नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती: भारत की आज़ादी में उनका अद्वितीय योगदान
परिचय
नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन 1897 मे उड़ीसा के कटक शहर में हिंदू बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था इस शुभ अवसर पर पूरा देश इनको श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है.
23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है नेताजी के पिता का नाम जानकीनाथ बॉस था और उनकी मां का नाम प्रभावती था नेता जी के पिता जानकीनाथ बोस एक मशहूर वकील थे सुभाष चंद्र बोस का साहस और देशभक्ति को सम्मानित करता है | Read more…
नेताजी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
नेता जी का जन्म 23 जनवरी सन 1897 मे उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था यह एक प्रभावशाली छात्र थे | 1915 में उन्होंने इण्टरमीडियट की परीक्षा बीमार होने के बावजूद भी द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण की।.वहीं उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की।
इन्होंने इंग्लैंड से सिविल सेवा की भी परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन इन्होंने भारत की आजादी के लिए संघर्ष करने हेतु अपनी नौकरी को त्याग दिया था | .
इन्होंने कटक की महापालिका में बहुत लंबे समय काम किया है और वह बंगाल की विधानसभा में भी सदस्य रहे थे, अंग्रेज सरकार ने उन्हें राय बहादुर का खिताब दिया |
ऑस्ट्रिया से प्रेम विवाह
सुभाष चंद्र बॉस सन् 1934 में जब ऑस्ट्रिया में अपना इलाज कराने के लिए ठहरे हुए थे, तथा उस समय वें अपनी पुस्तक लिखने के लिए एक अंग्रेजी पढ़ने वाले टाइपिस्ट की आवश्यकता हुई।
नेताजी के एक मित्र ने एमिली शेंकल नाम की एक ऑस्ट्रियन महिला से उनकी मुलाकात करा दी। एमिली के पिता एक प्रसिद्ध पशु चिकित्सक थे।
सुभाष चंद्र बोस एमिली की ओर आकर्षित हुए और उन दोनों में स्वाभाविक प्रेम हो गया। उन दोनों ने सन् 1942 में बाड गास्टिन नामक स्थान पर हिन्दू पद्धति से विवाह रचा लिया।
राजनीतिक सफर और कांग्रेस से संबंध
सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपनी सक्रिय भूमिका निभाई तथा सन 1938 मे हरिपुर अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गए |
हालांकि 1938 में त्रिपुरा अधिवेशन मे महात्मा गांधी के समर्थन पट्टाभी सितारमैया को हराने के बाद गांधी जी ने इसे अपनी व्यक्तिगत हर बताएं जिससे नेताजी ने अपना इस पद से इस्तीफा दे दिया |
आजाद हिंद फौज का गठन और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
नेताजी ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया | उसमें सुभाष चंद्र बोस का प्रसिद्ध नारा था| “तुम मुझे खून दो,मैं तुम्हें आजादी दूंगा ” आज भी राष्ट्रभक्ति भावना को जागृत करता है |
आज़ाद हिन्द फौज में जापानी सेना ने अंग्रेजों की फौज से पकड़े हुए भारतीय युद्धबन्दियों को भर्ती भी किया था। नेताजी ने आज़ाद हिन्द फ़ौज में औरतों के लिये झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी थी |
नेताजी का आगरा से संबंध
आगरा से नेताजी का गहरा नाता था। वे सन 1938 और सन 1940 में आगरा आए थे , जहां उन्होंने युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए सभी को प्रेरित किया।
सन 1940 में मोतीगंज चुंगी मैदान में आयोजित होने वाली विशाल सभा में उन्होंने युवाओं से अपने खून से ‘जय हिंद’ लिखकर देने की अपील की, जिसे युवाओं ने उसे उत्साह पूर्वक स्वीकार किया था ।
नेताजी की उपेक्षा और वर्तमान मान्यता
जनता ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को हमेशा सम्मान दिया, लेकिन नेताजी को सरकारी स्तर पर वह मान्यता नहीं मिली जिसके वे पहले से हकदार थे।
आज, उन्हें 23 जनवरी यानि जयंती पर, पूरा देश उन्हें याद करता ओर उनके योगदान को सम्मानित भी कर रहा है। Click here…
निष्कर्ष
नेताजी का जीवन और संघर्ष हमें देशभक्ति, साहस और समर्पण की प्रेरणा देता है। उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, हमें उनके आदर्शों का पालन करने का संकल्प भी लेना चाहिए।