Uniform Civil Code in Uttarakhand: 1.5 लाख आवेदन के साथ एक नई क्रांति की शुरुआत!
भूमिका: समानता की ओर बढ़ता उत्तराखंड
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Toggle27 जनवरी 2025 को उत्तराखंड एक ऐतिहासिक कदम की ओर बढ़ा। भारत में पहली बार कोई राज्य Uniform Civil Code (UCC) लागू करने में सफल हुआ।
Uniform Civil Code ने राज्य में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और लिव-इन संबंधों को लेकर समान कानून का ढांचा तैयार किया। इससे पहले, ये सभी व्यवस्थाएं धर्म-जाति आधारित व्यक्तिगत कानूनों के अधीन आती थीं।
सिर्फ चार महीनों में, 1.5 लाख से अधिक नागरिकों ने इस कानून के अंतर्गत आवेदन जमा किए — यह इस बात का प्रमाण है कि जनता कितनी तेजी से इस बदलाव को अपना रही है।
लेकिन यह परिवर्तन अचानक नहीं हुआ, इसके पीछे दो साल की मेहनत, हजारों बैठकों, सुझावों और जागरूकता अभियानों की पूरी एक यात्रा रही है।
Uniform Civil Code (UCC) क्या है?
Uniform Civil Code एक ऐसा कानून है जो सभी नागरिकों के लिए समान सिविल नियम बनाता है — चाहे उनका धर्म, जाति या समुदाय कुछ भी हो। भारत का संविधान इसके पक्ष में है (अनुच्छेद 44), लेकिन अभी तक इसे पूरे देश में लागू नहीं किया गया है।
उत्तराखंड ने इसकी शुरुआत कर इतिहास रच दिया।
शुरुआत कैसे हुई: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रतिबद्धता
2022 में विधानसभा चुनावों के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वादा किया था कि अगर उनकी सरकार दोबारा आती है तो वह Uniform Civil Code लागू करेंगे।
चुनाव जीतने के बाद, उन्होंने तत्काल एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसमें सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस रंजन प्रकाश देसाई सहित कई संवैधानिक विशेषज्ञ और समाजशास्त्री शामिल थे।
दो साल की तैयारी: समिति की गहन रिपोर्ट
समिति ने 2 वर्षों में 43 सार्वजनिक परामर्श आयोजित किए, जिसमें ग्रामीणों से लेकर शहरी नागरिकों तक, महिलाओं से लेकर धार्मिक संगठनों तक, सभी की राय ली गई। कुल मिलाकर 2.33 लाख सुझाव मिले।
समिति की रिपोर्ट 744 पन्नों की थी, जिसमें उन्होंने विस्तृत प्रस्ताव दिए, जैसे:
विवाह की न्यूनतम आयु: महिला के लिए 18 वर्ष और पुरुष के लिए 21 वर्ष
लिव-इन रिलेशनशिप की अनिवार्य पंजीकरण
तलाक की स्पष्ट प्रक्रिया
उत्तराधिकार में बेटा-बेटी को समान अधिकार
डिजिटल और फिजिकल कैंपेन: जनता तक कैसे पहुँचा संदेश
उत्तराखंड सरकार ने इस कानून को ज़मीन पर उतारने के लिए बहुत सुनियोजित अभियान चलाया। इसमें शामिल थे:
1. डिजिटल पोर्टल और मोबाइल ऐप
राज्य सरकार ने एक समर्पित पोर्टल और मोबाइल ऐप लॉन्च किया, जिसमें कोई भी व्यक्ति ऑनलाइन आवेदन कर सकता था। ऐप में सरल भाषा में मार्गदर्शन, फॉर्म भरने की सुविधा, और हेल्पलाइन नंबर्स दिए गए थे।
2. CSC केंद्रों का उपयोग
राज्य के 14,000 से अधिक कॉमन सर्विस सेंटर्स (CSC) को भी जोड़ा गया, जहाँ ग्रामीण क्षेत्रों के लोग भी अपनी जानकारी दर्ज करा सकते थे।
3. जन-जागरूकता अभियान
सामाजिक कार्यकर्ताओं, स्वयंसेवी संगठनों और पंचायतों को जोड़ा गया। गाँव-गाँव जाकर महिलाओं को बताया गया कि यह कानून कैसे उन्हें सशक्त बनाएगा।

चार महीने में 1.5 लाख आवेदन: आंकड़ों की सच्चाई
चार महीनों के भीतर जो आंकड़े सामने आए, वो चौंकाने वाले थे और यह दिखाते हैं कि जनता ने UCC को अपनाया है:
1,40,000+ विवाह पंजीकरण
178 तलाक के आवेदन
28 लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण
इन आंकड़ों में सबसे अधिक विवाह पंजीकरण हुए — यह दिखाता है कि लोग अब शादी को कानूनी रूप से दर्ज कराने में रुचि ले रहे हैं। वहीं लिव-इन जैसे विषयों में संकोच अभी भी बना हुआ है, लेकिन यह शुरुआत है।
महिलाओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण है Uniform Civil Code?
