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ToggleSimon Commission का इतिहास: लाला लाजपत राय की शहादत से लेकर स्वतंत्रता आंदोलन तक
प्रस्तावना:
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!Simon Commission (Indian Statutory Commission), नवंबर 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा स्थापित हुआ, जिसमें केवल सात ब्रिटिश सांसद शामिल थे।
इसका उद्देश्य था 1919 के Government of India Act की समीक्षा करना और भविष्य की संवैधानिक राह तय करना । अध्यक्ष थे Sir John Simon और Clement Attlee, जो बाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने ।
लेकिन इसमें न तो एक भी भारतीय सदस्य था, जिससे भारतीय नेताओं और जनता में भारी आक्रोश व्याप्त हुआ ।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1919 के Montagu–Chelmsford सुधार ने प्रांतीय Diarchy की व्यवस्था की। उस विधि में ग्यारह साल बाद समीक्षा करने की बात कही गई थी।
लेकिन 1927 में Conservative सरकार ने इस समय से पहले आयोग गठित कर दिया। इसका मकसद Labour पार्टी को सत्ता में आने से पहले ब्रितानी नियंत्रण बनाए रखना था ।
Simon Commission का गठन (Formation of Simon Commission)
पृष्ठभूमि:
1919 के Government of India Act के अनुसार, यह प्रावधान था कि 10 वर्षों के भीतर भारत में लागू संवैधानिक सुधारों की समीक्षा के लिए एक आयोग गठित किया जाएगा।
ब्रिटिश सरकार ने इस प्रावधान के अनुसार 1929 में आयोग भेजने का निर्णय लिया था, लेकिन…
> राजनीतिक कारणों से इसे समय से पहले 8 नवंबर 1927 को गठित कर दिया गया।
उद्देश्य:
Simon Commission का प्रमुख उद्देश्य था—
1919 के अधिनियम (Montagu–Chelmsford Reforms) की समीक्षा करना,
भारत के लिए नए संवैधानिक सुधारों की सिफारिशें प्रस्तुत करना।
विवादास्पद निर्णय:
ब्रिटिश सरकार ने आयोग में एक भी भारतीय सदस्य को शामिल नहीं किया।
इसका कारण ब्रिटिश सत्ता का यह तर्क था कि “भारतीय अपनी ही स्थिति का मूल्यांकन नहीं कर सकते।”
यही बात Simon Commission के व्यापक विरोध का कारण बनी और इसे भारतीयों द्वारा “श्वेत आयोग” (All White Commission) कहा गया।
Simon Commission के सदस्य (Members of Simon Commission)
Simon Commission में कुल 7 सदस्य थे – सभी ब्रिटिश संसद से मनोनीत। नीचे उनके नाम, पार्टी और भूमिका दी गई है:
नाम (Name) राजनीतिक दल (Party) भूमिका/पद (Role)
Sir John Simon Liberal अध्यक्ष (Chairman)
Clement Attlee Labour सदस्य – बाद में UK के प्रधानमंत्री (1945–51)
Edward Cadogan Conservative सदस्य
George Lane-Fox Conservative सदस्य
Donald Howard Conservative सदस्य
Vernon Hartshorn Labour सदस्य
Harry Levy-Lawson Liberal सदस्य
विश्लेषण:
तीन सदस्य Conservative पार्टी से थे, दो Labour पार्टी से और दो Liberal पार्टी से।
Sir John Simon एक प्रसिद्ध न्यायविद् थे और कानूनी मामलों में दक्ष माने जाते थे।
Clement Attlee, जिन्होंने बाद में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में भारत की स्वतंत्रता को स्वीकृति दी, इस आयोग के सदस्य थे।
