मोलेला कला

मोलेला कला: राजस्थान की पारंपरिक टेराकोटा मृणकला की पूरी जानकारी | इतिहास से भविष्य तक!

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मोलेला कला: राजस्थान की मिट्टी से जन्मी अनोखी टेराकोटा परंपरा!

प्रस्तावना 

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मोलेला कला—भारी मिट्टी से जन्मी लोक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ

मोलेला कला, राजस्थान के राजसमंद जिले के मोलेला गाँव से जुड़ी मृणकला की एक अनूठी विधा है। यह कला बंद साँचे की जगह क़रीब-क़रीब सभी काम हाथ संयुक्त रूप से बिना किसी औजार, साँचा या मोल्ड के की जाती है। इस विधा में कलाकृतियां सोलह से अधिक चरणों में हस्तनिर्मित रूप से तैयार होती हैं।

लोक देवी-देवताओं की मुद्राएं, पशुपक्षी, गाँव की रोजमर्रा की दृश्य, मेले, त्यौहार—सभी विषयों में यह कला अपनी जीवंतता के लिए पहचानी जाती है।

मोलेला कला
मोलेला कला: राजस्थान की पारंपरिक टेराकोटा मृणकला की पूरी जानकारी | इतिहास से भविष्य तक!

साँचे का परंपरागत प्रयोग नहीं: अन्य टेराकोटा विधाओं की तरह यहाँ मशीन व साँचे का उपयोग नहीं किया जाता। ये मूर्तियाँ पूरी तरह से हाथों की अनुभवी कला के माध्यम से बनायी जाती हैं।

लोक-परंपरा की अभिव्यक्ति: देवी-देवताओं की मूर्तियाँ—माँ गुड़िया, कालिका, भैरव, गणेश, बाजबसन्त; साथ ही पशु-पक्षी, और ग्रामीण नज़ारे—”लोक हलचल को मृणभूमि पर उकेरते” हैं।

माटी की विविधता पहचान: मोलेला गाँव के पास पाए जाने वाली विशेष चटान-मिट्टी कला के लिए उपयुक्त मृदु तथा संरचनात्मक संतुलित गुणों वाली मूर्तियाँ देती है।

इतिहास – मिट्टी में पिरोई लोक धरोहर

प्रारंभिक रूप और विकास

पौराणिक किंवदंती अनुसार, मोलेला कला 15वीं-16वीं शताब्दी में पांडवों के समय से जुड़ी है।

मध्यकालीन राजस्थान में बनी स्थानीय देवी-देवता की मूर्तियाँ परंपरागत भक्ति-आधारित दुकानें और श्रमिक द्वारा बनाई जाती थीं।

आधुनिक मोलेला कला की पहचान 18वीं-19वीं शताब्दी में हुई, जब गाँव में एक कारीगर जाति ने इस विशिष्ट विधा को क्रमबद्ध ढंग से विकसित किया। गाँव की बहुलता ने इसे अपनी सांस्कृतिक धरोहर बना लिया।

रंग, रूप और शैली का विकास

प्रारंभ में मूर्तियों को सिर्फ नीम की लकड़ी पर रंगा जाता था, परन्तु बाद में प्रयोग बढ़ा:

मूर्तियों पर प्राकृतिक रंगों जैसे हल्दी, कुंकुम, नीम्बूछाछ का उपयोग हुआ।

बाद में नीम, कपूर, तेल का मिश्रण गोंद-बनाने में प्रयोग हुआ।

सतत प्रयोग ने रंग स्थिरता और बनावट में सुधार किया।

मोलेला कला की तकनीकी विशिष्टता 

सामग्री चयन: मिट्टी से होती शुरुआत

गाँव में ही पाई जाने वाली रेत-क्ले मिश्रित मिट्टी का उपयोग।

महीन दानों वाली मिट्टी मूर्तियों को अधिक टिकाऊ बनाती है।

हाथों की संरचना – हस्तलिपि मूर्तिकला

मूर्तियाँ शून्य साँचा के लिए, कारीगर हाथों से अत्यंत सटीक आकार देते हैं।

अंगुलियों का प्रयोग – विशेषकर अंकुश, घुटा, कलाई तक – से मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

