Storage-backed Renewable Energy: भारत 2028 तक बनेगा ऊर्जा महाशक्ति?
प्रस्तावना: ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता भारत
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Toggle21वीं सदी में ऊर्जा केवल एक संसाधन नहीं रही, यह देश की रणनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक मजबूती और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व का भी केंद्र बन गई है।
भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में जहां ऊर्जा की मांग तेजी से बढ़ रही है, वहीं अब दुनिया की नजर इस पर टिकी है कि वह अपनी जरूरतें कैसे और किन स्रोतों से पूरी करता है।
इसी पृष्ठभूमि में क्रिसिल रेटिंग्स की ताजा रिपोर्ट ऊर्जा क्षेत्र को लेकर एक नई आशा की किरण लेकर आई है।
क्रिसिल का अनुमान: FY28 तक 25–30 गीगावाट Storage-backed Renewable Energy
भारत की ऊर्जा रणनीति में अब बैटरी स्टोरेज एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है। क्रिसिल रेटिंग्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2024 की शुरुआत में जहां लगभग शून्य स्टोरेज-सक्षम क्षमता पर खड़ा था,
वहीं 2027-28 तक इसमें भारी छलांग लगाते हुए 25 से 30 गीगावाट तक की क्षमता हासिल कर सकता है। यह केवल संख्या नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि भारत ऊर्जा क्षेत्र में तकनीक और स्थिरता दोनों के क्षेत्र में अग्रसर है।
Storage-backed Renewable Energy की आवश्यकता क्यों?
भारत जैसे देश में जहां दिन में सूरज खूब चमकता है और कुछ क्षेत्रों में पवन ऊर्जा की संभावनाएं अपार हैं, वहां अक्षय ऊर्जा की विशाल संभावना है।
परंतु इन स्रोतों की एक बड़ी कमजोरी है – इनकी अनियमितता। सूरज रात में नहीं होता, हवा हर समय नहीं बहती। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि जब बिजली उपलब्ध हो, तब उसे संग्रहित किया जाए ताकि जब ज़रूरत हो, तब उपयोग किया जा सके।
यही तकनीक Storage-backed Renewable Energy कहलाती है, जो बैटरियों या अन्य ऊर्जा संग्रहण माध्यमों के जरिए ग्रिड को स्थिरता प्रदान करती है।
Storage-backed Renewable Energy: क्या कहती है क्रिसिल की रिपोर्ट?
क्रिसिल रेटिंग्स के अनुसार:
Storage-backed Renewable Energy और पवन परियोजनाओं की डिमांड 2024 में बहुत तेज़ी से बढ़ी है।
केंद्र सरकार द्वारा 2024 में जारी कुल अक्षय ऊर्जा निविदाओं में से लगभग 25% (करीब 11 GW) परियोजनाएं स्टोरेज-समर्थित थीं, जबकि 2023 में यह केवल 11% (2.5 GW) थीं।
ग्रिड स्टेबिलिटी और ऊर्जा मांग के अनुसार आपूर्ति के लिए बैटरी स्टोरेज अनिवार्य होता जा रहा है।
Storage-backed Renewable Energy: तकनीकी और आर्थिक चुनौतियां
1. ओवरसाइजिंग की आवश्यकता
Storage-backed Renewable Energy परियोजनाओं को ग्रिड की मांग के अनुसार डिज़ाइन किया जाता है, जिसमें लगातार ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करनी होती है।
इसके लिए पावर प्लांट की ‘ओवरसाइजिंग’ की जाती है। उदाहरण के लिए, यदि एक परियोजना को 1 GW की ऊर्जा देनी है, तो वास्तविक रूप में उसे 2.5–3 GW क्षमता का बनाना पड़ता है। इससे पूंजीगत लागत (CapEx) बढ़ जाती है।
2. लंबी अवधि की बिजली खरीद समझौते (PPA)
ऐसी परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक टैरिफ आधारित PPA आवश्यक होते हैं। हालांकि कुछ परियोजनाओं को 25 साल तक के लिए PPA मिल गए हैं, लेकिन बाकी को अधिक टैरिफ (लगभग 50-55% ज्यादा) पर खरीदार नहीं मिल रहे हैं, जिससे निवेशकों की चिंता बढ़ रही है।
3. बैटरी स्टोरेज की लागत
भारत में अब भी बैटरी स्टोरेज तकनीक महंगी है, खासकर Lithium-Ion आधारित समाधान। हालाँकि, वैश्विक स्तर पर बैटरियों की कीमतें गिर रही हैं, लेकिन अब भी यह व्यावसायिक रूप से चुनौतीपूर्ण है।