इस कानून का सबसे बड़ा लाभ महिलाओं को मिला है:
तलाक में समान अधिकार
संपत्ति में बेटे-बेटी को समान हिस्सा
लिव-इन रिश्तों में महिला और बच्चे के अधिकार सुरक्षित
यह कानून सिर्फ पुरुषों के बनाए कानून नहीं हैं, यह महिलाओं की आवाज़ और भागीदारी से बना है।
कानूनी चुनौतियाँ और बहस
कुछ लोगों ने इस कानून के कुछ हिस्सों पर सवाल भी उठाए हैं, खासकर लिव-इन रिलेशनशिप की अनिवार्य पंजीकरण को लेकर। कुछ याचिकाएं उत्तराखंड हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
हालांकि सरकार का कहना है कि यह कदम महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी है, ताकि वे असुरक्षित संबंधों का शिकार न हों।
विपक्ष और समर्थन: राजनीतिक दृष्टिकोण
जहाँ सत्तारूढ़ भाजपा ने इस कानून को ऐतिहासिक और राष्ट्र निर्माण के लिए ज़रूरी बताया, वहीं कुछ विपक्षी दलों ने इसे जल्दबाज़ी और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हस्तक्षेप कहा।
हालांकि सर्वे और रिपोर्ट दिखाते हैं कि आम जनता, विशेषकर महिलाएं, इस बदलाव का स्वागत कर रही हैं।
क्या अन्य राज्य भी अपनाएंगे Uniform Civil Code?
उत्तराखंड के बाद गुजरात, असम, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य भी इस कानून को लागू करने पर विचार कर रहे हैं। यदि यह प्रयोग सफल रहा, तो आने वाले वर्षों में इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की संभावना प्रबल हो सकती है।
सामाजिक दृष्टिकोण: समाज पर Uniform Civil Code का प्रभाव
1. पारिवारिक संरचना में बदलाव
अब विवाह, तलाक, गोद लेना, उत्तराधिकार – इन सभी विषयों पर एक समान कानून लागू है। यह सिर्फ कानून नहीं है, यह एक सामाजिक सुधार आंदोलन जैसा है। इससे समाज में स्पष्टता आई है, अनावश्यक भ्रम और विवाद कम होंगे।
पहले एक ही गाँव में एक हिंदू परिवार और एक मुस्लिम परिवार के लिए अलग-अलग कानून होते थे। अब सबके लिए एक समान नियम हैं।
2. इंटरफेथ शादियों में सहूलियत
Uniform Civil Code के कारण दो धर्मों के बीच विवाह अब और आसान हो गया है, क्योंकि अब कोई स्पेशल मैरिज एक्ट नहीं बल्कि एक समान कानून है, जो सभी धर्मों के जोड़ों को कवर करता है।
संवैधानिक पहलू: क्या ये संविधान सम्मत है?