शुरूआती प्रतिक्रिया: अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन की शुरुआत
— मुंबई (3 फ़रवरी 1928) में “Black flags + Simon Go Back” की शुरुआत हुई ।
— कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, सिख लीग आदि ने बहिष्कार किया—एकता की अभिव्यक्ति थी ।
— कुछ सीमित समूह (Punjab Unionists, Justice Party) ने सहयोग जताया, लेकिन राष्ट्रव्यापी संवाद से दूर रहे ।

प्रदर्शन और बलिदान: जनमोर्चे से संताप तक
— Madras: M.A. Ansari की अध्यक्षता में कांग्रेस ने Simon Commission बहिष्कार का निश्चय लिया ।
— Lucknow: Khaliquzzaman द्वारा विरोध के रूप में काइट प्रदर्शन किया गया, जिससे नए तरीके उभरे ।
— Lahore (30 अक्टूबर 1928): Lala Lajpat Rai के नेतृत्व में विरोध हुआ। Superintendent Scott द्वारा लाठीचार्ज में वे घायल हुए और 17 नवंबर 1928 को मृत्यु हो गई—उत्तराधिकारी क्रांतिकारियों(Bhagat Singh et al.) ने अपराधी Saunders की हत्या की । यह आंदोलन एक नयी ऊर्जा की शुरुआत थी।
Simon Commission भारत भ्रमण (1928–29)
— दो चरणों में दौरा: फरवरी–मार्च 1928, और अक्टूबर 1928–अप्रैल 1929 ।
— लोगों से बातचीत—Nehru, Gandhi, Ambedkar जैसी हस्तियों ने समर्थन/विरोध जताया। Gandhi व्यक्तिगत रूप से मौजूद नहीं थे, लेकिन विरोध में सहमति थी ।
— ब्रिटिश पक्ष सुन रहा था, लेकिन जनता की भावना साफ़ थी—“हमारा बंटवारा नहीं।”
रिपोर्ट और प्रमुख सिफारिशें (जून 1930)
— दो खंडों वाली रिपोर्ट तय समय पर प्रकाशित हुई ।
— मुख्य सिफारिशें:
प्रांतीय Diarchy की समाप्ति— Provincial autonomy
लेकिन Governors को व्यापक शक्तियाँ—Discretionary Powers
संघीय ढाँचे की स्वीकृति—Consultative Council of Greater India
Separate electorates जारी—Communal representation अलग-अलग रहेगा ।
Sindh और Burma की स्वतंत्र संप्रभुता
Depressed classes के लिए आरक्षित सीटें और Judicial control
— चूक: Dominion status का कोई उल्लेख नहीं; Parliamentary govt एट सेंटर नहीं, केवल Provinces तक सीमित ।
भारत का जवाब: Nehru Report & Jinnah के 14 बिंदु
1927 में Simon Commission के भारतीय बहिष्कार के बाद, ब्रिटिश सरकार द्वारा कोई भी भारतीय प्रतिनिधित्व स्वीकार न करना एक गहरा राजनीतिक संकट बन गया। ऐसे में भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश संवैधानिक प्रस्तावों के जवाब में स्वदेशी संविधान का प्रारूप तैयार करने का निर्णय लिया। परिणामस्वरूप सामने आई:
नेहरू रिपोर्ट (1928): Motilal Nehru की अध्यक्षता में स्वराज्य के लिए पहला भारतीय संविधान मसौदा।
जिन्ना के 14 बिंदु (1929): मुस्लिम लीग द्वारा प्रस्तुत अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा हेतु घोषणापत्र।
नेहरू रिपोर्ट (Nehru Report 1928)
नेहरू रिपोर्ट का पृष्ठभूमि
Simon Commission में भारतीय अनुपस्थिति के विरोधस्वरूप, 1928 में All Parties Conference बुलाई गई।
एक संविधान मसौदा समिति गठित हुई, जिसकी अध्यक्षता Motilal Nehru और सचिव Jawaharlal Nehru थे।
प्रमुख सदस्य
Motilal Nehru (Chairman)
