Project Elephant: भारत में एशियाई हाथियों की सुरक्षा का सबसे बड़ा अभियान
प्रस्तावना
भारत की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर में हाथियों का स्थान सर्वोपरि है। हाथी न केवल हमारे धार्मिक और ऐतिहासिक जीवन का हिस्सा हैं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में इन्हें राष्ट्रीय धरोहर पशु (National Heritage Animal) का दर्जा प्राप्त है।
लेकिन बढ़ते शहरीकरण, वनों की कटाई, अवैध शिकार (Poaching), दाँतों (Ivory) की तस्करी और मानव-हाथी संघर्ष (Human-Elephant Conflict) के कारण एशियाई हाथियों की संख्या में तेजी से कमी आई। इस संकट से निपटने और हाथियों को बचाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1992 में “Project Elephant” की शुरुआत की।
Project Elephant की पृष्ठभूमि और इतिहास
शुरुआत का वर्ष: 1992
नियंत्रण: पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)
प्रेरणा: 1973 में शुरू किए गए Project Tiger की सफलता ने इस प्रोजेक्ट को जन्म दिया।
उद्देश्य: हाथियों और उनके आवास की रक्षा, मानव-हाथी संघर्ष को कम करना, और कैद में रखे हाथियों का कल्याण।
भारत में हाथियों की आबादी हजारों वर्षों से रही है। ऋग्वेद, महाभारत, रामायण और बौद्ध साहित्य में हाथियों का वर्णन मिलता है। लेकिन 20वीं सदी के उत्तरार्ध तक आते-आते हाथियों की संख्या तेजी से घटी। इसी गिरावट को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एक विशेष योजना बनाई – जिसे हम आज Project Elephant कहते हैं।
Project Elephant के मुख्य उद्देश्य
1. हाथियों का संरक्षण
जंगली हाथियों की जनसंख्या को स्थिर और सुरक्षित बनाना।
अवैध शिकार और दाँतों की तस्करी पर रोक लगाना।
2. हाथियों के आवास और गलियारों की रक्षा
हाथियों के Migration Corridors को संरक्षित करना।
जंगलों और जलस्रोतों को संरक्षित करना ताकि हाथियों के प्राकृतिक जीवन चक्र पर असर न पड़े।
3. मानव-हाथी संघर्ष को कम करना
ग्रामीण और हाथियों के बीच टकराव की घटनाएँ घटाना।
फसलों की क्षति और जनहानि की भरपाई करना।
4. कैद में रखे हाथियों का कल्याण
मंदिरों, सर्कस और लकड़ी ढोने वाले हाथियों की देखभाल।
उनके लिए चिकित्सा सुविधाएँ और उचित आहार की व्यवस्था।
5. अनुसंधान और जागरूकता
हाथियों के संरक्षण के लिए वैज्ञानिक अध्ययन।
आम जनता में जागरूकता फैलाना।
भारत में हाथियों का महत्व
सांस्कृतिक महत्व
भगवान गणेश का स्वरूप हाथी के सिर से जुड़ा हुआ है।
प्राचीन काल से हाथी शाही शक्ति और समृद्धि का प्रतीक रहे हैं।
त्यौहारों और धार्मिक समारोहों में हाथियों का विशेष स्थान है।
पारिस्थितिक महत्व
हाथी को “Keystone Species” कहा जाता है।
यह जंगल में बीजों का प्रसार (Seed Dispersal) करके वृक्षों की वृद्धि में मदद करता है।
हाथियों को Mega Herbivore भी कहा जाता है, जो वनस्पतियों के संतुलन को बनाए रखते हैं।

भारत में हाथियों की वर्तमान स्थिति
भारत में विश्व के लगभग 60% एशियाई हाथी पाए जाते हैं।
2023 के अनुसार: लगभग 27,000 – 30,000 जंगली एशियाई हाथी।
प्रमुख हाथी आबादी वाले राज्य
- कर्नाटक
- असम
- केरल
- तमिलनाडु
- ओडिशा
- उत्तराखंड
- झारखंड
Elephant Reserves in India (Project Elephant के अंतर्गत)
भारत सरकार ने हाथियों के संरक्षण हेतु 33 Elephant Reserves घोषित किए हैं।
प्रमुख रिज़र्व
Periyar Elephant Reserve (Kerala)
Rajaji Elephant Reserve (Uttarakhand)
Kaziranga-Karbi Anglong (Assam)
Singhbhum (Jharkhand)
Mayurbhanj (Odisha)
Wayanad (Kerala)
कानूनी संरक्षण
1. Wildlife Protection Act, 1972 – एशियाई हाथी को Schedule I में रखा गया है।
- CITES (Convention on International Trade in Endangered Species) – Appendix I में शामिल।
- Prevention of Cruelty to Animals Act – कैद में रखे हाथियों के कल्याण हेतु।
Project ElephantHuman-Elephant Conflict (HEC)
मुख्य कारण
वनों की कटाई और शहरीकरण।
खेतों में हाथियों का प्रवेश।
सड़क और रेलवे ट्रैक पर दुर्घटनाएँ।
समाधान
Bio-fencing (मिर्च, मधुमक्खियाँ, नींबू के पौधे)।
Early Warning System।
Compensation योजना।
Elephant Corridors का विकास।
Project Elephant और तकनीक
GPS Collar और Satellite Tracking से निगरानी।
Camera Traps और Drones का उपयोग।
AI-based Early Warning Systems।
Project Elephant की उपलब्धियाँ
33 Elephant Reserves की स्थापना।
Gajah Campaign (2010) का शुभारंभ।
हाथियों की जनसंख्या में स्थिरता।
हाथी गलियारों (Elephant Corridors) पर विशेष ध्यान।
चुनौतियाँ
- Habitat Loss
- अवैध शिकार और दाँतों की तस्करी।
- मानव-हाथी संघर्ष।
- जलवायु परिवर्तन।
- कैद में हाथियों की देखभाल।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
MIKE Program (CITES) – Monitoring the Illegal Killing of Elephants।
WWF, IUCN और Wildlife Trust of India (WTI) का योगदान।

Project Elephant की भविष्य की राह