अनुच्छेद 44 का हवाला
भारत के संविधान के भाग 4 (Directive Principles of State Policy) में अनुच्छेद 44 यह स्पष्ट करता है कि राज्य का कर्तव्य है कि वह भारत के सभी नागरिकों के लिए समान सिविल कोड सुनिश्चित करे।
यानी उत्तराखंड सरकार ने संविधान की भावना को ही साकार किया है।
निजता और स्वतंत्रता का मुद्दा
कुछ लोगों ने लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण की अनिवार्यता को ‘Right to Privacy’ के खिलाफ बताया है (के.एस. पुट्टस्वामी केस, 2017 का हवाला दिया गया)।
लेकिन सरकार का कहना है कि यह पंजीकरण केवल सुरक्षा और पारदर्शिता के लिए है — और यह “नियंत्रण” नहीं बल्कि “संरक्षण” है।
Uniform Civil Code: महिला सशक्तिकरण की दिशा में क्रांतिकारी कदम
तलाक में महिलाओं को न्याय
अब महिला को भी पुरुष की तरह तलाक के अधिकार प्राप्त हैं, और न्यायालय तय करेगा कि किसे गुज़ारा भत्ता (maintenance) मिलेगा।
उत्तराधिकार में बराबरी
बेटी को भी अब पैतृक संपत्ति में वही अधिकार मिलेंगे जो बेटे को मिलते हैं। यह बदलाव लिंग समानता (gender equality) की दिशा में मील का पत्थर है।
लिव-इन में महिला और बच्चों की सुरक्षा
अब यदि कोई पुरुष लिव-इन रिलेशन में महिला को धोखा देता है, तो महिला केस कर सकती है। साथ ही यदि इस रिश्ते से संतान होती है, तो उसे भी कानूनी संरक्षण मिलेगा।
अल्पसंख्यक समुदायों की चिंताएं और समाधान
मुस्लिम समुदाय की प्रतिक्रिया
कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसे “धार्मिक कानूनों में हस्तक्षेप” बताया। उनके अनुसार शरीयत कानूनों को किनारे किया गया है।
लेकिन समिति ने स्पष्ट किया कि यह कानून धर्म के पालन में हस्तक्षेप नहीं करता, बल्कि सामाजिक व्यवहार में समानता लाता है।
ईसाई और सिख संगठनों की प्रतिक्रिया
ईसाई समुदाय ने तलाक प्रक्रिया में कुछ स्पष्टीकरण की मांग की है, लेकिन अधिकतर सिख समुदाय ने इसका समर्थन किया है।
युवाओं की सोच: नया भारत, नए कानून
आज के युवा वर्ग ने इस कानून को खुले दिल से अपनाया है। उनके लिए ये एक “समान अवसरों वाला भारत” है।
“अब हम अपने रिश्तों को कानूनी पहचान दे सकते हैं, चाहे हम किसी भी धर्म या जाति से हों।” — एक कॉलेज छात्रा, देहरादून
डिजिटल ट्रैकिंग और पारदर्शिता
Uniform Civil Code के तहत आवेदन करने वाले सभी नागरिकों को डिजिटल ट्रैकिंग नंबर दिया गया है। इससे पारदर्शिता बनी रहती है, और धोखाधड़ी की संभावना कम होती है।
राज्य सरकार एक Uniform Civil Code डैशबोर्ड भी ला रही है, जिससे हर कोई देख सकेगा कि कितने विवाह, तलाक, लिव-इन पंजीकरण हुए।
उत्तराखंड Uniform Civil Code के विशेष प्रावधान: विस्तार से विश्लेषण
Uniform Civil Code लागू करते समय उत्तराखंड सरकार ने कुछ बेहद ठोस और स्पष्ट प्रावधान जोड़े हैं, जो इसे अन्य राज्यों से अलग बनाते हैं:
1. विवाह की न्यूनतम आयु
पुरुष के लिए: 21 वर्ष
महिला के लिए: 18 वर्ष
यह प्रावधान बाल विवाह की प्रथा को रोकने की दिशा में बड़ा कदम है।
2. लिव-इन रिलेशनशिप पंजीकरण
यदि कोई पुरुष और महिला साथ रहते हैं, तो उन्हें 1 महीने के भीतर DM कार्यालय में पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
