Lee Jae-myung South Korea new elected president: पीएम मोदी की बधाई के पीछे क्या है छिपा संदेश?
प्रस्तावना
Table of the Post Contents
Toggle3 जून 2025 को एक ऐतिहासिक राजनीतिक मोड़ पर दक्षिण कोरिया ने Lee Jae-myung को अपना नया राष्ट्रपति चुना। इस परिवर्तनकारी पल पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ली जे-म्युंग को हार्दिक बधाई दी और भारत-दक्षिण कोरिया संबंधों को और मजबूत करने की इच्छा जताई।
यह चुनाव केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं थी, बल्कि एक संकल्प था — लोकतंत्र की पुनर्स्थापना, न्यायप्रिय शासन और वैश्विक साझेदारी की दिशा में।
कौन हैं Lee Jae-myung?
Lee Jae-myungका जीवन उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो सीमित संसाधनों के बीच बड़ा सपना देखते हैं।
Lee Jae-myungका जन्म 1963 में हुआ था, एक अत्यंत निर्धन परिवार में।
बचपन में कारखानों में काम करते हुए उन्होंने अपने परिवार की मदद की।
कठिन परिश्रम से पढ़ाई की और एक मानवाधिकार वकील बने।
सियोंगनाम शहर के मेयर और बाद में ग्योंगगी प्रांत के गवर्नर के रूप में जनता-सेवा की।
2025 में वे देश के राष्ट्रपति बने, एक ऐसे समय जब दक्षिण कोरिया राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था।
उनकी यात्रा एक सामाजिक कार्यकर्ता से राष्ट्र के सर्वोच्च पद तक, उनके संघर्षशील जीवन और नेतृत्व की गहराई को दर्शाती है।
चुनाव का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
दक्षिण कोरिया में यह चुनाव सामान्य परिस्थितियों में नहीं हुआ। पूर्व राष्ट्रपति यून सुक-योल के शासन में राजनीतिक असंतोष, आर्थिक असमानता और सैन्यकरण की प्रवृत्तियों ने जनता के भीतर रोष पैदा कर दिया।
2025 के शुरुआती महीनों में भारी जनआंदोलन और विरोध प्रदर्शन हुए।
समय से पहले राष्ट्रपति चुनाव की घोषणा की गई।
Lee Jae-myung ने लगभग 49.4% वोट हासिल कर निर्णायक जीत दर्ज की।
यह चुनाव दक्षिण कोरियाई लोकतंत्र की नई परिभाषा लेकर आया — जनता की शक्ति और संवैधानिक मूल्यों की जीत।
पीएम मोदी की बधाई: भारत और कोरिया के रिश्तों का नया अध्याय
प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत ट्विटर (अब X) और आधिकारिक चैनलों के ज़रिये ली जे-म्युंग को बधाई दी:
> “आपकी शानदार जीत पर शुभकामनाएं, राष्ट्रपति ली जे-म्युंग। भारत और कोरिया की विशेष रणनीतिक साझेदारी को हम और नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।”
यह बयान एक कूटनीतिक औपचारिकता से कहीं बढ़कर था। यह भारत-दक्षिण कोरिया के संबंधों के भविष्य की घोषणा थी। पीएम मोदी की विदेश नीति हमेशा से “एक्ट ईस्ट” को प्राथमिकता देती रही है, और दक्षिण कोरिया इसका एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।
भारत-दक्षिण कोरिया: साझेदारी का स्वरूप
भारत और दक्षिण कोरिया के बीच संबंध केवल कूटनीतिक ही नहीं, बल्कि रणनीतिक, तकनीकी, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी गहरे हैं:
आर्थिक सहयोग
दक्षिण कोरिया, भारत में टॉप 10 निवेशक देशों में से एक है।
सैमसंग, हुंडई, LG जैसी कोरियन कंपनियाँ भारत में लाखों लोगों को रोज़गार देती हैं।
रक्षा और तकनीकी सहयोग
दोनों देशों ने रक्षा विनिर्माण और अनुसंधान में सहयोग को गहरा किया है।
DRDO और दक्षिण कोरियाई रक्षा एजेंसियां संयुक्त प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं।

सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान
K-Pop और कोरियन ड्रामा भारत में लोकप्रिय हैं, वहीं भारतीय योग और आयुर्वेद कोरिया में प्रसिद्ध हैं।
छात्रवृत्तियाँ और शैक्षणिक एक्सचेंज कार्यक्रम दोनों देशों में हो रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी और Lee Jae-myung की बातचीत से यह साफ़ संकेत गया है कि यह संबंध अब “व्यापारिक साझेदारी” से आगे बढ़कर “लोकतांत्रिक साझेदारी” बनने जा रहे हैं।
Lee Jae-myung की नीतियाँ: क्या बदल सकता है एशिया में?