नमी और सुखाने की तकनीक

तैयार मूर्तियों को छाया में सुखाया जाता है ताकि क्रैकिंग न हो।

फिर आग में धीमी गति से पका कर मजबूती दी जाती है।

चयनीय विधिकारी: देवी-देवता, पशु-पक्षी और ग्रामीण दृश्य

लोक देवी-देवता की मूर्तियाँ

प्रमुख मूर्तियों में शामिल हैं:

माँ बगलामुखी, भैरव, कालिका, गणेश, बाजबसन्त आदि।

हर मूर्ति में हिन्दू धर्म की जटिल और संवेदनशील भावों की अभिव्यक्ति होती है।

पशु-पक्षी और गांव की झलक

गाय, बैल, कबूतर, मोर जैसी प्राणियों की मूर्तियाँ।

वीराना, खेतहल, चौपाल जैसी ग्रामीण घटनाएं।

सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रासंगिकता

धार्मिक समारोह और उत्सवों में उपयोग

गांवों में गणेशोत्सव, नवरात्र, भैरवी पूजा में मूर्ति अनिवार्य होती है।

झाँकी और मेले में यह कला दृश्यात्मक केंद्र बनी रहती है।

कारीगरों की सामाजिक स्थिति

कारीगर जाति गाँव का महत्वपूर्ण हिस्सा।

उन्नति की चुनौतियाँ – कमी होने वाले अवसर, नगरीय व्यापार के दबाव।

जीविका और आर्थिक पक्ष

उत्पादन क्षमता और विक्रय प्रणाली

कारीगर परिवार प्रतिवर्ष हजारों मूर्तियाँ बनाते हैं।

लोकल बाजार, राष्ट्रीय मेलों, और वाणिज्यिक खरीदारों को सप्लाई होती हैं।

आय-विस्तार एवम् चुनौतियाँ

सीमित बाज़ारी पहुँच।

डिजिटलीकरण कमजोर।

मूल्य निर्धारण अक्सर उचित नहीं।

संरक्षण, प्रचार और विकास प्रयास

सरकारी और गैर-सरकारी पहल

Ministry of Textiles/Handcraft: प्रशिक्षण कार्यक्रम, डिज़ाइन कार्यशाला।

Craft Council और NGOs: कौशल संवर्धन और मार्केटिंग मदद।

डिजीटल मंच और ऑनलाइन बिक्री

ई-कॉमर्स: Craftsvilla, Etsy, Amazon India…गंभीर सहयोग मांग।

सोशल मीडिया: Instagram/Facebook पर कला की प्रस्तुति।

चुनौतियां और समाधान मार्ग

चुनौतियां

शहरों और आधुनिक डिज़ाइन की दबिश।

कच्चा माल लागत और कठिनाइयाँ।

युवाओं का निपटान कृषि/शहरी नौकरियों में चली जाना।

समाधान मार्ग

यूनिवर्सिटी/Design Institutes से सहयोग।

कला पर्यटन (Craft tourism) – कार्यशाला/साक्षात्कार।

नया डिज़ाइन-प्रवर्तन और ऊँची कीमत वाली कलाकृतियाँ।

एक प्रेरणादायक कहानी: “कुंदन परिवार की मिसाल”

तीन पीढ़ी से कुंदन परिवार मोलेला कला का प्रतिनिधित्व करता है।

बुजुर्ग श्याम लाल ने 5 वर्ष की उम्र से कला सीखी।

आज भाग्यशाली, दुनिया भर का आर्डर, और Adobe-led design workshops का अनुभव।

संभावनाएँ और भविष्य के रास्ते

वैश्विक मार्केट में सांस्कृतिक कला की वृद्धि।

आधुनिक डिज़ाइन और वाणिज्यिक सहयोग।

सरकारी-निजी साझेदारी के माध्यम से कारीगर समेकन।

कैसे आप मदद कर सकते हैं?
  1. स्थानीय सामुदायिक मेलों में भाग लें।
  2. ऑनलाइन खरीद: Verified artisan links से।
  3. पढ़ें और शेयर करें – सोशल मीडिया, ब्लॉग, प्रेस में लेख।
  4. शिक्षा–कार्यशालाओं का समर्थन दें और युवाओं को जोड़ें।

