Amit Shah Indian Languages Section: अब प्रशासन चलेगा भारतीय भाषाओं में!

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Amit Shah Indian Languages Section लॉन्च: अंग्रेज़ी के प्रभाव से आज़ादी की ओर बड़ा कदम!

भूमिका

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भारत, विविध भाषाओं और संस्कृतियों का देश है, जहां प्रत्येक भाषा अपने आप में एक समृद्ध विरासत को संजोए हुए है। स्वतंत्रता के बाद भी, प्रशासनिक कार्यों में अंग्रेज़ी भाषा का प्रभुत्व बना रहा, जिससे आम नागरिकों के लिए सरकारी प्रक्रियाओं को समझना चुनौतीपूर्ण रहा।

इस पृष्ठभूमि में, केंद्रीय Amit Shah अमित शाह ने 6 जून 2025 को ‘Indian Languages अनुभाग’ का उद्घाटन किया, जिसका उद्देश्य प्रशासनिक कार्यों में भारतीय भाषाओं को प्राथमिकता देना और विदेशी भाषा के प्रभाव से मुक्ति दिलाना है ।

‘Indian Languages अनुभाग’ की स्थापना: एक ऐतिहासिक कदम

‘Indian Languages अनुभाग’ (Bharatiya Bhasha Anubhag) को गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के अंतर्गत स्थापित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य है:

प्रशासनिक कार्यों में भारतीय भाषाओं का उपयोग बढ़ाना: सरकारी दस्तावेज़ों, आदेशों और संचार में Indian Languages का प्रयोग सुनिश्चित करना।

अनुवाद सुविधा: विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध सामग्री का अनुवाद कर प्रशासनिक संचार को सभी के लिए सुलभ बनाना।

भाषाई समावेशिता: सभी Indian Languages को समान महत्व देकर प्रशासनिक प्रक्रियाओं को अधिक समावेशी बनाना।

प्रशासनिक कार्यों में Indian Languages का उपयोग

अमित शाह ने कहा कि उनके मंत्रालयों—गृह और सहकारिता—में सभी फाइलें हिंदी में हैं, और अंग्रेज़ी का उपयोग नहीं किया जाता । यह पहल अन्य मंत्रालयों के लिए भी एक उदाहरण है, जिससे प्रशासनिक कार्यों में Indian Languages का उपयोग बढ़ेगा।

शिक्षा और अनुसंधान में Indian Languages की भूमिका

शिक्षा के क्षेत्र में भी Indian Languages को प्राथमिकता दी जा रही है:

मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा: राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में मेडिकल शिक्षा का पाठ्यक्रम हिंदी में उपलब्ध कराया गया है। इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को भी हिंदी में लाने की प्रक्रिया चल रही है ।

प्रवेश परीक्षाएं: JEE और NEET जैसी राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाएं अब 12 भारतीय भाषाओं में आयोजित की जा रही हैं, जिससे छात्रों को उनकी मातृभाषा में परीक्षा देने का अवसर मिल रहा है ।

अनुसंधान और विकास: अमित शाह ने कहा कि अनुसंधान और विकास तभी संभव है जब व्यक्ति अपनी भाषा में सोचता है। इसलिए, अनुसंधान को Indian Languages में प्रोत्साहित किया जा रहा है।

तकनीकी पहल: भाषाओं के लिए अनुवाद सॉफ्टवेयर

राजभाषा विभाग एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित कर रहा है, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल सभी भाषाओं का तकनीकी आधार पर स्वतः अनुवाद कर सकेगा । इससे विभिन्न भाषाओं में प्रशासनिक संचार को सुलभ और प्रभावी बनाया जा सकेगा।

भाषाई एकता और हिंदी की भूमिका

अमित शाह ने स्पष्ट किया कि हिंदी का उद्देश्य अन्य Indian Languages के साथ प्रतिस्पर्धा करना नहीं है, बल्कि उनके साथ मित्रवत संबंध स्थापित करना है।

