G7 Summit 2025: वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव!
G7: परिचय और महत्व
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ToggleG7 यानी Group of Seven, विश्व के सात प्रमुख औद्योगिक देशों का समूह है जो वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक मामलों में आपसी सहयोग करता है।
ये देश हैं – अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान। यूरोपीय संघ भी इन बैठकों में एक अतिथि के रूप में शामिल होता है।
G7 की बैठकें विश्व की अर्थव्यवस्था, वैश्विक सुरक्षा, पर्यावरण, तकनीक और विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करती हैं। यह समूह उन देशों का प्रतिनिधित्व करता है जिनका वैश्विक अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है।
G7 की स्थापना और इतिहास
1970 के दशक में, जब विश्व आर्थिक संकट चरम पर था, तब विश्व के विकसित औद्योगिक देशों ने मिलकर आर्थिक सहयोग के लिए एक मंच बनाया।
1975 में पहली बार छह देश मिले (फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका), फिर 1976 में कनाडा भी शामिल हुआ और यह जी7 बन गया।
1990 के दशक में रूस को भी शामिल कर G8 बनाया गया, लेकिन 2014 में रूस के क्रीमिया पर कब्जे के कारण उसे निलंबित कर दिया गया और समूह फिर से जी7 बन गया।
G7 के प्रमुख उद्देश्य
1. वैश्विक आर्थिक स्थिरता: जी7 का मुख्य उद्देश्य विश्व अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
2. वैश्विक सुरक्षा: आतंकवाद, अंतरराष्ट्रीय संघर्ष, और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहयोग।
3. जलवायु परिवर्तन: पर्यावरण संरक्षण, हरित ऊर्जा और जलवायु संकट से निपटने के उपाय।
4. स्वास्थ्य: वैश्विक स्वास्थ्य संकट जैसे महामारी पर साझा रणनीतियाँ।
5. तकनीकी नवाचार: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल गवर्नेंस और तकनीकी सहयोग।
6. विकासशील देशों की सहायता: वैश्विक गरीबी और विकास की चुनौतियों पर ध्यान देना।
जी7 की कार्यप्रणाली
जी7 का कोई स्थायी सचिवालय या कानूनी ढांचा नहीं है। यह एक अनौपचारिक मंच है जहां सदस्य देश अपने-अपने नेता, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री आदि प्रतिनिधियों के साथ बैठते हैं।
सालाना शिखर सम्मेलन (Summit) में वैश्विक मुद्दों पर निर्णय लिए जाते हैं, और विभिन्न कार्य समूह इन मुद्दों को गहराई से समझने का काम करते हैं।
G7 की महत्वता – वैश्विक परिप्रेक्ष्य
जी7 देश विश्व के कुल GDP का लगभग 30% हिस्सा संभालते हैं। 2027 तक यह हिस्सा 27% पहुंचने की उम्मीद हैं.ये देश वैश्विक वित्तीय संस्थानों जैसे IMF, World Bank और WTO में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जी7 की बैठकें आर्थिक नीतियों के साथ-साथ वैश्विक राजनीतिक स्थिरता के लिए भी एक महत्वपूर्ण मंच हैं।
G7 का भारत से सम्बंध
भारत जी7 का सदस्य नहीं है, लेकिन दुनिया की एक बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्था होने के नाते, भारत को कई बारजी7 शिखर सम्मेलनों में अतिथि के रूप में बुलाया गया है।
भारत के प्रधानमंत्री भी कई बार इस मंच पर शामिल हुए हैं। जी7 के साथ भारत का सहयोग वैश्विक आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों में उसकी भूमिका को मजबूत करता है।
2025 में जी7 शिखर सम्मेलन: प्रमुख मुद्दे और अपडेट
2025 में जी7 का 51वां शिखर सम्मेलन कनाडा के अल्बर्टा प्रांत में 15 जून से 17 जून तक आयोजित होगा। इस सम्मेलन के एजेंडा में प्रमुख मुद्दे शामिल होंगे:
1. यूक्रेन संकट और रूस पर प्रतिबंध
