WMO रिपोर्ट 2025-29: पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने का खतरा
परिचय
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Toggleहमारी पृथ्वी की जलवायु तेजी से बदल रही है, और इसके कारण न केवल पर्यावरण बल्कि मानव जीवन भी गंभीर रूप से प्रभावित हो रहा है।
हाल ही में, विश्व मौसम संगठन (WMO) ने एक महत्वपूर्ण चेतावनी जारी की है जिसमें बताया गया है कि पृथ्वी का औसत तापमान 2025 से 2029 के बीच संभवतः 1.5 डिग्री सेल्सियस के बढ़ोतरी के लक्षित सीमा को पार कर सकता है।
यह सीमा पेरिस समझौते के तहत निर्धारित की गई थी, ताकि वैश्विक तापमान वृद्धि को नियंत्रित किया जा सके और जलवायु परिवर्तन के खतरों को कम किया जा सके।
विश्व मौसम संगठन (WMO) क्या है?
विश्व मौसम संगठन (WMO) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जो विश्व के देशों के बीच मौसम विज्ञान, जलवायु, और जल विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का काम करती है।
WMO नियमित रूप से जलवायु से संबंधित रिपोर्ट और पूर्वानुमान जारी करता है जो सरकारों, शोधकर्ताओं, और नीति निर्धारकों के लिए अहम होते हैं।
2024 में WMO ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि अगर वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया गया, तो हम 1.5°C से अधिक तापमान वृद्धि का सामना कर सकते हैं, जो कि पर्यावरण और मानव जीवन के लिए अत्यंत खतरनाक होगा।
पेरिस समझौता और 1.5°C की सीमा का महत्व
2015 में हुए पेरिस जलवायु समझौते का मुख्य उद्देश्य था ग्लोबल वार्मिंग को 2°C से नीचे, और जहां तक संभव हो, 1.5°C तक सीमित करना। इस लक्ष्य के पीछे कारण यह है कि 1.5°C की वृद्धि से अधिक तापमान पर पहुंचने पर:
समुद्र के स्तर में खतरनाक वृद्धि हो सकती है,
कटाई-छंटाई, सूखा और बाढ़ जैसे आपदाओं की आवृत्ति बढ़ सकती है,
जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान हो सकता है,
मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
1.5°C की यह सीमा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे पार करने से पृथ्वी के प्राकृतिक और मानव-निर्मित संसाधनों पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।
WMO की ताज़ा रिपोर्ट में क्या कहा गया है?
WMO की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि: अगले पांच वर्षों (2025-2029) में पृथ्वी का औसत तापमान 1.5°C की सीमा को पार कर सकता है, कम से कम एक या दो बार।
तापमान वृद्धि की संभावना: 40% से अधिक संभावना है कि वैश्विक तापमान इस अवधि के दौरान 1.5°C की सीमा को पार कर जाएगा।
कारण: इसके लिए मुख्य कारण मानवीय गतिविधियों से निकलने वाले ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) का अत्यधिक उत्सर्जन है।
प्राकृतिक कारक: वोल्केनो विस्फोट, सूर्य की सक्रियता, और महासागरों का प्रभाव भी तापमान वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
तापमान वृद्धि का क्षेत्रीय असर: कुछ क्षेत्र जैसे आर्कटिक और भूमध्य रेखा के आसपास के इलाकों में तापमान वृद्धि तेजी से हो रही है।
WMO: पृथ्वी के तापमान में पिछले दशकों का रुझान
पिछले सौ सालों में पृथ्वी का तापमान लगभग 1.1°C बढ़ चुका है। यह वृद्धि मुख्यतः औद्योगिक क्रांति के बाद मानवीय गतिविधियों के कारण हुई है। कारखानों, वाहनों, और ऊर्जा उत्पादन में जीवाश्म ईंधनों के जलाने से ग्रीनहाउस गैसों का स्तर आसमान छू रहा है।
पिछले 10 वर्षों (2010-2020) में तापमान वृद्धि दर, पिछले 30 सालों की तुलना में अधिक तेज रही है। इसका कारण है बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, वनों की कटाई, और ऊर्जा की बढ़ती मांग।
1.5°C की सीमा पार करने के प्रभाव
अगर वैश्विक तापमान 1.5°C से अधिक बढ़ जाता है, तो इसके कई गंभीर प्रभाव होंगे:
समुद्र स्तर में वृद्धि
तापमान वृद्धि के कारण ग्लेशियर और आर्कटिक के बर्फ के टुकड़े पिघलेंगे, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ेगा। इससे तटीय क्षेत्र और द्वीपसमूह खतरे में होंगे। कई लाखों लोग विस्थापित हो सकते हैं।
चरम मौसम की घटनाएं
गर्मी की लहरें, बाढ़, सूखा, और जंगल की आग जैसी घटनाएं अधिक बार और तीव्रता के साथ होंगी। इससे कृषि, जल स्रोत, और जीवन पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
जैव विविधता पर खतरा
तापमान वृद्धि के कारण कई प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर पहुंच सकती हैं। समुद्री जीवन और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को भारी नुकसान होगा।
