Finmin Directive: क्या बैंकों की Recovery Process अब होगी Bullet Speed जैसी तेज?
पृष्ठभूमि: बैंकों की बढ़ती NPA समस्या और सरकार की चिंता
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Toggleभारत की बैंकिंग प्रणाली पिछले कई वर्षों से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की चुनौती से जूझ रही है। ये वे ऋण होते हैं जो उधारकर्ता समय पर चुकाने में असफल हो जाते हैं।
जब ऋण लौटाया नहीं जाता, तो यह केवल बैंक के लाभ को नहीं घटाता बल्कि देश की संपूर्ण वित्तीय प्रणाली को भी अस्थिर करता है।
सरकार इस समस्या को लंबे समय से सुलझाने का प्रयास कर रही है — जैसे कि IBC (Insolvency and Bankruptcy Code), NCLT (National Company Law Tribunal), SARFAESI Act, NARCL (Bad Bank) — लेकिन इसके बावजूद NPA के मामले पूरी तरह नियंत्रित नहीं हो पाए।
इसी संदर्भ में वित्त मंत्रालय ने 2025 की शुरुआत में बैंकों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि वे अपनी कानूनी वसूली प्रक्रियाओं को और प्रभावी बनाएं।
Finmin Directive का उद्देश्य क्या है?
सरकार का उद्देश्य है:
वसूली की प्रक्रिया में गति लाना
कानूनी कार्रवाइयों में पारदर्शिता
अदालतों में लंबित मामलों की संख्या को घटाना
बैंकों की संपत्ति की गुणवत्ता में सुधार करना
बैंकों को आत्मनिर्भर बनाना, ताकि वे सरकारी सहायता पर निर्भर न रहें
बैंकों को दिए गए प्रमुख Finmin Directive
अधिवक्ता पैनल की समीक्षा
हर बैंक के पास अपने वकीलों का एक पैनल होता है जो DRT (Debt Recovery Tribunal), NCLT या अन्य मंचों पर केस लड़ते हैं। अब मंत्रालय ने कहा है कि:
अधिवक्ताओं की क्षमता और परिणाम के आधार पर उनकी समीक्षा की जाए
अक्षम अधिवक्ताओं को हटाया जाए
प्रभावी कार्यशैली को बढ़ावा दिया जाए
मामलों का तर्कसंगत आवंटन
मंत्रालय ने कहा है कि बड़े मामलों को अनुभवी अधिवक्ताओं को सौंपा जाए और छोटे मामलों को प्राथमिकता के अनुसार वितरित किया जाए। अनावश्यक देरी से बचा जाए।
मामलों की ट्रैकिंग और डेटा मिलान
बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे अदालतों में लंबित मामलों का डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम अपनाएं ताकि:
किसी भी केस की स्थिति तुरंत ज्ञात हो सके
वसूली में देरी का कारण स्पष्ट हो
अनुशासन बना रहे
Finmin Directive: DRT की कार्यक्षमता बढ़ाने पर जोर
(i) लंबित मामलों में कमी
DRT में लाखों केस लंबित हैं। इससे न केवल वसूली रुकती है, बल्कि न्यायिक व्यवस्था भी बाधित होती है। सरकार ने बैंकों से कहा है कि वे:
छोटे उधारकर्ताओं से सीधे संपर्क करें
समझौता/सेटलमेंट की नीति अपनाएं
अदालत के बाहर विवाद निपटाएं
(ii) विशेष DRT की नियुक्ति
दिल्ली, मुंबई, चेन्नई में विशेष DRT स्थापित किए गए हैं ताकि उच्च-मूल्य वाले ऋण मामलों का त्वरित निपटारा हो।

Finmin Directive: कानूनों में बदलाव की तैयारी
वित्त मंत्रालय अब SARFAESI और DRT अधिनियम में संशोधन करने की तैयारी कर रहा है। इससे:
ऋण वसूली की प्रक्रिया अधिक त्वरित होगी
बैंकों को अधिक कानूनी अधिकार मिलेंगे
ई-नीलामी और डिजिटल नोटिस की प्रक्रिया कानूनी रूप से और अधिक प्रभावी होगी
Finmin Directive: डिजिटल प्लेटफॉर्म और निगरानी प्रणाली
(i) ई-नीलामी प्लेटफॉर्म का उपयोग
बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे संपत्तियों की नीलामी के लिए ई-नीलामी पोर्टल का उपयोग करें, ताकि:
पारदर्शिता बनी रहे
मूल्य में हेरफेर रोका जा सके
खरीदारों का विश्वास बढ़े
(ii) निगरानी प्रणाली की स्थापना
हर बैंक को अपने मामलों की समीक्षा के लिए आंतरिक निगरानी तंत्र बनाना होगा, जिसमें वरिष्ठ अधिकारी हर केस की प्रगति पर नज़र रखेंगे।
NCLT और NARCL मामलों की सतत निगरानी
बड़े कॉरपोरेट लोन मामलों को अक्सर NCLT में भेजा जाता है। वित्त मंत्रालय चाहता है कि:
बैंकों के अधिकारी हर सुनवाई में उपस्थित रहें
समय-सीमा के भीतर समाधान सुनिश्चित करें