Jawaharlal Nehru (Secretary)
Tej Bahadur Sapru
Subhash Chandra Bose
Annie Besant
M. S. Aney
G. R. Pradhan
नेहरू रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें
1. डोमिनियन स्टेटस (Dominion Status)
भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमंडल में एक स्वायत्त राष्ट्र के रूप में मान्यता दी जाए।
2. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
सभी नागरिकों को बराबरी, धार्मिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और समान अवसर प्राप्त हो।
3. धर्मनिरपेक्षता (Secularism)
राज्य किसी धर्म को संरक्षण नहीं देगा; धर्म और राजनीति पृथक होंगे।
4. एकल नागरिकता और समान कानून
भारत में सभी के लिए एक समान नागरिकता, एक कानून व्यवस्था।
5. संघीय शासन प्रणाली
भारत में एक केंद्रीकृत संघीय ढाँचा स्थापित हो।
6. भाषायी आधार पर प्रांत
भाषा के आधार पर राज्यों का गठन किया जाए।
7. अलग निर्वाचिका का विरोध
नेहरू रिपोर्ट ने Separate Electorates (अलग-अलग समुदायों के लिए अलग मतदान) का विरोध किया।
विशेष बातें
पहली बार भारत में भारतीयों द्वारा भारतीयों के लिए संविधान लिखा गया।
रिपोर्ट में Dominion Status की माँग को केंद्र में रखा गया, ना कि पूर्ण स्वतंत्रता।
जिन्ना के 14 बिंदु (Jinnah’s Fourteen Points, 28 मार्च 1929)
पृष्ठभूमि
Muslim League ने नेहरू रिपोर्ट को मुस्लिम हितों के लिए खतरा बताया।
Muhammad Ali Jinnah ने 28 मार्च 1929 को दिल्ली में 14 सूत्रीय प्रस्ताव रखा, जिससे मुस्लिम समुदाय की मांगें और सुरक्षा का आधार बनाया जा सके।
जिन्ना के 14 बिंदु
क्रम बिंदु संक्षिप्त विवरण
1. भारत को संघीय राज्य बनाना चाहिए सभी प्रांतों को स्वायत्तता दी जाए
2. सभी धार्मिक समुदायों को समान स्वतंत्रता मिले पूजा, रीति-रिवाज, प्रचार की आज़ादी
3. अल्पसंख्यकों को सुरक्षा मिले सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक स्वतंत्रता
4. सभी धर्मों को समान संरक्षण किसी को प्राथमिकता नहीं
5. सभी समुदायों को समान अधिकार नौकरी, शिक्षा, संस्कृति में भेदभाव नहीं
6. अल्पसंख्यकों को पर्याप्त संरक्षण राजनीतिक प्रतिनिधित्व
7. सभी समुदायों को धार्मिक स्वतंत्रता स्वतंत्रता से धर्म प्रचार
8. मुस्लिमों को अपने धर्म अनुसार जीवन का अधिकार शरीयत कानून पर चलने की स्वतंत्रता
9. मुस्लिमों को अलग निर्वाचिका का अधिकार प्रतिनिधित्व हेतु
10. सभी को धार्मिक स्वतंत्रता में समान अधिकार जबरन धर्मांतरण नहीं
11. मुस्लिमों को सरकारी नौकरियों व शिक्षा में अवसर बराबरी के अधिकार
12. मुस्लिमों को अपनी संस्कृति, सभ्यता और भाषा का संरक्षण उर्दू भाषा की रक्षा
13. मुस्लिमों को वैयक्तिक कानून और धार्मिक संस्था शरीयत का सम्मान
14. मुस्लिमों को पृथक रूप से धार्मिक और राष्ट्रीय जीवन जीने की स्वतंत्रता मुस्लिम पहचान की रक्षा
तुलना: नेहरू रिपोर्ट बनाम जिन्ना के 14 बिंदु
विषय नेहरू रिपोर्ट जिन्ना के 14 बिंदु
डोमिनियन स्टेटस समर्थन अप्रासंगिक
अलग निर्वाचिका विरोध समर्थन
धर्मनिरपेक्षता समर्थन सांस्कृतिक अलगाव की वकालत
एकल नागरिकता समर्थन समुदाय-आधारित प्रतिनिधित्व