Storage-backed Renewable Energy: नीतिगत समर्थन और सरकार की भूमिका
भारत सरकार का लक्ष्य 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता तक पहुँचना है। इसके तहत केंद्र और राज्य सरकारें निम्नलिखित कदम उठा रही हैं:
1. ऊर्जा मंत्रालय की निविदाएं और गाइडलाइंस
ऊर्जा मंत्रालय ने स्टोरेज युक्त ग्रीन एनर्जी टेंडरों को प्राथमिकता दी है।
रिवर्स बिडिंग सिस्टम के तहत ऐसे टेंडर अधिक प्रतिस्पर्धी बन गए हैं।
2. पीएलआई योजना
भारत में बैटरी निर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने “प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI)” स्कीम शुरू की है, जिसका उद्देश्य घरेलू स्तर पर सस्ती बैटरियों का उत्पादन है।
3. ग्रीन हाइड्रोजन मिशन
Storage-backed Renewable Energy प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ भारत ग्रीन हाइड्रोजन पर भी जोर दे रहा है, जिससे ऊर्जा को और अधिक स्वच्छ और दीर्घकालिक बनाया जा सके।
राज्य स्तर की पहलें: उदाहरण जो दिशा दिखाते हैं
राजस्थान:
राजस्थान न केवल सौर ऊर्जा के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि अब Storage-backed Renewable Energy परियोजनाओं का भी केंद्र बन रहा है। पिछले 18 महीनों में राज्य ने 10 GW से अधिक अक्षय ऊर्जा जोड़ी है।
2030 तक राज्य का लक्ष्य 115 GW से अधिक अक्षय क्षमता प्राप्त करना है, जिसमें Storage-backed Renewable Energy के साथ परियोजनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
आंध्र प्रदेश:
यहां ReNew पावर ने ₹22,000 करोड़ के निवेश से भारत की सबसे बड़ी एकीकृत ग्रीन एनर्जी परियोजना की शुरुआत की है, जिसमें पवन, सौर और बैटरी स्टोरेज को एकसाथ जोड़ा गया है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: Storage-backed Renewable Energy में भारत की स्थिति
दुनियाभर में अक्षय ऊर्जा उत्पादन के साथ-साथ अब ऊर्जा स्टोरेज को भी रणनीतिक प्राथमिकता दी जा रही है।
विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अपने ग्रिड को स्थिर बनाने और लचीलापन लाने के लिए स्टोरेज में बड़े निवेश कर रहे हैं।
1. अमेरिका
अमेरिका ने 2023 में लगभग 10 GW बैटरी स्टोरेज की क्षमता स्थापित की।
‘Inflation Reduction Act’ के तहत बैटरी स्टोरेज पर भारी टैक्स क्रेडिट्स दिए गए हैं।
ग्रिड स्टेबिलिटी और EV चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए बैटरियों का उपयोग तेज़ी से बढ़ रहा है।
2. चीन
चीन विश्व का सबसे बड़ा बैटरी स्टोरेज उत्पादक और उपभोक्ता दोनों है।
2030 तक उसका लक्ष्य है 100 GW से अधिक स्टोरेज क्षमता।
उसकी बैटरी निर्माण इकाइयां विश्व बाजार के 60% से अधिक हिस्से को नियंत्रित करती हैं।
3. भारत की स्थिति
भारत अभी वैश्विक सूची में Storage-backed Renewable Energy के क्षेत्र में पीछे है, लेकिन तेजी से पकड़ बना रहा है।
क्रिसिल के अनुसार यदि वर्तमान नीति और निवेश प्रवृत्तियां बनी रहीं, तो भारत FY28 तक वैश्विक स्टोरेज बाजार में तीसरे स्थान पर आ सकता है।
तकनीकी पहलू: बैटरी स्टोरेज का विज्ञान
1. लिथियम-आयन बैटरियां (Li-ion)
वर्तमान में भारत में ज्यादातर प्रोजेक्ट Li-ion बैटरियों पर निर्भर हैं।
इनकी दक्षता उच्च (90–95%) होती है और ये कई वर्षों तक टिकाऊ रहती हैं।
मुख्य समस्या है लागत और भारत में लिथियम की कमी।
2. फ्लो बैटरियां (Flow Batteries)
लंबी अवधि तक ऊर्जा स्टोर करने की क्षमता रखती हैं।
भारत में प्रयोग सीमित है, लेकिन भविष्य में ग्रिड-लेवल स्टोरेज के लिए यह उपयुक्त विकल्प हैं।
3. पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज
यह तकनीक पहाड़ी क्षेत्रों में जलाशयों के माध्यम से ऊर्जा स्टोर करती है।
भारत के कुछ हिस्सों में इसका उपयोग पहले से हो रहा है, जैसे हिमाचल और उत्तराखंड।