प्रेरणादायक व्यक्तित्व और पुरस्कार विजेता 

श्री लालू राम सुथार – पद्मश्री से सम्मानित कलाकार

मोलेला कला को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले कलाकारों में सबसे प्रसिद्ध हैं पद्मश्री लालू राम सुथार। उन्होंने 1970 के दशक से इस पारंपरिक हस्तशिल्प को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुँचाया।

उन्हें 2011 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

उनकी कृतियाँ नेशनल क्राफ्ट म्यूजियम, दिल्ली और लंदन विक्टोरिया एंड एल्बर्ट म्यूजियम में प्रदर्शित हो चुकी हैं।

अन्य प्रसिद्ध कारीगर

श्याम लाल सुथार, गंगाराम प्रजापत, बाबूलाल कुम्हार जैसे कई नामचीन कलाकारों ने विदेशों में प्रदर्शनियाँ लगाई हैं।

ये सभी कलाकार अपने अनुभवों से युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित भी कर रहे हैं।

मोलेला कला और शिक्षा का समन्वय 

विद्यालयों और कॉलेजों में कार्यशालाएँ

राज्य सरकार द्वारा MoU हस्तशिल्प शिक्षा कार्यक्रम चलाया गया, जिसमें स्कूलों में कारीगरों द्वारा प्रशिक्षण दिया गया।

स्थानीय राजकीय पोलिटेक्निक कॉलेज और फाइन आर्ट्स विभाग से जुड़े शिक्षक मोलेला कला को डिजाइन और व्यवसाय से जोड़ रहे हैं।

डिज़ाइन इनोवेशन द्वारा नवाचार

कला छात्रों को “Traditional meets Modern” थीम पर प्रोजेक्ट बनवाकर मोलेला मूर्तियों में नया प्रयोग सिखाया जाता है:

टेबल लैम्प

दीवार की टाइल्स

म्यूज़िकल मूर्तियाँ

सजावटी घड़ियाँ

डिजिटल युग में मोलेला कला 

सोशल मीडिया और ऑनलाइन बिक्री

अब मोलेला कलाकार Instagram, Facebook और YouTube जैसे प्लेटफॉर्म पर अपनी कला का प्रचार कर रहे हैं।

कुछ प्रमुख ऑनलाइन पोर्टल्स:

Gaatha.com, Okhai.org, Craftsvilla, Etsy India जैसे प्लेटफॉर्म पर बिक्री शुरू हो चुकी है।

डिजिटल प्रशिक्षण

डिज़ाइन इनोवेशन लैब द्वारा डिजिटलीकरण का प्रशिक्षण।

AI और AR तकनीक से 3D स्कैन कर इंटरनेशनल आर्डर के अनुसार मूर्तियाँ बनाना सिखाया जा रहा है।

मोलेला कला
मोलेला कला: राजस्थान की पारंपरिक टेराकोटा मृणकला की पूरी जानकारी | इतिहास से भविष्य तक!

वैश्विक पहचान और निर्यात

अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियाँ

भारत सरकार के सहयोग से मोलेला कलाकारों ने जर्मनी, जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में प्रदर्शनियाँ लगाई हैं।

India Art Fair और Dilli Haat में मोलेला कला की भारी माँग।

निर्यात की संभावनाएँ

UNESCO द्वारा “Living Craft Heritage” की श्रेणी में दर्ज किया गया है।

हैंडमेड डेकोर, इंडोर स्कल्पचर, और मेडिटेशन गार्डन के लिए अंतरराष्ट्रीय डिज़ाइन स्टूडियो इन मूर्तियों की माँग कर रहे हैं।