अल्पसंख्यक अधिकार सीमित समर्थन विस्तृत समर्थन
आगे की राह: Round Table Conferences & GovernmeTimeline India Act 1935
Round Table Conferences
ब्रिटिश सरकार द्वारा आयोजित Round Table Conferences (1930–1932) का उद्देश्य था भारत के राजनीतिक भविष्य को लेकर व्यापक विचार-विमर्श करना।
मुख्य उद्देश्य:
Simon Commission (1930) की रिपोर्ट के आधार पर संवैधानिक सुधारों को अंतिम रूप देना।
भारतीय नेताओं, समुदायों और ब्रिटिश प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाना।
भारत में शासन प्रणाली का पुनर्गठन करना ताकि राजनीतिक असंतोष को शांत किया जा सके।
तीनों गोलमेज सम्मेलनों की विस्तार से जानकारी
पहला गोलमेज सम्मेलन (नवंबर 1930 – जनवरी 1931)
समय और स्थान:
लंदन, 12 नवंबर 1930 – 19 जनवरी 1931
भागीदार:
ब्रिटिश सरकार
Indian Princes (राजे-महाराजे)
मुस्लिम लीग, सिख, अछूत प्रतिनिधि (डॉ. भीमराव अंबेडकर)
Indian National Congress ने भाग नहीं लिया क्योंकि गांधी जेल में थे और कांग्रेस पर प्रतिबंध था।
प्रमुख बिंदु:
भारत को federation बनाने पर चर्चा
Provincial Autonomy को समर्थन
Communal Electorates पर मतभेद
निष्कर्ष:
कोई ठोस निर्णय नहीं निकला, पर बातचीत की बुनियाद रखी गई।
दूसरा गोलमेज सम्मेलन (सितंबर – दिसंबर 1931)
समय:
7 सितंबर – 1 दिसंबर 1931
भागीदार:
इस बार महात्मा गांधी ने एकमात्र कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया (Gandhi–Irwin Pact के बाद)
BR Ambedkar, Muhammad Iqbal, और अन्य प्रतिनिधि भी मौजूद थे।
मुख्य बहस:
अछूतों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल (Separate Electorates for Depressed Classes)
ब्रिटिश सरकार का रुख कड़ा—Dominion Status के मुद्दे को टालना
गांधी और अंबेडकर के बीच तनाव
परिणाम:
कोई सहमति नहीं बन पाई
गांधी निराश होकर भारत लौटे और आंदोलन की राह पकड़ी
तीसरा गोलमेज सम्मेलन (नवंबर – दिसंबर 1932)
समय:
17 नवंबर – 24 दिसंबर 1932
विशेष बातें:
कांग्रेस ने भाग नहीं लिया
केवल नाममात्र की चर्चाएं
British Government ने एकतरफा निर्णय लेना शुरू किया
निष्कर्ष:
गंभीर मतभेद और राजनीतिक असफलता के चलते गोलमेज सम्मेलन का महत्व समाप्त हो गया
ब्रिटिश सरकार ने एकतरफा ढंग से 1935 का कानून लाने का निश्चय किया
Government of India Act 1935 की सम्पूर्ण जानकारी
परिचय
Government of India Act 1935 भारत के संवैधानिक इतिहास का सबसे बड़ा और विस्तृत कानून था। इसका उद्देश्य ब्रिटिश इंडिया में राजनीतिक व्यवस्था को स्थायित्व देना और स्वशासन की दिशा में बढ़ाना था।
मुख्य विशेषताएँ (Features of GOI Act 1935)
1. प्रांतीय स्वायत्तता (Provincial Autonomy)
Diarchy (द्वैध शासन) समाप्त कर दी गई
प्रांतों को अधिक स्वतंत्रता दी गई
मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल अब विधान सभा को उत्तरदायी होंगे
2. संघीय ढाँचा (Federal Structure)
British India + Princely States = Indian Federation प्रस्तावित
हालांकि Princely States ने शामिल होने से इंकार कर दिया, इसलिए संघीय ढाँचा कभी लागू नहीं हो सका
