिडी व तेज मंजूरी प्रक्रिया।
वैश्विक प्रतिस्पर्धा
समाधान: सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों से सीखकर लागत, गुणवत्ता और समय-सीमा में सुधार।
भारत को Shipbuilding सुपरपावर बनाने की रणनीति
भारत सरकार ने हाल के वर्षों में समुद्री क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए जो योजना तैयार की है, वह केवल बंदरगाह निर्माण या जहाज़ों की मरम्मत तक सीमित नहीं है।
यह एक संपूर्ण Marine Industrial Ecosystem का निर्माण है। इसमें निम्न बिंदु प्रमुख हैं:
घरेलू रक्षा जहाज़ों का निर्माण
भारत में INS विक्रांत जैसे स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण ने दुनिया को दिखाया कि हम अपनी सुरक्षा जरूरतों के लिए अब आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
गुजरात, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में बनने वाले नए केंद्रों में रक्षा जहाज़ों और पनडुब्बियों के उत्पादन की संभावना भी तलाशी जा रही है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी
जहाँ पहले इस क्षेत्र में सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियाँ (जैसे कि Mazagon Dock, Garden Reach, Cochin Shipyard) सक्रिय थीं, अब सरकार ने निजी कंपनियों जैसे:
L&T Defence
Adani Ports
Reliance Naval & Engineering
Essar Ports
को भी आगे आने के लिए प्रोत्साहित किया है। इन कंपनियों को नई भूमि, तकनीक, नीति और वित्तीय सहायता मिल रही है।
रोजगार और कौशल विकास: युवाओं को मिलेगा नया अवसर
कौशल आधारित रोजगार सृजन
Shipbuilding और शिप रिपेयरिंग दोनों ही अत्यंत तकनीकी क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में वेल्डिंग, मशीनीकरण, इंजन तकनीक, CAD डिजाइन, समुद्री उपकरण निर्माण आदि के लिए विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।
इसलिए भारत सरकार ने Skill India योजना के अंतर्गत “Marine Skill Development Institutes” खोलने की भी योजना बनाई है।

प्रमुख लाभ:
स्थानीय युवाओं को तकनीकी शिक्षा
उद्योगों को प्रशिक्षित श्रमिक
विदेशी कंपनियों के साथ तकनीकी मानकों में सामंजस्य
महिलाओं की भागीदारी
अब इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए विशेष ट्रेनिंग और नीति बनाई जा रही है, जिससे लैंगिक समानता और सामाजिक सशक्तिकरण भी होगा।
आयात पर निर्भरता होगी कम, निर्यात बढ़ेगा
भारत को मिलेगा वैश्विक ऑर्डर
दुनिया में जहाज़ों की मरम्मत और निर्माण के लिए भारत अब एक विकल्प के रूप में उभर रहा है। खासकर मिड-रेंज जहाज़ों और कार्गो कंटेनर के निर्माण के लिए दक्षिण एशिया में भारत का स्थान अब मजबूती से बन रहा है।
एशिया में Cost-effective हब बनने की क्षमता
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश अब महंगे होते जा रहे हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ अब भारत जैसे किफायती और कुशल श्रमिकों वाले देशों की ओर देख रही हैं।
भारत की भूमि लागत, श्रम लागत और रणनीतिक स्थान इसे ‘Affordable Alternative’ बना रहे हैं।
सुरक्षा दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण
भारत की “Act East” और “Security and Growth for All in the Region (SAGAR)” नीति के अंतर्गत समुद्री क्षेत्र को रणनीतिक रूप से भी मजबूत किया जा रहा है।
भारत की नौसेना अब इन शिपयार्ड्स से जल्द और सस्ते में जहाज़ प्राप्त कर सकती है।
समुद्र में रणनीतिक नियंत्रण बनाए रखने के लिए लॉजिस्टिक सपोर्ट तेज़ होगा।
Coastal Surveillance Systems (CSS) और Smart Port Security के जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा को और सशक्त किया जाएगा।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग: टेक्नोलॉजी और बाजार की ओर कदम
भारत अब केवल घरेलू उद्योग पर निर्भर नहीं रहना चाहता। इसके लिए सरकार निम्नलिखित अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों पर कार्य कर रही है:
जापान और कोरिया के साथ सहयोग
भारत सरकार जापान की Mitsubishi Heavy Industries और कोरिया की Samsung Heavy Industries, HD Hyundai के साथ टाई-अप पर कार्य कर रही है।
इससे उन्नत तकनीक का हस्तांतरण होगा।
यूरोप के बाजारों में प्रवेश
भारत सरकार अब यूरोपीय यूनियन और अफ्रीकी देशों को भारतीय Shipbuilding सेवाएँ निर्यात करने की दिशा में पहल कर रही है।