4. थर्मल स्टोरेज
CSP (Concentrated Solar Power) प्लांट्स के साथ उपयोग किया जाता है।
रेगिस्तानी क्षेत्रों में जहां सौर ताप अधिक है, वहां यह प्रभावी है।
निवेश और फंडिंग की स्थिति
1. निजी कंपनियों की रुचि
Adani Green, Tata Power, JSW Energy, ReNew Power, Greenko जैसी बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में प्रवेश कर चुकी हैं।
ReNew की आंध्र प्रदेश परियोजना में ₹22,000 करोड़ का निवेश इसका उदाहरण है।
2. विदेशी निवेश
Abu Dhabi Investment Authority, Brookfield, BlackRock, TotalEnergies जैसे अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारत के स्टोरेज-समर्थित प्रोजेक्ट्स में हिस्सेदारी ले रहे हैं।
2023–24 में इस क्षेत्र में लगभग $2.8 बिलियन का विदेशी निवेश आया।
3. ग्रीन बांड और ESG फंड्स
Storage-backed Renewable Energy परियोजनाएं अब ग्रीन बांड्स और पर्यावरणीय सामाजिक शासन (ESG) फंड्स के लिए आकर्षक विकल्प बन गई हैं।
SEBI ने ग्रीन फाइनेंस को आसान बनाने के लिए नीतियों में संशोधन किया है।
विकास में बाधाएं और समाधान
बाधाएं:
1. विनियामक अस्पष्टता – कुछ राज्यों में स्टोरेज को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
2. लागत उच्च – बैटरियों की कीमत और प्रोजेक्ट लागत अभी भी अधिक है।
3. स्थानीय निर्माण की कमी – अधिकांश बैटरियां आयातित होती हैं।
4. ग्रिड एकीकरण में तकनीकी चुनौतियां – बैकअप और फ्रीक्वेंसी स्थिरता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण।
समाधान:
1. नीति समन्वय – केंद्र और राज्यों के बीच एकीकृत नीतियों का निर्माण।
2. स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा – PLI योजना के तहत बैटरी निर्माण इकाइयों की स्थापना।
3. R&D में निवेश – IITs और निजी प्रयोगशालाओं के सहयोग से नई स्टोरेज तकनीकों पर अनुसंधान।
4. डिजिटल ग्रिड मैनेजमेंट – Smart Grid और AI आधारित ऊर्जा संतुलन तकनीकों को अपनाना।
2030 और उससे आगे: भविष्य की रणनीति
भारत का लक्ष्य है कि 2030 तक कुल बिजली उत्पादन का 50% से अधिक गैर-जीवाश्म स्रोतों से हो।
अनुमान है कि तब तक Storage-backed Renewable Energy की आवश्यकता 120–150 GW तक हो सकती है।
भविष्य में स्टोरेज केवल ऊर्जा संतुलन का हिस्सा नहीं होगा, बल्कि यह “डिजिटल ग्रिड इकोसिस्टम” का केंद्र बन जाएगा।
राज्यवार नीति और प्रगति विश्लेषण
भारत के कई राज्य Storage-backed Renewable Energy में अग्रसर हो रहे हैं। कुछ राज्य तो राष्ट्रीय लक्ष्य से भी आगे बढ़कर खुद के लिए उच्च लक्ष्य निर्धारित कर चुके हैं।
1. आंध्र प्रदेश
Greenko और ReNew जैसे बड़े खिलाड़ी यहां स्टोरेज-सक्षम परियोजनाएं विकसित कर रहे हैं।
सरकार ने ग्रिड-स्केल बैटरी स्टोरेज और हाइड्रो-पंप प्रोजेक्ट्स के लिए विशेष भूमि नीति बनाई है।
2. गुजरात
गुजरात 2025 तक 5 GW स्टोरेज क्षमता का लक्ष्य लेकर चल रहा है।
Hybrid Policy के तहत बैटरी स्टोरेज को प्राथमिकता दी गई है।
3. राजस्थान
सौर ऊर्जा में अग्रणी राज्य अब स्टोरेज-सक्षम संयंत्रों की तरफ अग्रसर हो रहा है।
Bhadla Solar Park के आसपास बैटरियों के लिए अतिरिक्त ज़ोन चिन्हित किए जा रहे हैं।
4. महाराष्ट्र
इंडस्ट्रियल हब होने के कारण, यहां रेसिडेंशियल और औद्योगिक दोनों क्षेत्रों में बैटरी स्टोरेज की मांग बढ़ रही है।
MSEDCL द्वारा Grid-connected स्टोरेज के पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए जा चुके हैं।
5. कर्नाटक और तमिलनाडु
इन राज्यों में बड़े पैमाने पर पवन और सौर संयंत्र पहले से ही संचालित हैं।
अब सरकारें इन संयंत्रों के साथ स्टोरेज सिस्टम जोड़ने के लिए नीतिगत संशोधन कर रही हैं।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
1. रोजगार का सृजन