यूक्रेन की संप्रभुता का समर्थन जारी रखते हुए, रूस पर आर्थिक और राजनयिक प्रतिबंध बढ़ाने पर चर्चा होगी। जी7 देशों ने यूक्रेन को वित्तीय और सैन्य सहायता देने की प्रतिबद्धता दोहराई है।
2. आर्थिक स्थिरता और वैश्विक व्यापार
COVID-19 महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता को कम करने के लिए उपायों पर विचार होगा। व्यापार विवाद, खासकर अमेरिका और जापान के बीच, जैसे ऑटो टैरिफ को लेकर भी चर्चा प्रमुख रहेगी।
3. जलवायु परिवर्तन
ग्लासगो सम्मेलन में लिए गए वादों को लागू करने के लिए हर देश को अपनी जिम्मेदारियां निभानी होंगी।जी7 हरित ऊर्जा निवेश बढ़ाने, कार्बन उत्सर्जन घटाने और स्थायी विकास के लिए रणनीतियाँ बनाएगा।
4. तकनीकी और डिजिटल नीति
AI के प्रभावों को नियंत्रित करने, साइबर सुरक्षा को मजबूत करने और डिजिटल टेक्नोलॉजी के जिम्मेदार उपयोग पर चर्चा होगी।
G7 की चुनौतियाँ और भविष्य
बढ़ती वैश्विक प्रतिस्पर्धा
दुनिया में चीन की बढ़ती ताकत और भारत जैसे देशों के उभरने से जी7 को अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए अधिक समावेशी और लचीला बनना होगा।
सदस्यता विस्तार
भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जी7 में शामिल होने की इच्छा जता चुके हैं। भविष्य में G7 के स्वरूप में बदलाव संभव है ताकि विश्व की आर्थिक और राजनीतिक वास्तविकताओं को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित किया जा सके।

पर्यावरणीय दबाव
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ जी7 के लिए प्राथमिकता बनी रहेंगी। उन्हें स्थायी ऊर्जा स्रोतों की ओर तेजी से बढ़ना होगा और विकासशील देशों को सहायता देना होगा।
जी7 की प्राथमिकताएँ
वैश्विक आर्थिक स्थिरता: सदस्यों के बीच आर्थिक सहयोग और संकट प्रबंधन।
राजनीतिक सहयोग: वैश्विक सुरक्षा और शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान।
पर्यावरण संरक्षण: जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
वैश्विक स्वास्थ्य: महामारी प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार।
तकनीकी नवाचार: डिजिटल अर्थव्यवस्था, AI और साइबर सुरक्षा।
G7 के प्रमुख इतिहास के चरण
1. आर्थिक संकट और G6 की स्थापना (1975)
1970 के दशक की शुरुआत में तेल संकट, मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला दिया। इस चुनौती से निपटने के लिए G6 का गठन हुआ, जो एक अनौपचारिक समूह था। यह समूह आर्थिक नीति समन्वय का एक मंच था।
2. कनाडा का शामिल होना और G7 बनना (1976)
कनाडा के शामिल होने से समूह ने अपना नाम बदलकर G7 रखा। अब समूह की भूमिका केवल आर्थिक सहयोग तक सीमित नहीं रही, बल्कि वैश्विक राजनीतिक मुद्दों पर भी प्रभावी बातचीत शुरू हुई।
3. रूस का प्रवेश और G8 का गठन (1997)
रूस का जी7 में शामिल होना शीत युद्ध के बाद शांति और सहयोग का प्रतीक था। हालांकि रूस का प्रभाव सीमित था, लेकिन इसका शामिल होना वैश्विक सुरक्षा नीति में नया आयाम था।
4. रूस का निलंबन और G7 की पुनर्स्थापना (2014)
2014 में रूस के क्रीमिया अधिग्रहण के बाद उसे समूह से निलंबित कर दिया गया। तब से समूह पुनः G7 के रूप में सक्रिय है, जो वैश्विक सुरक्षा और लोकतंत्र के समर्थन में एकजुट है।
G7 के सदस्य देशों की विशिष्ट भूमिका
अमेरिका
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति, जो वैश्विक नीतियों को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जापान
एशिया की प्रमुख तकनीकी और औद्योगिक शक्ति, जो नवाचार और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय है।
जर्मनी
यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, जो निर्यात और वित्तीय नीतियों में वैश्विक नेतृत्व करता है।
फ्रांस
राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव के साथ, वैश्विक सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी।
यूनाइटेड किंगडम
वैश्विक वित्तीय केंद्र और रक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इटली
यूरोप की पुरानी संस्कृति और अर्थव्यवस्था के साथ, समूह में सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करता है।
कनाडा
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सामाजिक नीतियों के लिए जाना जाता है।
G7 की कार्यप्रणाली और बैठकें
G7 की बैठकें वार्षिक होती हैं, जिनमें सदस्य देशों के नेता, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और अन्य प्रमुख अधिकारी भाग लेते हैं। ये बैठकें किसी सदस्य देश की मेजबानी में होती हैं, जो उस वर्ष की प्राथमिकताओं को तय करता है।
वार्षिक G7 समिट का महत्व
नीतिगत दिशा-निर्देश: वैश्विक आर्थिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर रणनीति बनाना।
बहुपक्षीय सहयोग: संकटों का मिलकर सामना करना, जैसे वित्तीय संकट, महामारी, और पर्यावरणीय आपदाएँ।
विवादों का समाधान: सदस्य देशों के बीच मतभेदों को कम करना और सामूहिक दृष्टिकोण बनाना।
सामाजिक और तकनीकी नवाचार: शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटलाइजेशन पर नई पहलें शुरू करना।
G7 के तकनीकी समूह और कमेटियां
समूह की विभिन्न तकनीकी कमेटियां होती हैं जो आर्थिक नीति, स्वास्थ्य, जलवायु, डिजिटल सुरक्षा, और विकास सहायता जैसे विषयों पर निरंतर काम करती हैं। ये कमेटियां सुझाव और रिपोर्ट तैयार करती हैं, जिन्हें वार्षिक बैठक में प्रस्तुत किया जाता है।
G7 और वैश्विक आर्थिक सुधार
G7 की आर्थिक नीतियां विश्व बाजारों पर बड़ा प्रभाव डालती हैं।
मुद्रा नीति और वित्तीय बाजार
G7 के देशों के केंद्रीय बैंक, जैसे अमेरिकी फेडरल रिजर्व, यूरोपीय सेंट्रल बैंक, जापान बैंक आदि, वैश्विक मुद्रास्फीति और आर्थिक स्थिरता के लिए समन्वित प्रयास करते हैं।
व्यापार और निवेश
G7 समूह मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करता है और वैश्विक निवेश के लिए नियमों को सरल बनाने का प्रयास करता है।
विकासशील देशों के लिए सहायता
G7 के सदस्य विकासशील देशों को तकनीकी, वित्तीय और सामाजिक सहायता प्रदान करते हैं ताकि वैश्विक असमानता कम हो और स्थिर विकास सुनिश्चित हो।

G7 की पर्यावरणीय नीतियाँ और जलवायु परिवर्तन से लड़ाई
जलवायु संकट का समाधान
G7 देशों ने जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कई महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं, जैसे शून्य कार्बन उत्सर्जन, नवीनीकृत ऊर्जा का विकास, और वन संरक्षण।
हाल की पहलें
ग्रीन इन्वेस्टमेंट: साफ ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाना।
प्रदूषण नियंत्रण: उद्योगों और वाहनों से निकलने वाले प्रदूषण को कम करना।
जल संरक्षण: ग्लोबल वॉटर सिक्योरिटी को सुनिश्चित करना।
ग्लासगो क्लाइमेट समिट और G7 की प्रतिबद्धता
2021 के ग्लासगो समिट में G7 ने पेरिस समझौते के तहत अपने लक्ष्यों को मजबूत किया और 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को आधा करने का संकल्प लिया।
G7 का सामाजिक प्रभाव
स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग
COVID-19 महामारी के दौरान G7 ने टीकों का उत्पादन और वितरण बढ़ाने के लिए साझा रणनीतियां बनाई। इसके अलावा, भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने पर बल दिया।
शिक्षा और डिजिटल साक्षरता
डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए G7 ने वैश्विक शिक्षा फंड स्थापित किया है, जिससे विकासशील देशों में ऑनलाइन शिक्षा पहुंच सके।