इससे ‘Make in India for the World’ की दिशा में बड़ा कदम होगा।
पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी
जहाज़ों के निर्माण और मरम्मत में भारी मात्रा में धातु, पेंट, तेल और अपशिष्ट निकलते हैं। इस वजह से पर्यावरणीय प्रभाव गहरा हो सकता है।
ग्रीन Shipbuilding का आगाज
भारत अब Low Emission, Hybrid और LNG आधारित जहाज़ों के निर्माण की दिशा में काम कर रहा है।
जल शुद्धिकरण संयंत्र और अपशिष्ट पुनर्चक्रण इकाइयाँ हर केंद्र में अनिवार्य बनाई जाएँगी।
पर्यावरणीय अनुमोदन और CSR
हर प्रोजेक्ट को MoEFCC (पर्यावरण मंत्रालय) से मंजूरी लेनी होगी। साथ ही कंपनियों को अपने CSR फंड से स्थानीय तटीय समुदायों के लिए चिकित्सा, शिक्षा और पुनर्वास की व्यवस्था करनी होगी।
आने वाले 10 वर्षों का रोडमैप
भारत सरकार ने 2035 तक के लिए National Maritime Vision Document जारी किया है, जिसमें निम्नलिखित लक्ष्य रखे गए हैं:
15 मेगा Shipbuilding क्लस्टर
भारत का समुद्री निर्यात $100 बिलियन तक पहुँचना
5 लाख से अधिक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार
50% तक विदेशी निर्भरता में कमी
तटीय राज्यों में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन
Shipbuilding और मरम्मत केंद्र सिर्फ औद्योगिक इकाइयाँ नहीं होतीं, बल्कि वे आसपास के पूरे समाज, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
मछुआरा समुदाय और उनका स्थानांतरण
विशेषकर आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के तटीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में मछुआरा समुदाय निवास करता है। जहाँ भूमि अधिग्रहण हो रहा है, वहाँ:
सरकार ने पुनर्वास और मुआवजा नीति को पारदर्शी बनाने के निर्देश दिए हैं।
मछुआरों के लिए Fishing Harbours और Boat Maintenance Yards भी विकसित किए जा रहे हैं।
बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ, और रोज़गार कौशल विकास केंद्र उनके पुनर्वास क्षेत्रों में अनिवार्य किए गए हैं।
शहरीकरण और आधारभूत ढाँचे का विकास
इन परियोजनाओं के कारण नए शहर, टाउनशिप और आवासीय कॉलोनियाँ बसेंगीं। इससे:
सड़कें, रेल और हवाई संपर्क सुधरेंगे
जल आपूर्ति, स्वच्छता और स्वच्छ ऊर्जा पर निवेश होगा
छोटे व्यवसायों (दूध, किराना, होटल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि) को नए अवसर मिलेंगे
स्थानीय सरकारों और जनता की प्रतिक्रिया
राज्य सरकारों का सक्रिय सहयोग
आंध्र प्रदेश सरकार ने विशाखापट्टनम को “Blue Economy Capital” बनाने का प्रस्ताव रखा है।
तमिलनाडु सरकार तटीय औद्योगिक गलियारे के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय निवेश ला रही है।
गुजरात सरकार पहले से ही समुद्री आर्थिक नीति के तहत कई बंदरगाह-आधारित परियोजनाएँ संचालित कर रही है।
भविष्य की परियोजनाएँ और निष्कर्ष
भारत की समुद्री रणनीति अब आने वाले 25 वर्षों के लिए तैयार है:
2030 तक लक्ष्य: भारत को Top 5 Shipbuilding Nations में शामिल करना
2035 तक Blue Economy का योगदान GDP में 10% तक लाना
2040 तक भारत को वैश्विक Naval Shipbuilding Hub बनाना
निष्कर्ष:
भारत द्वारा आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात जैसे तटीय राज्यों में शिपबिल्डिंग और मरम्मत केंद्रों की स्थापना हेतु चिन्हित भूमि का चयन केवल एक औद्योगिक निर्णय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय रणनीतिक दृष्टिकोण का सशक्त प्रमाण है।
यह पहल आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में एक निर्णायक कदम है, जो देश को न केवल समुद्री क्षेत्र में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाएगा, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन को भी मज़बूती देगा।
इन परियोजनाओं से:
रोज़गार के लाखों अवसर सृजित होंगे,
स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा,
आधारभूत संरचना में व्यापक सुधार आएगा,
और भारत की समुद्री सुरक्षा और व्यापारिक ताकत में अपार वृद्धि होगी।
राज्य सरकारों, केंद्र सरकार और निजी क्षेत्र के सहयोग से यह परिवर्तनकारी योजना आने वाले वर्षों में भारत को वैश्विक Shipbuilding हब की सूची में प्रतिष्ठित स्थान दिला सकती है।
“समुद्री शक्ति” अब भारत की आर्थिक और रणनीतिक शक्ति का अभिन्न अंग बनने जा रही है — और यह युग परिवर्तन का आरंभ है।
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