महिलाओं की भूमिका 

पारंपरिक भागीदारी

परंपरागत रूप से महिलाओं ने मिट्टी गूंथने, रंग मिलाने, और आकृति में नमी संतुलन बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

महिला स्व-सहायता समूह

अब गाँव की महिलाएँ SHG (Self Help Group) के माध्यम से मिलकर स्टूडियो बना रही हैं।

महिला नेतृत्व में 5 सफल इकाइयाँ चल रही हैं, जिनमें प्रत्येक वर्ष ₹10 लाख से अधिक का कारोबार हो रहा है।

मोलेला ग्राम – कला पर्यटन केंद्र के रूप में 

हस्तशिल्प गांव योजना

राजस्थान सरकार द्वारा “हस्तशिल्प ग्राम योजना” में मोलेला को शॉर्टलिस्ट किया गया है।

आने वाले वर्षों में:

कला संग्रहालय

प्रदर्शन दीर्घा

हॉस्टल वर्कशॉप्स

हाथ से मिट्टी मॉडलिंग सिखाने की शाला स्थापित की जाएगी।

पर्यटन अवसर

लोककलाओं में रुचि रखने वाले अंतरराष्ट्रीय पर्यटक मृणकला टूरिज्म सर्किट के अंतर्गत मोलेला आ रहे हैं।

“Experience Craft Live” कार्यक्रम के तहत टूरिस्ट मूर्ति बनाना भी सीखते हैं।

पर्यावरण और सतत विकास दृष्टिकोण 

पर्यावरणीय लाभ

यह कला पर्यावरण अनुकूल है क्योंकि:

कोई हानिकारक रसायन नहीं।

पुन: उपयोग योग्य प्राकृतिक रंग।

लकड़ी या प्लास्टिक का उपयोग नहीं।

Satat Shilp – सतत शिल्प के रूप में मान्यता

देशभर में चल रहे “Eco-Handicraft Movement” में मोलेला को एक केस स्टडी के रूप में मान्यता मिली है।

100% biodegradable मूर्तियाँ – प्राकृतिक जल, वायु व मृदा को कोई नुकसान नहीं।

निष्कर्ष: मोलेला कला — मिट्टी में बसी आत्मा, परंपरा में रचा-बसा जीवन

मोलेला कला केवल मिट्टी से बनी हुई मूर्तियाँ नहीं हैं, बल्कि यह एक जीवित परंपरा है — एक ऐसी विरासत जो भारत के ग्रामीण लोक जीवन, आस्था और सांस्कृतिक धरोहर की अमूल्य अभिव्यक्ति है। राजस्थान के राजसमंद जिले का छोटा सा गाँव “मोलेला”, इस मृणकला के माध्यम से विश्वपटल पर अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है।

यह कला हमें सिखाती है कि कैसे सीमित संसाधनों, शून्य तकनीकी संसाधन, और मूलभूत औजारों के बिना भी केवल मानव श्रम, संवेदना और अनुभव के बल पर उत्कृष्ट कला का निर्माण संभव है। यही इसे अन्य टेराकोटा कलाओं से अलग बनाता है।

जहाँ आज की दुनिया तेज़ी से डिजिटलीकरण, मशीनों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ओर बढ़ रही है, वहीं मोलेला कला हमें स्थिरता, प्राकृतिकता, और मूल्यपरक श्रम की याद दिलाती है।

यह कला आर्थिक दृष्टि से भी सक्षम, महिलाओं को सशक्त बनाने वाली, और पर्यावरण के लिए पूरी तरह अनुकूल है।

यदि इसे सही दिशा, संसाधन और तकनीकी सहायता मिले, तो यह भारत की सबसे सशक्त ग्रामीण हस्तशिल्प ब्रांड बन सकती है।

अतः, हमारी ज़िम्मेदारी है कि इस लोक कला को:

संरक्षित करें

प्रोत्साहित करें

विकसित करें

और नई पीढ़ी तक पहुँचाएँ

क्योंकि एक देश की आत्मा उसकी लोक कलाओं में बसती है — और मोलेला कला, इस आत्मा का एक सजीव स्वरूप है।

“मोलेला सिर्फ एक गाँव नहीं, यह भारत की मिट्टी से जुड़ी हमारी सांस्कृतिक पहचान है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – मोलेला कला

Q1. मोलेला कला क्या है?

