Bodo समाज का पुनर्जागरण: असम से दुनिया तक फैलती सांस्कृतिक चेतना!
परिचय
उडालगुड़ी (उत्तर मध्य असम) की मिट्टी में बसाया गया बोडो समुदाय असम और भूटान की सीमा पर दशकों से अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक विरासत के साथ बसा हुआ है। आधुनिक बदलावों, बाहरी प्रभावों और शहरीकरण की आंधी में कहीं कुम्हला रही ये परंपराएँ, अब एक नए युग में पुनर्जीवित हो रही हैं।
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Toggleइस आर्टिकल में हम जानेंगे कि कैसे इन परंपराओं को बचाए रखने, विकसित करने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए आज बोडो समाज संगठित हो चुका है – Bathouism का संरक्षित रूप, भाषा-साहित्य, त्योहार, पारंपरिक ज्ञान, नृत्य-संगीत, आदिवासी न्याय व्यवस्था, स्वास्थ्य, एवं आर्थिक सशक्तिकरण में व्यापक पुनरुत्थान देखने को मिला है।

सांस्कारिक पुनरुत्थान का बीजारोपण – ‘Bathouism (बथौईधर्म)’ का री-रिबूट
Bathouism: प्रकृति-आधारित धार्मिक प्रणाली
बथौईधर्म (Bathouism) बोडो लोगों का पारंपरिक धर्म है, जिसका मूल ‘पाँच तत्वों’ – भूमि, जल, वायु, अग्नि/सूर्य और आकाश – में गहरा आस्था-आधारित संबंध है । यह एक प्रकृति-आधारित धर्म है जो हर गांव के आंगन में स्थापित मौन ‘सिजो पेड़’ के माध्यम से सांसारिक समृद्धि मांगने वाले Bathoubwrai (बथौबिराय) की उपासना करता है।
ABRU (All Bathou Religious Union) एवं स्वरूप परिवर्तन
1992 में ABRU की स्थापना के बाद से Bathouism में कई आधुनिक सुधार लागू किए गए। धार्मिक पादरी ‘Douri और Doudin’ की जगह अब उठे ‘Gwthari Asari’ व्यवस्थात्मक और आध्यात्मिक पुनर्गठन हुए।
भवन रूप में ‘Thansali’– पूजा केंद्रों का आधुनिकीकरण मंदिर/गिरजाघर जैसी संरचना में शुरू हुआ । इस आधुनिक Bathouism ने सजग युवा पीढ़ी को फिर से जोड़ लिया है।
Bathou Aroj – स्वर-संगीत का धार्मिक रूप
Bathou Aroj नामक संगीत रूप की शुरुआत भी ABRU की पहल रही, जो समूह गायन है और इसमें पारंपरिक ताल-वाद्य संयोजन होता है । बथौ पूजा (Garjasali) में सामूहिक भावनात्मक आत्मीयता का निर्माण करता यह संगीत समुदाय को एक साथ ला रहा है।
भाषा और साहित्य का अभूतपूर्व उछाल – भाषिक आत्मनिर्णय
Bodo Sahitya Sabha (BSS): भाषा-संस्कार के संरक्षक
1952 में स्थापित Bodo Sahitya Sabha ने Bodo भाषा एवं साहित्य को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए अटूट प्रयास शुरू किए ।
1963 में Bodo भाषा को प्राथमिक शिक्षा में शामिल किया गया, 1968 में माध्यम रूपी मान्यता मिली।
1996 में गुवाहाटी विश्वविद्यालय, 2004 में बोदोलैंड विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कोर्स शुरू हुआ।
अब तकनीकी शब्दावली को भी Bodo में लाने के लिए 40,000+ शब्दों की शब्दावली निर्माण चल रहा है ।
डिजिटल माध्यम: ‘e‑thunlai’ ऐप और E‑लाइब्रेरी
गुवाहाटी में हाल ही में Bodo ABRU और Assam सरकार के सहयोग से ‘e-thunlai’ मोबाइल ऐप तथा डिजिटल पुस्तक एवं ई‑लाइब्रेरी प्रणाली लॉन्च हुआ, जिससे भाषा का डिजिटल संरक्षण और संवर्धन संभव हुआ ।
Bodo Mahiri Bidab लिपि – खतरे से बची प्राचीन हस्तलिपि
1930 के दशक में बोडो समाज द्वारा विकसित इस लिपि को पुनर्जीवित करने का प्रयास जारी है। ଏହାକୁ विश्वविद्यालय स्तर पर रिसर्च के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है ।