3. बाइकेमरलिज़्म (Bicameralism)
केंद्र और कई प्रांतों में दो सदनों की व्यवस्था:
Legislative Assembly
Legislative Council
4. गवर्नर जनरल की शक्ति
केंद्र में Governor-General के पास विशेष निर्णायक शक्तियाँ
Emergency Powers, Ordinance जारी करने की शक्ति
भारतीय मंत्रियों की सलाह लेने की बाध्यता नहीं
5. विस्तृत विषय सूची (Subjects Division)
तीन सूची बनाई गईं:
- Federal List
- Provincial List
- Concurrent List
6. प्रत्यक्ष चुनाव (Direct Elections)
भारत में पहली बार प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली लागू हुई
महिलाओं को भी सीमित मतदान का अधिकार मिला
7. बर्मा विभाजन (Burma Separation)
बर्मा (अब म्यांमार) को भारत से अलग कर दिया गया
8. सिंध का पृथक्करण
सिंध को बॉम्बे प्रेसीडेंसी से अलग कर दिया गया
9. फौज और विदेश नीति पर कोई अधिकार नहीं
भारतीय सरकार को अब भी सेना और विदेश नीति में नियंत्रण नहीं मिला
Act 1935 के प्रभाव और महत्व
बिंदु विवरण
सकारात्मक प्रांतीय स्तर पर जनता को ज्यादा अधिकार मिले, चुनाव प्रणाली विकसित हुई
नकारात्मक केंद्र में ब्रिटिश सत्ता का वर्चस्व बना रहा, भारतीयों को केंद्रीय सरकार में अधिकार नहीं
शैक्षणिक मूल्य यही कानून स्वतंत्र भारत के संविधान का मूल आधार बना

Simon Commission से लेकर Act 1935 तक का Timeline
वर्ष घटना
1919 Government of India Act 1919 (Montagu–Chelmsford Reforms) लागू
1927 Simon Commission की स्थापना
1928 Lala Lajpat Rai का बलिदान
1930 पहला गोलमेज सम्मेलन
1931 दूसरा गोलमेज सम्मेलन, गांधी की भागीदारी
1932 तीसरा गोलमेज सम्मेलन, कांग्रेस का बहिष्कार
1935 Government of India Act पारित
Sir John Simon और Clement Attlee की दृष्टि
— Simon: कानूनी विशेषज्ञ, लेकिन विधि और भारतीय भावनाओं के बीच संतुलन खो गया ।
— Attlee: प्रारंभ में औपचारिक सदस्य रहा, लेकिन भारत के प्रति सहानुभूतिशील, अंततः स्वतंत्रता का समर्थक बना ।
तक़नीकी और सामाजिक विश्लेषण
— जाति प्रश्न: Ambedkar ने Depressed Classes की स्थिति उजागर की—डिप्रेशन, शिक्षा की कमी, सामाजिक भेदभाव ।
— Missionaries और आदिवासी भाग: भूभागीय सलाह में उप-जातीय संदर्भ → मिशनरी गतिविधियाँ बढ़ीं—इसपर आलोचना और सावधानी बरती गई ।
— प्रांतीय पृथक्करण: Sindh, Burma को अलग करने की सिफारिश दी गई—संस्कृति आधारित प्रशासन की दिशा ।
जरूरी उद्धरण & रचनात्मक मिश्रण
> “Simon Go Back”—Yusuf Meherally द्वारा रचित, विरोध के सबसे प्रसिद्ध नारे में से एक ।
“Lajpat Rai का बलिदान हमें याद दिलाता है कि संघर्ष केवल शब्दों में नहीं”—लोक भावना का सार।
दीर्घकालिक प्रभाव
राजनीतिक चेतना जागी → Complete Independence (Lahore 1929) की मांग हुई ।
Civil Disobedience Movement (1930) की नींव तैयार हुई।
1937 की प्रांतीय चुनाव में कांग्रेस की जीत … भविष्य के स्वतंत्र भारत का प्रारूपण।
निष्कर्ष: Simon Commission – विरोध से बदलाव तक की यात्रा
Simon Commission भारतीय इतिहास में सिर्फ एक संवैधानिक समिति नहीं थी, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐसा प्रेरणास्त्रोत बनी, जिसने जनता को राजनीतिक रूप से अधिक सजग, संगठित और स्वाभिमानी बनाया।