भारत में हाथियों का संरक्षण केवल एक वन्यजीव सुरक्षा अभियान नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, पारिस्थितिकी और सतत विकास से जुड़ा हुआ है। आने वाले वर्षों में इस परियोजना को और प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. हाथी गलियारों (Elephant Corridors) का वैज्ञानिक विकास
देशभर में लगभग 100 से अधिक हाथी गलियारे (corridors) चिन्हित किए गए हैं।
भविष्य में इन गलियारों को सुरक्षित मार्ग के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि हाथी बिना किसी बाधा के जंगलों के बीच आ-जा सकें।
Railway underpass, overpass और green bridges बनाए जाएँ ताकि हाथियों की सड़क और रेल दुर्घटनाएँ कम हों।
2. स्थानीय समुदाय की भागीदारी
हाथियों का संरक्षण तभी सफल होगा जब स्थानीय ग्रामीण और आदिवासी इसमें सहयोग करेंगे।
सरकार को Eco-tourism और Employment Schemes के माध्यम से स्थानीय लोगों को संरक्षण से जोड़ना होगा।
यदि ग्रामीणों को हाथियों से होने वाले नुकसान की तेज़ और उचित भरपाई मिलेगी, तो वे संरक्षण कार्य में सक्रिय रूप से शामिल होंगे।
3. आधुनिक तकनीक का उपयोग
GPS Collar और Satellite Tracking से हाथियों की गतिविधियों की लगातार निगरानी।
Drone Surveillance और Camera Traps से सुरक्षा और मॉनिटरिंग।
AI आधारित Early Warning Systems बनाकर गाँवों और किसानों को पहले से सूचना देना ताकि Human-Elephant Conflict कम हो।
4. कैद में हाथियों का कल्याण
मंदिरों और पर्यटन में उपयोग किए जाने वाले हाथियों की health monitoring और medical check-ups।
उनके लिए Elephant Rehabilitation Centres की स्थापना।
आधुनिक veterinary facilities और mobile hospitals का विकास।
5. मानव-हाथी संघर्ष का समाधान
Bio-fencing (मिर्च, मधुमक्खियाँ, नींबू आदि) का व्यापक प्रयोग।
ग्रामीणों के लिए Insurance Schemes और नुकसान की भरपाई।
Community-based rapid response teams का गठन ताकि हाथियों को बिना चोट पहुँचाए सुरक्षित रूप से जंगल में लौटाया जा सके।
6. Climate Change और Habitat Restoration
जलवायु परिवर्तन से प्रभावित जंगलों का पुनर्वनीकरण (Reforestation)।
जल स्रोतों का पुनर्जीवन ताकि हाथियों को पानी की कमी से गाँवों की ओर न जाना पड़े।
हाथियों के आवास क्षेत्रों में eco-restoration projects।
7. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
भारत को नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसी देशों के साथ Transboundary Elephant Conservation Programmes चलाने होंगे।
CITES और MIKE Programme के साथ और मजबूत साझेदारी।
8. जन-जागरूकता और शिक्षा
स्कूलों और कॉलेजों में Wildlife Education Programmes।
टीवी, सोशल मीडिया और डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से हाथियों के महत्व पर जन-जागरूकता।
Conservation Volunteers और NGOs को सक्रिय रूप से शामिल करना।
9. शोध और वैज्ञानिक अध्ययन
हाथियों की migration patterns, genetics और health issues पर शोध।
AI और Big Data का प्रयोग करके conservation strategies बनाना।
पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संयोजन।
Project Elephant: निष्कर्ष
Project Elephant: भारत की पहचान केवल अपनी प्राचीन संस्कृति और परंपराओं से नहीं होती, बल्कि यहाँ की अद्वितीय जैव-विविधता से भी है। इस विविधता में हाथी एक ऐसा जीव है, जो न केवल हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रतीक है, बल्कि जंगलों के पारिस्थितिक संतुलन का आधार स्तंभ भी है।
Project Elephant (1992) की शुरुआत ने भारत में हाथियों के संरक्षण को एक नई दिशा दी। इस परियोजना ने हाथियों की जनसंख्या को स्थिर रखने, उनके आवास क्षेत्रों को बचाने, अवैध शिकार पर रोक लगाने और कैद में रखे हाथियों के कल्याण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
फिर भी, चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं—वनों की कटाई, मानव-हाथी संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और तस्करी जैसी समस्याएँ लगातार सामने आ रही हैं। इनसे निपटने के लिए केवल सरकारी नीतियाँ ही पर्याप्त नहीं होंगी; बल्कि इसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी, आधुनिक तकनीक का उपयोग, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी उतना ही जरूरी है।
भविष्य में यदि हम हाथी गलियारों का वैज्ञानिक विकास, मानव-हाथी संघर्ष का स्थायी समाधान, और जन-जागरूकता को प्राथमिकता देंगे, तो निश्चित ही भारत अपने “राष्ट्रीय धरोहर पशु” को सुरक्षित रख पाएगा।
अंततः, Project Elephant केवल हाथियों का संरक्षण कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह उस सोच का प्रतीक है, जिसमें मानव और प्रकृति के बीच संतुलन को सर्वोपरि माना गया है। यदि हम इस परियोजना की भावना को आगे बढ़ाएँ, तो यह न केवल हाथियों बल्कि संपूर्ण जैव-विविधता और मानव सभ्यता दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी।