सांस्कृतिक पुनरुत्थान – नृत्य, वेश-भूषा, हस्तकला
Bagurumba (“प्रकृति नृत्य”) – प्रेरणा और उत्कृष्ट प्रदर्शन
बैगुरुंबा, जिसे बटरफ्लाई डांस भी कहा जाता है, बोडो महिलाओं द्वारा किया जाता है – बांसुरी, ढोलक, सिरज और थर्खा जैसे वाद्यों पर यह प्रकृति-प्रेरित नृत्य अब गाँव से बड़े मंचों तक पहुंचा है । इससे युवा पीढ़ी को पहचान मिली है।
पारंपरिक पोशाक – Dokhona, Fasra, Phali
Ogrong Dokhona और Fasra:
साजारी Bodo महिलाओं के जीवन में নিখिल सांस्कृतिक पहचान हैं ।
Sanzari Phali:
Udalguri के कुछ बुनकर अभी Phali (scarf) पर हितकारी पारंपरिक संज़ारी डिजाइन बुनना जारी रख रहे हैं, जिससे Bhutan–Arunachal तक मान्यता मिल रही है ।
हस्तशिल्प और महिला सशक्तिकरण
Chirang और Udalguri के महिलाओं ने Aagor Daagra Afad नामक स्वयं सहायता समूह के माध्यम से हस्तशिल्प और बुनाई के रोमांचक व रोजगार-आधारित मॉडल को विकसित किया है ।
बोडोलैंड के पर्व और समारोह
Bwisagu (Boro नववर्ष): रंग, भक्ति और संस्कृति की महोत्सव यात्रा
बीसागु mid-April में मनाया जाने वाला नववर्ष है। इसके विशेष तत्व हैं:
खट्टे-तेज़ वनस्पति का सेवन (Gwkha-Gwkhwi Janai)
पशुधन स्नान व पूजन
पारिवारिक रिश्तों की मर्यादा (बड़ों का आदर और आने वाली पीढ़ियों से जुड़ाव)
संगीत, नृत्य व्यस्तता और सामाजिक मेलजोल ।
Baukungri Festival (Baukungri Hajw Gakhwnai):
Kokrajhar में mid-April में आयोजित पर्व के दौरान पर्वतारोहण (Trekking), खान-पान, संगीत-नृत्य जैसी गतिविधियों का संयोजन होता है जिससे पर्यटन और स्थानीय तालमेल को बढ़ावा मिलता है ।
Kherai, Domashi, Hapsa‑Hatarani:
अन्य Bodo धार्मिक और कृषि-आधारित समारोह हैं जो स्थानीय अर्थव्यवस्था, सामुदायिक मेल-जोल और ऐतिहासिक रीति-रिवाज़ों को पुनर्जीवित करते हैं ।
राजनीतिक और शैक्षणिक संरचनाएं
Bodo Territorial Council (BTC) और अभिसमय
2003 के दूसरे Bodo समझौते से BTC की स्थापना हुई, जो BTAD (Bodoland Territorial Area Districts) के चार जिलों पर नियंत्रण रखता है ।
BTC, BSS, ABSU की संयुक्त पहल से भाषा, संस्कृति और पहचान ਮੁਝ पर पुनर्लोढ़न जारी है ।
शैक्षणिक महामार्ग – शिक्षा की नींव
Udalguri और आसपास के क्षेत्रों में Bodo माध्यमिक व उच्च शिक्षा केंद्रों की बढ़ोतरी हो चुकी है। हाल ही में हुए साहित्य सम्मेलन में शिक्षण, छायचित्रकला, स्थानीय संस्कृति विषयक संगोष्ठियाँ केंद्रीय चर्चा बनीं ।
पारंपरिक ज्ञान और पर्यावरणीय चेतना
Ethnomedicinal ज्ञान:
Udalguri में पारंपरिक सजोत्र (Ojha) औषधियों की 44 वनस्पति सूची काफी महत्व रखती है। खासतौर पर जॉन्डिस के उपचार में यह स्थानीय ज्ञान आज भी जीवित है ।
मानव–हाथी संघर्ष समाधान:
Aaranyak संगठन की NITI स्कूल छात्रों व गांववासियों के साथ मिलकर वन्य इलाक़ों में 30,000+ पल्सपौधारोपण योजनाओं ने मानव–हाथी संघर्ष में कमी की है । यह सामाजिक पारिस्थितिकी समाधान का बायोहरो-उदाहरण है।
समावेशी सामुदायिक स्वरूप
अंतर्राष्ट्रीय मंचों में बोडो
BSS के युवा सम्मेलन, अंतर्राष्ट्रीय बोडो फेस्टिवल जैसे कार्यक्रमों में बोडो कला, नृत्य, वेशभूषा की उपस्थिति होती है, जहाँ भारत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल समेत आसपास राष्ट्र-राज्यों से सहभाग होते हैं ।