NARCL को सौंपे गए मामलों में नियमित फॉलोअप करें
Finmin Directive: समझौता नीति पर सतर्कता
कई बार बैंक चूककर्ताओं से समझौता कर लेते हैं — लेकिन यदि ये समझौते सही तरीके से न हों तो:
बैंक को घाटा हो सकता है
जनता का पैसा खतरे में पड़ सकता है
जानबूझकर चूककर्ता लाभ उठा सकते हैं
इसलिए मंत्रालय ने बैंकों को कहा है कि वे सख्त मानदंडों के तहत ही समझौता करें, और केवल उन्हीं मामलों में जहाँ वाकई में वसूली संभव हो।
Finmin Directive: वसूली एजेंटों के लिए नैतिक आचरण निर्देश
भारतीय रिज़र्व बैंक ने वसूली एजेंटों के लिए सख्त Finmin Directive जारी किए हैं:
सुबह 8 बजे से पहले और रात 7 बजे के बाद कोई कॉल नहीं
गाली-गलौच, धमकी या हिंसा बिल्कुल नहीं
ग्राहक की गोपनीयता का पूर्ण सम्मान
एजेंटों के लिए प्रशिक्षण अनिवार्य
Finmin Directive: भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियाँ
संभावनाएं:
बैंकों की वसूली दर बेहतर होगी
NPA में गिरावट आएगी
निवेशकों और ग्राहकों का विश्वास बढ़ेगा
बैंकों की बैलेंस शीट मजबूत होगी
चुनौतियाँ:
DRT और NCLT जैसे मंचों पर केसों की भारी भीड़
कानूनी अड़चनें और अपील की लंबी प्रक्रिया
संपत्तियों का उचित मूल्य न मिलना
उधारकर्ताओं की दिवालियापन की रणनीति
Finmin Directive बैंकों की आंतरिक रणनीति: वसूली विभाग का पुनर्गठन
वित्त मंत्रालय की सख्ती के बाद अब सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों ने अपने-अपने रिकवरी डिपार्टमेंट की आंतरिक समीक्षा शुरू कर दी है:
कर्मचारियों की पुनः तैनाती: अनुभवी अधिकारियों को वसूली से जुड़े कार्यों में लगाया जा रहा है।
विशेष ट्रेनिंग: NPA, SARFAESI, DRT जैसे विषयों पर कर्मचारियों को कानूनी और प्रायोगिक जानकारी दी जा रही है।
टारगेट आधारित निगरानी: हर ब्रांच को समयबद्ध लक्ष्यों के साथ वसूली अभियान चलाने के आदेश मिल रहे हैं।
Finmin Directive: क्षेत्रीय स्तर पर विशेष वसूली शिविर (Recovery Camps)
अब कई बैंक जोनल और रीजनल स्तर पर ऋण वसूली के लिए शिविरों का आयोजन कर रहे हैं:
इसमें उधारकर्ता को आमंत्रित कर समझौते की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
बकाया ऋण पर आंशिक छूट दी जाती है, बशर्ते तुरंत भुगतान किया जाए।
इसका उद्देश्य न्यायालय के बाहर मामला निपटाकर समय व संसाधन बचाना है।
Finmin Directive: कर्ज वसूली में तकनीकी का उपयोग
बैंक अब AI आधारित सॉफ़्टवेयर और डेटा एनालिटिक्स का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे:
चूककर्ता की वित्तीय स्थिति का अनुमान लगाया जा सके।
उसके बैंकिंग व्यवहार से यह जाना जा सके कि वह जानबूझकर ऋण नहीं चुका रहा या वास्तव में असमर्थ है।
ऑटोमेटेड नोटिस सिस्टम के ज़रिए समय पर SMS, ईमेल और कॉल के ज़रिए रिमाइंडर भेजे जा सकें।
प्रमुख उदाहरण: SBI और PNB की नई पहल
(i) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI):
SBI ने अपने कानूनी मामलों की समीक्षा के लिए एक वसूली समीक्षा बोर्ड बनाया है।
बड़े मामलों में वरिष्ठ अधिवक्ताओं और पूर्व न्यायाधीशों की सलाह ली जा रही है।
(ii) पंजाब नेशनल बैंक (PNB):
PNB ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों में वसूली का एक डैशबोर्ड सिस्टम विकसित किया है, जिसमें हर शाखा के प्रदर्शन को ट्रैक किया जाता है।
दैनिक, साप्ताहिक और मासिक आधार पर वसूली की रिपोर्ट बनाई जाती है।

बैंकों पर शेयर बाजार और निवेशकों की प्रतिक्रिया
सरकार के इस निर्देश के बाद बैंकों के शेयरों में सकारात्मक हलचल देखी गई है:
निवेशकों को भरोसा है कि यदि कानूनी वसूली में सुधार हुआ तो बैंकों के मुनाफे में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
विदेशी निवेशक भी अब भारतीय बैंकों में सुधार की संभावनाएं देख रहे हैं, जिससे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) में भी वृद्धि हो सकती है।
Finmin Directive: क्या यह पहल केवल PSU बैंकों तक सीमित है?