मानव स्वास्थ्य
गर्मी की लहरें, संक्रमण रोगों में वृद्धि, और खाद्य सुरक्षा पर संकट जैसी समस्याएं मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करेंगी।
WMO के अनुसार वैश्विक तापमान पर प्राकृतिक और मानव निर्मित कारकों का प्रभाव
WMO रिपोर्ट में बताया गया है कि तापमान वृद्धि पर दो मुख्य प्रकार के कारक प्रभाव डालते हैं:
मानव गतिविधियां: जीवाश्म ईंधन जलाना, औद्योगिक उत्सर्जन, कृषि से निकलने वाली गैसें, वनों की कटाई आदि।
प्राकृतिक घटनाएं: जैसे वोल्केनो विस्फोट, महासागर के तापमान में बदलाव, और सौर विकिरण में उतार-चढ़ाव।
हालांकि प्राकृतिक कारण भी तापमान को प्रभावित करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियां ही तापमान वृद्धि की वजह हैं।
WMO: ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए वर्तमान कदम और चुनौतियां
वर्तमान प्रयास
कई देश नवीकरणीय ऊर्जा (सोलर, विंड) का उपयोग बढ़ा रहे हैं।
इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
वनों की कटाई रोकने के लिए कई अभियान चल रहे हैं।
पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर कटौती के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं।
चुनौतियां
विकसित और विकासशील देशों के बीच उत्सर्जन में असमानता।
तकनीकी और आर्थिक बाधाएं।
राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव।
तेजी से बढ़ती जनसंख्या और विकासशील देशों की ऊर्जा मांग।
WMO: भविष्य के लिए उम्मीदें और समाधान
WMO की रिपोर्ट हमें चेतावनी देती है कि समय कम है, लेकिन अभी भी सही कदम उठाकर हम इस तापमान वृद्धि को सीमित कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है:
उच्च महत्वाकांक्षी लक्ष्य: CO2 उत्सर्जन को शून्य करने के लिए देश प्रतिबद्ध हों।
स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग: जीवाश्म ईंधनों से तेजी से हटकर हरित ऊर्जा को अपनाना होगा।
प्रदूषण नियंत्रण: औद्योगिक और कृषि प्रदूषण पर कड़ाई से नियंत्रण।
सामाजिक जागरूकता: लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और बचाव के उपायों के प्रति जागरूक करना।
वैश्विक सहयोग: देश-देश के बीच सहयोग बढ़ाना और वित्तीय सहायता देना।
भारत में जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि की स्थिति
भारत भी इस वैश्विक समस्या से अछूता नहीं है। यहां पर:
गर्मी की लहरें अधिक गंभीर और लंबी हो रही हैं।
मानसून पैटर्न में बदलाव और अतिवृष्टि के मामले बढ़े हैं।
हिमालयी ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिससे नदियों का प्रवाह प्रभावित हो रहा है।
कृषि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव और जल संकट गहरा रहा है।
भारत सरकार ने स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में कदम बढ़ाए हैं और 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है।
WMO: वैश्विक तापमान वृद्धि के पीछे ग्रीनहाउस गैसों का योगदान
ग्रीनहाउस गैसें (GHGs) पृथ्वी की वायुमंडल में ऐसी गैसें हैं जो सूरज की ऊर्जा को पृथ्वी की सतह तक आने देती हैं, लेकिन पृथ्वी से उत्सर्जित गर्मी को बाहर निकलने नहीं देतीं। इसके कारण धरती का तापमान बढ़ जाता है। प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में शामिल हैं:
कार्बन डाइऑक्साइड (CO2): जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और औद्योगिक गतिविधियों से निकलती है। यह गैस वैश्विक उत्सर्जन में सबसे बड़ा हिस्सा रखती है।
मीथेन (CH4): कृषि, पशुपालन, और लैंडफिल से उत्सर्जित होती है। मीथेन का ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल CO2 से 25 गुना अधिक होता है।
नाइट्रस ऑक्साइड (N2O): कृषि में उर्वरकों के इस्तेमाल से निकलती है।
फ्लोरोकार्बन: ये मानव निर्मित गैसें हैं जिनका उपयोग रेफ्रिजरेशन और एयर कंडीशनिंग में होता है।
WMO की रिपोर्ट में यह साफ किया गया है कि पिछले दशक में इन गैसों का स्तर रिकॉर्ड ऊँचाई पर पहुंच गया है, जिसके कारण तापमान वृद्धि को रोकना और भी कठिन हो गया है।
WMO: प्राकृतिक कारणों से होने वाली अस्थायी तापमान वृद्धि
हालांकि मानवीय गतिविधियां ग्लोबल वार्मिंग की सबसे बड़ी वजह हैं, लेकिन कुछ प्राकृतिक कारण भी हैं जो तापमान में उतार-चढ़ाव लाते हैं। इनमें शामिल हैं:
वोल्केनो विस्फोट: वायुमंडल में राख और सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ते हैं, जो सूरज की किरणों को रोकते हैं और अस्थायी ठंडक ला सकते हैं।