युवा–संस्कृति का मेल
BTC व Assam सरकार की योजनाओं से युवाओं में पारंपरिक कला और ज्ञान में रूचि बढ़ी है; social media campaigns से बथौधर्म, भाषा, संगीत अधिक लोकप्रिय हो रहे हैं।
चुनौतियाँ और विकास के रास्ते
क्षेत्र प्रमुख चुनौतियाँ समाधान और संभावनाएँ
भाषा डेवैगणरी में बोडो लिपि की बाउंड्री Mahiri-Bidab लिपि को co-official घोषित करने की कवायद
युवा शहरी माहौल में पारंपरिक उतार-चढ़ाव प्रतिस्पर्धात्मक सांस्कृतिक मंचों में युवा सहभागिता
अर्थव्यवस्था आदिवासी हस्तकला का बाज़ार सीमित हस्तशिल्प पर्यटन, Aagor शक्ति, digital marketplace
पर्यावरण मानव–वन्यजीव टकराव Aaranyak की पुनर्वनीकरण योजना
स्वास्थ्य आधुनिक/पारंपरिक ज्ञान में सामंजस्य की कमी Ethnomedicinal औषधि का documentation
जमीन, स्वाभिमान और सामाजिक एकता की नींव
भूमि: Bodo समुदाय की आत्मा
Bodo-पहल से लड़े गए आंदोलन हमेशा “भूमि की वापसी” पर केंद्रित रहे हैं, जो जीवन, अस्तित्व और सांस्कृतिक निरंतरता की आत्मा बन गए हैं ।
त्रिस्तरीय समझौते – 1993, 2003, और 2020 के समझौते सीधे भूमि अधिकारों की सुरक्षा, सीमांकन और पहचान पर केन्द्रित रहे ।
भूमि स्वामित्व ने आत्मनिर्भरता, जीविका और सांस्कृतिक गरिमा को सशक्त किया—जो उपजीविका से आगे समाज और पहचान से जुड़ी हुई है।
यह पुनरुद्धार “भूमि–परिचय” के बहाने एक नए सामाजिक–राजनीतिक बोध की भी शिखा जगाता है।

राजनैतिक स्वायत्तता और सामाजिक प्रतिनिधित्व
BTC से BTR – स्वायत्त संरचना का सुदृढ़ीकरण
27 जनवरी 2020 के तीसरे Bodo समझौते ने BTC (Bodoland Territorial Council) को “Bodoland Territorial Region (BTR)” में रूपांतरित किया:
विधान, कार्यपालिका, वित्त आधिकारिक क्षमता 6 वें अनुसूची के अंतर्गत बढ़ाई गई ।
उप-प्रमुख अधिकारी जैसे DC, SP की नियुक्तियों में सलाह-मशविरा की व्यवस्था ।
BTR के विस्तार व पुनः सीमांकन की प्रक्रिया में मदद के लिए कमीशन की स्थापना ।
Bodo-Kachari Welfare Autonomous Council
संविधान के अलावा बोडोलैंड से बाहर निवास करने वाले बोडो सामाजिक-राजनीतिक सुरक्षा के लिए 2020 में Bodo Kachari Welfare Autonomous Council का गठन हुआ ।
स्मार्ट विकास कवायद
अब ₹1500 करोड़ विशेष विकास पैकेज, केंद्रीय विश्वविद्यालय (उदलगुड़ी), मेडिकल कॉलेज, खेल संस्थान, वेटरनरी कॉलेज और कोच फैक्ट्री जैसी पहलें सुनियोजित रूप से लागू की जा रही हैं ।
साहित्यिक और शैक्षणिक पुनर्निर्माण
Bodo Sahitya Sabha: भाषा के संरक्षक
Bodo Sahitya Sabha (BSS) (1952) ने Bodo भाषा को शिक्षा व सांस्कृतिक प्लेटफ़ॉर्म दोनों पर मजबूत किया ।
1963: प्राथमिक शिक्षा में Bodo शामिल
1968: माध्यमिक स्तर पर मान्यता
2004: गुवाहाटी, डिब्रूगढ़ एवं NEHU में Bodo को Major Indian Language के रूप में मान्यता ।
साहित्यिक सम्मेलन – Bodo पहचान का रीपिट
जनवरी 2025 में उदलगुड़ी में आयोजित 64वाँ वार्षिक सम्मेलन में Bhutan, Bangladesh, Nepal आदि से भी कलाकार आए—भाषा-संस्कृति का उत्सव हुआ ।
राज्य सरकार के मंत्रियों तथा BTC प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इसे राजनीतिक और शैक्षणिक विमर्श का केंद्र बना दिया।
लोक-नृत्य एवं धार्मिक स्मारक: कलाकारियों का महोत्सव
Bagurumba & Deodhani: नृत्यों की विविधता