नहीं, यह Finmin Directive भले ही मुख्य रूप से सरकारी बैंकों (PSBs) के लिए आया हो, लेकिन इसका प्रभाव निजी बैंकों और NBFCs (Non-Banking Financial Companies) पर भी पड़ रहा है:
निजी बैंक भी अब अपनी कानूनी टीमों की समीक्षा कर रहे हैं।
कई बड़े NBFCs जैसे Bajaj Finance, Muthoot आदि ने भी अपने रिकवरी प्रोटोकॉल को मजबूत किया है।
विशेषज्ञों की राय: ये कदम कितने कारगर?
वित्तीय विशेषज्ञों और पूर्व बैंक अधिकारियों का मानना है कि:
अगर यह कदम सिर्फ कागज़ों पर न रहकर नीतिगत क्रियान्वयन में बदलता है, तो यह बैंकिंग सेक्टर के लिए ऐतिहासिक सुधार होगा।
DRT और NCLT की कार्यप्रणाली को डिजिटल बनाना और पारदर्शिता लाना न्यायिक सुधार का भी संकेत है।
लेकिन न्यायिक प्रणाली पर भारी दबाव, अनुभवी स्टाफ की कमी और कानूनी जटिलताएं एक बड़ी चुनौती बनी रहेंगी।
आम नागरिकों और उधारकर्ताओं के लिए क्या संदेश?
Finmin Directive से यह साफ संदेश गया है कि:
सरकार जानबूझकर ऋण न चुकाने वालों को अब नहीं बख्शेगी।
यदि आप वास्तविक कठिनाई में हैं, तो बैंक से संवाद कर समाधान खोज सकते हैं।
लेकिन यदि आपने जानबूझकर ऋण का दुरुपयोग किया है, तो अब आपको कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
मीडिया और समाज में प्रतिक्रिया
कई मीडिया रिपोर्ट्स में इसे “बैंकों के लिए फाइनेंशियल डिसिप्लिन का नया दौर” बताया गया है।
वहीं कुछ सामाजिक संस्थाओं ने यह मांग की है कि छोटे किसानों और निम्न आय वर्ग के ऋणकर्ताओं के लिए विशेष राहत नीति भी साथ में लाई जाए, ताकि नीति संतुलित बनी रहे।
निष्कर्ष:
वित्त मंत्रालय द्वारा बैंकों को कानूनी वसूली प्रक्रियाओं को मज़बूत करने का निर्देश भारतीय बैंकिंग व्यवस्था में एक सकारात्मक और साहसी सुधार की दिशा में उठाया गया कदम है।
Finmin Directive न केवल बैंकों की वित्तीय स्थिरता को सुनिश्चित करने की कोशिश है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि सरकार अब जानबूझकर ऋण न चुकाने वालों के खिलाफ सख्ती से पेश आएगी।
इस कदम से:
बैंकों की वसूली प्रणाली पारदर्शी और प्रभावी बनेगी,
एनपीए पर नियंत्रण पाया जा सकेगा,
और न्यायिक मंचों जैसे DRT, NCLT और SARFAESI एक्ट का उपयोग अब गंभीरता से और प्राथमिकता के साथ किया जाएगा।
हालांकि, इस प्रक्रिया की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इसे नीति के स्तर पर नहीं, ज़मीनी स्तर पर कितनी गंभीरता से लागू किया जाता है। इसके साथ-साथ न्यायिक ढांचे को तेज़, डिजिटल और मानव संसाधनों से युक्त बनाना भी अत्यंत आवश्यक है।
कुल मिलाकर, यह निर्णय भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में उत्तरदायित्व (Accountability), ऋण संस्कृति (Credit Culture) और वित्तीय अनुशासन (Financial Discipline) को सशक्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है — बशर्ते इसे सही तरीके से क्रियान्वित किया जाए।
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