World Press Freedom Index 2025: भारत की रैंक 151 – क्या यह बदलाव लोकतंत्र के लिए नई राह दिखाएगा?
भूमिका: प्रेस स्वतंत्रता का लोकतंत्र में महत्व
Table of the Post Contents
Toggleप्रेस, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती है। एक स्वतंत्र और निर्भीक मीडिया का अस्तित्व किसी भी लोकतांत्रिक समाज के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि स्वतंत्र न्यायपालिका, पारदर्शी चुनाव प्रणाली और सक्रिय नागरिक समाज।
प्रेस ही वह माध्यम है जो सत्ता के केंद्रों को सवालों के घेरे में लाकर जनता को उनके अधिकारों की जानकारी देता है, शासन की खामियों को उजागर करता है, और कमजोर आवाज़ों को मंच प्रदान करता है।
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण लोकतंत्र में, जहां हर धर्म, जाति, भाषा और विचारधारा का प्रतिनिधित्व है, वहां स्वतंत्र प्रेस का होना न केवल संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करता है, बल्कि राष्ट्रीय एकता को भी मज़बूत बनाता है।

World Press Freedom Index 2025: मुख्य बिंदु
World Press Freedom Index हर वर्ष पेरिस स्थित अंतर्राष्ट्रीय संस्था “Reporters Without Borders” (RSF) द्वारा प्रकाशित किया जाता है। यह रिपोर्ट दुनिया के 180 देशों में मीडिया की स्वतंत्रता, पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस पर पड़ रहे राजनीतिक, कानूनी, आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षात्मक दबावों का विश्लेषण करती है।
World Press Freedom Index 2025 की रिपोर्ट में भारत को 151वां स्थान मिला है। पिछले वर्ष 2024 में भारत 159वें स्थान पर था। यानी इस वर्ष भारत ने 8 स्थानों की छलांग लगाई है, जो एक सकारात्मक संकेत हो सकता है, लेकिन क्या यह छलांग वास्तविक स्वतंत्रता में वृद्धि को दर्शाती है? यह जानने के लिए हमें रैंकिंग के पीछे की परतों को समझना होगा।
World Press Freedom Index 2025: भारत की रैंकिंग- केवल संख्या या कहीं गहरे संकेत?
भारत को इस वर्ष 32.96 का स्कोर मिला है, जो पांच अलग-अलग संकेतकों के आधार पर दिया गया है। रैंकिंग में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन 180 देशों की सूची में 151वां स्थान कोई बहुत संतोषजनक स्थिति नहीं मानी जा सकती।
RSF की रिपोर्ट भारत को “बहुत गंभीर स्थिति” वाले देशों की श्रेणी में ही रखती है। यह दर्शाता है कि रैंकिंग में सुधार के बावजूद संरचनात्मक समस्याएं अभी भी बरकरार हैं।
World Press Freedom Index 2025: भारत की स्थिति, सुधार, और चुनौतियाँ
World Press Freedom Index 2025: क्या है यह रिपोर्ट?
Reporters Without Borders (RSF) हर साल दुनिया के लगभग 180 देशों की मीडिया स्वतंत्रता की स्थिति पर रिपोर्ट प्रकाशित करता है। इस रिपोर्ट का उद्देश्य है यह बताना कि पत्रकारों को किस हद तक आज़ादी है, कितनी सेंसरशिप है, और मीडिया पर किस प्रकार के दबाव हैं।
World Press Freedom Index 2025 में भारत को 151वाँ स्थान मिला है, जो कि पिछले वर्ष (2024 में 159वाँ) से 8 स्थान बेहतर है।
World Press Freedom Index 2025: भारत का स्कोर और स्थिति
कुल स्कोर: 32.96/100
2024 रैंक: 159
2025 रैंक: 151
स्थान में सुधार: +8
भारत ने भले ही कुछ अंक सुधारे हों, लेकिन स्थिति अब भी “बहुत गंभीर” श्रेणी में आती है। यानी प्रेस की स्वतंत्रता अभी भी चिंताजनक स्तर पर है।
World Press Freedom Index 2025 तैयार करने के मानदंड
RSF यह इंडेक्स पाँच प्रमुख मानदंडों पर आधारित करता है:
- राजनीतिक संकेतक (Political Context)
- कानूनी ढांचा (Legal Framework)
- आर्थिक दबाव (Economic Constraints)
- सामाजिक प्रभाव (Sociocultural Context)
- सुरक्षा का स्तर (Safety of Journalists)
भारत को इन सभी मानकों पर औसतन कमजोर स्कोर मिला है, विशेष रूप से सुरक्षा और कानूनी स्वतंत्रता में।
World Press Freedom Index 2025 कैसे सुधरी?