Bagurumba (“बटरफ्लाई डांस”)– प्रकृति-प्रेरित महिलाओं का लोकनृत्य, ढोल, बांसुरी, खम जैसे वाद्यों पर निश्चल रूप से performed ।
Deodhani– महिलाएँ भगवान Snake Goddess ‘Maroi’ को याद कर शमैनिक नृत्य करती हैं, इसमें तलवार, ढाल और पारंपरिक भजन प्रयुक्त होते हैं ।
इनमें आध्यात्मिक जुनून और सामूहिक प्रशासनिक पद्धति विद्यमान है—आत्मिक पुनरावृत्ति की छाया।
साझा उद्योग: महिला सशक्तिकरण व आर्थिक स्वावलंबन
Aagor Daagra Afad
चिरांग और उदलगुड़ी में केंद्रीकृत महिला-बुनकर समूह “Aagor Weaves”– हाथ से बुनाई जैसा पारंपरिक शिल्प पुनर्जीवित कर रही है। यह पहल मॉडल बनकर स्थानीय सामाजिक आर्थिक इकाइयों को सशक्त कर रही है ।
Sanzari Phali – परंपरा और आधुनिक बाज़ार में संतुलन
उदलगुड़ी के कुछ कुशल बुनकर पुनः revived पारंपरिक ‘Sanzari Phali’ (scarf) बना रहे हैं। यह Bhutan और Arunachal बाज़ार में भी मांग में है । सही मार्केटिंग से यह हस्तशिल्प पर्यटन का भाग बन सकता है।
पारंपरिक ज्ञान व जैव–संरक्षण का समन्वय
Ethnomedicinal ज्ञान: Ojha-औषधियां
परंपरागत ‘Ojha’ द्वारा उपयोग में लाए जाने वाले 44 वनस्पति औषधियाँ, जैसे जॉन्डिस (piper longum आदि) का उपयोग आज भी स्वास्थ्य केंद्रों में किए जा रहे हैं ।
Aaranyak पुनर्वनीकरण पहल
“कल्याण–वन” पहल Aaranyak द्वारा चलाई जा रही है—30,000 से अधिक पौधे लगाए गए ताकि वन्य–मानव संघर्ष घटे; हाथी मार्ग सुरक्षित हों और पारिस्थितिकी संतुलन बने ।
डिजिटल युग: पहचान का इंटरनेट मंच
‘e‑thunlai’ ऐप व E‑लाइब्रेरी
Bodo ABRU एवं Assam सरकार द्वारा ‘e‑thunlai’ मोबाइल ऐप–डिजिटल लाइब्रेरी का शुभारंभ हुआ, जिससे भाषा व संस्कृति का डिजिटल संरक्षण शुरू हुआ।
Social media v/s Cultural resurgence
YouTube, Instagram और Facebook पर Bagurumba, Bathou पूजा आदि के वीडियो सेंसर हो रहे, जिससे युवाओं में संस्कृति के प्रति उत्साह बढ़ा है और समाज में एक नई पहचान बनी है।
चुनौतियाँ और आगे की राह
प्रमुख समस्याएँ
लिपि संघर्ष: Mahiri-Bidab (देवनागरी/देवनागरी डुअल सिस्टम) को आम लिपि बनाने में बाधाएँ हैं ।
युवाओं का आकर्षण: शहरीकरण व ग्लोबल मीडिया की वजह से परंपरागत मूल्यों पर असर पड़ रहा है।
हस्तशिल्प की पहुंच: बाज़ार अभाव व ब्रांड उन्नति की कमी बनी हुई है।
संभावित समाधान
क्षेत्र समाधान
भाषा Devanagari के साथ Mahiri-Bidab दोनों को co-official घोषित करके प्रचार-प्रसार व पद्यांश अनुवाद बढ़ाएँ।
युवा विश्वविद्यालयों और परिषदों में युवा–परंपरा ड्राइव, प्रतियोगिताओं व फेसलिटेटेड सांस्कृतिक इवेंट आयोजित करें।
बाज़ार डिज़िटल ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म (Shopify/Vocal for Local), बाहरी फेस्टिवल में प्रमाणित स्टॉल।
पर्यावरण Aaranyak हेतु समुदाय-केंद्रित वन रक्षा आंत्रप्रेन्योरशिप बढ़ाएं।
निष्कर्ष: Bodo पुनरुत्थान – विरासत से भविष्य तक
Bodo समुदाय का यह पुनरुत्थान केवल सांस्कृतिक संरक्षण नहीं, यह पहचान, आत्मगौरव और भविष्य के आत्मनिर्भर समाज का उत्कर्ष है। Bathouism, Bodo भाषा, Bagurumba, हस्तशिल्प, भूमि-स्वामित्व, राजनैतिक स्वायत्तता, और स्थानीय नवाचार—इन सभी का संगम एक जीवंत ‘Bodo renaissance’ को परिभाषित करता है।
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