उन्होंने कहा कि हिंदी और अन्य Indian Languages एक-दूसरे की पूरक हैं और मिलकर देश की सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध करती हैं ।

Indian Languages अनुभाग’ का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य

भारत की आज़ादी के 75 वर्षों बाद भी यदि प्रशासनिक कार्यों में विदेशी भाषा (मुख्यतः अंग्रेज़ी) का अत्यधिक उपयोग हो रहा है, तो यह औपनिवेशिक मानसिकता का संकेत है।

इस मानसिकता को बदलना भारतीय भाषाओं के सम्मान और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में एक आवश्यक कड़ी है।

🇮🇳 औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति का प्रयास

स्वतंत्र भारत में भाषा को लेकर अनेक विवाद हुए।

हालांकि संविधान ने हिंदी और अंग्रेज़ी को प्रशासनिक भाषा के रूप में स्वीकार किया, परंतु व्यवहारिक रूप से अंग्रेज़ी का प्रभुत्व बढ़ता गया।

इससे आम नागरिक, विशेषकर ग्रामीण और गैर-अंग्रेज़ी भाषी समुदाय, सरकारी प्रक्रियाओं से कटे हुए महसूस करने लगे।

अमित शाह का यह कदम औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति और भारत के आत्मसम्मान की ओर बढ़ा एक निर्णायक प्रयास है।

नीति और शासन में Indian Languages का महत्व

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में यदि प्रशासनिक भाषा आम जनमानस की भाषा से मेल न खाए, तो जनसरोकारों की उपेक्षा होती है। Indian Languages अनुभाग इस खाई को पाटने के लिए एक सेतु का कार्य करेगा।

प्रमुख लाभ:

सरल प्रशासन: आम लोग आसानी से सरकारी सूचना और आदेश समझ सकेंगे।

जनभागीदारी में वृद्धि: जब लोग अपनी भाषा में जानकारी पाते हैं, तो उनकी भागीदारी बढ़ती है।

भ्रष्टाचार में कमी: पारदर्शिता बढ़ेगी, क्योंकि अब भाषा बाधा नहीं बनेगी।

लोकतंत्र को मज़बूती: जब हर नागरिक को उसकी भाषा में अधिकारों की जानकारी हो, तब ही सशक्त लोकतंत्र बनता है।

शिक्षा व्यवस्था में Indian Languages की भूमिका

नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा की सिफारिश की गई है। अमित शाह का भाषाई सशक्तिकरण इसी नीति को ज़मीनी स्तर पर लागू करने की दिशा में है।

उल्लेखनीय पहल:

तकनीकी शिक्षा: IIT, AIIMS, NIT जैसे संस्थानों में भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम लागू किए जा रहे हैं।

डिजिटल शिक्षा सामग्री: e-Vidya, DIKSHA, SWAYAM जैसे पोर्टल्स पर हिंदी व अन्य भाषाओं में संसाधन उपलब्ध।

शोध पत्रिकाएं: अब विभिन्न विषयों में भारतीय भाषाओं में शोध लेख प्रकाशित होने लगे हैं।

डिजिटल युग में भाषाओं का समावेश

तकनीक के इस दौर में यदि भारतीय भाषाओं को डिजिटल रूप से सशक्त नहीं किया गया, तो वे पिछड़ जाएंगी। ‘Indian Languages अनुभाग’ इस दिशा में भी प्रयास कर रहा है।

तकनीकी सशक्तिकरण के प्रयास:

अनुवाद सॉफ़्टवेयर: जैसा कि अमित शाह ने बताया, 8वीं अनुसूची की सभी भाषाओं में स्वचालित अनुवाद हेतु सॉफ्टवेयर विकसित किया जा रहा है।

AI आधारित भाषा मॉडल: जैसे ChatGPT को भारतीय भाषाओं में सक्षम किया जा रहा है।

लोकल भाषा में सरकारी वेबसाइटें: अब ज़्यादातर सरकारी वेबसाइटें क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध हैं।

Amit Shah Indian Languages Section: अब प्रशासन चलेगा भारतीय भाषाओं में!
Amit Shah Indian Languages Section: अब प्रशासन चलेगा भारतीय भाषाओं में!