राष्ट्रपति Lee Jae-myung ने अपने शपथग्रहण के बाद जो बातें कहीं, उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे केवल कोरियन जनता के नेता नहीं, बल्कि एशिया के लोकतांत्रिक मूल्यों के भी रक्षक बनना चाहते हैं।
1. लोकतंत्र की पुनर्स्थापना
उन्होंने कहा कि वे सैन्य सख्ती नहीं, बल्कि पारदर्शिता, संवाद और सार्वजनिक जवाबदेही के माध्यम से शासन करेंगे।
2. आर्थिक न्याय और कल्याण
चार दिवसीय कार्य सप्ताह
सार्वजनिक परिवहन मुफ्त
डिजिटल सेवाओं में समान पहुंच
3. विदेश नीति का नया चेहरा
उत्तर कोरिया से फिर से बातचीत शुरू करने का वादा
चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाए रखना
भारत, जापान, ASEAN देशों के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करना
क्या भारत को इससे लाभ होगा?
निश्चित ही — भारत की दृष्टि से यह एक सकारात्मक बदलाव है।
रणनीतिक दृष्टि से: एक स्थिर और लोकतांत्रिक कोरिया भारत के एक्ट ईस्ट पॉलिसी को मजबूती देगा।
व्यापारिक दृष्टि से: नए डिजिटल और ग्रीन इकोनॉमी प्रोजेक्ट्स में भारतीय कंपनियों को साझेदारी के अवसर मिलेंगे।
सांस्कृतिक दृष्टि से: योग, पर्यटन, सिनेमा जैसे क्षेत्रों में भारतीय प्रभाव कोरियाई समाज में और बढ़ेगा।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों के अनुसार:
“यह बदलाव भारत-दक्षिण कोरिया संबंधों के लिए एक टर्निंग पॉइंट है।”
“राष्ट्रपति Lee Jae-myung की भारत के प्रति सकारात्मक सोच, आने वाले समय में द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना कर सकती है।”
“मोदी और Lee Jae-myung, दोनों राष्ट्रवादी और विकासवादी सोच के नेता हैं — इस साझेदारी में अपार संभावनाएं हैं।”
भारत-दक्षिण कोरिया: भविष्य की रणनीति
Lee Jae-myung और पीएम मोदी दोनों तकनीकी नवाचार, ग्रीन एनर्जी और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करते हैं। यही कारण है कि दोनों देशों के लिए आने वाला दशक साझा विकास और रणनीतिक एकजुटता का युग हो सकता है।
1. डिजिटल इंडिया और स्मार्ट कोरिया
भारत का “डिजिटल इंडिया मिशन” और कोरिया का “स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट” मिलकर नए तकनीकी मॉडल तैयार कर सकते हैं।
भारतीय IT इंजीनियर और कोरियन हार्डवेयर कंपनियाँ मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर और साइबर सिक्योरिटी के क्षेत्र में बड़े कदम उठा सकती हैं।
2. ग्रीन एनर्जी पर सहयोग
दोनों देश ग्रीन हाइड्रोजन, सोलर एनर्जी और ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) पर साझेदारी कर सकते हैं।
भारत को कोरिया की अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी और कोरिया को भारत का विशाल बाज़ार मिल सकता है।
3. स्टार्टअप और इनोवेशन में भागीदारी
भारत में तेजी से उभरते स्टार्टअप्स और कोरियन तकनीकी विशेषज्ञता से दोनों देश मिलकर यूनिकॉर्न कंपनियाँ बना सकते हैं।
इनोवेशन हब और बिजनेस इनक्यूबेशन सेंटर दोनों देशों में स्थापित किए जा सकते हैं।
रणनीतिक और रक्षा क्षेत्र में संभावनाएँ
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका
Lee Jae-myung ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि वे अमेरिका, जापान और भारत के साथ मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में एक मजबूत लोकतांत्रिक गठबंधन बनाना चाहते हैं।
सामरिक तकनीक और रक्षा निर्माण
DRDO और कोरियन रक्षा कंपनियाँ मिलकर ड्रोन, मिसाइल सिस्टम और आर्टिलरी पर सहयोग कर सकते हैं।