यह आयोग, जो भारतीयों की भागीदारी के बिना गठित किया गया था, स्वतः ही उपनिवेशवादी सोच का प्रतीक बन गया।
इस आयोग के बहिष्कार ने एक नई राष्ट्रीय एकता को जन्म दिया—जहाँ कांग्रेस, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और कई क्षेत्रीय दल एक साथ खड़े हुए। “Simon Go Back” केवल एक नारा नहीं था, वह भारत की राजनीतिक चेतना की आवाज बन चुका था।
लाला लाजपत राय की शहादत और भगत सिंह के प्रतिशोध ने इस संघर्ष को आंदोलन से क्रांति की ओर मोड़ दिया। वहीं, कांग्रेस द्वारा प्रस्तुत नेहरू रिपोर्ट और जिन्ना के 14 सूत्रीय कार्यक्रम ने भारतीय राजनीति को भविष्य के भारत के नक्शे की ओर अग्रसर किया।
हालाँकि Simon Commission की रिपोर्ट ने कुछ महत्वपूर्ण प्रशासनिक सुधार सुझाए—जैसे प्रांतीय स्वायत्तता और संघीय ढाँचा—लेकिन उसमें सबसे बड़ा अभाव था: भारत को डोमिनियन स्टेटस या स्वतंत्रता देने की प्रतिबद्धता।
इस असफलता ने ही भारत को 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की घोषणा की ओर प्रेरित किया। यह घटना कालांतर में नमक सत्याग्रह, दांडी यात्रा, और भारत छोड़ो आंदोलन का मार्ग प्रशस्त करती है।
अंततः, साइमन कमीशन का सबसे बड़ा योगदान यह था कि इसने भारत को यह एहसास कराया कि जब तक उसकी क़ानून-व्यवस्था, संविधान और शासन उसके अपने हाथों में नहीं होगा, तब तक स्वतंत्रता अधूरी ही मानी जाएगी।
इसलिए साइमन कमीशन भारतीय इतिहास में एक “प्रतिक्रिया से प्रेरित क्रांति” का प्रतीक है—जिसने गुलामी की जड़ों को हिलाकर रख दिया और आज़ादी की लौ को और तेज कर दिया।
Simon Commission – Frequently Asked Questions (FAQs)
1. Simon Commission क्या था?
उत्तर:
Simon Commission, जिसे “Indian Statutory Commission” भी कहा जाता है, ब्रिटिश सरकार द्वारा 1927 में गठित एक समिति थी।
इसका उद्देश्य 1919 के Government of India Act की समीक्षा करना और भारत में भविष्य के संवैधानिक सुधारों की सिफारिश करना था।
2. Simon Commission में भारतीयों को शामिल क्यों नहीं किया गया था?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने इस आयोग में केवल सात ब्रिटिश सांसदों को शामिल किया और किसी भी भारतीय को नहीं चुना।
इसका कारण यह था कि ब्रिटिश सत्ता भारतीयों को नीतिगत निर्णयों में शामिल नहीं करना चाहती थी। इससे भारतीयों को अपमान महसूस हुआ और व्यापक विरोध शुरू हुआ।
3. Simon Commission का भारत में विरोध क्यों हुआ?
उत्तर:
आयोग में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था, जो भारतवासियों को आत्मसम्मान के खिलाफ लगा। इसके अतिरिक्त, आयोग के उद्देश्यों को भारत की जनता और नेताओं से बिना परामर्श तय किया गया।
इसलिए पूरे भारत में “Simon Go Back” के नारे लगे और इसका व्यापक विरोध हुआ।
4. Simon Commission कब भारत आया था?
उत्तर:
Simon Commission 3 फरवरी 1928 को भारत आया। मुंबई (बंबई) में उसके आगमन पर व्यापक विरोध और “Simon Go Back” के नारे लगे।
5. “Simon Go Back” का नारा किसने दिया था?