सामाजिक समरसता और भाषाई समानता

भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि पहचान, संस्कृति और गौरव का प्रतीक होती है। जब सभी भारतीय भाषाओं को समान अवसर और सम्मान मिलेगा, तब ही सच्ची एकता संभव होगी।

भाषाई समानता के आयाम:

सभी भाषाओं को समान मान्यता: संविधान की 8वीं अनुसूची में 22 भाषाएं हैं, लेकिन व्यवहार में कुछ को ही प्रमुखता मिलती है। यह पहल संतुलन लाएगी।

राज्य सरकारों को प्रोत्साहन: राज्य सरकारों को प्रशासनिक कामकाज अपनी भाषा में करने के लिए प्रेरित किया जाएगा।

बहुभाषी कर्मचारियों को अवसर: अब बहुभाषी युवाओं को सरकारी सेवा में प्राथमिकता मिल सकती है।

आर्थिक और व्यावसायिक लाभ

भाषा का सीधा संबंध व्यापार और रोजगार से भी है। यदि प्रशासनिक प्रक्रियाएं सरल होंगी, तो उद्यमियों और आम जनता के लिए अवसर बढ़ेंगे।

प्रमुख आर्थिक फायदे:

MSME को लाभ: छोटे व्यवसायों को अपनी भाषा में योजनाएं और निर्देश समझ आने से वे अधिक सशक्त होंगे।

नवाचार और स्टार्टअप: स्थानीय भाषा में तकनीकी जानकारी मिलने से नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था: गाँवों में सरकार की योजनाएं अधिक प्रभावी होंगी।

भविष्य की संभावनाएं और रणनीतियां

‘Indian Languages अनुभाग’ एक स्थायी संस्थान के रूप में कार्य करेगा, और आने वाले वर्षों में कई योजनाएं इस के माध्यम से संचालित की जाएंगी।

संभावित पहलें:

राष्ट्रीय भाषायी अनुवाद संस्थान (NLTI): जो न्याय, विज्ञान, तकनीक, और प्रशासनिक क्षेत्र के दस्तावेज़ों का अनुवाद करेगा।

भाषा कोष और शब्दावली विकास: सभी प्रमुख भाषाओं में वैज्ञानिक व तकनीकी शब्दावली तैयार की जाएगी।

भाषा प्रशिक्षण केंद्र: सरकारी कर्मचारियों के लिए भाषाई प्रशिक्षण अनिवार्य किया जा सकता है।

जन-जागरूकता और भागीदारी

कोई भी नीति तभी सफल होती है जब उसे जनता का समर्थन मिले। इस प्रयास की सफलता के लिए समाज के हर वर्ग को शामिल करना आवश्यक है।

कैसे बढ़ेगी भागीदारी:

शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका: विश्वविद्यालयों में भाषाई अध्ययन को प्रोत्साहन मिलेगा।

मीडिया का सहयोग: भारतीय भाषाओं में मीडिया कवरेज से नीति को लोकप्रियता मिलेगी।

सामाजिक संगठनों की भागीदारी: NGOs और संस्थाएं स्थानीय स्तर पर जनजागरूकता अभियान चला सकते हैं।

राज्यों की भूमिका और उत्तरदायित्व

केंद्र सरकार की इस पहल की सफलता राज्य सरकारों की भागीदारी पर भी निर्भर करती है, क्योंकि प्रशासन का बड़ा हिस्सा राज्य स्तर पर संचालित होता है।

राज्यों से अपेक्षित योगदान:

राजकीय दस्तावेजों का अनुवाद: राज्यों को अपने शासनादेशों, अधिसूचनाओं और योजनाओं को क्षेत्रीय भाषाओं में जारी करने के लिए निर्देश दिए जा सकते हैं।

स्थानीय अनुवादक नियुक्ति: ज़िलों और ब्लॉकों में प्रशिक्षित अनुवादकों की भर्ती आवश्यक होगी।

पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण: सरकारी कर्मचारियों को प्रशासनिक भाषा में प्रशिक्षित करने के लिए विशेष पाठ्यक्रम चलाए जा सकते हैं।

राज्य और केंद्र के समन्वय से ही भाषाई सशक्तिकरण एक स्थायी संरचना में बदल सकता है।

छात्रों और युवाओं पर प्रभाव

भारतीय भाषाओं में प्रशासन और शिक्षा की उपलब्धता से विद्यार्थियों को जबरदस्त लाभ होगा। अब ग्रामीण और गैर-अंग्रेज़ी भाषी छात्र भी राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं और उच्च शिक्षा में समान रूप से भाग ले सकेंगे।

प्रमुख प्रभाव:

आत्मविश्वास में वृद्धि: जब शिक्षा और परीक्षा अपनी भाषा में हो, तो छात्र बेझिझक प्रतिस्पर्धा कर पाते हैं।

नवाचार की स्वतंत्रता: सोच और शोध अपनी भाषा में करना आसान होता है, जिससे रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिलता है।

कैरियर के अवसर: बहुभाषी युवाओं को सरकारी और निजी क्षेत्र में अनुवाद, लोक सेवा, नीति निर्माण आदि में अवसर मिलेंगे।

भाषाई समावेशन की चुनौतियाँ

हालाँकि यह पहल अत्यंत सराहनीय है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में अनेक चुनौतियाँ भी सामने आएंगी जिन्हें दूर करना अनिवार्य है।

प्रमुख चुनौतियाँ:

1. भाषाई विविधता: भारत में 120 से अधिक प्रमुख भाषाएं हैं। सभी को प्रशासन में शामिल करना एक जटिल कार्य है।

2. प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी: फिलहाल अनुवादक, भाषा विशेषज्ञ और तकनीकी प्रोफेशनल्स की संख्या सीमित है।

3. तकनीकी शब्दावली का विकास: विज्ञान, कानून, और प्रौद्योगिकी के लिए भारतीय भाषाओं में उपयुक्त शब्दों की कमी है।

4. राजनीतिक विरोध: कुछ राज्यों में हिंदी या किसी अन्य भाषा को प्राथमिकता देने को लेकर विरोध की संभावनाएं रहती हैं।

इन चुनौतियों को नीति-निर्माण, प्रशिक्षण, जन-संवाद और तकनीकी विकास से हल किया जा सकता है।

Amit Shah Indian Languages Section: अब प्रशासन चलेगा भारतीय भाषाओं में!
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भाषाई समरसता बनाम भाषाई वर्चस्व

अमित शाह ने स्पष्ट किया कि यह प्रयास “हिंदी थोपने” या किसी एक भाषा को वर्चस्व देने का नहीं, बल्कि हर भारतीय भाषा को उसका उचित सम्मान देने का है। यह प्रयास भाषाई समरसता (Linguistic Harmony) को बढ़ावा देगा।

भाषाई समरसता के आयाम:

एक-दूसरे की भाषाओं को समझने और अपनाने की प्रेरणा

भाषा के आधार पर भेदभाव खत्म करना

भारतीय भाषाओं की वैश्विक पहचान को मज़बूती देना

अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: भाषाई आत्मनिर्भरता क्यों जरूरी?

दुनिया के कई देश जैसे जापान, फ्रांस, जर्मनी, चीन आदि अपनी-अपनी मातृभाषाओं में ही शिक्षा, तकनीक और प्रशासन संचालित करते हैं। भारत में यह पहल अब तक सीमित रही है।

उदाहरण:

जापान: सम्पूर्ण प्रशासन और तकनीकी विकास जापानी भाषा में होता है।

चीन: चिकित्सा, कानून और विज्ञान की पूरी व्यवस्था मंदारिन में है।

इज़राइल: आधुनिक हिब्रू को पुनर्जीवित कर राष्ट्र-निर्माण में भूमिका दी गई।

भारत को यदि वैश्विक मंच पर आत्मनिर्भर बनना है, तो अपनी भाषाओं में विज्ञान, तकनीक, कानून और प्रशासन को सशक्त करना ही होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि और समर्थन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘औपनिवेशिक गुलामी के प्रतीकों से भारत को मुक्त करने’ की बात बार-बार दोहराई है। अमित शाह का भाषाई अभियान इसी दिशा में एक ठोस कदम है।