कुछ हद तक डिजिटल मीडिया ने ग्राउंड रिपोर्टिंग को आगे बढ़ाया
अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते कुछ मामलों में सरकार ने नरमी दिखाई
पत्रकारों के प्रति नागरिकों में समर्थन बढ़ा
कुछ राज्यों में पत्रकारों की स्वतंत्रता की पहलें हुईं
फिर भी, यह सुधार सतही है और सही बदलाव के लिए सिस्टमेटिक सुधार की ज़रूरत है।
World Press Freedom Index 2025 अंतरराष्ट्रीय तुलना: कौन देश कहाँ है?
शीर्ष 5 देश
- नॉर्वे
- डेनमार्क
- स्वीडन
- एस्टोनिया
- फिनलैंड
भारत से ऊपर एशियाई देश
भूटान (147)
नेपाल (149)
श्रीलंका (150)
यह दिखाता है कि भारत, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में, प्रेस स्वतंत्रता में अपने पड़ोसी देशों से भी पीछे है।

अंतरराष्ट्रीय तुलना: भारत बनाम अन्य देश
जब हम भारत की स्थिति को समझते हैं, तो यह जरूरी हो जाता है कि हम इसे वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी देखें। World Press Freedom Index 2025 में कुछ देश इस प्रकार टॉप पर रहे:
नॉर्वे – लगातार सातवें वर्ष पहले स्थान पर, प्रेस को पूरी स्वतंत्रता, सरकारी दखल बिल्कुल नहीं
डेनमार्क, स्वीडन, एस्टोनिया – ये देश लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूती से लागू करते हैं और पत्रकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं
नीचे के स्थानों पर – उत्तर कोरिया (180), अफगानिस्तान, ईरान जैसे देश जहां प्रेस पूरी तरह नियंत्रण में है या दबा दी गई है
भारत की तुलना अगर इन देशों से की जाए तो यह स्पष्ट होता है कि राजनीतिक इच्छा, कानूनी ढांचा और सामाजिक समरसता मिलकर एक स्वतंत्र मीडिया को जन्म देते हैं — जिसकी भारत में अभी भारी कमी है।
प्रेस स्वतंत्रता और भारतीय संविधान
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। हालांकि, प्रेस शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है, फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपने निर्णयों में प्रेस की स्वतंत्रता को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा माना है।
मगर अनुच्छेद 19(2) में दिए गए ‘यथोचित प्रतिबंध’ जैसे कि राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार, मानहानि आदि का उपयोग कई बार सत्ता प्रेस पर नियंत्रण के लिए करती रही है। ये प्रतिबंध आज के समय में हथियार बन गए हैं।
डिजिटल मीडिया के लिए कानून: अवसर या खतरा?