उत्तर:
यह नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी Yusuf Meherally ने दिया था, जिन्होंने बाद में “Quit India” नारे की भी रचना की।
6. लाला लाजपत राय की मृत्यु का Simon Commission से क्या संबंध था?
उत्तर:
लाला लाजपत राय ने लाहौर में Simon Commission के विरोध में नेतृत्व किया। 30 अक्टूबर 1928 को पुलिस लाठीचार्ज में वे गंभीर रूप से घायल हो गए और 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। इसे ब्रिटिश दमन का प्रतीक माना गया।
7. Simon Commission की रिपोर्ट कब आई और क्या सिफारिशें थीं?
उत्तर:
Simon Commission की रिपोर्ट जून 1930 में प्रकाशित हुई। इसमें प्रांतीय Diarchy समाप्त करने और प्रांतीय स्वायत्तता देने की सिफारिश की गई, लेकिन Dominion Status का उल्लेख नहीं था। यह रिपोर्ट भी भारतीयों को अस्वीकार्य लगी।
8. Simon Commission के विरोध का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
Simon Commission के विरोध ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई गति दी। इसके विरोध से प्रेरित होकर Nehru Report (1928) बनी और आगे चलकर पूर्ण स्वराज (Complete Independence) की मांग को बल मिला।
9. Simon Commission की रिपोर्ट का कानूनी प्रभाव क्या हुआ?
उत्तर:
Simon Commission की रिपोर्ट और उसके बाद के Round Table Conferences ने मिलकर Government of India Act 1935 को जन्म दिया, जिसने भारतीय संविधान की नींव रखी।
10. Simon Commission में कौन-कौन सदस्य थे?
उत्तर:
Simon Commission के प्रमुख सदस्य थे:
- Sir John Simon (अध्यक्ष)
- Clement Attlee
- Edward Cadogan
- Vernon Hartshorn
- Harry Levy‑Lawson
- George Lane‑Fox
- Donald Howard
11. क्या डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने Simon Commission का समर्थन किया?
उत्तर:
हाँ, डॉ. अम्बेडकर ने दलित समुदाय की स्थिति को लेकर आयोग के सामने अपनी बात रखी और सामाजिक समानता की आवश्यकता पर बल दिया। वे Simon Commission के सामने उपस्थित हुए, लेकिन उन्होंने भारतीय नेताओं के बहिष्कार से खुद को अलग रखा।
12. Simon Commission की विफलता का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर:
Simon Commission की सबसे बड़ी विफलता थी भारतीयों को शामिल न करना, जिससे जनता में असंतोष और नेताओं में विरोध की लहर फैल गई। इसके अलावा रिपोर्ट में Dominion Status न देना और Separate Electorates जारी रखना भी अस्वीकार्य था।
13. Simon Commission के बाद कौन-सा संविधान मसौदा सामने आया?
उत्तर:
Simon Commission के विरोध में भारतीय नेताओं ने 1928 में Nehru Report प्रस्तुत की, जो पहला भारतीयों द्वारा तैयार किया गया संविधान मसौदा था।
14. Simon Commission और भारत की स्वतंत्रता के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:
Simon Commission भारतीयों को यह समझाने में सफल रहा कि ब्रिटिश शासन से वास्तविक स्वतंत्रता केवल स्वयं निर्णय लेने की शक्ति से ही संभव है। इसने भारतीयों में आत्मनिर्भरता और पूर्ण स्वतंत्रता (Purna Swaraj) की भावना को जन्म दिया।
15. Simon Commission और Government of India Act, 1935 में क्या संबंध है?
उत्तर:
Simon Commission की सिफारिशों और उसके बाद हुई Round Table Conferences के आधार पर 1935 का कानून बनाया गया। यह British India का सबसे बड़ा संवैधानिक सुधार था जिसने भारतीय प्रशासन को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया।
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