नए संसद भवन का निर्माण

राजपथ का नामकरण ‘कर्तव्य पथ’

भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्राथमिक रूप से प्रयोग

यह सब भारत की सांस्कृतिक अस्मिता को पुनः स्थापित करने के प्रयत्न हैं, और ‘Indian Languages अनुभाग’ इसी श्रृंखला की एक कड़ी है।

भविष्य की संभावित योजनाएं

नीचे संभावित कुछ योजनाएं दी गई हैं जो इस अनुभाग के अंतर्गत भविष्य में सामने आ सकती हैं:

1. भारत भाषा पोर्टल – एक बहुभाषीय पोर्टल जहां सभी सरकारी आदेश, अधिसूचनाएं और नीतियाँ सभी 22 भाषाओं में उपलब्ध होंगी।

2. AI आधारित रियल-टाइम अनुवाद एप – सभी सरकारी मीटिंग्स व प्रेस कॉन्फ्रेंस को लाइव भाषाओं में ट्रांसलेट करने का टूल।

3. भाषा-अनुसार सरकारी भर्ती – क्षेत्रीय भाषाओं को आधार बनाकर सरकारी नौकरियों में विशेष प्रावधान।

4. भाषाई बौद्धिक संपदा विकास मिशन – क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी और वैज्ञानिक पुस्तकों को प्रकाशित करने की योजना।

निष्कर्ष: Indian Languages — आत्मनिर्भर भारत की आत्मा

Indian Languages अनुभाग’ की शुरुआत केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि भारत की आत्मा को पुनः जाग्रत करने का राष्ट्रीय संकल्प है।

यह पहल हमारे राष्ट्र के उस स्वाभिमान को पुनर्स्थापित करने की दिशा में है, जो वर्षों तक औपनिवेशिक मानसिकता के बोझ तले दबा रहा।

गृह मंत्री अमित शाह का यह ऐलान दर्शाता है कि अब भारत सुनने, बोलने, सोचने और शासन करने की भाषा में भी भारतीय होना चाहता है।

यह केवल हिंदी को नहीं, बल्कि भारत की सभी 22 संविधानिक भाषाओं को समान सम्मान और प्रशासनिक दर्जा देने की दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास है।

इस पहल से न सिर्फ आम नागरिकों की शासन में भागीदारी बढ़ेगी, बल्कि यह शिक्षा, न्याय, तकनीक और रोजगार जैसे क्षेत्रों को भी लोकतांत्रिक और जन-समर्थ बनाएगी। इसके माध्यम से:

भारत की भाषाई विविधता एक शक्ति बनेगी, बाधा नहीं।

ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के लोग भी प्रशासन से सीधे जुड़ पाएंगे।

देश में एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण होगा, जहाँ भाषा के आधार पर किसी को भी कमजोर नहीं समझा जाएगा।

भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं होती, यह सांस्कृतिक अस्मिता, राष्ट्रभक्ति, और सामाजिक न्याय की नींव होती है। ‘भारतीय भाषाएं अनुभाग’ भारत को प्रशासनिक रूप से भी भाषाई स्वतंत्रता दिलाने का साहसिक कदम है।

अब समय आ गया है कि हम, भारतवासी, “सोच भी भारतीय हो, अभिव्यक्ति भी भारतीय हो और शासन भी भारतीय हो” — इस विचार को व्यवहार में उतारें।

“भाषा बदलेगी, तो शासन बदलेगा; और जब शासन बदलेगा, तो भारत बदलेगा।”


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Sanjeev

Hello! Welcome To About me My name is Sanjeev Kumar Sanya. I have completed my BCA and MCA degrees in education. My keen interest in technology and the digital world inspired me to start this website, “Aajvani.com.”

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