सौर विकिरण में बदलाव: सूर्य की गतिविधियों में उतार-चढ़ाव होता रहता है, जिससे तापमान प्रभावित होता है।
ओशन सर्कुलेशन: महासागरों की धाराओं में बदलाव जैसे एल नीनो और ला नीना की घटनाएं भी वैश्विक तापमान में बदलाव करती हैं।
ये प्राकृतिक कारक तापमान वृद्धि या कमी को कुछ वर्षों के लिए प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन दीर्घकालीन तापमान वृद्धि का मुख्य कारण मानवजनित उत्सर्जन ही है।
WMO: तापमान वृद्धि के प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण
समुद्री पारिस्थितिकी पर प्रभाव
समुद्र के तापमान में वृद्धि समुद्री जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक है। समुद्री जल की अम्लीयता बढ़ती है, जिससे कोरल रीफ (मूंगा प्राचीन) मर रहे हैं। कोरल रीफ हजारों समुद्री प्रजातियों का घर होते हैं और उनका मरना समुद्री खाद्य श्रृंखला को नुकसान पहुंचाता है।
ग्लेशियर और हिमनदों का पिघलना
ग्लेशियर जो हिमालय, आर्कटिक और अंटार्कटिका में पाए जाते हैं, वे पिघल रहे हैं। इससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। हिमालयी ग्लेशियर भारत के लिए विशेष चिंता का विषय हैं क्योंकि कई नदियां यहीं से निकलती हैं।
कृषि पर असर
तापमान वृद्धि और जलवायु अस्थिरता से फसलों की पैदावार में कमी आ सकती है। कुछ जगहों पर सूखा पड़ेगा, तो कुछ जगहों पर बाढ़। यह खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।
मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
गर्मी की लहरें बढ़ेंगी, जिससे विशेषकर बुजुर्गों और बच्चों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ेंगी। मच्छरों से फैलने वाले रोग जैसे मलेरिया और डेंगू के मामले भी बढ़ सकते हैं।
जलवायु परिवर्तन पर भारत का दृष्टिकोण और पहल
भारत जैसे विकासशील देश के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि यहां विकास और ऊर्जा की जरूरतें बहुत बड़ी हैं। फिर भी भारत ने कई अहम कदम उठाए हैं:
राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा मिशन (National Solar Mission): सौर ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना।
वन संरक्षण और वृक्षारोपण कार्यक्रम: भारत ने 2030 तक 2.5-3 बिलियन टन CO2 कम करने का लक्ष्य रखा है।
साफ-सफाई और प्रदूषण नियंत्रण कानून: जैसे मोटर वाहनों के लिए BS-VI उत्सर्जन मानक।
जल संरक्षण और सतत कृषि प्रथाएं।
भारत ने COP26 में 2070 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, जो एक महत्वाकांक्षी कदम है।
वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने की रणनीतियां
वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए निम्नलिखित रणनीतियां अपनाई जा रही हैं:
ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF): विकासशील देशों को जलवायु संकट से निपटने के लिए वित्तीय मदद देना।
कार्बन टैक्स और ट्रेडिंग: उत्सर्जन को कम करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन देना।
नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: पवन, सौर और हाइड्रोजन ऊर्जा को बढ़ावा देना।
जलवायु अनुकूलन योजना: जहां तापमान बढ़ने की संभावना है, वहां किसानों और समुदायों को प्रशिक्षण और संसाधन देना।
विनाशकारी परिणामों को रोकने के लिए टेक्नोलॉजी की भूमिका
नई तकनीकें जलवायु परिवर्तन से निपटने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। उदाहरण के लिए:
कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS): यह तकनीक ग्रीनहाउस गैसों को वायुमंडल में जाने से पहले पकड़ कर जमीन के अंदर सुरक्षित स्थानों में जमा करती है।
स्मार्ट एग्रीकल्चर: जहां कृषि में तकनीकी मदद से कम जल और ऊर्जा खर्च होती है।
इलेक्ट्रिक और हाइड्रोजन वाहन: जीवाश्म ईंधन से मुक्त परिवहन।
डीजलिंग ऑफ इंडस्ट्रियल प्रक्रियाओं: कार्बन फुटप्रिंट कम करने के लिए उद्योगों में सुधार।
जलवायु आपदा के प्रति तैयारी और समुदायों की भूमिका
जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली आपदाओं के लिए तैयारी भी जरूरी है। इससे मानव जीवन और संपत्ति की सुरक्षा होती है। इसके लिए आवश्यक है:
जलवायु स्मार्ट बुनियादी ढांचे का विकास
आपदा चेतावनी प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण
स्थानीय समुदायों की भागीदारी
शिक्षा और जागरूकता अभियान
स्थानीय समुदायों को यह समझना होगा कि जलवायु परिवर्तन उनके जीवन को किस तरह प्रभावित कर सकता है और वे कैसे इसकी रोकथाम में योगदान दे सकते हैं।
व्यक्तिगत स्तर पर हम क्या कर सकते हैं?
जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए हर व्यक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण है। आप निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं:
ऊर्जा की बचत: बिजली का अनावश्यक इस्तेमाल कम करें।
सफर में बदलाव: पैदल चलना, साइकिल का उपयोग या सार्वजनिक परिवहन का चुनाव।
प्लास्टिक कम उपयोग करें: प्लास्टिक कचरा जलवायु संकट में योगदान देता है।
पुनर्चक्रण करें (Recycle)
वृक्षारोपण करें
स्थानीय और जैविक खाद्य पदार्थ खाएं
WMO की आगामी रिपोर्ट और भविष्य के पूर्वानुमान
WMO नियमित अंतराल पर जलवायु संबंधी रिपोर्ट प्रकाशित करता रहता है। भविष्य की रिपोर्ट में यह अपेक्षा की जा रही है कि:
तापमान वृद्धि की गति कितनी होगी।
महासागरों का तापमान और अम्लीयता कैसे बदलेंगे।
चरम मौसम घटनाओं की आवृत्ति क्या रहेगी।
कार्बन उत्सर्जन में कमी की दिशा में क्या प्रगति होगी।
इन रिपोर्टों के आधार पर विश्व सरकारें अपनी जलवायु नीति में संशोधन कर सकेंगी।
निष्कर्ष: WMO latest update
विश्व मौसम संगठन (WMO) की ताजा रिपोर्ट यह स्पष्ट कर देती है कि पृथ्वी का औसत तापमान 2025 से 2029 के बीच 1.5 डिग्री सेल्सियस के सीमित लक्ष्य को पार करने के कगार पर है।
यह सीमा पेरिस समझौते में तय की गई थी ताकि हम जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर और विनाशकारी प्रभावों को टाल सकें।
लेकिन ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर और मानव गतिविधियों से होने वाले उत्सर्जन के चलते यह लक्ष्य तेजी से असंभव होता जा रहा है।
तापमान में यह बढ़ोतरी केवल एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह हमारे ग्रह, उसकी पारिस्थितिकी, समुद्री जीवन, ग्लेशियर, कृषि, मानव स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरे की घंटी है।
अत्यधिक गर्मी की लहरें, बाढ़, सूखा, जंगल की आग और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी आपदाएं हमारी दैनिक जिंदगी को सीधे प्रभावित कर रही हैं और भविष्य में और भी तीव्र हो सकती हैं।
फिर भी, आशा की किरण यह है कि उचित नीति, नवीन तकनीकों और वैश्विक सहयोग से हम उत्सर्जन को कम कर सकते हैं और जलवायु संकट को नियंत्रण में ला सकते हैं।
भारत सहित दुनिया के सभी देश इस दिशा में कदम उठा रहे हैं, लेकिन समय कम है और हमें तत्काल कार्रवाई की जरूरत है। प्रत्येक व्यक्ति, समुदाय और सरकार की जिम्मेदारी है कि वे अपनी भूमिका समझें और पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दें।
इस चुनौती से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास, सतत विकास की दिशा में कदम, और जागरूकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत हैं।
यदि हम अभी भी इस चेतावनी को गंभीरता से लेते हैं, तो 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के पार जाने से वैश्विक तापमान वृद्धि को रोका जा सकता है और पृथ्वी को एक सुरक्षित और स्थायी भविष्य प्रदान किया जा सकता है।
वरना, आने वाली पीढ़ियां एक ऐसी दुनिया का सामना करेंगी जहाँ प्राकृतिक संसाधन सीमित होंगे, पारिस्थितिक तंत्र अस्थिर होंगे और जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होगी।
इसलिए, अब वक्त है—करवाई का, जागरूकता का, और एक बेहतर भविष्य के लिए एक साथ आने का।