भारत के मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट को कोरियन तकनीक से बल मिलेगा।
भारत के लिए संभावित कूटनीतिक चुनौतियाँ
जहां यह साझेदारी मजबूत दिखती है, वहीं कुछ सावधानियाँ भी ज़रूरी हैं:
1. चीन का प्रभाव: दक्षिण कोरिया को चीन से व्यापारिक रूप से भी बहुत कुछ मिलता है, अतः भारत को कूटनीतिक संतुलन बनाना होगा।
2. उत्तर कोरिया की अनिश्चितता: अगर कोरियन प्रायद्वीप में तनाव बढ़ता है तो भारत को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
3. अमेरिकी प्रभाव: कोरिया की विदेश नीति में अमेरिका की भूमिका भारत के लिए सहयोग को कुछ हद तक सीमित कर सकती है।

वैश्विक स्तर पर भारत और कोरिया की साझेदारी
संयुक्त राष्ट्र में सहयोग
जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद जैसे मुद्दों पर दोनों देश संयुक्त रूप से प्रस्ताव लाने में अग्रसर हो सकते हैं।
जी20 और ASEAN में संयुक्त रणनीति
2023 में भारत ने G20 की अध्यक्षता की, अब कोरिया उसके अनुभवों से सीख सकता है।
ASEAN देशों में भारत और कोरिया मिलकर सांस्कृतिक और व्यापारिक प्रभाव बढ़ा सकते हैं।
Lee Jae-myung: कोरियाई जनता की मोदी के प्रति दृष्टि
Lee Jae-myung के समर्थन में कोरियन युवाओं ने भी भारत के साथ संबंधों पर सकारात्मक राय दी है। वहां के सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता भी देखी गई है, विशेष रूप से उनकी डिजिटल नीतियों, वैश्विक दृष्टिकोण और ऊर्जा सुरक्षा रणनीति के लिए।
विश्लेषण: क्यों पीएम मोदी की बधाई महत्वपूर्ण है?
इस बधाई के पीछे केवल शिष्टाचार नहीं, बल्कि रणनीतिक संदेश छिपा है:
- भारत एक लोकतांत्रिक एशियाई धुरी बनना चाहता है।
भारत कोरिया के साथ समान मूल्यों वाला साझेदार बनकर उभर रहा है।
भारत ने संकेत दिया है कि वह दक्षिण कोरिया के लोकतंत्र को वैश्विक मंच पर समर्थन देगा।
निष्कर्ष: एक नई शुरुआत की ओर भारत-दक्षिण कोरिया संबंध
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा Lee Jae-myung को दक्षिण कोरिया का नया राष्ट्रपति चुने जाने पर दी गई बधाई, केवल एक औपचारिक कूटनीतिक कदम नहीं है — बल्कि यह एक नए युग की शुरुआत का संकेत है।
यह युग होगा तकनीक, लोकतंत्र, अर्थव्यवस्था और वैश्विक शांति का, जहाँ भारत और दक्षिण कोरिया मिलकर एशिया ही नहीं, पूरे विश्व में संतुलन और स्थायित्व की नई परिभाषा गढ़ सकते हैं।
यह बधाई बताती है कि:
भारत, दक्षिण कोरिया के साथ अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के उच्च स्तर पर ले जाना चाहता है।
दोनों देश लोकतंत्र, नवाचार और वैश्विक सहयोग में समान सोच रखते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की यह बधाई भविष्य की संभावनाओं को सशक्त संदेश देती है कि भारत एशिया में लोकतांत्रिक सहयोगियों के साथ एकजुट होकर आगे बढ़ना चाहता है।
भविष्य की दिशा:
डिजिटल सहयोग, रक्षा साझेदारी, ग्रीन एनर्जी, और वैश्विक मंचों पर संयुक्त रणनीति — यह सब आने वाले वर्षों में इस रिश्ते को और मजबूत करेंगे।
भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ और दक्षिण कोरिया की ‘न्यू साउथ पॉलिसी’ मिलकर Indo-Pacific क्षेत्र में संतुलन और स्थायित्व बनाएंगे।
वैश्विक संदर्भ में:
चीन के बढ़ते प्रभाव और उत्तर कोरिया की अस्थिरता के बीच भारत और दक्षिण कोरिया की साझेदारी एक स्थिर विकल्प बन सकती है।
भारत कोरियन टेक्नोलॉजी और निवेश से लाभान्वित होगा, वहीं कोरिया को भारत का विशाल बाज़ार और वैश्विक दृष्टिकोण मिलेगा।
Related
Discover more from Aajvani
Subscribe to get the latest posts sent to your email.