Storage-backed Renewable Energy परियोजनाओं से इंजीनियरिंग, विनिर्माण, संचालन और डेटा प्रबंधन में हजारों नौकरियां उत्पन्न हो सकती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में बैटरी ऑपरेटर, सिस्टम टेक्नीशियन जैसी स्किल्ड भूमिकाओं की मांग बढ़ेगी।
2. ग्रामीण विद्युतीकरण को गति
स्टोरेज-सक्षम माइक्रो ग्रिड्स उन गांवों में स्थायी बिजली प्रदान कर सकते हैं जहां अभी भी ग्रिड नहीं पहुंचा।
शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता में सुधार संभव होगा।
3. MSMEs को फायदा
बैकअप पावर के रूप में स्टोरेज सिस्टम लगाने से छोटे उद्योगों की निर्भरता डीजल जेनरेटर पर घटेगी।
लंबे समय में ऊर्जा लागत में कमी आएगी।
पर्यावरणीय लाभ और जलवायु परिवर्तन में योगदान
1. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती
जीवाश्म ईंधन आधारित पावर प्लांट्स की निर्भरता कम होते ही CO₂ उत्सर्जन में भारी गिरावट आएगी।
अकेले 25-30 GW Storage-backed Renewable Energy FY28 तक लगभग 60 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन बचा सकती है।
2. वायु गुणवत्ता में सुधार
शहरों में डीजल जेनरेटर की जगह बैटरी आधारित बैकअप सिस्टम अपनाने से धूल, धुएं और ध्वनि प्रदूषण में कमी आएगी।
3. जल संसाधन पर कम दबाव
पारंपरिक थर्मल प्लांट्स की तुलना में बैटरी स्टोरेज और सौर संयंत्रों का जल उपयोग न्यूनतम होता है।
ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय रणनीति
भारत जिस गति से ऊर्जा की मांग में वृद्धि देख रहा है, उसे देखते हुए स्टोरेज की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
1. आत्मनिर्भरता (Energy Independence)
बैटरियों के स्थानीय निर्माण और स्थायी आपूर्ति श्रृंखला के साथ, भारत आयात पर निर्भरता कम कर सकता है।
PLI योजना से घरेलू उत्पादन को बल मिलेगा।
2. सैन्य और रणनीतिक महत्व
सीमावर्ती और दूरस्थ इलाकों में सेना के लिए स्टोरेज-सक्षम ऊर्जा का उपयोग – जैसे लद्दाख में सौर-बैटरी संयंत्र।
आपदा प्रबंधन और रिलीफ अभियानों में भी स्टोरेज सिस्टम अहम भूमिका निभा सकते हैं।
चुनौतियां जो भविष्य में ध्यान देने योग्य होंगी
1. बैटरी अपशिष्ट (Battery Waste Management)
Li-ion बैटरियों के जीवन के अंत में उचित पुनर्चक्रण की व्यवस्था नहीं होने पर भारी पर्यावरणीय खतरा हो सकता है।
सरकार को सख्त E-Waste प्रबंधन नीति बनानी होगी।
2. डेटा सुरक्षा और डिजिटल ग्रिड जोखिम
स्मार्ट ग्रिड्स के चलते साइबर हमलों का खतरा बढ़ सकता है।
सुरक्षित और एन्क्रिप्टेड नियंत्रण प्रणाली विकसित करना अनिवार्य होगा।
3. निवेश स्थायित्व
वैश्विक आर्थिक मंदी या नीतिगत अस्थिरता निवेशकों के विश्वास को प्रभावित कर सकती है।
सरकार को वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए अनुकूल नीति और ऋण गारंटी की व्यवस्था करनी होगी।
आगे की राह
Crisil Ratings की रिपोर्ट केवल एक पूर्वानुमान नहीं है, बल्कि यह भारत के ऊर्जा भविष्य की मजबूत नींव का संकेत है।
यदि सरकार, उद्योग और समाज तीनों मिलकर कार्य करें, तो FY28 तक 25-30 GW Storage-backed Renewable Energy की क्षमता न केवल संभव है, बल्कि इसे पार भी किया जा सकता है।
भारत को चाहिए कि:
- स्पष्ट और लचीली नीति फ्रेमवर्क बनाए
स्थानीय स्टोरेज निर्माण को बढ़ावा दे
नवाचार, अनुसंधान और युवा टैलेंट को प्रोत्साहित करे
हरित और Renewable Energy की ओर जनजागरूकता फैलाए
अंततः, स्टोरेज के साथ संयोजित अक्षय Renewable Energy न केवल एक तकनीकी समाधान है, बल्कि यह भारत की आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक समृद्धि की कुंजी बन सकता है।
ऊर्जा केवल उत्पादन नहीं है – यह भविष्य की दिशा तय करने वाला एक राष्ट्रीय संकल्प है।
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