यह कदम महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा और कानूनी मान्यता के लिए उठाया गया है।
3. तलाक और गुजारा भत्ता
अब पत्नी और पति दोनों को समान रूप से तलाक लेने का अधिकार है।
तलाक के बाद गुजारा भत्ता किसे मिलेगा, यह परिस्थिति पर निर्भर होगा — न कि केवल लिंग के आधार पर।
4. गोद लेने (Adoption)
अब कोई भी नागरिक (धर्म के आधार पर बिना भेदभाव) किसी बच्चे को समान कानूनी प्रक्रिया के तहत गोद ले सकता है।
यह उन दंपतियों के लिए राहत है जिन्हें अपने धर्म के कारण गोद लेने में कठिनाई होती थी।
5. संपत्ति में समान अधिकार
पुत्र और पुत्री — दोनों को समान अधिकार मिलते हैं।
विवाहित और अविवाहित महिला को भी संपत्ति पर अधिकार मिलेगा।

डिजिटल भारत और Uniform Civil Code: टेक्नोलॉजी का योगदान
उत्तराखंड सरकार ने आवेदन प्रक्रिया को डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से भी चालू किया, जिससे:
दूरदराज़ के क्षेत्रों से भी आवेदन आ सके।
पारदर्शिता बनी रही।
लोगों को समय की बचत हुई।
E-Services पोर्टल पर केवल आधार कार्ड और जन्म प्रमाण पत्र से प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।
संभावित चुनौतियाँ और सरकार की तैयारी
1. कानूनी चुनौतियाँ
कुछ याचिकाएं उच्च न्यायालय में लंबित हैं, लेकिन राज्य सरकार ने विस्तृत लीगल स्टडी और विधिक राय के आधार पर बिल पारित किया है।
2. सामाजिक विरोध
कुछ कट्टरपंथी समूहों द्वारा विरोध हुआ, लेकिन अधिकांश जनता और युवाओं ने इसका समर्थन किया है।
3. अन्य राज्यों में विरोधाभास
यदि कोई व्यक्ति दूसरे राज्य में जाकर पुरानी परंपराओं का लाभ लेना चाहता है, तो इसके लिए इंटर-स्टेट कोऑर्डिनेशन की जरूरत होगी — जिस पर काम चल रहा है।
निष्कर्ष: समानता की ओर उत्तराखंड की ऐतिहासिक पहल
उत्तराखंड में Uniform Civil Code (UCC) का लागू होना केवल एक कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों की वास्तविक अभिव्यक्ति है।
यह पहल यह दर्शाती है कि राज्य न केवल महिलाओं, बच्चों और समाज के कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि समाज में समानता, पारदर्शिता और आधुनिकता की ओर भी बढ़ रहा है।
जहां एक ओर 1.5 लाख से अधिक लोगों द्वारा आवेदन करना इस कोड की लोकप्रियता और स्वीकार्यता को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह बदलाव समाज के हर वर्ग को एक समान कानूनी ढांचा देने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध हो रहा है।
Uniform Civil Code न तो किसी धर्म के खिलाफ है, न परंपराओं के, बल्कि यह नागरिकों को संवैधानिक अधिकारों और समान न्याय का वादा पूरा करता है।
इससे महिलाओं को संपत्ति, विवाह, तलाक और बच्चों के पालन-पोषण में बराबरी का दर्जा मिला है, और युवाओं को अपने रिश्तों को सुरक्षित और कानूनी रूप से मान्यता दिलाने का रास्ता भी।
अब समय है कि अन्य राज्य भी उत्तराखंड के इस साहसी और दूरदर्शी कदम से प्रेरणा लें और एक न्यायपूर्ण, आधुनिक और समावेशी भारत के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ें।
“एक राष्ट्र, एक नागरिक, एक कानून” — यही है एकता और समानता का असली आधार।
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