उत्तर:
मोलेला कला राजस्थान के राजसमंद जिले के मोलेला गाँव में विकसित हुई एक पारंपरिक टेराकोटा (मृणकला) शिल्प है, जिसमें लोक देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों, और ग्रामीण जीवन से जुड़ी मूर्तियाँ बिना साँचे और औजारों के केवल हाथों से बनाई जाती हैं.

Q2. यह कला अन्य टेराकोटा शिल्पों से कैसे भिन्न है?

उत्तर:
अन्य टेराकोटा कलाओं में जहाँ साँचा, चाक या औजारों का प्रयोग होता है, वहीं मोलेला कला में पूरी मूर्ति हाथों से गढ़ी जाती है, जिससे हर कृति एकदम विशिष्ट और जीवंत होती है।

Q3. मोलेला कला में किन-किन विषयों पर मूर्तियाँ बनाई जाती हैं?

उत्तर:
मुख्यतः:

लोक देवी-देवता जैसे गणेश, भैरव, कालिका, बाजबसंत आदि

ग्रामीण जीवन के दृश्य जैसे हल चलाता किसान, बैल गाड़ी, मेले आदि

पशु-पक्षी जैसे मोर, गाय, कबूतर आदि.

Q4. क्या यह कला सिर्फ पुरुष करते हैं या महिलाएँ भी शामिल हैं?

उत्तर:
पहले यह काम पुरुष प्रधान था, पर अब महिलाएं भी बराबरी से जुड़ रही हैं। कई महिला स्व-सहायता समूह मोलेला कला में मूर्तियाँ बना रहे हैं और स्वयं अपना व्यवसाय चला रहे हैं।

Q5. मोलेला कला के प्रसिद्ध कलाकार कौन-कौन हैं?

उत्तर:

पद्मश्री लालू राम सुथार

श्याम लाल सुथार

गंगाराम प्रजापत

ये सभी कलाकार मोलेला कला को देश-विदेश तक पहुंचा चुके हैं।

Q6. क्या मोलेला की मूर्तियाँ ऑनलाइन खरीदी जा सकती हैं?

उत्तर:
हाँ, अब मोलेला की मूर्तियाँ कई ऑनलाइन प्लेटफार्मों जैसे:

Etsy India

Gaatha.com

Okhai.org

Craftsvilla

के माध्यम से उपलब्ध हैं।

Q7. क्या सरकार मोलेला कलाकारों को कोई सहायता देती है?

उत्तर:
हाँ, Ministry of Textiles, Handicrafts Development Programme, और राजस्थान सरकार द्वारा प्रशिक्षण, प्रदर्शनियों, और वित्तीय सहायता के रूप में मदद दी जाती है।

Q8. क्या यह कला पर्यावरण के अनुकूल (eco-friendly) है?

उत्तर:
बिलकुल! यह पूरी तरह प्राकृतिक मिट्टी, जैविक रंगों और बिना किसी रसायन के तैयार की जाती है। इसलिए यह एक सतत और हरित (green) कला है।

Q9. क्या इस कला को सीखने के लिए कोई जगह है?

उत्तर:
हाँ, मोलेला गाँव में कई कारीगर परिवार प्रशिक्षण देते हैं। इसके अलावा सरकारी हस्तशिल्प केंद्र और फाइन आर्ट्स कॉलेज द्वारा भी कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं।

Q10. क्या विदेशी पर्यटक भी मोलेला कला में रुचि रखते हैं?

उत्तर:
जी हाँ, अंतरराष्ट्रीय कलाकार, डिज़ाइनर और पर्यटक मोलेला आकर इस लोककला को सीखते हैं और अपनी कलात्मक समझ के साथ इसमें नवाचार करते हैं। यह गाँव अब क्राफ्ट टूरिज्म का हिस्सा बन रहा है।


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Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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