मानवाधिकार और लोकतंत्र
G7 देशों ने वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों की रक्षा और लोकतंत्र के समर्थन के लिए कई पहलें की हैं।
G7 के सामने आज की बड़ी चुनौतियाँ
चीन और वैश्विक शक्ति संतुलन
चीन की आर्थिक और राजनीतिक ताकत के कारण G7 को अपनी रणनीतियां पुनः परिभाषित करनी पड़ रही हैं। चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और तकनीकी विस्तार विश्व शक्ति संरचना में बदलाव ला रहा है।
कोविड-19 के बाद की दुनिया
महामारी के प्रभावों को समेटना, स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत बनाना, और आर्थिक रिकवरी का संतुलित मॉडल बनाना G7 के लिए चुनौतीपूर्ण है।
वैश्विक असमानता और गरीबी
विश्व स्तर पर आर्थिक असमानता बढ़ रही है। G7 को विकासशील देशों की आर्थिक सहायता बढ़ानी होगी ताकि वैश्विक गरीबी कम हो सके।
G7 के भविष्य के प्रयास
समावेशी वैश्विक व्यवस्था
G7 को उभरती अर्थव्यवस्थाओं जैसे भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, और दक्षिण कोरिया को भी संवाद में शामिल करना होगा ताकि वैश्विक चुनौतियों का बेहतर समाधान निकाला जा सके।
तकनीकी सहयोग और नवाचार
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम कंप्यूटिंग, और ग्रीन टेक्नोलॉजी में सहयोग बढ़ाकर G7 वैश्विक नेतृत्व बनाए रख सकता है।
पर्यावरणीय स्थिरता
पृथ्वी की जैव विविधता बचाने और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए अधिक कठोर और प्रभावी नीतियाँ लागू करनी होंगी।
भारत और G7: सहयोग की नई ऊँचाइयाँ
भारत, अपनी विशाल आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण G7 के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बन गया है। भारत की डिजिटल क्रांति, हरित ऊर्जा योजनाएं, और वैश्विक स्वास्थ्य प्रयास G7 के एजेंडा में फिट बैठती हैं।
भारत की भूमिका
डिजिटल इंडिया: तकनीकी सहयोग और डेटा सुरक्षा पर साझेदारी।
नवीनीकृत ऊर्जा: सोलर और विंड एनर्जी में निवेश और तकनीकी हस्तांतरण।
वैश्विक स्वास्थ्य: टीकाकरण, महामारी नियंत्रण में सहयोग।
ग्लोबल गवर्नेंस: G20, BRICS के साथ मिलकर वैश्विक नीतियों पर प्रभाव।
निष्कर्ष: जी7 का वैश्विक परिदृश्य में महत्व और भविष्य
G7, विश्व के सबसे विकसित और प्रभावशाली देशों का समूह, आज भी वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था, और पर्यावरणीय नीतियों में अहम भूमिका निभा रहा है। इसकी सदस्यता में आने वाले देशों के संयुक्त प्रयास विश्व की स्थिरता, समृद्धि, और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
हालांकि वैश्विक शक्ति संतुलन बदल रहा है और उभरती अर्थव्यवस्थाओं का योगदान बढ़ रहा है, जी7 ने खुद को बदलते विश्व के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश की है।
जलवायु परिवर्तन, महामारी, आर्थिक असमानता जैसे वैश्विक संकटों से निपटने में इसकी सक्रियता इसे एक प्रभावशाली मंच बनाती है।
भविष्य में जी7 को अधिक समावेशी और बहुपक्षीय दृष्टिकोण अपनाना होगा, जिसमें उभरती अर्थव्यवस्थाओं और नए वैश्विक खिलाड़ियों को भी जगह दी जाए। तकनीकी नवाचार, पर्यावरणीय स्थिरता, और वैश्विक शांति के लिए इसके प्रयास जारी रहेंगे।
अंततः, जी7 का प्रभाव केवल अपने सदस्यों तक सीमित नहीं, बल्कि यह वैश्विक समुदाय के लिए मार्गदर्शक और सहयोगी का कार्य करता रहेगा।
एकजुटता, नवाचार, और जवाबदेही के आधार पर जी7 दुनिया के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने में नेतृत्व करता रहेगा और स्थायी विकास की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देगा।
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