भारत सरकार ने हाल ही में डिजिटल मीडिया के लिए आईटी नियम 2021 लागू किए हैं। सरकार का कहना है कि यह कानून “फेक न्यूज़” और “असामाजिक कंटेंट” को रोकने के लिए है, लेकिन कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह नियम स्वतंत्र डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने की दिशा में एक कदम है।
OTT और डिजिटल न्यूज़ पोर्टल्स को मंत्रालय के अधीन लाने की कोशिश की गई है
सेल्फ रेगुलेशन के नाम पर सरकारी हस्तक्षेप का रास्ता खुल गया है
“फैक्ट चेक यूनिट” का सरकारी नियंत्रण में होना सवालों के घेरे में है
यह चिंता का विषय है कि स्वतंत्र मंचों पर भी अगर सरकारी निगरानी बढ़ती है, तो सच बोलना और भी मुश्किल हो जाएगा।
स्वतंत्र प्रेस और लोकतंत्र: गहरा संबंध
लोकतंत्र की आधारशिला प्रेस की स्वतंत्रता पर टिकी होती है। मीडिया को अक्सर लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, और इसके पीछे स्पष्ट कारण है:
सूचना का प्रवाह: एक स्वतंत्र मीडिया ही नागरिकों को सही समय पर, सटीक जानकारी प्रदान कर सकता है
शक्तियों पर निगरानी: सरकार और प्रशासन को जवाबदेह बनाने का सबसे बड़ा माध्यम प्रेस होता है
विचारों की विविधता: लोकतंत्र सिर्फ चुनाव नहीं है, यह विचारों के टकराव और सह-अस्तित्व की संस्कृति है — जिसे मीडिया ही जीवंत बनाए रखता है
यदि प्रेस पर अंकुश लगा दिया जाए, तो लोकतंत्र केवल एक कागज़ी व्यवस्था बनकर रह जाता है।
RSF इंडेक्स को लेकर भारत सरकार की प्रतिक्रिया
पिछले वर्षों में भारत सरकार ने वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स पर कई बार सवाल उठाए हैं:
यह कहा गया कि सूचकांक की पद्धति अपारदर्शी है
RSF की रिपोर्ट को “पश्चिमी सोच आधारित और पक्षपातपूर्ण” बताया गया
World Press Freedom Index 2025 युवाओं की भूमिका: नये दौर की पत्रकारिता
नई पीढ़ी अब डिजिटल माध्यमों के ज़रिए अपनी बात कहने लगी है:
यूट्यूब, इंस्टाग्राम, पॉडकास्ट जैसे प्लेटफॉर्म अब स्वतंत्र पत्रकारों के नये हथियार बन चुके हैं
कुछ युवा पत्रकार बिना किसी बड़े मीडिया हाउस से जुड़े सच और ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं
World Press Freedom Index 2025 भविष्य की दिशा: सुधार की आवश्यकता
यदि भारत को प्रेस स्वतंत्रता में वैश्विक स्तर पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त करना है, तो कुछ ठोस कदम अनिवार्य हैं:
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून और त्वरित कार्यवाही
कानूनी दमन और अनावश्यक केसों पर रोक
स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को आर्थिक और वैचारिक समर्थन
महिला पत्रकारों के लिए विशेष सुरक्षा उपाय
ट्रोलिंग और डिजिटल उत्पीड़न पर सख्त नियंत्रण
इन सुधारों के बिना केवल रैंकिंग बढ़ाना लोकतंत्र की वास्तविक उन्नति नहीं कहलाएगा।
निष्कर्ष: World Press Freedom Index 2025 भारत में प्रेस स्वतंत्रता की वास्तविकता और आगे की राह
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2025 में भारत की रैंकिंग में 8 अंकों का सुधार एक सकारात्मक संकेत ज़रूर है, लेकिन यह सुधार केवल संख्या में है, जमीनी हालात अब भी चिंताजनक हैं।
पत्रकारों पर बढ़ते हमले, सेंसरशिप, कानूनी शिकंजा और डिजिटल ट्रोलिंग प्रेस की स्वतंत्रता को कमजोर बना रहे हैं। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ तब तक मज़बूत नहीं हो सकता जब तक पत्रकारों को स्वतंत्र रूप से सवाल पूछने और सच्चाई सामने लाने का अधिकार नहीं मिलेगा।
भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि यह देश की पारदर्शिता, जवाबदेही और न्याय व्यवस्था की बुनियाद है।
Reporters Without Borders की World Press Freedom Index 2025 में यह भी संकेत मिलता है कि भारत में पत्रकारों की सुरक्षा, कानूनी संरक्षण, और संस्थागत समर्थन बेहद कमजोर है।
सरकार की ओर से कभी-कभी ऐसे बयान दिए जाते हैं जो प्रेस को “देशद्रोही” या “विकृति फैलाने वाला” कहकर बदनाम करते हैं, जिससे प्रेस की साख और स्वतंत्रता दोनों पर असर पड़ता है।
अब समय है कि सरकार, संस्थान, और नागरिक मिलकर एक ऐसा माहौल बनाएं जहाँ पत्रकार बिना डर के काम कर सकें और मीडिया एक बार फिर लोकतंत्र की आवाज़ बन सके।
Related
Discover more from Aajvani
Subscribe to get the latest posts sent to your email.